छेड़छाड़ करने वाले का राखी बंधवाने का ड्रामा बंद करें कोर्ट: वेणुगोपाल

छेड़खानी मामले में सुनवाई:अटाॅर्नी जनरल ने कहा, पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त ड्रामा है; ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की जरूरत

छेड़खानी के मामलों में सजा नियमों को लेकर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखा।

नई दिल्ली 04 नवंबर। छेड़छाड़ के आरोपित को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने के मामले में सुप्रीम काेर्ट में साेमवार काे सुनवाई हुई। अटॉर्नी जनरल ने महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता पर ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को घेरा।

जस्टिस एएस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लगता है ऐसा आदेश भावनाओं में बहकर दिया गया है, लेकिन यह महज ड्रामा है। इसकी निंदा की जानी चाहिए। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने की जरूरत है। जजों को इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि जमानत की शर्तों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी वेबसाइट्स पर अपलोड किया जाना चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ज्युडिशियल एकेडमी में पढ़ाया जाए और उसे ट्रायल कोर्ट व हाई कोर्ट के समक्ष भी रखा जाए। भर्ती परीक्षा में भी महिला संवेदनशीलता का एक भाग होना चाहिए।

शिकायत निवारण समिति है

वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि शीर्ष अदालत में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और शिकायत निवारण समिति है। एक दस्तावेज भी है, जिसे पूर्वी एशिया के सभी जजों ने बैंकाॅक में तैयार किया था। इसमें जमानत देते समय अपनाए जाने वाले सिद्धांतों को रखा गया था।

इस पर काेर्ट ने कहा कि आप ये सभी सामग्री कोर्ट के समक्ष रखें। जमानत की शर्तें विवेक पर आधारित होती हैं और इसे कहां तक ले जाया जा सकता है? इन पहलुओं पर जजों को शिक्षित करने की जरूरत है। हम इस पर विचार कर आदेश जारी करेंगे। यौन अपराध के आरोपितों को जमानत देने में क्या दिशा-निर्देश हों, सभी पक्षकार लिखित सुझाव दें। अब सुनवाई 27 नवंबर को होगी।

मप्र हाईकोर्ट की इंदौर पीठ का फैसला

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने 30 जुलाई काे छेड़छाड़ के मामले में आरोपित को जमानत देते हुए शर्त तय की थी कि वह रक्षाबंधन पर पीड़िता के घर जाएगा और उससे राखी बंधवाएगा। अपर्णा भट समेत 9 महिला वकीलों ने सुप्रीम काेर्ट में ऐसी अजीब शर्ताें की शिकायत की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसी शर्तें न सिर्फ अपराध की गंभीरता कम करती हैं, बल्कि पीड़िता की मानसिक परेशानी भी बढ़ाती हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एजी को मत पेश करने को कहा था।

पीड़िता को आरोपित से दूर रखना चाहिए, पर कोर्ट ने उसके घर भेज दिया

याचिकाकर्ता: कानून कहता है कि पीड़िता काे आराेपित से दूर रखना चाहिए। लेकिन इस मामले में हाई काेर्ट ने आराेपित काे महिला के घर जाने का आदेश दे दिया। ऐसे स्थान पर, जहां अपराध हुआ है। ऐसे में पीड़िता पर क्या बीतेगी।

अटॉर्नी जनरल: जजों को नियुक्ति से पहले सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं से जुड़े मामलों में आदेश देते वक्त वे संवेदनशील हों। कार्यरत जजों के लिए भी लेक्चर होने चाहिए।

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