चुनौतियां:एक्स मुस्लिम पर कट्टरपंथियों और इस्लाम विरोधियों की दोहरी मार

EX muslim in india: क्यों बढ़ती जा रही है भारत में एक्स मुस्लिमों की संख्या?

Left islam: एक्स मुस्लिम लोग यानी वे लोग जिन्होंने इस्लाम को छोड़ दिया है। साइंस के इस युग में मज़हब पर अब कई तरह के सवाल खड़े किए जाने लगे हैं। यह सिर्फ इस्लाम में ही नहीं बल्कि हिन्दू, ईसाई सहित सभी पंथों में होने लगा है। एक्स मुस्लिम रुझान तो सोवियत संघ के दौर से ही जारी है परंतु अब यह कुछ ज्यादा होने लगा है।

पहले अफगानिस्तान और ईरान में ऐसे मुसलमानों की संख्या अधिक थी जो इस्लाम नहीं मानते थे और दुनिया में कम्युनिज्म की सत्ता कायम करने में विश्वास रखते थे। इनमें ऐसे भी लोग थे जो इस्लाम और कम्युनिज्म दोनों को ही नहीं मानते थे। आजकल तो यूट्यूब के जमाने में यह खुल कर पता चलने लगा है कि कौन एक्स मुस्लिम है।

विभिन्न मीडिया सूत्रों के अनुसार वर्तमान में पहले पाकिस्तान से इस्लाम छोड़ने की हवा चली जो अब भारत में भी फैल गई है। हालांकि इसके पीछे के इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत 2005 में जर्मन से हो गई थी।  2007 में जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड्स में एक्स-मुस्लिम के कई संगठन बन गए। तब से अब तक दुनियाभर में करीब 50 से ज्यादा एक्स-मुस्लिम संगठन है।

भारत में कुछ वर्ष पहले 3 या 4 एक्स मुस्लिम होते थे, परंतु अब इनकी संख्या लाखों में है। केरल से सबसे पहले एक्स मुस्लिम निकलकर आने लगे। हालांकि इससे पहले और भी राज्यों में यह हो रहा होगा लेकिन मीडिया में उनकी खबरें नहीं होती थी। केरल के एक्स-मुस्लिम संगठन ने 9 जनवरी को एक्स-मुस्लिम दिवस के रूप में मनाना शुरू किया तो यह चर्चा में आया। ‘एक्स मुस्लिम ऑफ केरल’ संगठन के प्रेसिडेंट डॉक्टर आरिफ हुसैन थेरुवथ हैं। यह 2021 में गठित हुआ। डॉक्टर आरिफ हुसैन थेरुवथ के अनुसार उनके संगठन से हजारों लोग जुड़े हैं जो इस्लाम छोड़ चुके हैं।

वर्तमान में भारत में ऐसे कई एक्स मुस्लिम हैं जो अपने यूट्यूब चैनल चला रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं- शकील प्रेम, जफर हेरेटिक, सचवाला, साहिल, एडम सीकर, एपोस्टेट इमाम, यास्मीन खान, फैज आलम आदि। इनके कई समर्थक हैं जो इनके समर्थन में चैनल चलाते हैं। ऐसे लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही हैं। ऐसा भी बताया जाता है कि पाकिस्तान मूल के एक्स मुस्लिम हैरिस सुल्तान और गालिब कमाल के कारण भी भारत के कई मुसलमानों ने इस्लाम से नाता तोड़ लिया है।

क्यों बढ़ती जा रही है भारत में एक्स मुस्लिमों की संख्या?
कई एक्स मुस्लिमों के यूट्यूब चैनल इस्लाम की बुराइयां उजागर करने का दावा करते हैं।
अपने-अपने यूट्यूब चैनल से ये लोग इस्लामी कट्टरता और कुरीतियों पर सवाल उठाते हैं।
उनका तर्क है कि इंसान ने मजहब को बनाया, न कि किसी ईश्वर-अल्लाह ने।
ईश्‍वर जैसी कोई शक्ति होती है या नहीं इस पर सवाल जरूर उठाना चाहिए।
सभी यह कहते हैं कि सबसे बड़ा धर्म-मजहब यदि कोई है तो वह है इंसानियत।
साइंस के मार्फत ही संसार और इंसान के विकास क्रम को समझना चाहिए।
दावे के अनुसार मकसद भारत के मुसलमानों को अरब की जहनी गुलामी से निकालना और भाईचारे तथा इंसानियत का संदेश देना है।
इन चैनलों पर बताया जाता है कि कुरान को तर्जुमे के साथ पढ़कर उसका अर्थ समझना चाहिए।

