इतिहास: जब मोसाद ने चुराए फ्रांस से युद्धपोत

क्या आपने कोई कहानी या किताब पढ़ी है जिसे पढ़कर आपको ऐसा लगा इसपे तो फिल्म बननी चाहिए?
शेरबोर्ग प्रोजेक्ट : 25 दिसंबर 1969

दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और खुफिया एजेंसी मोसाद ( इजरायल) का ये एक ऐसा अनूठा कारनामा था जिसने दांतो तले उंगली दबा दी जब मैंने इसे पहली बार पढ़ा था !! इसके बारे में जानने से पहले आपको इसके इतिहास और इस खुफिया ऑपरेशन की तैयारी के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं

पृष्ठभूमि :60 के दशक के शुरुआत में इसराइली नेवी को एक उन्नत जहाज कैरियर की जरूरत महसूस हुई थी .. इजरायल अपने आप को चारों तरफ से दुश्मन देशों से घिरा हुआ पा रहा था और उसने अपने डिफेंस को मजबूत करने के लिए उन्नत सेना बनाने का फैसला किया , अपनी जरूरतों के हिसाब से उसने फ्रांस की एक कंपनी को अपने लिए 12 उन्नत जहाज कैरियर बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया ! 1965 तक फ्रांस और इजरायल के संबध बड़े अच्छे और दोस्ताना थे , फ्रांस ने खुशी- खुशी वो कॉन्ट्रैक्ट ऑर्डर लिया और जहाज बनाने का फैसला किया , इजरायल ने शिप बनाने का पेमेंट फ्रांस को दिया और प्रतीक्षा करने लगा , जहाजों की डिलीवरी 1968 तक देना तय हुआ था

फिर आया 1967 में 6 दिनों का इजरायल और अरब युद्ध जिससे फ्रांस के रिश्ते इजरायल के साथ बिगड़ गए , कहीं न कही फ्रांस अरब मुल्कों और इजिप्ट का समर्थन करता था , इजरायल ने तीन फ्रंट वॉर पर इजिप्ट , अरब और जॉर्डन को 6 दोनो के भीतर हमला कर के हरा दिया … इस हमले से फ्रांस ,इजरायल से रूष्ट हो गया और उसकी डिलीवरी पर प्रतिबंध लगा दिया.

1968 में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी को इजरायल की नौसेना और पनडुब्बियां नष्ट हो गई , इजरायल को काफी बड़ी जरूरत थी एक शक्तिशाली नौसेना पोत की जिससे ए अपनी समुद्री सीमा सुरक्षित कर सके , उसने फ्रांस से मदद मांगी और अपने जहाजों का बेड़ा मांगा , परंतु फ्रांस ने ये कहते हुए मना कर दिया कि उसने फ्रांस और इजरायल में हुए करारनामे का उल्लंघन किया है और जहाजों का इस्तेमाल वो अरब देशों के विरुद्ध कर सकता है ( इस वक्त तक फ्रांस अरब देशों के साथ भी मैत्री करने की कोशिश कर रहा था ) इजरायल ने बहुत कोशिश करी की फ्रांस मान जाए परंतु फ्रांस नही माना , अंत में जब सारे रास्ते बंद हो गए तो इजरायल ने फैसला किया कि अब वो अपने सैन्य पोत फ्रांस से चुरा लेगा

अब आते है तैयारियों पर

तैयारियां जानने से पहले एक नजर फ्रांस और इजरायल के नक्शे और भौगोलिक स्थिति पर जान लेते हैं

( पीला निशान फ्रांस है और नीली लाइन की तीर का अंतिम हिस्सा इजरायल ) , आप खुद की इतनी दूरी का अंदाजा लगा सकते हैं !

जब यह तय हो गया कि इजरायल को फ्रांस से अपने सैन्य पोत चुरा लेने हैं तो उन्होंने उसकी तैयारियां शुरू कर दी

१) एक बोगस कंपनी बनाई गई जिसको कुछ जहाजों की आवश्यकता थी , उसके स्पेसिफिकेशन वही थे जो उन सैन्य पोत वाले जहाजों से मिलते थे , इस तरह इजरायल ने अपने फ्रांस के कॉन्टैक्ट का इस्तेमाल करते हुए फ्रेंच बिजनेस में अपनी जगह बना ली

