नाच ना जाने आंगन टेढ़ा? ईवीएम विरोध में कितना है दम?

Evm Was Started During Congress Rule Now What Is The Truth Behind Pointing Fingers
मत-विमत: कांग्रेस राज में शुरू हुआ था EVM, अब उंगली उठाने के पीछे क्या है?
EVM Controversy: कांग्रेस ने चुनावों में ईवीएम से वोटिंग शुरू कराई। अब उस पर ही उसे एतराज है। कांग्रेस ही नहीं, इंडी अलायंस के नाम पर एकजुट हुई विपक्षी पार्टियों को भी ईवीएम में अब खोट नजर आने लगी है। कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव को जारी घोषणा पत्र में भी ईवीएम को लेकर चर्चा की है।
मुख्य बिंदु
ईवीएम से वोटिंग सिस्टम कांग्रेस राज से शुरू
  जीते तो ठीक, हार होते ही दिखने लगी खराबी
     हारने की पड़ताल के बजाय ईवीएम पर ठीकरा
         घोषणा पत्र में कांग्रेस ने EVM को बनाया मुद्दा

पटना 08 अप्रैल 2024: चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज के प्रमुख प्रशांत किशोर कहते हैं कि राहुल गांधी पिछले 10 साल से प्रधानमंत्री बनने को जोर आजमाइश करते रहे हैं। लोकसभा के दो चुनाव उनके नेतृत्व में हुए और कांग्रेस दुर्गति को प्राप्त होती रही। राहुल को अपनी पार्टी कांग्रेस की इस दुर्गति की चिंता करनी चाहिए। इसके कारणों की पड़ताल करनी चाहिए। पर, वे कभी ईवीएम तो कभी चुनाव आयोग पर सवाल उठाते रहे। यहां तक कि मीडिया और न्यायपालिका की भूमिका पर भी उन्होंने अविश्वास किया। संभव है कि इसमें आंशिक सच्चाई हो, लेकिन पूरा सच तो यह हो नहीं सकता। वे भूल जाते हैं कि हार का ठीकरा जिस ईवीएम पर फोड़ रहे हैं, उसकी शुरुआत तो उन्हीं की पार्टी की सरकार ने की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस नेतृत्व वाली ही यूपीए सरकार थी। तब भी कांग्रेस 44 सीटों पर क्यों सिमट गई!

स्याही पर भी उठे थे सवाल
यह पहला मौका नहीं है, जब चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हों। विपक्ष का हर दल ईवीएम से चुनाव कराने के खिलाफ है। एक-दो को छोड़ कर अब तक सभी लोकसभा चुनाव देख चुके वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि सन 1966 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे प्रो. बलराज मधोक ने 1971 के लोकसभा चुनाव के बाद यह आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी रसियन स्याही के जरिए धांधली करके लोकसभा का चुनाव जीत गईं। इस हास्यास्पद आरोप के बाद प्रो. मधोक की राजनीतिक साख लगभग समाप्त हो गई, जबकि राष्ट्रवादी राजनीति को आगे बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान था। इन दिनों जो नेता भाजपा की जीत के लिए इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी किए जाने का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें बलराज मधोक की तत्संबंधी कहानी को विस्तार से पढ़ लेना चाहिए।

कांग्रेस राज में ईवीएम से वोटिंग
ईवीएम से मतदान की शुरुआत कांग्रेस राज में ही मुख्य चुनाव आयुक्त रहते टीएन शेषन ने कराई थी। चुनाव के दौरान हिंसा-हंगामा के कारण सही ढंग से चुनाव कराना मुश्किल हो गया था। हालत यह थी कि चुनाव ड्यूटी लगने की खबर से ही कर्मचारियों के पसीने छूटने लगते थे। वे बचने के उपाय तलाशने लगते थे। बूथ लूट की घटनाएं होती थीं। पश्चिम बंगाल में तब वामपंथियों की हुकूमत थी। वहां चुनाव के वक्त अंग्रेजी के दो शब्दों का एक जुमला काफी प्रचलित था- साइंटिफिक रिगिंग। बूथ में चार-पांच वामपंथी कैडर दनादन मतपत्रों पर अपने उम्मीदवार के पक्ष में मुहर मारते और बैलेट बॉक्स में डालते जाते थे। पीछे वोटरों की लाइन कभी खिसकती ही नहीं थी। टीएन शेषन के ईवीएम से वोटिंग कराने का परिणाम यह रहा कि चुनाव में साइंटिफिक रिगिंग बंद हो गई। नतीजा सबके सामने है। वामपंथियों के पांव आखिरकार बंगाल से उखड़ गए।

