सुको कमेटी में दो किसान नेता,दो विशेषज्ञ

तीन कृषि कानूनों पर साढ़े तीन महीने बाद ब्रेक:SC ने कानूनों पर रोक लगाकर कमेटी बनाई, कहा- जो हल चाहेगा, वह कमेटी के पास जाएगा
नई दिल्ली 12 जनवरी। संसद से साढ़े तीन महीने पहले पास हुए तीन कृषि कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रोक लगा दी। कृषि कानूनों को चुनौती देती याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों की कमेटी भी बना दी। यह कमेटी किसानों से बातचीत करेगी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न किसानों के लिए जीत है और न सरकार के लिए हार।

पिछले साल सितंबर में सरकार ने तीन कृषि कानून संसद से पास कराए थे। 22 से 24 सितंबर के बीच राष्ट्रपति ने इन कानूनों पर मुहर लगा दी थी। किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। कुछ वकीलों ने भी इन कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनाैती दी थी। इसी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 4 विशेषज्ञों की जो कमेटी बनाई है, उसमें कोई रिटायर्ड जज शामिल नहीं है।

न किसान जीते, न सरकार हारी; लेकिन कैसे?

किसानों की मांग है कि तीनों कृषि कानून रद्द कर दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कानूनों को रद्द करने की बात नहीं कही है। बस इसके अमल को कुछ वक्त के लिए रोका है। किसान कोई कमेटी नहीं चाहते थे, लेकिन बातचीत में मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बना दी है।
उधर, सरकार के लिए यह हार इसलिए नहीं है, क्योंकि वह खुद चाहती थी कि एक कमेटी बने और उसके जरिए बातचीत हो। सरकार के बनाए कानूनों की कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी यानी संवैधानिक वैधता भी बरकरार है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है। साथ ही यह भी साफ किया है कि कानूनों के अमल पर रोक बेमियादी नहीं होगी।

आगे क्या होगा?

कमेटी क्या करेगी: कमेटी किसानों से बातचीत करेगी। हो सकता है कि सरकार को भी इसमें अपना पक्ष रखने का मौका मिले। यह कमेटी कोई फैसला या आदेश नहीं देगी। यह सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी के पास कितने दिन का वक्त होगा, यह अभी साफ नहीं है।
क्या किसान मानेंगे: आंदोलन कर रहे 40 संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि हम किसी कमेटी के सामने नहीं जाना चाहते, फिर भी एक बैठक कर इस पर फैसला लेंगे। हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
सरकार से बातचीत: भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि सभी किसान नेता 15 जनवरी को सरकार के साथ 10वें दौर की बातचीत में हिस्सा लेंगे।
आंदोलन की जगह: सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों से कहा है कि वे अगर रामलीला मैदान या कहीं और प्रदर्शन करना चाहते हैं तो इसके लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर से इजाजत मांगें। अगर इजाजत मिलती है तो आंदोलन की जगह बदल सकती है।
26 जनवरी की परेड: किसानों ने कहा था कि 26 जनवरी को वे ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। तब दिल्ली की सड़कों पर वे 2 हजार ट्रैक्टर दौड़ाएंगे। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर कहा है कि प्रदर्शन का अधिकार होने के ये मायने नहीं हैं कि दुनियाभर के सामने भारत की छवि खराब की जाए। इस पर भी सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने की उम्मीद है।

8 पॉइंट में कोर्ट रूम LIVE: प्रधानमंत्री का भी जिक्र आया

1. किसानों के इनकार पर सुप्रीम कोर्ट की हिदायत

एमएल शर्मा (कृषि कानूनों को चुनौती देने वाले मुख्य पिटीशनर): किसानों ने सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया है।
चीफ जस्टिस: कमेटी इसलिए बनेगी ताकि तस्वीर साफ तौर पर समझ आ सके। हम यह दलील भी नहीं सुनना चाहते कि किसान इस कमेटी के पास नहीं जाएंगे। हम मसले का हल चाहते हैं। अगर किसान बेमियादी आंदोलन करना चाहते हैं, तो करें। जो भी व्यक्ति मसले का हल चाहेगा,वह कमेटी के पास जाएगा। यह राजनीति नहीं है। राजनीति और ज्यूडिशियरी में फर्क है। आपको को-ऑपरेट करना होगा।

