धामी और मौर्य को दोबारा पदासीन करने का हो रहा विरोध, हाईकमान मध्य मार्ग की जुगत में

दो दिग्गजों की हार ने बढ़ाई भाजपा की उलझन:धामी- मौर्य को फिर से दी कमान तो उठेंगे सवाल, बीच की राह तलाशने में जुटा हाईकमान

नई दिल्ली 16 मार्च।उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सत्ता में वापसी से खुश भाजपा अपने दो दिग्गजों के हार जाने से उलझन में पड़ गई है। इनमें से एक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हैं और दूसरे उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य। दोनों का महत्व समझते हुए उन्हें सरकार में लाने के लिए हाईकमान स्तर पर चर्चा चल रही है। हालांकि, इनकी वापसी आसान नहीं है। कारण कि उनकी वापसी से पार्टी के भीतर सवाल भी उठेंगे और असंतोष भी बढ़ने का खतरा है।

केशव प्रसाद मौर्य पर भाजपा में सबसे बड़ा संग्राम

भाजपा में सबसे बड़ा संग्रामज्ञउपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को लेकर चल रहा है। भाजपा में एक धड़ा यह चाह रहा है कि मौर्य को फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया जाए ताकि अन्य पिछड़ा वर्ग में यह संदेश जाए कि उनके नेता को हारने के बावजूद पार्टी ने तवज्जो दी।

उत्तर प्रदेश में नई सरकार को लेकर आज योगी संग चर्चा कर रहे हैं योगी आदित्यनाथ।

विरोधी खेमे की ओर से इस पर ऐतराज किया जा रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि अगर मौर्य को फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया गया तो जो हारे हुए 11 मंत्री हैं, उनका क्या होगा? पार्टी उन्हें कहां एडजस्ट करेगी। राज्य स्तर पर इससे एक नई परम्परा शुरू हो जाएगी। इससे भविष्य में भाजपा के भीतर टकराव बढ़ने की आशंका रहेगी।

कहा जा रहा है कि मौर्य संगठन के व्यक्ति हैं। उन्हें संगठन में किसी बड़े पद पर बैठाकर भी अन्य पिछड़ा वर्ग को खुश किया जा सकता है, लेकिन मौर्य के चुनाव हारने से उनके जनाधार पर सवाल खड़ा हो रहा है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को उपमुख्यमंत्री बनाने की बात चल रही है। सिंह कुर्मी समुदाय से आते है। गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग में सबसे ज्यादा संख्या कुर्मी समाज की है। अभी इसके लिए भाजपा अपना दल पर निर्भर दिखाई देती है।

उत्तर प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाल रखा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुधवार को फिर दिल्ली पहुंचेंगे। केंद्रीय गृह मंत्री और उत्तर प्रदेश भाजपा के ऑब्जर्वर अमित शाह के यहां बड़ी मीटिंग होनी है, जिसमें मंत्रियों और उप मुख्यमंत्री को लेकर कोई फैसला होने की संभावना है।

मौर्य बने उप मुख्यमंत्री हारे मंत्री कहां होंगे एडजस्ट?

गौरतलब है कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, गन्ना मंत्री सुरेश राणा समेत 11 मंत्रियों को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इनमें ग्रामीण विकास मंत्री मोती सिंह, बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी, खेल एवं युवा कल्याण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार उपेंद्र तिवारी, खाद्य एवं रसद राज्य मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह, लोनिवि राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, राज्य मंत्री छत्रपाल सिंह गंगवार, लखन सिंह, संगीता बलवंत और आनंद स्वरूप शुक्ला भी शामिल हैं।

दिल्ली में उत्तर प्रदेश सदन हुआ फुल

दिल्ली स्थित उत्तर प्रदेश सदन इन दिनों नेताओं से भरा हुआ है। जीते हुए भाजपाई विधायक मंत्री बनने को जमावड़ा लगाए हुए हैं। इसके लिए उनकी तरफ से पूरी लॉबिंग चल रही है।

केंद्रीय मंत्रियों से लेकर संगठन से जुड़े बड़े पदाधिकारियों के आवासों पर वे संपर्क कर रहे हैं। हालांकि, मंत्री बनाने का अंतिम फैसला प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री योगी और संगठन के स्तर पर होना है।