भारत में सबसे ज्यादा चर्चित एक्स मुस्लिम साहिल हैं जो कभी लोगों को इस्लाम की दावत दिया करते थे। लेकिन उनके मन में धर्म को लेकर सवाल उठे तो उन्होंने इनके जवाब मौलाना और आलीमों से जानना चाहे लेकिन वे उनके किसी भी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए और तब उन्होंने यह खुद ही जाना कि सच क्या है। यह साहिल की अपनी धारणा हो सकती है,  गलत-सही जो भी हो ।

एक्स मुस्लिम साहिल का इंडिया टूटे में एक बयान प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने 2021 की प्यू रिसर्च सेंटर का हवाला देते हुए कहा था कि भारत में करीब 6 प्रतिशत मुसलमान ‘ अल्लाह में विश्वास नहीं करते’। इसका मतलब यह है कि यदि भारत में 20 करोड़ मुसलमानों रहते हैं तो उसमें से करीब 1.2 करोड़ मुसलमान अब एक्स मुस्लिम हैं।”

भारतीय एक्स मुस्लिमों को भारत के साथ-साथ बांग्लादेशी और पाकिस्तानी भी सुनते हैं और उनसे सवाल भी करते हैं। इन्हें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और सऊदी अरब में हिंदू-उर्दू बोलने-समझने वाले भी सुनते हैं। इन लोगों को कई बार जान से मारने की धमकियां भी मिल चुकी है।

वेबदुनिया में अनिरूद्ध

Meet Ex Muslims Of India Who Losing Their Religion meets dual chalenged from fundamentalists of Islam and islamofobia 
हर बात पर ताने फिर भी अपनी राह पर… मिलिए एक्स मुस्लिमों से, जानिए इनके धर्म छोड़ने की कहानी
भारत में इस्लाम छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है। भेदभाव और रूढ़िवादिता जैसे कारणों से लोग इस्लाम त्याग रहे हैं। हालांकि इन पूर्व मुसलमानों को अपने परिवार और समुदाय से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। ऐसे में वो @ExMuslimSameer और ‘Ex Muslims of Kerala’ जैसे प्लेटफॉर्म पर समर्थन पाते हैं।

नवभारत टाइम्स में टीसी श्रीमोल और हिमांशी धवन जन्मदिन, शादियां, त्योहार… फैमिली फंक्शन की एक लंबी लिस्ट है जिन्हें केरल की रहने वाली नूरजहां केएम हर साल मिस करती हैं। वह कहती हैं कि ‘मैं अब भी उन्हें अपने परिवार के रूप में मानती हूं लेकिन एक बार जब मैंने इस्लाम छोड़ दिया, तो वे मुझे ईशनिंदा करने वाला मानने लगे। वो मुझे ‘बुरी आत्माओं का अनुयायी’ करार देने लगे। 48 वर्षीय नूरजहां केएम पूर्व स्कूल स्टाफर रही हैं, जो अब कोट्टायम में एक राजनीतिक पार्टी की कार्यकर्ता के तौर पर काम करती हैं। वो हाल के वर्षों में इस्लाम छोड़ने वाले मुसलमानों की बढ़ती संख्या में से एक हैं। कुछ लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, नूरजहां जैसे अन्य लोग धर्म को पूरी तरह से त्याग रहे हैं।
सामाजिक अलगाव के बावजूद नूरजहां को धर्म छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है। हिजाब पहनना, महिलाओं के प्रति भेदभाव और रूढ़िवादिता ने उन्हें धीरे-धीरे नास्तिकता की ओर धकेल दिया। उन्होंने बताया कि ‘इतने वर्षों में, मुझे एहसास हुआ कि ये महिलाओं के खिलाफ स्पष्ट रूप से भेदभाव करता है और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानता है। वह अपनी बेटियों का पालन-पोषण भी सभी धर्मों से बाहर रहते हुए कर रही हैं।

