व्यंग्य-2: महिलायें नहीं सठियाती क्योंकि…..

क्या आप सठिया गये हैं (व्यंग्यालेख भाग-2)
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# ज्ञानी जी ने एक अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ बोलना शुरू किया:–
★ उन्होंने कहा कि यह सामान्य धारणा है,जो सत्य भी है कि……आयु बढ़ने के साथ आदमी की बुद्धि क्षीण होने लगती है। सरकार भी ऐसा ही मानती है । तभी तो 60 साल की उम्र के बाद अपने कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा देती है और यही वर्ग है जो सबसे पहले और सबसे ज्यादा सठियाता है । एक ऐसा वर्ग भी है जो 60 पार होने के बाद भी न के बराबर सठियाता है, इस वर्ग में ऐसे प्रोफेशन से जुड़े लोग शामिल हैं जो जीवनपर्यन्त व्यस्त व सक्रिय रहते हैं जैसे डाक्टर, आर्किटेक्ट,व्यापारी, चार्टर्ड अकाउंटेंट, विधि-व्यवसायी आदि। इस वर्ग के पास सठियाने के लिये समय ही नहीं है… हां,जब ये अपना प्रोफेशन छोड़कर आराम करने का निर्णय लेते हैं तो इनके सठियाने की गति में बेतहाशा वृद्धि होने लगती है।
जहां तक महिलाओं के न सठियाने की बात है तो इसका प्रमुख कारण घरेलू कार्यों में उनकी आजीवन व्यस्तता है,इसके अतिरिक्त पति के नौकरी से रिटायर होने अथवा अपना प्रोफेशन छोड़कर घर में रहने से उनकी फरमाइशें पूरी करने व नाती-पोतों में मन लगने से वे पहले की अपेक्षा अधिक व्यस्त हो जाती हैं । अतः उन्हें सठियाने का बिल्कुल ही समय नहीं मिलता,इसीलिये यह धारणा बन गई है कि 60 पार होने के बाद भी महिलायें नहीं सठियाती हैं।वैसै भी महिलायें पुरुषों के मुकाबले तीक्ष्ण बुद्धि की होती हैं। अतः यदि उनकी बुद्धि थोड़ा क्षीण भी हो जाती है तो उसका आभास नहीं हो पाता है।
ज्ञानी जी ने कहा जैसे हर नियम में कुछ अपवाद होते हैं तो सठियाने के मामले में भी कुछ अपवाद हैं,हमने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वो कैसे?
….इस पर ज्ञानी जी ने स्पष्ट किया कि कुछ लोगों के सठियाने पर उम्र का बन्धन लागू नहीं होता है, वे जन्म से ही सठियाये हुये होते हैं । जीवनभर ऊलजलूल व बच्चों जैसी बातें करते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों को लोग कभी भी गम्भीरता से नहीं लेते। ज्ञानी जी के इस ज्ञान से हमें उन मित्र का तत्क्षण स्मरण हो आया, जिन्होंने अपनी टिप्पणी में हमें सठियाया हुआ इंगित किया था।
★ ज्ञानी जी ने कहा कि सामान्यतः सठियाने के प्रमुख लक्षण हैं…. बहकी-बहकी बातें करना,अनपेक्षित व्यवहार जो आयु,स्थान व परिस्थिति के अनुकूल न हो,ऊलजलूल बोलना, बातों से बचपने का आभास, विचारों व वाणी में तालमेल न होना, साठ पार के बावजूद नौजवानों जैसा दिखने की कोशिश करने में अधपके बालों को रंगना..रंगबिरंगे कपड़े पहनना,काउबॉय टाइप हैट लगाना,बरमूडा व कैपरी जैसे वस्त्र धारण कर अधनंगे घूमना….हमेशा पुरानी यादों में खोये रहना, समय-बेसमय नौकरी के बेसिरपैर के किस्से सुनाना, एक ही बात को कई बार दोहराना,उम्र का ख्याल न कर इश्क या शादी करना,ऐसे चुटकुले सुनाना जिसमें सुनने वालों को भले ही हंसी न आये लेकिन खुद जोर-जोर से हंसना आदि-आदि।