इसी तरह से उत्तराखंड के विधायकों की ओर से भी लॉबिंग की जा रही है। खासतौर पर वे उत्तराखंड के लिए पर्यवेक्षक बनाए गए केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से संपर्क साध रहे हैं।

उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री को लेकर भाजपा हाईकमान कई विकल्पों पर विचार कर रहा है।

उत्तराखंड में धामी के लिए ऊहापोह

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर पार्टी सत्ता में तो पहुंच गई, लेकिन धामी खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए। अब पार्टी के भीतर धामी पर सहमति बनाने को विचार  विमर्श चल रहा है। विरोधी खेमा धामी को किसी भी सूरत में फिर से मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में नहीं है।

उनका तर्क है कि धामी को फिर से मुख्यमंत्री  बनाया गया तो सवाल उठेगा कि 2017 में हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत हुई थी, लेकिन मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे। इसके बाद धूमल को क्यों मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया? जीते हुए विधायकों में से ही मुख्यमंत्री का चुनाव हुआ था।

वहीं धामी के समर्थकों की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि धामी ने हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया है। हिमाचल और उत्तराखंड के हालात की तुलना नहीं की जा सकती है। यह भी एक तथ्य है कि 2014 में पंजाब से लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली को केंद्रीय वित्त मंत्री बनाया गया था।

मंगलवार को धामी दिल्ली में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले, लेकिन क्या बात हुई, यह बाहर नहीं आई। बाद में धामी बलूनी से उनके आवास पर भी मिले।

कहा जा रहा है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर पर होली के बाद ही अंतिम फैसला होगा।

दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए पुष्कर धामी लगातार दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं।

क्या टूटेगा उत्तराखंड का ये मिथक

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से आज तक कोई भी मुख्यमंत्री दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। केवल बीसी खंडूरी ही दूसरी बार मुख्यमंत्री जरुर बने, लेकिन वह भी एक ही कार्यकाल में ।
अलग राज्य बनने के बाद भाजपा ने अंतरिम सरकार में नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन विरोध के कारण उन्हें हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को राज्य की कमान दी गई।
2002 के चुनाव में भाजपा हार गई। सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई। पार्टी ने एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया। 2007 में कांग्रेस हारी।
भााजप के जीतने पर बीसी खंडूरी मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनकी कार्यशैली का पार्टी में ही भारी विरोध हुआ। ऐसे में भाजपा ने 2009 में उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया।
2011 में अन्ना आंदोलन जोरों पर था। राज्य में करप्शन की खबरें आ रही थीं, इसे देखते हुए भाजपा ने निशंक को हटाकर चार महीने के लिए खंडूरी को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया।
2012 के विधानसभा चुनाव में खंडूरी हार गए। सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया।
पौने दो साल बाद बहुगुणा के खिलाफ हरीश रावत ने बगावत कर दी, जिसके बाद पार्टी ने रावत को 2014 के शुरू में मुख्यमंत्री बनाया। पर रावत भी 2017 और 2022 में लगातार दो चुनाव हार गए।

भट्‌ट, अनिल बलूनी मुुख्यमंत्री बने तो कराने होंगे दो उपचुनाव

केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्‌ट और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का नाम भी मुुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। हालांकि, इनमें से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाने की स्थिति में एक नहीं, बल्कि दो उपचुनाव कराने पड़ेंगे।

भट्‌ट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए किसी विधायक से इस्तीफा दिलाना पड़ेगा और भट्‌ट को उपचुनाव लड़वाना पड़ेगा, जबकि उन्हें लोकसभा से खुद इस्तीफा देना पड़ेगा। इसलिए लोकसभा की एक सीट पर अलग से उपचुनाव कराना पड़ेगा।

इसी तरह बलूनी के लिए राज्यसभा का उपचुनाव कराना पड़ेगा। साथ ही उन्हें खुद भी विधानसभा के लिए चुनाव लड़ना पड़ेगा। सूत्रों का कहना है कि भाजपा इससे बचना चाह रही है।

 

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