फ्रांस की वह धर्मनिरपेक्षता जिससे लड़ रहे हैं मुसलमान

फ्रांस का वो नियम, जिसके कारण मुसलमान खुद को खतरे में बता रहे हैं
यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी (Muslim population in France) वाले देश फ्रांस में लाइसिटी (laïcité) यानी सेकुलरिज्म का नियम है. इसके तहत न तो ईसाई क्रॉस पहन सकते हैं और न सिख पगड़ी लगा सकते हैं. ऐसे ही मुस्लिमों के हिजाब पर रोक की बात हुई.
फ्रांस का वो नियम, जिसके कारण मुसलमान खुद को खतरे में बता रहे हैं
फ्रांस के राष्ट्रपति का विरोध करता हुआ प्रदर्शनकारी
फ्रांस में इस्लामिक कट्टरता और अलगाववाद (Islamic separatism in France) के खिलाफ मुहिम छिड़ते ही मुस्लिम देश लामबंद हो गए.मिडिल ईस्ट के लगभग सारे ही मुल्क फ्रांसीसी सामानों का बहिष्कार कर रहे हैं.इधर अमेरिका के साथ-साथ पूरा यूरोपियन यूनियन फ्रांस के साथ आ गया है. यानी इस्लामिक अलगाववाद को रोकने में फ्रांस दुनिया को लीड करता दिख रहा है.वैसे फ्रांस का मुस्लिमों से अलग ही नाता रहा है,जो उसे सारे देशों से अलग रखता है.

नया क्या हुआ है

सबसे पहले तो मामले पर एक नजर डालते हैं कि आखिर फ्रांस में ताजा चिंगारी क्यों सुलगी. इसकी शुरुआत 16 अक्टूबर की उस घटना से हुई, जब एक इस्लामिक कट्टरपंथी ने एक फ्रांसीसी शिक्षक की गला काटकर हत्या कर दी. दोषी की बेटी उसी स्कूल में पढ़ती थी और दोषी का आरोप है कि टीचर ने बच्चों को पैगंबर मुहम्मद का कार्टून दिखाने का अपराध किया.

फ्रेंच कल्चर की बात की

घटना के तुरंत बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने फ्रेंच जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हम जारी रहेंगे. हम उस आजादी को सुरक्षित रखेंगे, जो हमें मिली. और खुद को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाए रखेंगे. साथ ही साथ मैक्रों ने फ्री स्पीच के नाम पर फ्रांस की तस्वीरें, कार्टून बनाने की संस्कृति जारी रखने की भी बात की.


फ्रांस की तस्वीरें, कार्टून बनाने की संस्कृति जारी रखने की भी बात हो रही है- सांकेतिक फोटो

अलग-थलग हैं

वैसे फ्रांस का मुस्लिमों से साथ काफी जटिल रिश्ता माना जाता है. बता दें कि किसी भी यूरोपियन देश से ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही हैं. साल 2019 में फ्रांस की कुल जनसंख्या करीब 6.7 करोड़ थी. इसमें करीब 65 लाख मुस्लिम आबादी भी शामिल है. यानी ये कुल आबादी का लगभग 9 प्रतिशत है. देश में अधिकतर सुन्नी-बहुल आबादी है, जो फ्रांस की संस्कृति के बीच ही अपनी पहचान बनाए हुए है. और यही बात फ्रांस में विवाद का कारण रही.

किताब में भी मुस्लिमों के बढ़ने का जिक्र

इसपर कई साल पहले ख्यात फ्रांसीसी लेखक मीशेल वेलबेक ने एक उपन्यास भी लिख डाला था. सबमिशन नाम से उस उपन्यास में साल 2022 के फ्रांस का जिक्र है, जिसमें लगभग पूरा का पूरा देश मुस्लिम हो चुका होगा. देश में राष्ट्रपति भी इसी धर्म का होगा और ऐसे ही नियम बनेंगे जो फ्रांस का आधुनिकता से पीछे धकेल दें. किताब पर काफी बहसें हुई थीं कि ये साहित्य कहलाएगा या फिर कल्पना की आड़ में इस्लाम से नफरत को बढ़ाने का जरिया.

