मत:एमएसपी की मांग आर्थिक नहीं राजनीतिक है,रक्षा और मौलिक ढांचे में कटौती को तैयार है देश?

Kisan Andolan Legal Guarantee For Msp Spell Fiscal Disaster: Government Officials
MSP की कानूनी गारंटी वित्तीय संकट का द्वार खोल देगा… अधिकारियों की सरकार को चेतावनी
एक बार फिर 2 साल बाद किसान कई मांगों को लेकर दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। उनमें से एक मांग फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी है। किसानों की इस मांग के बीच अधिकारियों ने सरकार को चेताया है कि ऐसा करने से वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है। वहीं कांग्रेस ने कहा है कि सत्ता में आए तो एमएसपी को कानूनी गारंटी प्रदान करेंगे।

नई दिल्ली 14 फरवरी 2024: न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP समेत कई दूसरी मांगों को लेकर किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं। किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी गारंटी प्रदान करेंगे। किसानों के प्रदर्शन के बीच सरकार के सूत्रों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सभी फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने से वित्तीय संकट पैदा हो सकता है। हालांकि सरकार ने किसान समूहों के साथ बातचीत करने की इच्छा जताई है।

अधिकारियों का कहना है कि गारंटी देने वाला कोई कानून बनाना संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2020 में देश में कृषि उत्पादों का मूल्य 4 लाख करोड़ रुपये आंका गया था, जबकि एमएसपी व्यवस्था में आने वाली 24 फसलों का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये आंका गया था। 2023-24 के लिए केंद्र सरकार के कुल 45 लाख करोड़ रुपये के खर्च से इतनी कीमत की उपज खरीदने पर दूसरे विकास कार्यों और सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों के लिए बहुत कम पैसा बचेगा, जो भारत की प्रगति को बहुत जरूरी हैं।

अगले वित्त वर्ष को सरकार ने पूंजीगत खर्च के लिए 11,11,111 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो मुख्य रूप से सड़क और रेलवे बनाने को हैं। एक सूत्र ने कहा 10 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित बाजार मूल्य पिछले सात वित्त वर्षों में मौलिक ढांचे पर होने वाले औसत वार्षिक खर्च से अधिक है, जो 2016 से 2023 के बीच 67 लाख करोड़ रुपये है। स्पष्ट रूप से एमएसपी मांग आर्थिक या राजकोषीय समझदारी नहीं है।

हालांकि, सरकारी सूत्रों ने कहा है कि यह तर्क कृषि समूहों के साथ चर्चा बंद करने का आधार नहीं हो सकता। सूत्रों के अनुसार कृषि समूहों को इस मुद्दे पर चर्चा करने वाली केंद्रीय समिति में प्रतिनिधि नहीं भेजने के अपने पिछले रुख के विपरीत,बातचीत में भाग लेना चाहिए। कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति की चर्चाओं में किसान प्रतिनिधियों की गैर मौजूदगी पर प्रकाश डाला। चर्चाओं में, किसानों को एमएसपी प्रणाली मजबूत करने पर विचार करने वाले पैनल या एक नई समिति में शामिल होने को आमंत्रित किया गया था।

अधिकारियों ने यह भी कहा है कि मुफ्त बिजली जैसी अन्य मांगों से खेती के लिए अनुपयुक्त तरीके और पानी की खपत करने वाली फसलों के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन होगा। इस प्रदर्शन के बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन  खरगे ने कहा कि लोकसभा चुनाव में किसानों के लिए फसलों की व्यापक खरीद के साथ एमएसपी की कानूनी गारंटी हमारी गारंटी है लोकसभा चुनावों के लिए)। अगर हम सत्ता में आते हैं तब इस गारंटी को जरूर लागू किया जायेगा। यह हमारी पहली गारंटी है। यह तभी संभव है जब रक्षा और मौलिक ढांचे के बजट में विनाशकारी कटौती हो। जाहिर है कि कांग्रेस की प्राथमिकता चुनाव जीतना है, रक्षा और मौलिक ढांचा उसकी सरकारों में सबसे अंत की प्राथमिकता रहा है।

10 लाख करोड़ रुपये सालाना का अतिरिक्त बजट… क्या MSP गारंटी कानून संभव भी है?

फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून की मांग को लेकर केंद्र पर दबाव बनाने किसानों का ‘दिल्ली चलो’ मार्च दिल्ली पहुंचने की कोशिश में है. किसान हरियाणा में शंभू बॉर्डर पहुंच गए हैं जहां सुरक्षा बलों और किसानों में जबरदस्त भिडंत हुई.
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून की मांग कर दिल्ली की तरफ कूच कर रहे किसानों का आंदोलन उग्र हो गया है.अंबाला के समीप शंभू बॉर्डर पर किसानों ने बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े. किसानों की तरफ से पथराव हुआ. कुछ किसान समूह यूनिवर्सल एमएसपी को कानून की भी मांग कर रहे हैं. यानी,किसान की खेती की जाने वाली प्रत्येक फसल के लिए केंद्र में सरकार से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय होना चाहिए.

क्या कहते हैं आंकड़े

लेकिन आंकड़े यह पूरी कहानी निरस्त करते हैं. पहला- वित्त वर्ष 2020 में कृषि उपज का कुल मूल्य 40 लाख करोड़ रुपये था.इसमें डेयरी,खेती,बागवानी,पशुधन और एमएसपी फसलों के उत्पाद शामिल हैं.दूसरा- कुल कृषि उपज का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2020) है. इनमें 24 फसलें शामिल हैं जो एमएसपी की परिधि में शामिल हैं.

क्यों हो रहा है किसानों का आंदोलन,क्या है डिमांड?

पिछले दो-तीन वर्षों में लोगों को यह विश्वास दिलाया गया कि एमएसपी भारत के कृषि कार्यों का अभिन्न अंग है. हालांकि,यह सच्चाई से कोसों दूर है,वित्त वर्ष 2020 के लिए कुल एमएसपी खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपए,यानी कुल कृषि उपज का 6.25 प्रतिशत थी और एमएसपी में उपज का लगभग 25 प्रतिशत थी.

सरकार को करना होगा अतिरिक्त पैसे का इंतजाम

अब, यदि एमएसपी गारंटी कानून लाया जाये, तो सरकार की नजर अतिरिक्त व्यय पर भी होगी जो हर साल कम से कम 10 लाख करोड़ होगा. इसे दूसरी तरह से देखें तो यह लगभग उस व्यय (11.11 लाख करोड़ रुपये) के बराबर है जो इस सरकार ने हाल के अंतरिम बजट में मौलिक ढांचे को अलग रखा है.

10 लाख करोड़ पिछले सात वित्तीय वर्षों में हमारे मौलिक ढांचे पर किए गए वार्षिक औसत व्यय (2016 और 2023 के बीच 67 लाख करोड़ रुपये) से भी अधिक है.साफ है कि यूनिवर्सल एमएसपी मांग का कोई आर्थिक या राजकोषीय मतलब नहीं है । यह सरकार के खिलाफ राजनीति प्रेरित अभियान है.

वार्षिक 10 लाख करोड़ वहन कर सकती है सरकार?

हालांकि,भले ही,तर्क को, मान ले कि 10 लाख करोड़ की लागत सरकार वहन कर सकती है तो फिर पैसा कहां से आएगा? क्या हम मौलिक ढांचे और रक्षा में सरकारी खर्च की भारी कटौती को तैयार हैं? या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से अधिक कराधान के विचार से सहमत हैं?
स्पष्ट रूप से,समस्या कृषि या आर्थिक नहीं है बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक है,जो 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रायोजित है और व्यापक भ्रष्टाचार के रडार में राजनीतिक दलों से समर्थित.45 लाख करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 25) के बजट व्यय से,वार्षिक 10 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का विचार एक वित्तीय आपदा है जो स्पष्ट रूप से हमारी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार देगा.
TOPICS:किसान आंदोलन, एम एस पी की कानूनी गारंटी हरियाणा,पंजाब,रक्षा और मौलिक ढांचे के बजट में कटौती legal guarantee for msp,fiscal disaster, budget cut for defence and infrastructure development

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