दाऊद इब्राहिम से ज्यादा वांटेड सीपीआई मार्क्सवादी नेता गणपति

दाऊद इब्राहिम नहीं, ये है देश का मोस्ट वॉन्टेड अपराधी, 2.5 करोड़ से ज्यादा का है इनाम
माओवादी नेता गणपति (Maoist Leader Ganapathy) घने जंगलों में कई लेयर की सुरक्षा के बीच रहता है. साथ ही उसके पास मुखबिरों की बड़ी फौज है. अब वही नेता सरेंडर कर सकता है.
देश के सबसे खूंखार माओवादी नेता गणपति (Maoist Leader Ganapathy) के बारे में कई बार मौत तक की खबरें आ चुकी हैं लेकिन हर बार किसी बड़ी माओ गतिविधि के बाद फिर से उसका नाम उछल आता है. गणपति देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा है, इसका मोटा अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उसके सिर पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) से ज्यादा इनाम था. अब कहा जा रहा है कि ये माओ नेता जल्द ही तेलंगाना पुलिस के आगे सरेंडर (he may surrender in Telangana) कर सकता है. जानिए, कौन है गणपति और कितना खतरनाक है.
अगर कोई गणपति के बारे में जानना चाहता है तो उसे ये समझना होगा कि पिछले एक दशक से वो देश के कई राज्यों के लिए मोस्ट वॉन्टेड व्यक्ति रहा है. गणपति उर्फ मुप्पला लक्ष्मण राव के बारे में छत्तीसगढ़ के एक पुलिस अधिकारी ने कुछ इस तरह की बात कही. सीपीआई (माओवादी) के इस पूर्व महासचिव की तलाश छत्तीसगढ़ से लेकर महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखंड, बिहार की पुलिस को रही है.
यहां तक कि नेशनल इंवेस्टगेशन एजेंसी NIA (National Investigation Agency) को भी गणपति की तलाश रही. हर राज्य ने इस माओ नेता पर अलग-अलग इनाम रखे. और इस तरह से गणपति 2.5 करोड़ से ज्यादा की रकम के साथ देश का सबसे बड़ा इनामी अपराधी हो गया.
कहा जाता है कि उसे बेहद जांबाज और जंगलों-पहाड़ों में लड़ाई लड़ने में तेज गुरिल्ला गार्ड्स की सुरक्षा मिली हुई है. यहां तक कि वो कई परतों की सुरक्षा में घिरा रहता है, जैसी देश के बड़े-बड़े राजनेताओं को मिलती है. ऐसे में सुरक्षा घेरा तोड़कर उस तक पहुंच पाना आसान नहीं रहा. उसने पास मुखबिरों की अपनी फौज भी थी. इससे उस तक पहुंचने की कोई कोशिश कामयाब नहीं हो पाती थी.
अब यही गणपति सरेंडर करने जा रहा है. लगभग 74 साल के गणपति के असल चेहरे को काफी पहले देखा गया है. वो दुबला-पतला और मंझोले कद का है, जिसके बालों में सफेदी है. गणपति बालों को रंगने का शौकीन है. साल 1995 में वो पहली बार तब चर्चा में आया, जब उसने एक DSP समेत पुलिस की गाड़ी को बम से उड़ा दिया. उस हमले में अधिकारी समेत 25 लोग घटनास्थल पर ही मारे गए थे. इसके बाद गणपति ने साल 2006 में सलवा जुडूम अभियान का मुकाबला करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ बस्तर के एर्राबोर क्षेत्र में 35 आदिवासियों की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
साल 2006 में ही उसने उपलेटा कैंप में 22 पुलिसकर्मियों की हत्या की थी और 14 नागा सैनिकों को ले जा रहे एक वैन का उड़ा दिया था. वर्ष 2008 में उसने सीआईएसएफ के हिरोली माइंस कैंप पर हमला किया जिसमें आठ जवान मारे गए थे.

तेलंगाना के करीमनगर जिले में जन्मा गणपति वैसे पेशे से टीचर था. लेकिन साथ ही वो किसी बदलाव के लिए लोगों से जुड़ने पर यकीन रखता था. इसी सोच के साथ गणपति ने अपना पेशा छोड़ा और माओ आंदोलन का लीडर बन गया. गणपति की पहुंच देश- विदेश में थी. उसने श्रीलंका में लिट्टे और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में विद्रोही समूहों के संपर्क. यहां से उसे अपने अभियान के लिए रसद और हथियार जैसी चीजें मिलती रहीं.
हमारी सहयोगी वेबसाइट न्यूज 18 अंग्रेजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक गणपति ने बीमारी के कारण दो वर्ष पहले ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. अब वो अपनी खराब सेहत के कारण सरेंडर करना चाहता है. हालांकि उसके की खबर से माओवादियों में खलबली मची हुई है. गुरुवार शाम को एक प्रेस रिलीज जारी करके उन्होंने कहा कि ये सच है कि उनके इस नेता ने दो साल पहले सेहत के चलते पार्टी छोड़ दी लेकिन उनके सरेंडर की बात झूठ है और समूह को बदनाम करने की कोशिश है.
चूंकि गणपति काफी ताकतवर है, इसलिए खुद पुलिस के कई अधिकारियों को भी उसके आत्मसमर्पण की बात पर पक्का यकीन नहीं है. इस बारे में नाम न बताने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि अगर गणपति की सेहत खराब है तो वो चाहे तो जंगल में ही अपने लिए बढ़िया डॉक्टर का इंतजाम कर सकता है, जैसा माओ करते हैं. यहां तक कि वो लोग जंगल के भीतर ही ICU बना सकते हैं. ऐसे में खराब सेहत के चलते सरेंडर की बात उतनी भरोसे की नहीं लगती.
दूसरी ओर कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गणपति के आत्मसमर्पण की बात से खुश हैं. बस्तर में इंस्पेक्टर जनरल ऑप पुलिस पी सुंदर राज के मुताबिक गणपति पिछले 25 सालों से बस्तर में माओ आंदोलन की जड़ें फैलाने की कोशिश में था. अब अगर वो सरेंडर कर देता है तो इससे अभियान कमजोर होगा. साथ ही पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद वो कई खूंखार हमलों की जानकारी दे सकेगा.

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