मुस्लिम आबादी फ्रांस की संस्कृति के बीच ही अपनी पहचान बनाए हुए है- सांकेतिक फोटो (pxhere)

धर्म को लेकर बढ़ी कट्टरता

फ्रांस में यूरोपियन देशों में सबसे बड़ी आबादी मुस्लिम होने के बाद भी वहां लोगों के दो खेमे हो चुके हैं. एक मुसलमान और उन्हें सपोर्ट करने वाला खेमा और दूसरा वो खेमा जो फ्रांस का मूल निवासी है और जो इस्लाम के बढ़ने को अपने खात्मे की तरह देख रहा है. बढ़ने से यहां हमारा मतलब अलग-थलग दिखने और अलग परंपराएं मानने से है. काम पर जा रहे युवा मुस्लिम भी दिन में पांच बार नमाज को मानते हैं और मदरसों की तालीम पर यकीन करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक देश में फिलहाल लगभग 2500 मस्जिदें हैं, जो इसी 9 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसके साथ ही महिलाओं के लिए परदा-प्रथा भी है

कैसा है फ्रांस में सेकुलरिज्म का नियम

ये सारी चीजें मुस्लिमों को अलग पहचान देती हैं, जो फ्रांस की मूल धर्मनिरपेक्ष संस्कृति से अलग मानी जा रही हैं. बता दें कि फ्रांस में शुरू से ही दूसरे धर्म के लोगों का जमावड़ा रहा. इससे फ्रांस में यूनिफॉर्मिटी गड़बड़ा सकती थी. यही देखते हुए वहां laïcité का सिद्धांत आया यानी सेकुलरिज्म का नियम. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके तहत फ्रांस में अपनी धार्मिक पहचान को पहनावे के जरिए बताने पर पाबंदी है. जैसे ईसाई गले में बड़ा सा क्रॉस नहीं पहन सकते. न ही सिख पगड़ी लगा सकते हैं. इसी वजह से ही वहां हिजाब पर भी पाबंदी की बात चली.

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों इस्लामिक अलगाववाद पर रोक की बात कर रहे हैं

भारत से अलग है

वैसे बड़ा ही दिलचस्प है कि भारत की धर्मनिपरेक्षता इस मामले में फ्रेंच laïcité से अलग है. यहां धार्मिक प्रतीक पहनने-ओढ़ने पर कोई पाबंदी नहीं. शवहीं फ्रांस में उन्हीं लोगों को नागरिकता मिलती है,जो फ्रांस के इस नियम से सहमित जताएं.लगभग दशकभर से फ्रांस के अलग-अलग हिस्सों में हुए आतंकी हमलों के कारण फ्रेंच सरकार अब सख्त हो रही है.

नए बिल की बात हो रही

राष्ट्रपति मैक्रों, जो खुद को न वामपंथी, न दक्षिणपंथी मानते हैं, वे साल 2021 की शुरुआत में एक नियम लाने को तैयार हैं, जो उनके मुताबिक इस्लामिक अलगाववाद पर रोक लगाएगा. इसे सेपरेटिज्म बिल (Separatism bill) कहा जा रहा है. बिल की आउटलाइन जनता के सामने नहीं आई है लेकिन कई मुख्य बिंदुओं को लेकर फ्रांस का मुस्लिम समुदाय भड़का हुआ है. जैसे टीआरटी वर्ल्ड के मुताबिक इसके तहत फ्रांस में फ्रेंच इमाम ही होंगे और विदेश से सीखकर आने वाले या विदेशी लोगों को इमाम नहीं बनाया जा सकेगा, चाहे वो कितना ही जानकार क्यों न हो. इसके अलावा फ्रांस में दूसरे देशों से धार्मिक संगठनों के लिए आने वाले फंड पर नजर रखी जा सकेगी. इससे आतंक पर काफी हद तक लगाम कसेगी.

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