नहीं रहे साहित्यिक, भाषाविद डॉ. कर्नल अचलानंद जखमोला

पहाड़ की माटी और थाती को समर्पित थे कर्नल अचलानंद
– गढ़वाली-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोष समेत कई पुस्तकें लिखी
– महंत इंद्रेश के प्रिय शिष्य और स्वामी राम अस्पताल के पहले प्रबंधक थे कर्नल अचलानंद जखमोला

पौड़ी का गोदड़ा-गडकोट गांव। 14 साल का किशोर अचलानंद आगे की पढ़ाई की जिद लिए देहरादून जा रहा था। मां की आंखों में आंसू थे और बेटे लिए लाखों दुआएं। मां ने उसके जांघिए के नाडे में पांच रुपये छिपाते हुए कहा, ‘मि म त ई च, जख जाण च कुछ कैरि क ऐ‘। किशोर अचला मां के दिये हुए पांच रुपये और मालू के पत्तों में लिपटे हुई सात रोटियां और भुज्जी लेकर देहरादून की ओर चला। चिन्तित पिता भी गांव की धार तक बेटे को छोड़ने आया। कुछ दूर बाद ही मां-पिता और गांव छूट गया। नदी के किनारे किनारे चलता हुआ अचला देहरादून की ओर बढ़ा। तीन दिन में वह पैदल चलते देहरादून पहुंच गये। न रहने का ठिकाना और न खाने।

अचला देहरादून पहुंचे तो कई कष्ट सहे। महंत इंद्रेश उनके सहारा बने। उन्होंने जगह दी और लक्ष्मण विद्यालय में 11वीं के पहले छात्र बने। वक्त के थपेड़ों और संघर्ष की भट्टी में तपकर अचला आगे बढ़ते गये। उन्होंने पढ़ना नहीं छोड़ा। पीएचडी किया। सेल्सटैक्स आफिसर रहे। सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल पद से रिटायर हुए। एसएसबी के हेड रहे। रिटायरमेंट के बाद साहित्य की सेवा में जुट गये। उन्होंने गढ़वाली हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश समेत कई पुस्तकें लिखी।

2018 में उन्होंने उत्तराखंड हेरिटेज रिक्लेक्टिड लिखी। इस पुस्तक के लिए मैंने थोड़ा बहुत काम किया। इसके बावजूद डा. अचलानंद जखमोला ने प्रीफेस में मुझे कई ब्रिगेडयर और अन्य प्रमुख लोगों से अधिक महत्व दिया। यह उनका मेरे लिए आशीर्वाद था। मैं लंबे समय से उनसे नहीं मिल सका। वह बीमार रहने लगे थे। दिल्ली आरआर में इलाज चल रहा था। आखिरी बार जब उनसे मिलने गया तो बरामदे में लेटे थे। देर में पहचाने और कंपकंपाते हाथों से मेरा हाथ थाम लिया। मैंने उन्हें सहारा देकर बिठा दिया। कर्नल जखमोला निष्कपट थे और जो उनके दिल में था वही जुबान पर भी। मैंने उन्हें कभी लाग-लपेट करते नहीं देखा। वह महंत इंद्रेश चरण दास के प्रिय शिष्य थे और स्वामी राम के भी आत्मीय थे। जौलीग्रांट अस्पताल प्रबंधन उन्हीं के हाथ में था। लेकिन उन्होंने कभी अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया। उनका जीवन शुचितापूर्ण रहा और मिसाल बना।

मैंने बहुत से लोगों को बहुत नजदीक से देखा है। लेकिन कर्नल अचलानंद जखमोला जी की पत्नी शैल जखमोला का कोई जवाब नहीं है। वह कर्नल साहब का इतना ध्यान रखती। दवाओं का, खाने का और उनके आराम का कि गर्व होता है कि पहाड़ की महिलाएं ऐसी भी होती हैं। पिछले 6 साल से वह दिन-रात कर्नल जखमोला का ध्यान रख रहीं थी।

आज सुबह सो ही रहा था कि दुबई से पार्थ का मैसेज आया कि कर्नल साहब नहीं रहे। थोड़ी देर सन्न रहा। 90 वर्षीय कर्नल जखमोला का जीवन एक आदर्श जीवन रहा। वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे और पहाड़ की माटी और थाती के लिए समर्पित। उनके बच्चे जब भी पूछते कि पापा, आप कौन से स्कूल में पढ़े तो वह मजाक में कहते, कूंतणी कांवेंट। कूूंतणी उनके गांव का स्कूल था।

डाक्टर अचलानंद जखमोला आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका साहित्य और शब्दकोश युगों-युगों तक रहेगा। आज एक बार फिर लगा कि मेरे सिर पर जो हाथ हैं, उनमें से एक हाथ कम हो गया है। अश्रुपूर्ण नमन। आप हमेशा मेरे दिल में रहेंगें।

#गुणानंद जखमोला की फेसबुक वाल से साभार 

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