ब्रिटेन में खालिस्तानी और इस्लामी आतंक सबसे बड़ी चुनौती:रपट

ब्रिटिश सरकार की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामिक आतंकवाद एवं खालिस्तानी समर्थक समूह हैं सबसे बड़ी चुनौती

लंदन 16 फरवरी ( सोनाली मिश्र)  अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं जब ब्रिटेन में हिन्दुओं पर ही हमला किया गया था और न जाने कितनी हिंसा उनके साथ की गयी थी। और उसे लेकर हिन्दुओं पर ही एक वर्ग ने आरोप लगा दिए थे। परन्तु अब सत्य सामने आ रहा है। यूके सरकार की रिपोर्ट ने इस्लामिक आतंकवाद को लेकर चिंता व्यक्त की है और यह कहा है कि ब्रिटेन में इस्लामिक कट्टरता बढ़ रही है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि “आतंकवाद से खतरा बहुत विविध होता जा रहा है, मगर इस्लामिक आतंकवाद हमारे लिए सबसे मुख्य और सबसे खतरनाक चुनौती है। हाल के वर्षों में इस्लामवादी हमले – फिशमॉन्गर्स हॉल, स्ट्रीथम, रीडिंग में फोर्बरी गार्डन, और 2021 में सर डेविड एम्स की भयानक हत्या सहित – इस्लामवादी विचारधाराओं द्वारा हिंसा से प्रेरित लोगों द्वारा उत्पन्न स्थायी खतरे की याद दिलाते हैं। फिर भी यदि हम बचाव की बात करते हैं तो उसमें इस्लामवादी आतंकवाद को गंभीर रूप से कम दर्शाया गया है। समीक्षा में पाया गया है कि इस्लामवादी आतंकवाद से निपटने के लिए एक संस्थागत हिचकिचाहट रही है और उन लोगों से कड़ाई से नहीं निबटा गया है जो यह दावा करते हैं कि इससे निपटने के हमारे प्रयास इस्लामोफोबिक हैं।“

अर्थात रिपोर्ट यह कहती है कि जैसे ही इस्लामिक आतंकवाद पर कोई कुछ बोलने का प्रयास करता है तो यह विमर्श चला दिया जाता है कि सरकार इस्लामोफोबिक है! यही काम भारत में न जाने कब से किया जा रहा है।

इसी रिपोर्ट में आगे लिखा है कि इसी इस्लामोफोबिया के डर ने विभिन्न विचारधाराओं के लिए विभिन्न प्रकार की बचावात्मक प्रक्रियाओं को बताया है। इसके चलते होता यह है कि जो बहुत ही अधिक दक्षिण पंथी एवं मध्य दक्षिणपंथी तक ही ध्यान जाता है और इस्लामिक चरमपंथ को यह बचा देता है और कई चरमपंथी समूहों के कार्य दिख ही नहीं पाते हैं।

इसी रिपोर्ट में चौथी अनुशंसा अर्थात रिकमेन्डेशन में ब्लेसफेमी अर्थात पैगम्बर की निंदा को इस्लामिक खतरे के एक बड़े भाग के रूप में देखा गया है। इसमें लिखा है कि होमलैंड सेक्योरिटी समूह को ब्लेसफेमी से सम्बन्धित इस्लामिक हिंसा, उकसाने और धमकी देने की घटनाओं को समझना होगा और उसका सामना करना होगा। और एक मजबूत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नैरेटिव चलाना होगा।

और फिर लिखा है कि हम इस सिफारिश को स्वीकार करते हैं और सहमत हैं कि असद शाह की हत्या, सर सलमान रुश्दी पर हमला, और बाटली स्कूल में हुई घटना जैसी चिंताजनक संख्या के साथ ब्लेसफेमी से संबंधित हिंसा का मुकाबला करने के लिए और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि कुछ समूह सार्वजनिक रूप से ऐसा व्यवहार करते हैं, जो हमारे समाज के मूल्यों एवं सिद्धांतों के विपरीत है। और उदाहरण के रूप में हिज्ब उल तहरीर का नाम दिया है। इसमें लिखा है कि

