पांच राज्यों के चुनाव: ममता जीती तो भाजपा ही नहीं, कांग्रेस की भी होंगी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी

किस करवट बैठेंगे चुनावी नतीजे:ममता जीतीं तो राष्ट्रीय स्तर पर मोदी विरोध का चेहरा बन सकती हैं; हारीं तो पार्टी भी टूट सकती है, जानिए किस स्टेट में किनकी किस्मत दांव पर
नई दिल्ली एक मई। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद अब नतीजों का इंतजार है। सत्ता की चाभी किस पार्टी के हाथ लगती है, यह तो 2 मई को ही पता चलेगा। पांच राज्यों के इस चुनाव में भी कुछ बड़े सियासी चेहरे हैं, जिनके राजनीतिक भविष्य के लिहाज से यह चुनाव बहुत महत्पूर्ण होने जा रहा है। तो आइए एक निगाह उन नेताओं पर जिन्हें ये चुनावी नतीजे काफी हद तक प्रभावित करने जा रहे हैं….

ममता बनर्जी: एक बार फिर अपनी राजनीतिक यात्रा के महत्त्वपूर्ण मोड़ पर

चुनाव पांच राज्यों में हुए हैं, लेकिन पूरे देश की निगाहें बंगाल पर लगी हैं। मोदी-शाह की जोड़ी ने बंगाल जीतने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया, तो स्ट्रीट फाइटर दीदी ने भी पूरी ताकत से चुनाव लड़ा। ममता बनर्जी के राजनीतिक भविष्य पर इस चुनाव के नतीजे क्या फर्क डालेंगे, इसे हम दो हिस्सों में बांट कर देखते हैं।

अगर दीदी चुनाव जीत गई तो…

भाजपा ने बंगाल का चुनाव पूरी आक्रामकता के साथ लड़ा है। भगवा पार्टी ने राज्य में अपने सारे संसाधन झोंक दिए हैं। इस सबके बाद भी ममता अगर वेस्ट बंगाल की अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहती हैं, तो वह राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार विरोधी गठजोड़ का नेतृत्व करने की सबसे बड़ी दावेदार बन जाएंगी।

कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं, ‘भाजपा की ताकतवर चुनाव मशीनरी के खिलाफ जीत दर्ज कराने पर दीदी पूरे देश में यह संदेश देने में कामयाब होंगी कि मोदी-शाह की अजेय जोड़ी को उन्होंने अकेले अपने दम पर मात दे दी।’

विश्लेषकों के मुताबिक, ममता की जीत का असर यह भी होगा कि केंद्र में विपक्ष के गठजोड़ का नेतृत्व किसी मजूबत रीजनल पार्टी के हाथ में होना चाहिए,न कि लीडरशिप को लेकर गफलत में फंसी कांग्रेस के हाथ में। यानी बंगाल में दीदी की जीत उन्हें 2024 के आम चुनाव में विपक्षी गठजोड़ का लीडर भी बना सकती है।

अगर दीदी बंगाल हार जाती हैं तो …

राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले ही तृणमूल के कई संस्थापक नेता ( शुभेंदु अधिकारी, दिनेश त्रिवेदी) ममता का साथ छोड़ भाजपा के साथ चले गए थे। अगर ममता बनर्जी चुनाव हार जाती हैं तो उनकी पार्टी में बगावत के सुर और तेज हो जाएंगे।

TMC में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर पार्टी का एक खेमा नाराज है। सत्ता जाने के बाद इस खेमे के कई विधायक भाजपा की ओर रूख कर सकते हैं। पार्टी पर ममता की पकड़ ढीली होने के साथ भाजपा अभिषेक बनर्जी पर करप्शन के आरोपों के सहारे दीदी की भी सियासी घेराबंदी कर सकती है जो ईमानदार छवि वाली ममता के लिए एक बड़ा झटका होगी।

राहुल गांधी:‌ अगर कांग्रेस असम-केरल हारी तो फिर G-21 के निशाने पर आ सकते हैं

इन चुनावों में कांग्रेस जहां सबसे मजबूती से लड़ती हुई नजर आई वह राज्य हैं केरल और असम। राहुल इन चुनावों में केरल में ही ज्यादा सक्रिय भी नजर आए। लेकिन, ज्यादातर एग्जिट पोल केरल में लेफ्ट फ्रंट की वापसी की बात कर रहे हैं। केरल के वरिष्ठ पत्रकार बाबू पीटर कहते हैं कि चूंकि राहुल पार्टी के बड़े नेता होने के साथ केरल से ही सांसद भी है, ऐसे में केरल की हार से उनका नाम सीधे तौर पर जोड़ा जाएगा। शुरुआत में इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि असम में कांग्रेस सत्ता में लौट सकती है। लेकिन, अभी आए एग्जिट पोल्स में असम में BJP आगे दिख रही है। तमिलनाडु में कांग्रेस DMK के साथ है जो सत्ता में वापसी करती दिख रही है। लेकिन, इस जीत का श्रेय स्टालिन को जाएगा। बंगाल में कांग्रेस दौड़ में ही नहीं है।

अगर एग्जिट पोल्स पर यकीन करें तो कुल मिलाकर कांग्रेस का प्रदर्शन इन चुनावों में बेहतर होगा, ऐसा नहीं दिखता। ऐसे में भाजपा एक बार फिर राहुल को असफल और कमजोर नेता बता उन पर हमलावर होगी। साथ ही कांग्रेस के असंतुष्ट गुट (G-21) के गुलाम नबी आजाद जैसे नेता भी राहुल की कार्यशैली पर सवाल उठा सकते हैं। लेकिन, इससे फिलहाल राहुल की राजनीतिक स्थिति पर बहुत फर्क पड़ता नजर नहीं आता है। हां, अगर बंगाल में हंग असेंबली की नौबत आई और तृणमूल को सरकार बनाने के लिए लेफ्ट-कांग्रेस की जरूरत पड़ी तो एक बार नजरें फिर राहुल पर घूम सकती हैं कि वह क्या फैसला लेते हैं?