२) फ्रांस की कंपनी से डील करते हुए उस बोगस कंपनी के ” सीईओ ” ने ( जो कि वास्तव में इजरायल की नौसेना के एक बहुत बड़े अफसर थे) उसने एक पक्के बिजनेसमैन की तरह मोलभाव किया ताकि उस कंपनी को वास्तविकता पर शक न हो , एक बार डील टूटने पर भी आ गई थी परंतु अनुभवी नौसेनिक कमांडर ने स्थिति संभाल ली और उस 🚢 को कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करवा लिए

३) धीरे- धीरे इस्राइल के 80 लोगों की एक टीम 2/3 लोगों के ग्रुप में फ्रांस के शर्बोरग पोर्ट वाले शहर में पहुंचना शुरू किया , इसके पीछे कारण ये था कि अगर बड़ी संख्या में यात्री इजरायल से फ्रांस पहुंच रहे होते तो फ्रांस के गुप्तचर सेवा को शक हो सकता था ! ये सभी 80 लोग इजरायल की सेना से और मोसाद से संबंधित थे , इनमे एक मौसम विशेषज्ञ भी था !

४) 80 लोगों के खाने- पीने की व्यवस्था की गई और वो भी थोड़े – थोड़े पैकेट में ताकि बड़ा खाने- पीने का ऑर्डर नजर में ना आए

5) इसी तरह से तेल की व्यवस्था भी की गई ताकि 🚢 को ईंधन मिले और इतना लंबा सफर तय कर पाए !

६) यदि जहाजों को अचानक चालू किया जाता तो उनकी आवाजें संदिग्ध हो सकती थी इसलिए , इन्हे बार- बार शुरू कर के शेरबोर्ग वासियों को इसका अभ्यस्त करवा दिया गया , कई बार पुलिस कंप्लेंट भी हुई परंतु ये कहकर मामला सुलझा लिया कि यूरोप की कड़ाके की ठंड में इंजन को गर्म करने के लिए इनका इंजन शुरू रखना बड़ा जरूरी था !

७) 24 दिसंबर 1969 तक सारी तैयारियां हो चुकी थी , पूरी इसराइली टीम तैयार थी , वो बस इंतजार कर रहे थे कल का ……..

25 दिसंबर आते ही जब पूरे फ्रांस में क्रिसमस का जश्न मनाया जा रहा था , तब इजरायल की टीम सारे जहाजों को ले भागी , फ्रांस की जनता ने इंजन शुरू होने की आवाज़ को रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा माना और ध्यान नहीं दिया , रातों रात इजरायल ने इंजन शुरू किए और समुंदर में निकल गए 🙂

8) अंदाजन 12 घंटे बाद BBC के एक रिपोर्टर ने जहाज पोर्ट पर न पाने पर , फ्रांस के अधिकारियों को सूचना दी , इस तरह फ्रांस को BBC नेटवर्क से पता चला कि जहाज अपनी जगह नहीं हैं, उन्होंने फौरन ये देखा कि क्या जिस बोगस कंपनी में जहाजों का हस्तांतरण हुआ था , क्या वो जहाज ले गए हैं ? परंतु वहां तो कुछ नही मिलना था 😂😂😂

९) इसी बीच इजरायल ने अपने कुछ दोस्त कंपनी से मदद मांगी और उन्हें अतिरिक्त ईंधन मिल गया , फ्रांस ने भी अपने मित्र राष्ट्रों से मदद मांगी जिसमे एक ब्रिटेन भी था , फ्रांस में कुछ आपसी कलह के कारण उनको युद्धक विमानों से गिरा देना का फैसला परिवर्तन कर दिया गया, फ्रांस ने अंत में मान लिया कि इजरायल ने जिस चीज का भुगतान किया था वो वास्तव में वाकई उनकी हो चुकी थी और वो दोबारा एक युद्ध कु स्थिति में नही आना चाहते थे , कहीं न कहीं वो ये भी जानते थे कि अगर इजरायल ने इतना सोचा है तो विमानों से निपटने के तरीका भी सोचा ही हुआ होगा.