 ‘खुद जीती कांग्रेस तो खोट नहीं’
आश्चर्य इस बात पर होता है कि ईवीएम से मतदान भाजपा के समय शुरू नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी के एक कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो भाजपा के हाथ देश की कमान 2014 में आई। सच तो यह है कि जब तक कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियां जीतती रही, तब तक ईवीएम पर कभी सवाल नहीं उठाया। जब हार की नौबत आई तो ईवीएम में खोट और भाजपा की चाल उन्हें नजर आने लगी है। कांग्रेस ने तो अपने घोषणा पत्र में भी इस बार इसका जिक्र किया है कि उसकी सरकार बनी तो वोटिंग के तरीके यानी ईवीएम के बेहतर इस्तेमाल पर ध्यान दिया जाएगा। ईवीएम में पड़े वोटों की हकीकत जानने को वीवीपैट का इस्तेमाल होगा।  पता चल जाएगा कि वोटर ने किसे वोट किया है। यानी कांग्रेस को अपनी ही सरकार की ईवीएम वोटिंग व्यवस्था पर अब संदेह होने लगा है।
कई देशों में EVM का इस्तेमाल
ईवीएम से चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वाले यह भी तर्क देते हैं कि कई देशों में बैलट पेपर पर ही वोटिंग होती है। इसके लिए जर्मनी, जापान, नीदरलैंड, आयरलैंड और इंग्लैंड जैसे कई देशों का हवाला देते हैं। ऐसा तर्क देने वाले यह भूल जाते हैं कि 140 करोड़ आबादी वाले भारत में अभी 97 करोड़ मतदाता हैं। भारत की तुलना में उन देशों की आबादी मुट्ठी भर है। भारत में बैलट पेपर पर चुनाव कराने में कागज, छपाई, ढुलाई वगैरह के खर्च इतने अधिक हो जाएंगे कि किसी भी सरकार को यह बड़ा बोझ उठाना मुश्किल होगा।
बैलट पेपर महंगा
सीएमएस रिपोर्ट बताती है कि 2019 का आम चुनाव दुनिया में कहीं भी हुए चुनाव से सर्वाधिक महंगा था। सीएमएस ने आकलन किया था कि 2019 में प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में तकरीबन 100 करोड़ रुपए खर्च किए गए। यानी उस साल के आम चुनाव में प्रति वोट पर 700 रुपए खर्च हुए। इस बार के लोकसभा चुनाव में यह खर्च दोगुना होने का अनुमान है। इसलिए कि वोटर बढ़े हैं और महंगाई भी अधिक है। इस बार लोकसभा चुनाव में एक लाख 20 हजार करोड़ रुपए खर्च का अनुमान है। यह तकरीबन चार करोड़ आबादी वाले झारखंड के मौजूदा बजट आकार 1,28,900 करोड़ से थोड़ा ही कम है।

ईवीएम चुनौती: दुनिया ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से कैसे निपटा है
लगभग 120 देश ऐसे हैं जो लोकतंत्र का अभ्यास करते हैं। इनमें से केवल लगभग 25 ने ही अपनी सरकार चुनने को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग किया है या उनका उपयोग किया है। इसलिए, चुनावों में वोट दर्ज करने के लिए ईवीएम वैश्विक स्तर पर प्रमुख विकल्प नहीं है।

लगभग 120 लोकतांत्रिक देशों में से 24 ने किसी न किसी रूप में ईवीएम का उपयोग किया है।
जर्मनी में इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया गया।
अमेरिका के कुछ राज्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग करते हैं।
फरवरी 2004 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पूर्व रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ से जुड़े एक मामले में, चुनाव आयोग द्वारा उपयोग की जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को ‘राष्ट्रीय गौरव’ बताया।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का वह गौरव आज विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है। देश के कई बड़े नेता ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह जता चुके हैं. यह चलन नया नहीं है. यहां तक ​​कि जब पार्टी विपक्ष में थी तब शीर्ष भाजपा नेताओं ने भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित होते ही संदेह व्यक्त हो गया था। बसपा प्रमुख मायावती ने सबसे पहले आरोप लगाया था कि यूपी विधानसभा चुनाव में ईवीएम से छेड़छाड़ की गई है।

आप संयोजक अरविंद केजरीवाल भी पंजाब चुनाव में अपनी पार्टी की हार को ईवीएम से छेड़छाड़ को जिम्मेदार ठहराते हुए इसमें शामिल हो गए। हालांकि मायावती ने ईवीएम के सवाल पर ज्यादा जोर से नहीं दिया, लेकिन केजरीवाल आगे बढ़ गए। AAP विधायकों में से एक, सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली विधानसभा में ‘प्रदर्शन’ किया कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है, जिसके बाद केजरीवाल ने दावा किया कि वोटिंग मशीन को 90 सेकंड में हैक किया जा सकता है। लेकिन अपनी बार-बार दिल्ली जीत के समय उन्हें ईवीएम ठीक लगती है।