पलानीस्वामी: चुनाव हारकर भी जयललिता की विरासत के वारिस बनते नजर आ रहे हैं

जयललिता की मौत के बाद से ही AIADMK के भीतर वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। चुनाव के दौरान CM पलानीस्वामी ने कुछ ऐसे कदम उठाए कि वह चुनाव भले ही न जीत पाएं, लेकिन पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत हो जाए।

चेन्नई में द हिंदू के राजनीतिक रिपोर्टर उद्धव कहते हैं, ‘पलानी ने CM रहते हुए वन्नियार जाति को आरक्षण दिया था। वह खुद गवंदर बिरादरी से हैं। यह दोनों जातियां साउथ तमिलनाडु में बड़ी संख्या में हैं। पलानी ने इन दोनों के बीच अपना जनाधार तैयार कर लिया है। इस बार ज्यादातर अन्नाद्रमुक इसी इलाके से जीतते नजर आ रहे हैं। ऐसे में जीते हुए विधायकों में ज्यादातर पलानी समर्थक होंगे। जो पार्टी नेतृत्व की लड़ाई में पलानी की मदद करेंगे।’

शशिकला के समय में पार्टी पर थेवर बिरादरी का दबदबा था,लेकिन अब पलानी ने उस सामाजिक समीकरण को बदल दिया है और पार्टी के भीतर वर्चस्व की लड़ाई में आगे दिख रहे हैं। यानी पलानी सत्ता भले ही गंवाने जा रहे हों,लेकिन पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत होगी।

पी विजयन : हारे तो नॉर्मल पैटर्न माना जाएगा, जीते तो केरल CPM पर एकछत्र राज्य

केरल में लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस की अगुवाई वाले UDF के बीच हर पांच साल पर सरकारें बदलती रहती हैं। लेकिन, इस बार ज्यादातर एग्जिट पोल केरल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार की वापसी दिखा रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो यह ऐतिहासिक होगा और विजयन इस जीत के साथ केरल की लेफ्ट विंग सियासत के ऐसे नेता हो जाएंगे, जिन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं होगा।

केरल की सियासत पर गहरी पकड़ रखने वाले पत्रकार अनिल एस कहते हैं, ‘विजयन में ने टिकट बंटवारे में टू टर्म नार्म ( दो बार लगातार जीतने वाले विधायकों के टिकट न देने का नियम) लागू कर कई बड़े नेताओं को पहले ही किनारे लगा दिया है। पार्टी के राज्य पोलित ब्यूरो में उनकी पकड़ पहले से मजबूत है। और अगर वे लेफ्ट फ्रंट को दोबारा सत्ता में ले आए तो CPM पर उनका एकछत्र राज्य हो जाएगा।’ ​​​​​

सर्वानंद सोनोवाल: असम में भाजपा लौटी तो कद बढ़ेगा, लेकिन सरमा की चुनौती भी

असम चुनाव में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि वहां CAA-NRC का मुद्दा अलग तरह से असर कर रहा है। और वहां कांग्रेस भाजपा से आगे दिख रही है। इसकी एक वजह यह भी बताई गई कि सर्वनांद की जगह अगर हिमंत बिस्व सरमा असम के मुख्यमंत्री होते तो भाजपा को दोबारा चुनाव जीतने में आसानी होती।

लेकिन, अभी आए एग्जिट पोल्स में असम में भाजपा सरकार रिपोटी होती दिख रही है। जाहिर है कि यह जीत CM सर्वानंद का कद बढाएगी ही। हालांकि, एक कयास यह भी है कि इस बार सत्ता में आने पर भाजपा ‘पूर्वोत्तर के अमित शाह’ कहे जाने वाले हिमंत बिस्व सरमा को CM बना सकती है।

असम के स्थानीय राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सर्वानंद PM मोदी के भरोसेमंद हैं और हिमंत कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। ऐसे में साफ सुथरी छवि वाले सर्वानंद ही भाजपा की जीत की स्थिति में CM बनते नजर आ रहे हैं।

कैलाश विजयवर्गीय: भाजपा बंगाल जीते या हारे इनके नंबर बढ़ेंगे ही

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कैलाश विजयवर्गीय ने पिछले कुछ सालों से बंगाल में जमीनी स्तर पर खूब काम किया है। चाहे कार्यकर्ताओं को साधना हो, संगठन को मजबूत करना हो या फिर TMC के विधायकों को तोड़ना हो। सभी में उनकी अहम भूमिका रही है। बंगाल के पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं कि अगर भाजपा बंगाल जीतती है तो पार्टी में उनका कद और बढ़ेगा। जानकार मानते हैं कि ऐसी स्थिति में वे अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में कोई बड़ी भूमिका चाहेंगे। लेकिन, भाजपा अगर बहुमत से दूर भी रह जाती है तो भी पार्टी उनके काम के महत्व को समझेगी।

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