‘हिलाल ए पाकिस्तान’ बाइडन जीते तो सावधान रहना होगा भारत को

PAK समर्थक बाइडन को मिल चुका है ‘हिलाल-ए-पाकिस्‍तान’, भारत को रहना होगा संभल कर
डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन (Joe Biden) के जीत के करीब पहुंचने से पाकिस्तान (Pakistan) भी काफी खुश नज़र आ रहा है. बाइडन पुराने पाकिस्तान समर्थक माने जाते हैं. बाइडन को साल 2008 में पाकिस्तान का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘हिलाल-ए-पाकिस्‍तान’ भी दिया जा चुका है.
PAK समर्थक बाइडन को मिल चुका है ‘हिलाल-ए-पाकिस्‍तान’, भारत को रहना होगा संभल कर
पाकिस्तान के समर्थक माने जाते हैं जो बाइडन
इस्लामाबाद/वाशिंगटन. अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव (US Election result) में डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन अब बहुमत से कुछ ही कदम दूर रह गए हैं. डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) प्रशासन में मुश्किलों से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए बाइडन की जीत काफी उम्मीदें लेकर आ रही है. बाइडन पुराने पाकिस्तान समर्थक माने जाते हैं. बाइडन को साल 2008 में पाकिस्तान का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘हिलाल-ए-पाकिस्‍तान’ भी दिया जा चुका है. बाइडन उन कुछ अमेरिकी नेताओं में शामिल रहे हैं जो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने के समर्थक रहे हैं.
बाइडन को ‘हिलाल-ए-पाकिस्‍तान’ मिलने के पीछे भी एक कहानी है. बताया जाता है कि साल 2008 में बाइडन के प्रयासों से पाकिस्‍तान को हर साल डेढ़ बिलियन डॉलर की गैर-सैन्‍य मदद दी गयी थी. सीनेट में ये प्रस्ताव बाइडन और सीनेटर रिचर्ड लुगर लेकर आए थे. तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने ‘लगातार पाकिस्‍तान का साथ देने के लिए’ बाइडन का शुक्रिया भी अदा किया था. बाइडन का मानना है कि पाकिस्तान आतंक से पीड़ित राष्ट्र है और उसकी आर्थिक मदद रोकी नहीं जानी चाहिए.

भारत को लेकर दिए हैं विवादित बयान

बता दें कि बाइडन के चुनाव प्रचार के दौरान भी कश्‍मीर मुद्दे को लेकर भारत विरोधी बयान सामने आ चुके हैं. मुस्लिम अमेरिकियों के बीच इलेक्शन कैम्पेन में उनकी टीम ने कश्‍मीर के मुस्लिमों की तुलना बांग्‍लादेश में रोहिंग्‍या और चीन में उइगर मुसलमानों से की थी. प्रचार में भारत सरकार से आर्टिकल 370 बहाल करने को कहा गया था.बाइडन की उपराष्ट्रपति कैंडिडेट भारतवंशी कमला हैरिस भी कश्‍मीर में दखल की बात करती रही हैं.पाकिस्तान भी लगातार अमेरिका से कश्मीर मामले में दखल के लिए गुहार लगाता रहा है.

पाकिस्तान के जानकारों के मुताबिक व्हाइट हाउस में बाइडन की उपस्थिति से कर्ज में डूबे पाकिस्तान को काफी राहत मिलने जा रही है. बाइडन अपनी विदेश नीति में पाकिस्तान के साथ संबंधों को नया आयाम दे सकते हैं. पाकिस्तानी सेना के रिटॉयर्ड लेफ्टिनेंट जनरल और राजनीतिक-सैन्य मामलों के एक वरिष्ठ विश्लेषक तलत मसूद के मुताबिक बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध फिर से पटरी पर लौट आएंगे.

बाइडन के साथ से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की गरिमा लौटने की उम्मीद

बता दें कि आतंकवाद और टेरर फंडिंग जैसे मुद्दों पर डोनाल्‍ड ट्रंप ने जिस तरह सार्वजनिक मंचों से बार-बार पाकिस्‍तान को लताड़ा है. उनके चार साल के कार्यकाल के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध काफी खराब हुए हैं. पाकिस्तान को डर है कि ट्रंप फिर से चुने गए तो वे पाकिस्तान सहित मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों के खिलाफ अधिक कड़े कदम उठा सकते हैं. ट्रंप पहले भी मुस्लिम देशों से आने वाले नागरिकों को लेकर कई कानून बना चुके हैं.