★ ज्ञानी जी ने बात जारी रखते हुये कहा कि साठ पार करते ही लोग सतर्क हो जाते हैं। दिल में यह डर पैठ जाता है कि उन्हें कभी भी सठियाने की उपाधि मिल सकती है। अतः वे सदैव यह जाहिर करने के प्रयास में रहते हैं कि वे तो पहले जैसे ही हैं लेकिन इसके बावजूद यदाकदा ऊंटपटांग हरकत कर सठिया जाने का अहसास दिला देते हैं। यद्यपि ऐसी हरकतों से वे अनभिज्ञ रहते हैं लेकिन उन्हें नजदीक से जानने वाले इस असामान्य हरकत को तुरन्त कैच कर लेते हैं व समझ जाते हैं कि बन्दा सठियाने की ओर अग्रसर है। साठ पार व्यक्ति के हृदय में हमेशा एक मनोवैज्ञानिक डर बना रहता है कि लोग कहीं यह न कह बैठें कि वह सठिया गये हैं। घर के सदस्य भले ही धीमे स्वर में किसी अन्य विषय पर बात कर रहे हों लेकिन साठ पार को यही लगता है कि शायद उसके सठिया जाने पर ही कानाफूसी हो रही है। साठ पार का व्यक्ति कभी यह मानने को तैयार नहीं होगा कि वह सठिया गया है, उसे यही लगता रहता है कि दूसरे लोगों में बदलाव आ रहा है । वह तो पहले जैसा ही है। उसके सठियाने का सबसे अधिक खामियाजा उसकी पत्नी को ही भुगतना पड़ता है लेकिन पत्नी ही उसे ‘तुम सठिया गये हो’ कहने की हिम्मत भी रखती है।
★ ज्ञानी जी बोले- जैसा कि वे पहले ही कह चुके हैं कि सरकारी व निजी नौकरी से रिटायर व्यक्ति बहुत तेजी से सठियाता है क्योंकि सेवाकाल में चाटुकारों व अपने स्वार्थ के कारण निकटस्थ होने का दम्भ भरने वाले व्यक्तियों की चिकनी चुपड़ी बातों के जाल में फंसकर उसे यह भ्रम हो जाता है कि वह बहुत लोकप्रिय है तथा रिटायरमेंट के बाद भी उसका वही जलवा बना रहेगा लेकिन रिटायरमेंट के छह माह में ही यह तिलिस्मी मायामहल ढह जाता है। जिन लोगों को वह अपने सबसे निकट मानता था वही कन्नी काटने लगते हैं। सामने देखकर भी न देखने का नाटक करते हैं। यहां तक कि लोग फोन उठाना भी बन्द कर देते हैं व अन्त में ले-देकर परिवार व चुनिन्दा मित्र ही काम आते हैं। यह स्थिति उसके सठिया जाने का प्रमुख कारण बनती है…भला हो फेसबुक व व्हाट्सएप का,जिसकी बदौलत रिटायर्ड लोगों का समय कट रहा है वर्ना अब तक इनमें से 60 प्रतिशत से अधिक लोग डिप्रेशन में आ गये होते।
★ ज्ञानी जी ने कहा कि जो लक्षण उन्होंने गिनाये हैं उनके आधार पर साठ पार व्यक्तियों के सठिया जाने का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
हमने एक जिज्ञासा व्यक्त की कि आजकल आपस में मिलने-जुलने का प्रचलन कम है । अतः हम यह कैसे अनुमान लगायें कि फलां व्यक्ति सठिया गया है, इस पर थोड़ी देर तक सोचने के बाद ज्ञानी जी ने पूंछा कि लोगों से कम्युनिकेशन का कोई तो माध्यम होगा? हमने कहा कि फेसबुक व व्हाट्सएप के माध्यम से सम्पर्क रहता है,यदाकदा फोन पर भी बात हो जाती है। इस पर ज्ञानी जी ने कहा कि साठ पार के व्यक्तियों की पोस्ट को गौर से देखेंगे व बताये गये लक्षणों के आधार पर आकलन करेंगे तो 90 प्रतिशत मामलों में उस व्यक्ति के सठियाने के बारे में निष्कर्ष निकाला जा सकता है।