चुनाव आयोग ने बार-बार इस आरोप का खंडन किया है और इस दावे को खारिज कर दिया है कि उसके स्वामित्व और रखरखाव वाली ईवीएम हैक की जा सकती हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दुनिया के अन्य हिस्सों में भी विश्वसनीयता के इसी तरह के संकट का सामना करना पड़ा है।

विश्व अनुभव

विश्व में लगभग 120 देशों में लोकतंत्र है। उन में से 25 ने ही सरकार चुनने को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग किया है । इस तरह चुनावों में वोट को ईवीएम दुनिया की प्रमुख पसंद नहीं है।

जिन देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग किया है उनमें एस्टोनिया जैसे छोटे देश से लेकर सबसे पुराने लोकतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका तक शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, कजाकिस्तान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, फिलीपींस, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेनेज़ुएला ने किसी न किसी रूप में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग किया है।

संयुक्त राज्य अमरीका

अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना आधुनिक लोकतंत्र है। यह लोकतंत्र के 25वें दशक में है लेकिन देश में एक समान मतदान प्रणाली नहीं है। कई राज्य मतपत्रों का उपयोग करते हैं, जबकि अन्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग में स्थानांतरित हो गए हैं। कुछ लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली के साथ प्रयोग किया लेकिन आशंकाओं से मतपत्र पर लौट आए।


अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रयोग में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह रहा है कि इसकी वोटिंग मशीनें सर्वर से जुड़ी होती हैं और इंटरनेट से संचालित होती हैं। यह उन्हें साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील बनाता है। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं की पसंद प्रभावित करने में किसी अदृश्य रूसी हाथ का संदेह था।

ईवीएम के कामकाज के इस तरीके पर कई बार सवाल उठे हैं और यहां तक ​​कि कुछ देशों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग बंद करने को मजबूर भी किया गया है। लेकिन, संयोग से, उन्होंने आम तौर पर गैर-नेटवर्क वाली स्टैंडअलोन ईवीएम – जैसा कि भारत में उपयोग किया जाता है – को अपने देशों में चुनावों में उपयोग का नहीं सोचा है।

जर्मनी का अनोखा मामला

जर्मनी यूरोप का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसने 2005 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की शुरुआत की। जर्मनी ने नीदरलैंड की एक निजी कंपनी से अपने चुनाव कराने को वोटिंग मशीनें आयात कीं।

बाद में मशीनों में कई स्तर की कमियाँ होने की सूचना मिली। जर्मनी का इरादा अपनी मशीनों की उन कमज़ोरियों को दूर करने का था लेकिन उससे पहले ही मामला उच्चतम न्यायालय में पहुँच गया।

2009 में, जर्मनी के संघीय संवैधानिक न्यायालय ने माना कि चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग असंवैधानिक था और पाया कि इस तरह की प्रथा में पारदर्शिता का अभाव था। भारत के विपरीत, जर्मनी ने चुनावों में वोट डालने को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के उपयोग को अधिकृत करने वाला कोई कानून पारित नहीं किया है।

एस्टोनिया की सफलता

जर्मनी महज 13 लाख की आबादी वाले छोटे से देश एस्टोनिया पर नजर डाल सकता था। एस्टोनिया इंटरनेट का उपयोग करके इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग को अनिवार्य बनाने वाला कानून बनाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इसने 2005 में कानून पारित किया।

एस्टोनिया ने 2007 में पहला इंटरनेट-आधारित राष्ट्रीय चुनाव आयोजित करने का दावा किया है। यह तीन दिनों तक चला।

लैटिन अमेरिकी तरीका

बड़े लोकतंत्रों में, ब्राज़ील और वेनेजुएला ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।

ब्राज़ील पांचवां सबसे अधिक आबादी वाला देश है और दुनिया की उभरती आर्थिक शक्तियों में से एक है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग 1996 में शुरू हुआ – जब तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन भारत के चुनाव आयोग में क्रांति ला रहे थे।


भारत की तरह ब्राज़ील ने भी इस सदी के सभी चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का इस्तेमाल किया है। ब्राज़ील लगभग 5.3 लाख वोटिंग मशीनों का उपयोग करके चुनाव कराता है। वहां चुनाव कराने के कुछ ही घंटों के भीतर नतीजे घोषित कर दिये जाते हैं.