2017 के प्यू रिसर्च सेंटर सर्वे में बताया गया है कि अमेरिका में लगभग 3.5 मिलियन मुसलमानों में से एक लाख हर साल इस्लाम छोड़ देते हैं। हालांकि, करीब इतनी ही संख्या में लोग इस्लाम अपना लेते हैं। पश्चिमी यूरोप में भी इसी तरह की प्रवृत्ति प्रचलित है, जहां इस्लाम के अंदर और बाहर धर्मांतरण मोटे तौर पर संतुलित नजर आता है।

हालांकि भारत को लेकर कोई डेटा नहीं है। ‘हू किल्ड लिबरल इस्लाम’ के लेखक हसन सुरूर का कहना है कि वह ऐसे बहुत से मुसलमानों को जानते हैं जो नास्तिक बन गए हैं। उन्होंने कहा कि ‘इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि युवा भारतीय मुसलमान इस्लाम से दूर हो रहे हैं। वो इसकी कठोरता (शरिया की ‘अपरिवर्तनीयता’ का हवाला देकर परिवर्तन का विरोध) और गैर-मुसलमानों के प्रति असहिष्णुता, स्त्री-द्वेष और होमोफोबिया के तनाव से दूरी अपना रहे हैं। इनमें वो लोग भी हैं जो सउदी की ओर से प्रचारित कट्टरपंथी और कठोर सलाफी इस्लाम का पालन नहीं करते हैं।’ हसन सुरूर ने आगे कहा कि उनके अपने कुछ करीबी परिवार के सदस्यों ने मुस्लिम धर्म अपनाना बंद कर दिया है। आम तौर पर उन्होंने ईश्वर के विचार को ही त्याग दिया है। हालांकि, वे खुद को मुसलमान कहते रहते हैं और जब मुसलमानों या इस्लाम पर हमला होता है तो वे क्रोधित हो जाते हैं।

ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप्स
सिद्धार्थ चतुर्वेदी (पहले सदाकत क़ुरैशी) का कहना है कि वह असहमति के प्रति असहिष्णुता से परेशान थे। 32 वर्षीय सिद्धार्थ का कहना है कि उन्होंने कुरान और अन्य किताबों का गहराई से अध्ययन किया लेकिन उनके सवालों का जवाब नहीं मिल सका। इसी से उन्हें और उनके मज़हब के बीच एक दरार पैदा हो गई। वह कहते हैं कि जब मैंने वही सवाल मौलवियों से पूछे और उन्हें बहस करने को प्रोत्साहित किया, तो मुझे समुदाय से बहिष्कृत करने की धमकियां मिलीं। सिद्धार्थ चतुर्वेदी एक यूट्यूब चैनल @ExMuslimSameer चलाते हैं जहां वह इस्लाम और इसकी प्रथाओं के बारे में सवाल उठाते हैं। यह उन लोगों के लिए एक सपोर्ट ग्रुप के रूप में भी कार्य करता है जो मज़हब छोड़ना चाहते हैं। हालांकि, उन्हें अपने परिवार और समुदाय से विरोध का डर रहता है। सिद्धार्थ ने पिछले साल सनातन धर्म अपना लिया था।

इसी तरह, ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल’, जो 2020 में शुरू हुआ। ये ऐसे विचारों, सवालों को प्रसारित करने और धमकी भरे कॉल, सोशल मीडिया पर परेशान किए जाने वालों के मदद का एक मंच बन गया है। ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’ के अध्यक्ष लियाक्कथली सी एम कहते हैं कि विश्वास की कमी से अधिक, यह सामाजिक प्रतिबद्धता, लोकतांत्रिक मूल्य और बढ़ता वैज्ञानिक स्वभाव है जो कई लोगों को बाहर निकलने को प्रोत्साहित करता है। कुछ साल पहले जब उन्होंने अपना मजहब छोड़ दिया तो उन्हें भी कई मौकों पर धमकी भरे कॉल आने के बाद पुलिस से संपर्क करना पड़ा।

