पुण्य स्मरण:सत्ता को नाथने वाले साबित हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण

…………………………………… चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित *मातृभूमि सेवा संस्था* (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है। 🙏🙏🌹🌹🌹🌹
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🌹🌹🙏 *जयप्रकाश नारायण जी* 🙏🌹🌹

राष्ट्रभक्त मित्रों, आज हम बात करेंगे भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण जी के विषय में। अकेला चना क्या भाड़ फोड सकता है ? यह सवाल हमेशा दिमाग में उठता है जब हम सरकारी सिस्टम की मार खाते हैं, लेकिन लोकतंत्र में ऐसे कई चने हुए जिन्होंने अकेले ही घड़े रूपी सरकार को तोड़ दिया। जयप्रकाश नारायण जी एक ऐसे ही शख्स थे जिन्होंने अपनी जिंदगी देश के नाम कर दी और अकेले दम पर तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में तारे दिखला दिए। जयप्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री ‘देवकी बाबू’ था, माता ‘फूलरानी देवी’ थीं। इन्हें प्यार से जेपी के नाम से पुकारा जाता है। सन् 1920 में जयप्रकाश नारायण जी का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ। प्रभावती जी स्वभाव से अत्यंत मृदुल थीं। उन्होंने ही अपने पति जेपी जी को गांधी जी से मिलने की सलाह दी थी। पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए, हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी। यही वजह रही कि वे सन 1929 में स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए। उस वक्त वह घोर मा‌र्क्सवादी हुआ करते थे।

📝 जयप्रकाश नारायण जी क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया। जयप्रकाश नारायण जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया तथा कांग्रेस के साथ जुड़े, हालांकि आजादी के बाद वह आचार्य विनोबा भावे जी से प्रभावित हुए और उनके *‘सर्वोदय आंदोलन’* से जुड़े। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया। उन्होंने अनेक डाकुओं का आत्मसमर्पण करा कर विनोबा भावे का अधूरा काम पूरा कराया। जयप्रकाश नारायण जी ने सन् 1950 के दशक में *‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’* नामक एक पुस्तक लिखी। कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया। इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी जी ने उठाई थी।
लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे।

📝05 जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जेपी जी ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति- ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।” 05 जून, 1975 की विशाल सभा में जेपी ने पहली बार *‘सम्पूर्ण क्रान्ति’* के दो शब्दों का उच्चारण किया। उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की। बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला। जेपी जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी। सन् 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश जी ने उनके इस्तीफ़े की मांग की। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया। जयप्रकाश नारायण जी की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी।

📝जेपी जी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण जी घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जयप्रकाश नारायण जी की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी। उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था *“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”* जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इसके बाद भी जेपी जी का सपना पूरा नहीं हुआ। इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था। वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी। यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था। जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये सन् 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। जेपी जी ने 08 अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली।
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✍️ राकेश कुमार
🇮🇳 *मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477* 🇮🇳

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