डॉलर के बुरे दिन: चाय-कॉफी और चावल बेच रहा भारत रुबल में

INDIA RESTARTS TEA RICE OTHER EXPORTS TO RUSSIA THROUGH RUPEES RUBLE
‘डॉलर’ दरकिनार, रुपए-रूबल के जरिए भारत-रूस के बीच कारोबार शुरू, चाय-कॉफी, चावल का हुआ निर्यात
जानकार बताते हैं कि जल्द ही भारत और रूस के बीच रुपए-रूबल में ही कुछ और उत्पादों का आयात-निर्यात शुरू हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
जानकार बताते हैं कि जल्द ही भारत और रूस के बीच रुपए-रूबल में ही कुछ और उत्पादों का आयात-निर्यात शुरू हो सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
India restarts exports-to Russia through Rupees-Ruble : इसी तरह करीब 1 पखवाड़े पहले भारत ने रूस से इसी तरह कच्चा तेल (Crude Oil) खरीदा था. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बाद से कुछ हफ्तों के भीतर ही भारत ने रूसी तेल कंपनियों (Russian Oil Companies) से 1.30 करोड़ बैरल तेल खरीदा था. इसके बदले में रूस को भारतीय मुद्रा रुपए में भुगतान किया गया था.

नीलेश द्विवेदी
नई दिल्ली19 अप्रैल1. दुनियाभर में विभिन्न देशों के बीच आपसी कारोबार के लिए अब तक मान्य अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अमेरिकी (Dollar) रही है. इसलिए डॉलर के भाव (Exchange Rate) अक्सर ही आसमान पर चढ़े रहते हैं. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) की पृष्ठभूमि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और कारोबारी परिस्थितियां तेजी से बदली हैं. इन्हीं के क्रम में भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए अपनी मुद्राओं रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया है.

खबरों के मुताबिक, भारत ने बीते सप्ताह चाय, चावल, फल, कॉफी और समुद्री उत्पादों की खेप रूस के लिए रवाना की है. यह खेप जॉर्जिया के बंदरगाह पर उतरेगी. वहां से रूस के लिए रवाना किया जाएगा. बताते चलें कि जॉर्जिया पश्चिमी एशिया और पूर्वी यूरोप के बीच स्थित है. इसके पश्चिम में काला सागर है. जबकि उत्तर और पूर्व में रूस स्थित है. भारतीय निर्यात संघों के महासंघ (FIEO) के महानिदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अजय सहाय भारत की ओर से रूस को यह खेप भेजे जाने की पुष्टि करते हैं. उनके मुताबिक, ‘इस निर्यात के एवज में रूस का सबसे बड़ा कर्जदाता एसबर बैंक (Sberbank) रूस की मुद्रा रूबल में भारत को भुगतान सुनिश्चित करेगा.’

‘नानजी, नागजी एक्सपोर्ट्स’ फर्म के निदेशक अश्विन शाह भी इसकी पुष्टि करते हैं. रूस को चावल निर्यात करने वाली यह बड़ी फर्म है. अश्विन बताते हैं, ‘हमने करीब 22,000 किलोग्राम गैरबासमती चावल के 22 कंटेनर रूस के लिए रवाना किए हैं.’ इसी तरह, रूस को चाय निर्यात करने वाली फर्म ‘एशियन टी’ के निदेशक मोहित अग्रवाल भी बताते हैं, ‘रूस के लिए चाय का निर्यात भी शुरू हो चुका है. हमने वहां के लिए 5 कंटेनर रवाना किए हैं.’ गौरतलब है कि भारत की चाय के लिए रूस सबसे बड़े बाजारों में शुमार होता है. वहां के लिए हर साल करीब 4.5 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात भारत से किया जाता है. सूत्रों की मानें तो जल्द ही अन्य उत्पाद भी रूस भेजे जाएंगेंं।

इससे पहले भारत ने रूस से इसी तरह कच्चा तेल खरीदा था

याद दिला दें कि इसी तरह करीब 1 पखवाड़े पहले भारत ने रूस से इसी तरह कच्चा तेल (Crude Oil) खरीदा था. ‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बाद से कुछ हफ्तों के भीतर ही भारत ने रूसी तेल कंपनियों (Russian Oil Companies) से 1.30 करोड़ बैरल तेल खरीदा. इसके बदले रूस को भारतीय मुद्रा रुपए में भुगतान किया गया. रूसी कंपनियों ने बेहद सस्ते दामों पर यह तेल भारत को बेचा था.