दोहरा झटका
लियाक्कथली का कहना है कि जब लोग इस्लाम छोड़ देते हैं, तो वे दोहरे बंधन में फंस जाते हैं। उन्हें अपने पूर्व समुदाय से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है और वे इस्लामोफोबिया का निशाना बनते रहते हैं।

लेखक हसन सुरूर का कहना है कि होमोफोबिया कुछ युवा मुसलमानों को इस्लाम छोड़ने को प्रेरित कर रहा। असम की एक क्वीर मुस्लिम नसरीन ने उदार परवरिश के बावजूद 17 साल की उम्र में खुद को अलग कर लिया। हालांकि उनका पालन-पोषण एक उदार मुस्लिम घर में हुआ, जहां हिजाब और नमाज पढ़ने के नियमों में ढील दी गई थी, लेकिन जब उन्होंने इससे खुद को अलग किया तो उन्हें रिश्तेदारों से नाराजगी का सामना करना पड़ा। परिवार के विरोध का सामना करते हुए, उन्होंने अपनी कामुकता और आस्था को संतुलित करने के लिए संघर्ष किया। नसरीन ने खुलासा किया कि मैं प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं कर सकी और अगर मैं धार्मिक बनी रही तो मुझे खुद से नफरत होने का डर था।

पूर्व पत्रकार शामला चेन्लिक्कल, जो ‘एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल’ की सदस्य भी हैं, अपने घर पर मौलवियों के आने को याद करती हैं जिससे वह नाराज हो गईं थीं। शामला ने कहा कि जब वो मेरी मां उनसे बात कर रहे थे, मैं अपना सिर बिना ढंके ही बाहर आ गई। मुझे तुरंत डांट पड़ी। मैंने पूछा कि अपने बाल दिखाने में क्या बुराई है। न तो मेरी मां और न ही मौलवियों के पास इसका कोई उत्तर था। परेशान होकर, मेरी मां ने मुझे घर छोड़ने के लिए कहा क्योंकि वह परिवार के सम्मान की रक्षा करना चाहती थी। मैंने वही किया। बाद में मामला सुलझ गया और मैं घर लौट आई, लेकिन इस घटना की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई और सभी ने मुझे दोषी ठहराया। एक्स मुस्लिम्स ऑफ केरल की महासचिव साफिया पी एम भी महिलाओं की स्थिति से परेशान थीं। वह कहती हैं कि ‘जब मैंने कुरान का अध्ययन किया तो पाया कि यह महिलाओं को हीन मानता है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकी।’

केरल में जहां तर्कवादी आंदोलन का एक लंबा इतिहास है, वहां कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने दशकों पहले यह निर्णय लिया था। मलप्पुरम की 62 वर्षीय रिटायर्ड स्कूल प्रधानाध्यापिका फौसिया मल्लिसेरी, जिन्होंने 1980 के दशक में इस्लाम का पालन बंद कर दिया था। उन्होंने बताया कि उनके पिता ‘प्रोग्रेसिव’ थे, जबकि उनके पति ई ए जब्बार दशकों पहले इस धर्म से अलग हो गए थे। मैंने पाया कि उन दिनों इस्लाम लड़कियों के प्रति अत्यधिक भेदभावपूर्ण था। मैं केवल अपने पारिवारिक सदस्यों को शांत रखने को धार्मिक प्रथाओं का पालन करती थी। मुझे नौकरी मिल गई और मैं स्वतंत्र हो गई, तो मैंने दिखावा करना छोड़ दिया।

प्रसिद्ध लेखक एम एन करास्सेरी, जो खुद को अज्ञेयवादी कहते हैं, उन्होंने कहा कि लोग विभिन्न वजहों से इस्लाम छोड़ देते हैं। उनका मानना है कि मुसलमानों की युवा पीढ़ी, खासकर महिलाओं के बीच ऐसा करने का एक बड़ा कारण उन पर लगाए गए बंधन हैं। उनका कहना है कि उनका चेहरा ढंककर आप एक महिला का सामाजिक जीवन नकार रहे हैं।

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