वेनेज़ुएला ने भी इसका अनुसरण किया और 1998 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की शुरुआत की। 2004 में, जब भारत में पहली बार सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए ईवीएम का उपयोग किया गया, तो वेनेजुएला ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता पर संदेह को दूर करने के लिए मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ट्रेल को जोड़ा।
वेनेज़ुएला में विवादों का अपना हिस्सा था क्योंकि यह बताया गया था कि जीतने वाले उम्मीदवार की वोटिंग मशीनों की आपूर्ति करने वाली कंपनी में हिस्सेदारी थी।

फिर भी, वेनेज़ुएला ने टच स्क्रीन के उपयोग का विकल्प चुनकर अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली में सुधार जारी रखा, जो वोटों के किसी भी दोहराव से बचने के लिए मतदाताओं के अंगूठे के निशान को पंजीकृत कर सकता है। हालाँकि, यह प्रणाली भारत में काम नहीं कर सकती जहाँ मतदाताओं की गोपनीयता को सर्वोपरि माना जाता है।

भारतीय मंत्र

चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल में भारत विश्व में अग्रणी है। चुनाव आयोग 2001 से सभी चुनाव ईवीएम के माध्यम से करा रहा है । 2014 में संसदीय चुनावों में 55.38 करोड़ लोगों ने ईवीएम में वोट डाले।

भारतीय ईवीएम एक प्रत्यक्ष रिकॉर्डिंग डिवाइस है, जो एक स्टैंड-अलोन मशीन है। चुनाव आयोग ने कई बार स्पष्ट किया है कि भारतीय ईवीएम अपने सिस्टम के बाहर किसी भी मशीन से बात नहीं करती हैं – चाहे वह वायर्ड नेटवर्क, इंटरनेट, सैटेलाइट, वाईफाई या ब्लूटूथ के माध्यम से हो।

ईवीएम सर्वर से कनेक्ट नहीं है, इसलिए भारतीय ईवीएम की साइबर हैकिंग तब तक संभव नहीं है जब तक कि कोई अधिकृत व्यक्ति गलत इरादे से काम न करे।

चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित करने के लिए बहुस्तरीय सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किया है कि ईवीएम वास्तविक वोट रिकॉर्ड करें।
मशीनों की प्रथम-स्तरीय जांच वास्तविक मतदान से महीनों पहले चुनाव आयोग द्वारा की जाती है। अभ्यास का निरीक्षण करने के लिए सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद हैं। खराब मशीनें हटा दी गई हैं।
ईवीएम का चयन कंप्यूटर द्वारा रैंडमाइजेशन के सिद्धांत पर किया जाता है। यह प्रक्रिया किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र या किसी विशेष मतदान केंद्र पर किसी विशेष ईवीएम के लिए पूर्व ज्ञान या नियोजित सेटिंग की अनुमति नहीं देती है।
ईवीएम की बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट की जोड़ी के लिए दोहरी रैंडमाइजेशन प्रक्रिया है। इस कदम से किसी व्यक्ति के लिए यह जानना असंभव हो जाता है कि मशीनों को कैसे जोड़ा जाएगा और किस निर्वाचन क्षेत्र में कौन सी मशीन का उपयोग किया जाएगा।
नाम वापसी के आखिरी दिन तक उम्मीदवारों का अंतिम क्रम ईवीएम की बैलेट यूनिट पर नहीं डाला जाता है. जब ऐसा किया जाता है, तो आमतौर पर मतदान से 13 दिन पहले, ईवीएम की उचित कार्यप्रणाली के लिए फिर से जांच की जाती है।
इस अभ्यास के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और उम्मीदवार मौजूद रहते हैं। वे एक प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करते हैं, जिसमें कहा जाता है कि प्रक्रिया पूरी होने के बाद उनकी संतुष्टि के अनुसार ईवीएम सही स्थिति में हैं।
मतदान केंद्रों पर अंतिम रूप से भेजे जाने से पहले, ईवीएम को एक अद्वितीय सुरक्षा नंबर के साथ सील कर दिया जाता है। इस चरण में भी पार्टियों या उम्मीदवारों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं और मुहर पर हस्ताक्षर करते हैं.
चुनाव आयोग पूर्वानुमान की संभावना को खत्म करने के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए उम्मीदवारों के नाम वर्णमाला क्रम में रखता है।
इसके शीर्ष पर, चुनाव आयोग ने कहा है कि भविष्य के सभी चुनाव वीवीपैट के साथ होंगे, जिससे प्रत्येक मतदाता के लिए यह देखना संभव हो जाएगा कि उसका वोट केवल चुने हुए उम्मीदवार को ही जाए।
वीवीपीएटी का उपयोग 2014 में 543 लोकसभा क्षेत्रों में से आठ में, पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 33 में और इस साल की शुरुआत में गोवा राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था।
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