कारोबार जगत: अब आम हो गई है डॉलर की हैसियत घटने की चर्चा, अमेरिकी मुद्रा की साख को पहुंचा गहरा नुकसान

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अब डॉलर में अपना धन ना रखने का चलन तेज गति बढ़ सकता है। ऐसी चेतावनी पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी दी थी। उसने एक रिपोर्ट में कहा था कि डॉलर के वर्चस्व में परोक्ष क्षय हो रहा है। यह उस स्थिति की पृष्ठभूमि है, जब ऐसा अधिक खुले रूप में होने लगेगा।

कारोबार जगत में ये धारणा आम है कि यूक्रेन पर हमले के बाद रूसी धन पश्चिमी देशों ने जैसे जब्त किया, उससे अमेरिकी मुद्रा डॉलर की साख को गहरा नुकसान पहुंचा । मीडिया रिपोर्टों में ध्यान दिलाया जा रहा है कि अभी पांच साल पहले तक इक्के-दुक्के लोग ही कहते थे कि वित्तीय जगत में डॉलर का वर्चस्व घट रहा है। लेकिन अब गोल्डमैन सैक्श और क्रेडिट सुइसे जैसी एजेंसियों की रिपोर्ट में भी यह कहा जाने लगा है। अब इस पर चर्चा होने लगी है कि ऐसा होने का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।

ताजा विश्लेषण में अमेरिकी अर्थशास्त्री डेविड पी गोल्डमैन ने लिखा है कि 2008 के वित्तीय संकट बाद से दूसरे देशों ने 18 ट्रिलियन डॉलर रकम का कर्ज रूप में अमेरिका में निवेश किया। ऐसा डॉलर वर्चस्व  से संभव हुआ। वित्तीय जगत में डॉलर की यह भूमिका अचानक खत्म हुई, तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था में उसका विनाशकारी असर होगा। अमेरिका के सहयोगी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी इसका वैसा ही परिणाम होगा।

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अब डॉलर में अपना धन ना रखने का चलन तेज गति से आगे बढ़ेगा । ऐसी चेतावनी पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी दी थी। उसने एक रिपोर्ट में कहा था कि डॉलर के वर्चस्व में परोक्ष रूप से क्षय हो रहा है। लेकिन यह उस स्थिति की पृष्ठभूमि है, जब ऐसा अधिक खुले रूप में होने लगेगा।

मीडिया रिपोर्टों से साफ है कि डॉलर के बिना कारोबार चलाने की मुहिम का नेतृत्व फिलहाल रूस कर रहा है। इसकी तैयारी उसने कई वर्ष पहले शुरू की थी, लेकिन 2021 में इसमें काफी तेजी आई । जनवरी 2021 की तुलना में इस साल जनवरी तक वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा 21 प्रतिशत घटा चुका था। इसी अवधि में वह अपने भंडार में चीनी मुद्रा  युवान का हिस्सा 13 से बढ़ा कर 17 प्रतिशत तक ले गया।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दुनिया में निर्यात के हिसाब से अमेरिका की ताकत पहले ही काफी घट चुकी है। अब इसमें उसका हिस्सा सिर्फ आठ प्रतिशत है। जबकि चीन का हिस्सा 15 % हो गया है। ऐसे में डॉलर का जारी वर्चस्व अमेरिका की आर्थिक ताकत के कारण नहीं, बल्कि अन्य वजहों से है। हकीकत यह है कि पिछले 15 वर्षों में खुद अमेरिकी उपभोक्ता चीनी वस्तुओं पर अधिकाधिक निर्भर होते गए हैँ। विशेषज्ञों के मुताबिक, इतिहास में उस देश की मुद्रा की ताकत का बढ़ना स्वाभाविक घटना है, जो अधिक निर्यात सक्षम हो।

अर्थशास्त्री गोल्डमैन ने वेबसाइट एशिया टाइम्स पर लिखे विश्लेषण कहा कि दुनिया उस मुकाम पर पहुंच गई है, जहां विभिन्न देशों का काम बिना डॉलर रखे चल सकता है। भारत और रूस के बीच रुपया-रुबल में कारोबार की फिर शुरुआत इसकी मिसाल है। व्यापार के इस तरीके में रूस को जो व्यापार मुनाफा होगा, उसका निवेश वह भारत के कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट में करेगा। इस बीच भारत से रूस को निर्यात में 50 प्रतिशत वृद्धि की संभावना  है।

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