९) फ्रांस ने जब ब्रिटेन से मदद मांगी तो ब्रिटेन की नौसेना की एक टुकड़ी जो उस वक्त स्पेन और मोरक्को के बीच में गश्त लगा रही थी ,उसको सतर्क किया गया ( आप ऊपर के नक्शे में नीचे का पीला बिंदु देख सकते हैं ) , फ्रांस में अंदरूनी कलह चल ही रहा था ,इसलिए एक डायरेक्ट हमले के ऊपर कोई फैसला नहीं आया था , ब्रिटेन ने बिना पहचान की 5 बोट से संपर्क साधा और उनसे जानकारी पूछी , इजरायल की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई , ब्रिटेन की नौसेना 5 बोट की चोरी की खबर पहले ही सुन चुकी थी और वो समझ गई कि ये इजरायल ही है , चूंकि उनके पास उसे रोकने का या हमले का कोई ऑर्डर नही था , ब्रिटिश नौसेना ने उन्हें “बोन वोयज ” का एक शुभकामना संदेश भेजा और आगे जाने दिया 🙂 🎖️🎖️

१०) इजरायल अंततः अपने देश पहुंच गया जहां उन जाबांज वीरों का स्वागत किया गया 👏👏👏👏

उपसंहार : फ्रांस में इस असफलता के कारण कुछ राजनीतिक इस्तीफे दिए गए और कुछ अफसरों की बर्खास्तगी हुई , वही दूसरी ओर जिस इसराइली अफसर के निर्देशानुसार ये पूरा ऑपरेशन किया गया था वो आगे चल कर IDF अर्थात इजरायल डिफेंस फोर्सेज का सैन्य कमांडर बना

ना जाने क्यों हॉलीवुड जो छोटी से छोटी चीज़ के ऊपर फिल्म बना लेता है उससे इतना बड़ा सैन्य अभ्यास और थ्रिलर कैसे बच गया !!

नीचे का लिंक पढ़कर आप इस ऑपरेशन को डिटेल्स पा सकते हैं

Cherbourg Project – Wikipedia
The Israeli naval command had reached the conclusion by the early 1960s that their old Second World War -era destroyers , frigates and corvettes were obsolete and new ships and vessels were needed. A survey was undertaken and the West German shipyard of Lürssen was recommended. The shipyard was asked to design a new generation of small missile boat platforms and to modify the suggested wooden Jaguar -class torpedo boats according to Israeli Navy requirements. Due to Arab League pressure on the West German government, this plan was not continued and a new builder was sought. The Israeli Navy survey recommended that the Cherbourg-based CMN shipyard owned by Félix Amiot would build the boats, based upon the Israeli requirements. The boats were constructed by the French and the MTU engines were German-designed. The project received the codename “Autumn”. Crews were sent to France in early 1965. The technical team was headed by Commander Haim Schachal. [2] The administrative and operational side was headed by then- Captain Binyamin (Bini) Telem, who later became the Israeli Navy’s commander in chief during the Yom Kippur war . The deal was entered into during the “Golden Age” of Franco-Israeli relations . Prior to the Six-Day War in 1967, France had been Israel’s closest ally. In the wake of Israel’s victory, relations began to worsen. [3] In 1968, Israeli paratroopers commanded by then- Colonel Raphael Eitan (who later became IDF chief of staff), carried out a raid on Beirut airport during operations against the Palestine Liberation Organization (PLO). In response, French President Charles de Gaulle ordered a full arms embargo on Israel. The problem of the Cherbourg boats was left aside. President de Gaulle was irritated by what he considered an Israeli lack of respect for Franco-Israeli agreements and he was eager to reinforce France’s relations with the Arab world. The resignation of de Gaulle and the election of Georges Pompidou to be the president of France inspired hope among the Israelis. The Israeli government assumed that Pompidou would lift the embargo, but were proved wrong. While the embargo was ordered, construction of the boats continued according to the original plan; and while the Israeli naval mission was in Cherbourg, controlling the project, Israeli crews were aboard the completed boats and the whole project was fully paid for by Israel. The build-up of the Egyptian Navy with Soviet assistance during the 1960s and their procurement of new missile boats such as the Osa and Komar classes had, by the early days of the War of Attrition , changed the balance of power in the Mediterranean theatre in favour of Arab navies and away from the Israeli Navy. There was by now an urgent need for a new generation of vessels for the Israeli Navy. Israel had been developing seaborne surface-to-surface missiles , but the new vessels they would be launched from were now being built at Cherbourg. Their delivery to the Navy was considered a high priorit
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Cherbourg_Project
और अधिक इसराइली ऑपरेशन के लिए आप ये नीचे की 2 किताबें जरूर पढ़े जो आपको आसानी से फ्लिपकार्ट इत्यादि पर मिल जायेगी।

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