मनमोहन के सस्ते पेट्रोल-डीजल की कीमत भी चुकायेंगे मोदी

 

महंगे पेट्रोल प्राइज का ठीकरा कांग्रेस सरकार पर फोड़ते हुए PM मोदी ये सच क्यों नहीं बताते
पीएम मोदी ने पिछली सरकारों को आज की बढ़ती तेल कीमतों के लिए जिम्मेदार बता दिया है. कहा जा रहा है कि मनमोहन सिंह ऑयल बॉन्ड न लाते तो ये नौबत न आती. क्या है इस दावे की सच्चाई. (फोटो-पीटीआई)

ट्विटर पर ‘100 रुपए में पेट्रोल’ के मीम शेयर किए जा रहे हैं. सरकार समर्थक लोग इसे भी देश हित में बता रहे हैं. ऐसे में बीजेपी कह रही है कि अगर पिछली सरकारों ने ऑयल बॉन्ड का पैसा भरा होता, तो इतनी टेंशन न होती. उनका ये भी कहना है कि वो सारा पैसा चुकाने के चक्कर में ही तेल महंगा हो गया है. क्या यह बात सच है? ये ऑयल बॉन्ड (oil bond) क्या हैं, जिन पर इतनी मारामारी है. आइए ये सब जानते हैं तफ्सील से. देश में तेल की कीमतों के रिकॉर्ड पर पहुंचने के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 फरवरी को कहा था कि अगर पिछली सरकारों ने भारत की ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम करने पर गौर किया होता तो आज मध्यम वर्ग पर इतना बोझ नहीं पड़ता.

तमिलनाडु में ऑयल एंड गैस प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करने के लिए आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा,

“क्या भारत जैसे एक विविध और सक्षम देश को एनर्जी इंपोर्ट पर निर्भर होना चाहिए? मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता, लेकिन मैं चाहता हूं कि अगर हमने इस मसले पर पहले फोकस किया होता तो हमारे मध्यम वर्ग को बोझ नहीं सहना पड़ता.”

इससे पहले 10 फरवरी को बीजेपी के ट्विटर हैंडल से भी तेल के दाम बढ़ने के लिए मनमोहन सिंह सरकार को जिम्मेदार बताते हुए एक ट्वीट किया गया था. इसका मजमून कुछ ऐसा था.

अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम की कीमत पर क्या कहा और किया था. उन्होंने कहा था कि पैसा पेड़ों पर नहीं उगता और 1.3 लाख करोड़ रुपए का ऑयल बॉन्ड का बिल बिना भरे ही चले गए. मोदी सरकार ने वो सारे बिल ब्याज के साथ भरे, हमें अपने बच्चों पर बोझ नहीं डालना है.

ये ऑयल बॉन्ड का क्या चक्कर है

इस ट्वीट में बाकी बातों के अलावा ऑयल बॉन्ड का भी जिक्र है. आखिर यह किसका बहीखाता है, जिसे मोदी जी को सेटेल करना पड़ा है. तो आइए पहले थोड़ा ऑयल बॉन्ड के बारे में भी जान लेते हैं. बॉन्ड का मतलब एक तय वक्त पर पैसा चुकता करने का भरोसा है. आप इसे एक किस्से से समझिए.

लल्लन सिंह को अपने बेटे की शादी के लिए अपने दोस्त पुत्तन सिंह के यहां से सामान खरीदना है. लल्लन सिंह के पास पैसे हैं नहीं. लेकिन उनको लगता है कि कमाऊ पूत कमा कर अगले 5 साल में घर भर देगा. वह पुत्तन सिंह के पास जाते हैं और कहते हैं कि पुत्तन भाई 5 लाख रुपए का सामान दे दो. लेकिन उस सामान की मैं अभी नकद पेमेंट नहीं कर सकता. इसके बदले एक लेटर पर लिखकर दे देता हूं कि आपको 5 साल बाद 5.50 लाख रुपए दे दूंगा. इस बीच हर साल आप मेरी किराने की दुकान से 10 हजार का सामान भी मुफ्त में ले लेना. इस तरह से लल्लन सिंह ने दोस्त पुत्तन सिंह को 5 लाख रुपए का बॉन्ड 5 साल की अवधि के लिए दे दिया.

सरकार यही लल्लन सिंह हैः

भारत सरकार ने भी साल 2005 में लल्लन सिंह वाला फंडा अपनाया. रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार सरकार कंपनियों को भी स्पेशल बॉन्ड इश्यू कर सकती है. मतलब अगर सरकार चाहे तो नकद पेमेंट की जगह पर किसी कंपनी को बॉन्ड में पेमेंट कर सकती है. इससे सरकार को फायदा यह होगा कि उसे अपनी जेब से कैश नहीं देना होगा. इससे राजकोषीय घाटा भी कंट्रोल रहेगा. मतलब सरकार की देनादारी और कमाई का रजिस्टर साफ-सुथरा दिखेगा. इसका एक राजनीतिक फायदा यह भी था, कि अभी काम चल रहा है, बाद में सरकार रहे न रहे. जो सरकार आएगी वो देखेगी. सरकार ने ऑयल बॉन्ड को साल 2005 में शुरू किया. उसने ऑयल मार्केट कंपनियों (OMC) को बॉन्ड के तौर पर भुगतान करना शुरू किया. इन बॉन्ड्स को एक निश्चित अवधि के लिए इश्यू किया गया था. ऑयल कंपनियों को इस बात की आजादी थी कि वे अवधि के बीच इन बॉन्ड्स के बैंक, इंश्योरेंश कंपनियों आदि को बेच सकती हैं. इससे जरूरत पड़ने पर वह भी अपनी आर्थिक परेशानी से निपट सकेंगी. ये वो वक्त था जब ऑयल पर सब्सिडी मिलती थी. मतलब इंटरनेशनल मार्केट में रेट कुछ भी हो सरकार अपने हिसाब से रेट कंट्रोल करती थी.