क्या 28 साल पहले का वाकया दोहराएगा अमेरिका, जब सीनियर बुश दूसरे टर्म का चुनाव हारे थे

मौजूदा अमेरिकी चुनावों के रिजल्ट आने के साथ ये नजर आने लगा है कि मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार सकते हैं. बाइडन अपनी स्थिति लगातार मजबूत कर रहे हैं. ऐसा अमेरिका में 28 साल पहले हुआ था जब जार्ज बुश सीनियर (George H. W. Bush) प्रेसीडेंट थे और दूसरे टर्म के लिए चुनाव हार गए थे
1992 के चुनाव में जार्ज बुश सीनियर जब दूसरे टर्म के लिए चुनाव मैदान में उतरे तो वो खाड़ी युद्ध के नायक थे लेकिन तब भी चुनाव हारे
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप पहले टर्म में अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरे टर्म के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.जो चुनाव नतीजे आ रहे हैं,वो संकेत दे रहे हैं कि उनके विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन राष्ट्रपति का चुनाव जीत सकते हैं.अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका 28 साल पहले के उस वाकये को दोहराएगा,जब सीनियर जार्ज बुश चुनाव हार गए थे.

आमतौर पर अमेरिका में ये बहुत कम हुआ है कि कोई प्रेसीडेंट दूसरे टर्म के लिए चुनाव मैदान में उतरे और उसको हार का सामना करना पड़ा. ये वाकया 1992 में आखिरी बार हुआ था,तब जार्ज बुश सीनियर बिल क्लिंटन से पराजित हुए थे.तब भी जीतने वाला प्रत्याशी डेमोक्रेटिक पार्टी का था और हार रिपब्लिकन उम्मीदवार की हुई थी.बिल क्लिंटन डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी थे.राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में कूदने से पहले वो अरकांसस के गर्वनर थे. जार्ज डब्ल्यू बुश पहला टर्म पूरा कर चुके थे. साथ ही एक स्वतंत्र प्रत्याशी बिजनेसमैन रास पेरोट भी प्रेसीडेंट पोस्ट के लिए चुनाव मैैदान में ताल ठोक रहे थे. साथ ही कुछ प्रत्याशी और भी थे.

1992 के चुनावों में बिल क्लिंटन डेमोक्रेटिक उम्मीदवार थे.उनकी जीत ने रिपब्लिकन के वर्चस्व को खत्म कर दिया

रिपब्लिकन का वर्चस्व था इससे पहले
दरअसल इस चुनाव से पहले अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी का झंडा लहरा रहा था. 1968 के बाद देश में रिपब्लकन का जलवा था. लेकिन बुश की लोकप्रियता खाड़ी युद्ध के बाद गिरने लगी थी. डेमोक्रेटिक पार्टी में तब मारियो कुयोमो उन्हें चुनौती देते हुए उभर रहे थे लेकिन फिर जब डेमोक्रेटिक पार्टी के नोमिनेशन हुए तो उसमें बिल क्लिंटन ने बाजी मार ली
क्लिंटन कई दिग्गजों को पछाड़ डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बने थे
उन्होंने अपनी पार्टी में प्रेसीडेंट पोस्ट का उम्मीदवार बनने के लिए कई दिग्गजों को पीछे छोड़ दिया. उस समय अमेरिका की इकोनामी बुरे हाल थे लेकिन बुश की विदेश नीति सोवियत संघ के विघटन के बाद कम महत्वपूर्ण नजर आने लगी. आर्थिक मोर्चे पर देश उनसे निराश था. अब तक वो उनका सबसे मजबूत पहलू उनकी विदेश नीति ही थी लेकिन वो भी अब अप्रासंगिक हो रही थी.
जार्ज बुश दमदार अमेरिकी राष्ट्रपति थे. विदेशी मोर्चे पर वो खासे सफल थे लेकिन देश की आर्थिक स्थिति से जनता उनसे नाराज थी.

बुश ने क्लिंटन के चरित्र पर हमले किए

हालांकि जब 1992 में चुनाव अभियान शुरू हुआ, तब सीनियर बुश ने क्लिंटन के चरित्र को निशाने पर लेना शुरू किया. उन्होंने लोगों के बीच जाकर अपनी विदेश नीति का बखान किया लेकिन क्लिंटन ने केवल इकोनामी पर ही खुद को फोकस किया.