2. कमेटी कोई आदेश जारी नहीं करेगी

चीफ जस्टिस: हम कानून के अमल को अभी सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन बेमियादी तौर पर नहीं। हमें कमेटी में यकीन है और हम इसे बनाएंगे। यह कमेटी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। कमेटी किसी को सजा नहीं सुनाएगी,न ही कोई आदेश जारी करेगी। वह सिर्फ हमें रिपोर्ट सौंपेगी।

3. प्रधानमंत्री का जिक्र

एमएल शर्मा: किसान कह रहे हैं कि कई लोग चर्चा करने आए, लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए, जो मुख्य व्यक्ति हैं।
चीफ जस्टिस: हम प्रधानमंत्री से बैठक में जाने को नहीं कह सकते। वे इसमें पार्टी नहीं हैं। प्रधानमंत्री के दूसरे ऑफिशियल यहां पर मौजूद हैं।

4. किसानों की जमीन नहीं बेची जाएगी

एमएल शर्मा: नए कृषि कानून के तहत अगर कोई किसान कॉन्ट्रैक्ट करेगा तो उसकी जमीन बेची भी जा सकती है। यह मास्टरमाइंड प्लान है। कॉर्पोरेट्स किसानों की उपज को खराब बता देंगे और हर्जाना भरने के लिए उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ जाएगी।
चीफ जस्टिस: हम अंतरिम आदेश जारी करेंगे कि कॉन्ट्रैक्ट करते वक्त किसी भी किसान की जमीन नहीं बेची जाएगी।

5. बुजुर्ग, महिलाएं, बच्चे आंदोलन से वापस लौटेंगे

एपी सिंह (भारतीय किसान यूनियन-भानू के वकील): किसानों ने कहा है कि वे बुजुर्गों, महिलाओं, बच्चों को वापस भेजने को तैयार हैं।
चीफ जस्टिस: हम रिकॉर्ड में लेकर इस बात की तारीफ करना चाहते हैं।

6. 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली पर

केके वेणुगोपाल (अटॉर्नी जरनल): अगर गणतंत्र दिवस पर किसानों को दिल्ली में आने की इजाजत दी गई, तो कोई नहीं जानता कि वे कहां जाएंगे।
चीफ जस्टिस: पुलिस आपकी है। शहर में एंट्री पर फैसला पुलिस को करना है। पुलिस को अधिकार है कि वह चेक करे कि किसी के पास हथियार तो नहीं है।

7. रामलीला मैदान के लिए मंजूरी लीजिए

विकास सिंह (किसान संगठनों के वकील): किसानों को अपने प्रदर्शन के लिए प्रमुख जगह चाहिए, नहीं तो आंदोलन का कोई मतलब नहीं रहेगा। रामलीला मैदान या बोट क्लब पर प्रदर्शन की मंजूरी मिलनी चाहिए।
चीफ जस्टिस: किसान दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से रामलीला मैदान या किसी और जगह पर प्रदर्शन के लिए इजाजत मांगें।

8. आंदोलन में खालिस्तानी

चीफ जस्टिस: एक अर्जी में कहा गया है कि एक प्रतिबंधित संगठन किसान आंदोलन में मदद कर रहा है। अटॉर्नी जनरल इसे मानते हैं या नहीं?
केके वेणुगोपाल (अटॉर्नी जरनल): हम कह चुके हैं कि आंदोलन में खालिस्तानियों की घुसपैठ हो चुकी है।

कैसी है किसानों के लिए बनी कमेटी:4 मेंबर्स में से 2 किसान नेता और 2 एक्सपर्ट;एक MSP के हिमायती,दूसरे कृषि कानून के समर्थक

सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर बातचीत करने और इस मसले को सुलझाने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इसमें दो एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट और दो किसान नेता हैं। कमेटी में अशोक गुलाटी, डॉक्टर प्रमोद के जोशी, भूपिंदर सिंह मान और अनिल घनवत शामिल हैं। चारों के पास इस सेक्टर का अच्छा-खासा अनुभव है। यह कमेटी किसानों का पक्ष सुनेगी और अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देगी।

1. अशोक गुलाटी (एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट​​​​​​​):

एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट अशोक गुलाटी भारतीय अनुसंधान परिषद (ICRIER) में इन्फोसिस के चेयर प्रोफेसर हैं। गुलाटी नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के मेंबर और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष हैं। अशोक गुलाटी के पास एग्रीकल्चर सेक्टर पर खासा अनुभव है। वे कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइज (CACP) के अध्यक्ष रह चुके हैं। CACP फूड सप्लाई और फसलों की कीमत तय करने के लिए केंद्र सरकार को सलाह देता है। गुलाटी ने कई फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइज (MSP) बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।

अशोक गुलाटी को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था। गुलाटी को एग्रीकल्चर सेक्टर पर खासा अनुभव है।
अशोक गुलाटी को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था। गुलाटी को एग्रीकल्चर सेक्टर पर खासा अनुभव है।

2. डॉक्टर प्रमोद के जोशी (एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट):

डॉक्टर प्रमोद जोशी साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं। वे नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च मैनेजमेंट हैदराबाद के डायरेक्टर थे। डॉ. जोशी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर भी रह चुके हैं। इससे पहले वे इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में साउथ एशिया कोऑर्डिनेटर थे। एग्रीकल्चर सेक्टर में काम करने के लिए उन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। वह नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज और इंडियन सोसाइटी ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स के फेलो हैं।

डॉक्टर प्रमोद जोशी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर भी रह चुके हैं।
डॉक्टर प्रमोद जोशी नेशनल सेंटर फॉर एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर भी रह चुके हैं।

3. भूपिंदर सिंह मान (किसान नेता):

15 सितंबर 1939 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए सरदार भूपिंदर सिंह मान किसानों के लिए हमेशा काम करते रहे हैं। इस वजह से राष्ट्रपति ने 1990 में उन्हें राज्यसभा में नामांकित किया था। वे 1966 में फार्मर फ्रेंड एसोसिएशन के फाउंडर मैंबर में से एक थे। यह बाद में स्टेट लेवल पर पंजाब खेती बाड़ी यूनियन बना। आगे चलकर यही संगठन नेशनल लेवल पर भारतीय किसान यूनियन (BKU) बना। भूपिंदर सिंह मान अभी BKU के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे किसान कोऑर्डिनेशन कमेटी (KCC) के चेयरमैन भी हैं।​​​​​​​

भूपिंदर सिंह मान BKU के राष्ट्रीय अध्यक्ष और किसान कोऑर्डिनेशन कमेटी (KCC) के चेयरमैन हैं।
भूपिंदर सिंह मान BKU के राष्ट्रीय अध्यक्ष और किसान कोऑर्डिनेशन कमेटी (KCC) के चेयरमैन हैं।

4. अनिल घनवत (किसान नेता):

अनिल घनवत महाराष्ट्र में किसानों के बड़े संगठन शेतकारी संगठन के अध्यक्ष हैं। यह संगठन बड़े किसान नेता रहे शरद जोशी ने 1979 में बनाया था। अनिल घनवत शुरू से ही कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानूनों में कुछ सुधार की गुंजाइश है, लेकिन इनका सिरे से विरोध करना खेती के हित में नहीं है।

उनका कहना है कि इन कानूनों के आने से गांवों में कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस बनाने में निवेश बढ़ेगा। घनवत ने ये भी कहा था कि अगर दो राज्यों के दबाव में आकर ये कानून वापस ले लिए जाते हैं तो इससे किसानों के लिए खुले बाजार का रास्ता बंद हो जाएगा।

अनिल घनवत शुरू से ही कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानूनों में कुछ सुधार की गुंजाइश है
अनिल घनवत शुरू से ही कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कानूनों में कुछ सुधार की गुंजाइश है.

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