तेल कंपनियों को जेब से कैश न देना पड़े, इसलिए ऑयल बॉन्ड की शुरुआत की गई. (सांकेतिक इमेज – एपी).

सरकार ने 2005 से लेकर 2009 के बीच 4 लाख करोड़ रुपए के ऐसे ही ऑयल बॉन्ड इश्यू किए. इस बीच 2008 में वैश्विक मंदी आ गई. ऑयल मार्केट कंपनियों की हालत भी खराब हो गई. कंपनियां सरकार के पास पहुंचीं और कहा कि हमारे पास कैश ही नहीं है, यही हाल रहा तो कंपनियां बंद हो जाएंगी. सरकार की खुद की ऑयल कंपनियां खतरे में आ गईं. ऐसे में सरकार ने 2010 में बॉन्ड से पेमेंट करने का सिस्टम बंद करके कैश पेमेंट का सिस्टम फिर शुरू कर दिया. जून 2010 में पेट्रोल के दामों को डिरेग्युलेट कर दिया गया. मतलब सरकार ने कहा कि जैसा मार्केट में कच्चे तेल का दाम होगा, उस हिसाब से ही दाम भारत में भी बढ़ेगा-घटेगा. अक्टूबर 2014 में डीजल पर भी यही व्यवस्था लागू कर दी गई. साल 2017 में वर्तमान में चलने वाले डायनामिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लाया गया. इसमें दुनियाभर की मार्केट के हिसाब से तेल की कीमतों में रोज उतार-चढ़ाव आने लगा.

मोदी सरकार की टेंशन क्या है?

जो बॉन्ड 2005 से 2009 के दौरान इश्यू किए गए थे, वो 2022 से 2026 के बीच मेच्योर हो रहे हैं. इनकी कीमत तकरीबन 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए है. मतलब अब लल्लन सिंह के पेमेंट करने का वक्त आ रहा है. इसमें से भी ज्यादातर बॉन्ड 2022 में ही मेच्योर हो रहे हैं.


बजट की रसीद में मोदी सरकार की ऑयल बॉन्ड के एवज में देनदारी साफ देखी जा सकती है.

अब तक मोदी सरकार ने कितना चुकाया?

मोदी सरकार को अपने पहले कार्यकाल, यानी मई 2014 से 2019 के बीच दो बार बॉन्ड की रकम भरने की नौबत आई है. ये दोनों ही सेट 2015 में मेच्योर हुए थे. इनकी कीमत थी 3500 करोड़ रुपए. यह बात सरकार ने राज्यसभा में बताई भी थी. इस देनदारी को 2019-20 की बजट रसीद में देखा भी जा सकता है. 2018-19 में जब एनडीए यानी मोदी सरकार आई तब देनदारी 1,34,423 करोड़ रुपए थी, जो अब 1,30,923 रह गई है. इससे साफ पता चलता है कि एनडीए सरकार ने 3,500 करोड़ रुपए और ब्याज का भुगतान किया है.

बजट डॉक्युमेंट के अनुसार 2019 से 2024 के बीच मोदी सरकार पर ऑयल बॉन्ड की 41,150 करोड़ रुपए की देनदारी बनती है. हालांकि इस देनदारी से जुड़ा कोई भी बॉन्ड अभी मेच्योर नहीं हुआ है. साल 2021 में मोदी सरकार पर 10 हजार करोड़ रुपए के 2 ऑयल बॉन्ड की देनदारी है. इसे अभी भरा नहीं गया है और 5-5 हजार करोड़ के ये ऑयल बॉन्ड इस साल 16 अक्टूबर और 28 नवंबर को मेच्योर होंगे. इसके बाद अगला ऑयल बॉन्ड 10 नवंबर 2023 को मेच्योर होगा. इसके लिए सरकार को 22 हजार करोड़ रुपए और ब्याज भरना होगा।

कुल जमा बात बस इतनी सी है कि सरकारें अपने बहीखाते को साफ रखने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी करती हैं. इस बाजीगरी का एक नमूना बॉन्ड भी हैं. ये ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होए’ फंडे पर काम करते हैं.

इसी तरह की एक खबर कुछ दिन पहले आई थी. खबर ये थी कि सरकार पंजाब एंड सिंध बैंक (PSB) का रिकैपिटलाईज़ेशन करेगी. मतलब उसे वेंटिलेटर लगा जिंदा करेगी. इसके लिए सरकार, RBI यानी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया से 5,500 करोड़ रुपए के ज़ीरो कूपन बॉन्ड इश्यू करेगी।

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