पाकिस्तान में क्यों तोड़ दी गई दुल्ला भट्टी की कब्र ?

जड़ो से नफरत –
4 साल पहले पाकिस्तान में दुल्ला भट्टी की कब्र पर पाकिस्तान में तोड़ फोड़ की गई। कुछ समय पहले महाराज रणजीत सिंह की मूर्ति तोड़ी गई।

भारत और पाकिस्तान के मुस्लिमों मे एक समस्या है जिसका नाम है – पहचान का संकट। उर्दू मे शिनाख्त का बोहरान और इंगलिश मे Identity Crisis.
आज भी ये लोग अपने पूर्वज अरब मे ढूंढते हैं।
पाकिस्तान के सबसे बड़े आदर्श हैं मुहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी। दोनों लुटेरे और बलात्कारी। आज सिन्ध मे कासिम की याद मनाई जाती हैं, जिसने सिन्ध की बेटियाँ उठाई थी।
ऐसे मे उन्हे बेटियों को बचाने वाला क्यों पसंद आएगा। महाराजा रणजीत सिंह हो या दुल्ला भट्ट उन्हे तो दुश्मन ही लगेगा। मामूली सा राजपूत जो अकबर से टकरा गया उससे नफरत ही होगी।
पाकिस्तानी पंजाब मे लोकगाथा इस प्रकार है –
सुंदरदास किसान था, उस दौर में जब संदल बार में मुगल सरदारों का आतंक था. उसकी दो बेटियां थीं सुंदरी और मुंदरी. गांव के नंबरदार की नीयत लड़कियों पर ठीक नहीं थी. वो सुंदरदास को धमकाता बेटियों की शादी खुद से कराने को. सुंदरदास ने दुल्ला भट्टी से बात कही. दुल्ला भट्टी नंबरदार के गांव जा पहुंचा. उसके खेत जला दिए. लड़कियों की शादी वहां की, जहां सुंदरदास चाहता था.
अकबर की 12 हजार की सेना दुल्ला भट्टी को न पकड़ पाई थी, तो सन 1599 में धोखे से पकड़वाया. लाहौर में दरबार बैठा. आनन-फानन फांसी दे दी गई. मियानी साहिब कब्रगाह में अब भी उनकी कब्र है. जिसको 5 साल पहले तोड़ दिया गया था।
वाघा अटारी बॉर्डर से लगभग 200 किलोमीटर पार, पाकिस्तान के पंजाब में पिंडी भट्टियां है. वहीं लद्दी और फरीद खान के यहां 1547 में हुए दुल्ला भट्टी .उनके पैदा होने से चार महीने पहले ही उनके दादा संदल भट्टी और बाप को हुमायूं ने मरवा दिया था. खाल में भूसा भरवा के गांव के बाहर लटकवा दिया था. वजह ये कि मुगलों को लगान देने से मना कर दिया था।
दुला भट्टी जो कि किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गया था? वह व्यक्ति बहुत ही दयालु स्वभाव का था, लोगों के कष्टों को देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठा करता था। हो सकता है कि वह प्रारंभ में विद्रोही हिंदू रहा हो पर कालांतर में किसी प्रकार के दबाव में आकर मुस्लिम बन गया था। मुस्लिम बनकर भी उसका अपने धर्म बंधुओं के प्रति व्यवहार अत्यंत भद्र रहा। हिंदुओं ने भी उसकी विवशता और बाध्यता को समझा तथा उसके प्रति सभी ने सहयोगी दृष्टिकोण अपनाया।
‘भटनेर का इतिहास’ के लेखक हरिसिंह भाटी इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 183 पर लिखते हैं :-”दुला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति (14 जनवरी) से एक दिन पूर्व अर्थात प्रति वर्ष 13 जनवरी को मनाया जाता है। उसके काल में यदि धनाभाव के कारण कोई हिंदू या मुसलमान अपनी बहन बेटी का विवाह नही कर सकता था तो दुल्ला भट्टी धन का प्रबंध करके उस बहन बेटी का विवाह धूमधाम से करवाता था। अगर वह स्वयं विवाह के समय उपस्थित नही हो सकता था तो विवाह के लिए धन की व्यवस्था अवश्य करवा देता था।”
दुला भट्टी को मुगलों ने एक डाकू के रूप में उल्लिखित किया है। परंतु उसे डाकू कहना उसकी वीरता का अपमान करना है। कारण कि डाकू का उद्देश्य दूसरों का धन हड़पकर अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। इसके लिए डकैत का कोई सिद्घांत नही होता कि उसे ऐसा धन किसी विशेष व्यक्ति से लेना है छीनना है और किसी विशेष व्यक्ति वर्ग से नही छीनना है वह तो धनी, निर्धन छोटे-बड़े किसी से भी धन छीन सकता है। किसी की कमाई की संपत्ति को हड़पने वाला व्यक्ति निश्चित रूप से डकैत होता है।
उसकी पावन-स्मृति में मनाये जाने वाले पर्व लोहड़ी को हमें और भी अधिक गरिमा प्रदान करनी चाहिए, जिससे कि उसके मनाये जाने के पावन उद्देश्य को लोग समझ सकें और हम भी एक शहीद को उसका सच्चा स्थान इतिहास में दे सकें।
कब्र तोड़ कर पाकिस्तान के लोगों ने बता दिया कि उनकी नजर मे बेटियाँ बचाने वाला गलत है और बेटियों को उठाने वाला सही।

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