हिज्ब उत-तहरीर खलीफा को शासन की अंतिम प्रणाली के रूप में बढ़ावा देता है और विचार व्यक्त करता है कि इस्लाम पश्चिमी उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ मौलिक रूप से असंगत है। उनकी वेबसाइट पर 2021 के एक लेख में जिसका शीर्षक है ‘वैश्विक संघर्ष और खलीफा की अपरिहार्य वापसी’, वे कहते हैं, “मुसलमानों को गैर-इस्लामिक विचारों से नुकसान हुआ है जो हमारे अद्वितीय अधिकार की वापसी को रोक रहे हैं।“

इसी रिपोर्ट में अनुशंसा 12 को स्वीकारते हुए लिखा गया है कि हम इस सिफारिश को स्वीकार करते हैं और स्वीकार करते हैं कि इस्लामी आतंकवाद वर्तमान में प्राथमिक आतंकवादी खतरा है और यह वर्तमान में प्रेवेंट के मामलों में परिलक्षित नहीं होता है।

इसमें यह भी लिखा है कि यूके को अपने यहाँ बढ़ रहे सिख चरमपंथियों के प्रति भी सावधान रहना होगा।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि खालिस्तान समर्थक चरमपंथ “यूके के सिख समुदायों के बीच विकसित हो रहा है” और “प्रेवेंट्स” को इससे सावधान रहना चाहिए।

“यूके में सक्रिय मुट्ठी भर खालिस्तान समर्थक समूहों द्वारा एक झूठी कहानी फैलाई जाती है कि सरकार सिखों को सताने के लिए भारत में अपने कथित संगठनों के साथ मिलकर काम कर रही है। ऐसे समूहों के आख्यान भारत में खालिस्तान समर्थक आंदोलन द्वारा की गई हिंसा का महिमामंडन करते हैं। हालांकि मौजूदा खतरा कम है, विदेशों में हिंसा के लिए प्रशंसा और घरेलू स्तर पर दमन के राज्य के नेतृत्व वाले अभियान में एक साथ विश्वास भविष्य के लिए एक संभावित जहरीला संयोजन है,।”

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जहां एक ओर आतंकवाद रोधी पुलिस नेटवर्क की 80% जांच पड़ताल इस्लामिक हैं तो वहीं 10 प्रतिशत चरम दक्षिणपंथी हैं।

इस रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि कैसे पाकिस्तान कश्मीर को लेकर वहां पर रह रहे मुस्लिमों को भड़का रहा है।

इसमें लिखा है कि “यूके में ब्लेसफेमी के बारे में आख्यानों का कट्टरपंथी पाकिस्तानी मौलवियों और/या खात्मे नुबुव्वत आंदोलन से संबंध होना आम बात है, जिसकी जड़ें पाकिस्तान में हैं। मुझे इस बात पर समान चिंता है कि जब भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने की बात आती है, विशेष रूप से कश्मीर के विषय में, पाकिस्तान से कट्टरपंथी समूह ब्रिटेन के मुस्लिम समुदायों को कैसे प्रभावित कर रहा है। कश्मीर पर आग लगाने वाली बयानबाजी करने वालों के साथ वह ब्लेफेमी को लेकर भी लोगों को भड़काते रहते हैं।

रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि कैसे पाकिस्तान के मौलवी ब्रिटेन के साथ-साथ कश्मीर में हिंसा फैला रहे हैं, इसमें लिखा है कि “साथ ही एक पाकिस्तानी मौलवी के साथ ब्रिटेन का अनुयायी, कश्मीर में हिंसा के उपयोग का आह्वान करता है। मैंने सबूतों को प्रदर्शित करते हुए भी देखा है कि कश्मीर से संबंधित फ्लैशप्वाइंट ब्रिटेन के इस्लामवादियों की रुचि में महत्वपूर्ण वृद्धि का कारण बनते हैं।“

इस रिपोर्ट से यह पूरी तरह से स्पष्ट हो रहा है कि कैसे हिन्दुओं के विरुद्ध एक व्यवस्थित समूह कार्य कर रहा है और इस्लामिक आतंकवाद कैसे पूरे विश्व को अपना शिकार बना रहा है।

196 पन्नों की यह रिपोर्ट उन लोगों को अवश्य पढनी चाहिए जो बार-बार हर बात के लिए हिन्दुओं को कोसने का कार्य करते हैं!

वहीं प्रेवेंट की इस रिपोर्ट को लेकर कट्टर इस्लामिस्ट समूहों द्वारा विरोध आरम्भ हो गया है।

 

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