ज्ञान:चीन चार दिन में तो चंद्रयान तीन 40 दिन में क्यों पहुचेगा चांद तक?

When Will Chandrayaan-3 Reach Moon Landing Date 23 August Why Isro Mission Will Take So Many Days

When Will ​Chandrayaan-3 Land On Moon: इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्रयान-3 को चांद तक पहुंचने में करीब 40 दिन लगेंगे।​सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 23 अगस्त की शाम को चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा।

Chandrayaan-3 Travel Time: चंद्रयान-3 अपनी यात्रा पर निरंतर आगे बढ़ रहा है। बेंगलुरु से चंद्रयान-3 का पहला ऑर्बिट-रेजिंग मैनूवर (अर्थबाउंड फायरिंग-1) सफलतापूर्वक पूरा किया गया। भारतीय अनुसंधान संस्थान (ISRO) के अनुसार, अब चंद्रयान 41762 km x 173 km ऑर्बिट में पहुंच गया है। ISRO के अनुसार, चंद्रयान-3 की सेहत सामान्‍य है और उसके सभी उपकरण ठीक से काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्रयान-3 को चांद तक पहुंचने में करीब 42 दिन लगेंगे। इसरो चीफ एस सोमनाथ के अनुसार, चंद्रयान-3 23 अगस्त की शाम 5.47 बजे चंद्रमा पर लैंड कर सकता है। आखिर चंद्रयान को चांद तक जाने में इतना समय क्यों लगेगा? रूस, चीन और अमेरिका कहीं कम वक्त में चांद तक स्पेसक्राफ्ट भेज चुके हैं। चांद पर इंसान को लेकर गया अपोलो 11 भी 5 दिन के भीतर ही चंद्रमा तक पहुंच गया था। फिर चंद्रयान-3 को लगभग 3.80 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने में हफ्तों क्यों लग जाएंगे? भारत के मून मिशन का यह पहलू समझ‍िए।

चांद तक अमेरिका और चीन चार दिन में तो रुस डेढ़ घंटे में पहुंचा?

चीन ने 2010 में Chang’e 2 स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया था। इसने धरती से चांद की दूरी सिर्फ चार दिन में पूरी कर ली। चीन के अगले मून मिशन Chang’e 3 ने भी यात्रा में इतना ही समय लिया।
चांद के पास पहुंचने के लिए सोवियत यूनियन का पहला अनमैन्ड मिशन लूना 1 सिर्फ 36 घंटों में पहुंच गया था।
चंद्रमा पर तीन इंसानों को ले जाने वाला अमेरिका के अपोलो-11 के कमांड मॉड्यूल- कोलंबिया ने भी चार दिन से थोड़े ज्‍यादा वक्‍त में यात्रा पूरी की थी।​

चंद्रयान-3 को चांद पर पहुंचने में इतना वक्त क्यों लगेगा?

ISRO के पास इतना शक्तिशाली रॉकेट नहीं जो चंद्रयान-3 को सीधे चांद के रास्‍ते पर भेज दे। अपोलो मिशंस में ट्रांसलूनार इंजेक्‍शन (TLI) नाम की ट्रैजेक्टरी का यूज हुआ था। मतलब लॉन्च वीइकल ने पहले अपोलो स्पेसक्राफ्ट को धरती की कक्षा में पहुंचाया। फिर वहां से एक शक्तिशाली इंजन ने स्पेसक्राफ्ट को चांद के रास्‍ते पर डाला। इसके लिए छह मिनट तक रॉकेट को जलाए रखा गया और किसी गुलेल की तरह अपोलो 11 को तेजी से चांद की ओर रवाना किया गया था।

चंद्रयान-3 दूसरे रास्‍ते से जा रहा है। इसमें धरती की अलग-अलग कक्षाओं और इंजन बर्न्स का इस्तेमाल कर चंद्रयान-3 की स्पीड बढ़ाई जाएगी। चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया है। अब वक्त-वक्त पर इंजन बर्न्स किए जाएंगे ताकि चंद्रयान-3 को ऐसी ट्रैजेक्टरी पर डाला जा सके जो चांद की कक्षा से टकराती हो। फिर एक और इंजन बर्न के जरिए चंद्रयान-3 को चांद की कक्षा में छोड़ा जाएगा।

ISRO ने क्‍यों अपनाया है यह तरीका

ISRO ने चंद्रयान और मंगलयान मिशनों में यही मल्‍टी-स्‍टेप अप्रोच अपनाया है। इससे वक्त जरूर लगता है लेकिन कम ताकतवर लॉन्च वीइकल से भी काम चल जाता है। मिशन लक्ष्य तक पहुंचाने को इसरो के वैज्ञानिक धरती और चांद के गुरुत्वाकर्षण बल का इस्तेमाल करेंगे। चंद्रयान-3 एक दीर्घवृत्ताकार रास्‍ते में आगे बढ़ता रहेगा।

एक वक्त इसे धरती की ग्रेविटी से निकलने के लिए ताकत चाहिए होगी, उसी वक्त इंजन बर्न किया जाएगा। फिर यह चांद की कक्षा की ओर चल पड़ेगा। फिर यह चांद के चक्कर लगाएगी। 100 किलोमीटर के सर्कुलर ऑर्बिट में नाचते हुए चंद्रयान-3 नीचे उतरेगा। फिर प्रपल्शन मॉड्यूल लैंडर से अलग हो जाएगा और लैंडर चांद की सतह की ओर बढ़ेगा। सब कुछ ठीक रहा तो अगले महीने भारत का चंद्रयान-3 इतिहास रचेगा।

चंद्रयान-3 के लॉन्च, ट्रैकिंग और ऑनबोर्ड सेपरेशन का दुर्लभ VIDEO

 

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