ज्ञानी जी के उक्त ज्ञान के प्रकाश में हमने अपने साठ पार के फेसबुक मित्रों की पोस्ट को पुनः गौर से देखा तो ज्ञानी जी की बात सही प्रतीत हुई। एक मित्र जो सेवाकाल में अच्छे-खासे लोकप्रिय अधिकारी रहे हैं, उन्हें अब पता नहीं क्या हो गया है… जब देखो तब,कभी केचुए,कभी कछुए व कभी उल्लुओं से सम्बन्धित पोस्ट भेज उनके गुणों का बखान करते रहते हैं। एक मित्र को तो अपनी जवानी के दिनों की फोटो पोस्ट करने का बहुत शौक है, अरे भाई….और लोग भी जवान होने के बाद ही 60 पार किये हैं। एक मित्र तो ‘अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है’ की तर्ज पर अपने पैतृक गांव की सालों पुरानी हाट-बाजार की फोटो भेज रहे हैं, कुछ लोग रिटायरमेंट के बाद कविता व व्यंग्य लेखन के मैदान में कूद मित्रों को उत्पीड़ित करने करने में अत्यन्त सुख का अनुभव करते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो अपनी 20 साल पुरानी व कई बार पढ़ी कविता को पोस्ट कर पुराने घावों को कुरेदते रहते हैं, कुछ लोग दूसरे की पोस्ट को स्वरचित बताकर वाहवाही लूटने का उपक्रम करते रहते हैं। एक मित्र जब भी मिलते हैं तो वही किस्सा सुनाने लगते हैं जो उनके श्रीमुख से दसियों बार सुना जा चुका है, ऐसे में अपना सिर फोड़ने का मन करता है। कुछ मित्र यही ज्ञान देते रहते हैं कि जब वह सेवा में थे तो उन्होंने क्या-क्या तीर मारे थे, अरे भाई… और लोग भी उच्च पदों पर कार्य किये हैं उनके सामने डींगें मारने का मतलब है। ‘नानी के आगे ननिहाल की बातें’। कुछ ऐसे मित्र भी हैं जो पोस्ट को बिना पढ़े ही उस पर कमेन्ट कर देते हैं व उसे स्वीकार भी कर लेते हैं।अब बताइये… यह सठियाना नहीं तो और क्या है। हम तो कहेंगे कि यह सठियाने की पराकाष्ठा है। ज्ञानी जी की बातों से हमारे ज्ञानचक्षु खुल गये थे । हमें अब यह लगने लगा कि लोगों के सठिया जाने का निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है।
हमें लगा कि हमारी जिज्ञासाओं का उत्तर देते-देते ज्ञानी जी थक गये हैं। पूछने पर बताया कि वह रात में ठीक से सो नहीं पाये हैं क्योंकि कल शाम हमारे जिज्ञासु मित्र के अनुरोध पर उन्होंने राष्ट्र को सम्बोधित किया था जिसके बाद उनके पास बधाई के इतने फोन आये कि वह सो नहीं सके।हमने भी उक्त सम्बोधन सुना था सो हम भी ज्ञानी जी को उनके विद्वतापूर्ण सम्बोधन के लिये बधाई देते हुये उठने का उपक्रम कर ही रहे थे कि ज्ञानी जी ने अचानक से एक प्रश्न दाग दिया कि..’आपकी उम्र क्या है और आप करते क्या हैं’? हमने कहा कि हम 66 पार हो गये हैं व हम भी रिटायर्ड है । रिटायरमेंट के बाद लगभग चार माह पूर्व से अपने जिज्ञासु मित्र की प्रेरणा से व्यंग्य लेखन शुरु किया है।माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से हमने ज्ञानी जी को चार पंक्तियां सुनाई:–

सरकार ने वफादारी का यह सिला दिया।
भरी जवानी में परमानेंट रिटायर कर दिया।
एक बात हमको बिल्कुल भी नहीं भाती है।
कि साठ की उम्र, इतनी जल्दी आ जाती है।
कहते हैं लोग सब साठ में सठियाने लगते हैं।
पर हम तो ज्ञानी जी अभी तक जवान लगते हैं।

सुनकर ज्ञानी जी मुस्कराये और बोले कि दिल को बहलाने को आपका यह ख्याल अच्छा है। ज्ञानी जी ने परोक्ष रूप से हमारे बारे में संकेत तो दे ही दिया था लेकिन इसे अनसुना करते हुये हमने उनसे विदा ली । यह गुनगुनाते हुये घर की ओर चल पड़े कि ‘अभी तो मैं जवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं’।
◆◆◆◆ सबको सुबह की राम राम ◆◆◆◆
@ रिटायर्ड आईएएस जगदीश गुप्ता की फेसबुक वॉल से साभार

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