क्लिंटन ने जमकर वोट खींचे

क्लिंटन पापुलर वोट हासिल करने के साथ ही इलेक्टोरल वोट भी हासिल किए. इस तरह उन्होंने पिछली तीन बार से लगातार जीत हासिल करती आ रही रिपब्लिकन पार्टी का रिकॉर्ड तोड़ दिया. वो हर राज्य में जीते. क्लिंटन ने नार्थईस्ट और वेस्ट कोस्ट में जबरदस्त जीत हासिल की. इसके अलावा उन्होंने ईस्टर्न मिडवेस्ट और दक्षिण में बढ़िया प्रदर्शन किया. सीनियर बुश की बुरी हार हुई.

80 के दशक के बाद मौजूदा प्रेसीडेंट को पहली बार लगा था झटका

हालांकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद दूसरे टर्म के चुनाव में इससे पहले जिमी कार्टर और गेराल्ड फोर्ड ने भी हार का सामना किया. लेकिन 80 के दशक के बाद ये पहला मौका था जबकि तत्कालीन राष्ट्रपति चुनाव हार गया हो और उसे दूसरे टर्म का कार्यकाल नहीं मिल सका हो.

गजब की लहर नजर आई बिल क्लिंटन के लिए

उस चुनाव में बिल क्लिंटन की जबरदस्त लहर थी. उन्होंने 370 इलेक्टोरल वोट हासिल किये तो सीनियर बुश ने महज 168. क्लिंटन वाशिंगटन डीसी के साथ 32 राज्यों में जीते तो बुश 18 राज्यों में. अगर बात पापुलर वोटों की करे तो उसमें भी क्लिंटन कहीं आगे रहे. क्लिंटन को 44,909, 889 पापुलर वोट मिले तो बुश को 39104550. कुल मिलाकर क्लिंटन को 43. 0 वोट हासिल हुए तो बुश को 37.4 प्रतिशत

हार के बाद अगर डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस नहीं छोड़ा तो क्या होगा?

अगर कोई अमेरिकी राष्ट्रपति हार जाता है और व्हाइट हाउस (White House) से नहीं निकलता है तो उसे सत्ता से हटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति और सीक्रेट सर्विस की भूमिका अहम हो जाती है.
अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव रोमांचक मोड़ पर पहुंच गया है. डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन ने रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मजबूत बढ़त बना ली है. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वो चुनाव जीत रहे हैं मगर वोट काउंटिंग में फ्रॉड रोकने को सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. वहीं दूसरी तरफ बाइडन ने दावा किया है कि वह चुनाव में आसानी में जीत हासिल कर लेंगे. डोनाल्ड ट्रंप अभी से जिस तरह का रुख अपना रहे हैं उसे देखने के बाद लग रहा है कि वह इस चुनाव में हार गए तब भी व्हाइट हाउस को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस रुख को देखने के बाद दुनियाभर में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर है कि अगर चुनाव में हार के बाद भी राष्ट्रपति पद छोड़ने से इनकार कर दिया तब क्या होगा. बता दें कि अगर कोई तत्कालीन राष्ट्रपति दूसरी बार चुनाव में खड़ा होता है और हार जाता है और व्हाइट हाउस से नहीं निकलता है तो उसे सत्ता से हटाने के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति और सीक्रेट सर्विस की भूमिका अहम हो जाती है.
बता दें कि हारने वाला राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अगर व्हाइट हाउस से हटने को तैयार नहीं होता तो नव-निर्वाचित राष्ट्रपति को संभवतः उस व्यक्ति को परिसर से निकालने को सीक्रेट सर्विस को निर्देश देने की शक्ति होती है.
अमेरिका के संविधान में नहीं है इसका कोई जिक्र
यहां पर गौर करने वाली बात ये है कि अगर कोई राष्ट्रपति हारने के बाद अपने पद से हटने को तैयार नहीं होता और व्हाइट हाउस पर कब्जा जमाकर रखता है तो ऐसे राष्ट्रपति के साथ क्या किया जाए इसके बारे में अमेरिका के संविधान में कोई बात नहीं कही गई है. अंग्रेजी वेबसाइट इंडिपेंडेंट के मुताबिक, अमेरिका के संविधान में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि अगर राष्ट्रपति अपने पद से हटने को तैयार नहीं होता तो उसे कैसे हटाया जा सकता है.

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