तो किसान आंदोलन ने भूमिका बनाई मदन कौशिक के भाजपा अध्यक्ष बनने में?

देहरादून 12 मार्च। 48 घंटों में ही सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक फेरबदल कर डाला है. 10 मार्च शाम चार बजे त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि उसके ठीक 48 घंटे बाद तीरथ सिंह रावत के मंत्री परिषद गठन से पहले ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को उनके पद से हटा दिया गया और उनकी जगह हरिद्वार से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. भगत को बाद में शाम तक तीरथ सिंह रावत की कैबिनेट में शामिल किया गया। जानकार मानते हैं कि पिछले पांच सालों में प्रदेश की राजनीति में आनन-फानन में हुए ये दो सबसे बड़े बदलाव हैं.
मदन कौशिक मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को बधाई देते हुए

भगत की विदाई पहले से तय थी,तरीका अब निकला

छह बार के विधायक बंशीधऱ भगत साल 2020 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए.70 साल के भगत जब से प्रदेश अध्यक्ष बने तब से लेकर अब तब लगातार गढ़वाल और कुमाऊं के दौरे पर रहे.उन्होंने हर विधानसभा का दौरा किया, लेकिन इसी दौरान उनके कुछ विवादित बयानों से पार्टी के सामने परेशानी खड़ी कर दी.उन्होंने एक बार प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का असर खत्म होने संबंधी बयान दे डाले थे कि जो विधायक सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चमत्कार के भरोसे बैठे हैं,उनका चुनाव जीतना मुश्किल होगा। इसके कारण पार्टी की काफी किरकिरी हुई थी. साथ ही नेता प्रतिपक्ष डाक्टर इंदिरा हृदयेश के लिए उनके द्वारा कहे गए बुढ़िया से कौन संपर्क करेगा’ से भी पार्टी बैकफुट पर आई थी.तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस मामले में अपनी तरफ से नेता प्रतिपक्ष से माफी भी मांग कर प्रकरण शांत करना पड़ा था . पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी भगत के इन बयानों को सही नहीं माना था. सूत्रों के मुताबिक, तभी से भगत को हटाने की रणनीति चल रही थी, लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के इस्तीफे के बाद पार्टी को आसान रास्ता नजर आया और मौका देखते हुए अध्यक्ष पद से भगत को विदाई दे दी गई. भगत की जगह नए अध्यक्ष बने मदन कौशिक उनकी तुलना में कम उम्र के हैं. इसलिए चुनावी साल में ज्यादा भागदौड़ की जरूरत देखते हुए उन्हें कमान सौंपी गई है.

किसान आंदोलन को देखते हुए लिया गया निर्णय

मदन कौशिक ब्राह्मण समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्हें एक तेज-तर्रार नेता माना जाता है. त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में शहरी विकास के अलावा कई महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने वाले कौशिक को संघ का भी आशीर्वाद मिला हुआ है.पिछले आठ-दस माह में प्रदेश के राजनीतिक समीकरण गुणात्मक रूप से बदले हैं क्योंकि कृषि कानून के खिलाफ जारी किसान आंदोलन के बाद मैदानी जिलों हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में भाजपा की स्थिति प्रभावित हुई है. याद करें, ऊधमसिंहनगर में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक किसान कानूनों पर किसानों को समझाने आये तो प्रदेश के कैबिनेट मंत्री अरविंद पाण्डेय तक को आंदोलनकारी किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
जानकार मानते हैं कि भाजपा ने इन्हीं हालातों से निपटने , किसान आंदोलन की आंच से पार्टी को मैदानी 19 विधानसभा सीटों पर बचाने को मैदानी जिले से आने वाले मदन कौशिक को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला लिया है. ​

मैदान से पहली बार बना कोई प्रदेश अध्यक्ष

बंशीधर भगत के बाद प्रदेश अध्यक्ष बने मदन कौशिक भाजपा के 11वें प्रदेश अध्यक्ष हैं. मेजर जनरल (रिटायर्ड) भुवन चंद्र खंडूड़ी खंडूरी अविभाजित उत्तर प्रदेश में अलग उत्तरांचल ईकाई बनने पर प्रदेश भाजपा के पहले अध्यक्ष थे जिनके बाद पूरन चंद्र शर्मा, भगत सिंह कोश्यारी, मनोहरकांत ध्यानी, भगत सिंह कोश्यारी, बची सिंह रावत, बिशन सिंह चुफाल, तीरथ सिंह रावत, अजय भट्ट, बंशीधर भगत के अध्यक्ष बनने का सिलसिला रहा, लेकिन कौशिक से पहले बने सभी 10 प्रदेश अध्यक्ष कुमाऊं और गढ़वाल के पहाड़ी जिलों से ही थे. लेकिन ये पहला मौका है जब किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी ने पहाड़ी जिलों से मैदानी जिले के नेता को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. कांग्रेस भी ऐसी हिम्मत अभी तक नहीं कर पाई है. कांग्रेस में अभी तक हरीश रावत, यशपाल आर्य, किशोर उपाध्याय, प्रीतम सिंह अध्यक्ष रहे हैं, जिनका संबंध पहाड़ से ही रहा है. ऐसे में हरिद्वार से संबंध रखने वाले मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने नया राजनीतिक दांव खेला है.

तोड़ा गढ़वाल-कुमाऊं पर्वतीय का फॉर्मूला

आमतौर पर देखा गया है कि सरकार होने की स्थिति में कोई भी पार्टी मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष में जातीय और क्षेत्रीय समीकरण का विशेष खयाल रखती है, लेकिन मदन कौशिक को बनाने से भाजपा ने क्षेत्रीय समीकरण को भी तोड़ दिया है. आमतौर पर माना जाता है कि मुख्यमंत्री गढ़वाल का राजपूत होने की स्थिति में कुमाऊं के ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है. वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री कुमाऊं का राजपूत होने की स्थिति में गढ़वाल के ब्राह्मण को पार्टियां प्रदेश अध्यक्ष बनाती रही हैं. विपक्ष पर रहते हुए पार्टियां नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को लेकर इसी क्षेत्रीय फॉर्मूले को फॉलो करती रही हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने गढ़वाल मंडल से ही मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बना नया राजनीतिक समीकरण गड़ने की कोशिश की है.

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