सोनिया के हनुमान अहमद पटेल भी कोरोना के शिकार

कांग्रेस के संकटमोचक नहीं रहे:अहमद इंदिरा के जमाने से कांग्रेस के ट्रबलशूटर माने जाते थे, सोनिया के सबसे करीबी सलाहकार थे

देर रात तक काम करना और किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को किसी भी वक्त फोन कर कोई भी काम सौंप देना पटेल की आदतों में शामिल था।

नई दिल्ली 25 नवंबर। कांग्रेस नेता अहमद पटेल का 71 साल की उम्र में बुधवार को निधन हो गया। पटेल कांग्रेस के संकटमोचक माने जाते थे। वे सोनिया गांधी के सबसे करीबी सलाहकारों में शामिल थे। पटेल की गिनती कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में होती थी, लेकिन वे कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे। गांधी परिवार से पटेल की नजदीकियां इंदिरा के जमाने से थीं। 1977 में जब वे सिर्फ 28 साल के थे, तो इंदिरा गांधी ने उन्हें भरूच से चुनाव लड़वाया।
भाजपा नेता अरुण जेटली एक बार यह जानकार हैरान रह गए कि भाजपा की उच्च स्तरीय बैठक में डिस्कस सारी बातें अहमद पटेल को पता होती हैं। उस समय जेटली लालकृष्ण आडवाणी आदि को राबर्ट वढेरा के जमीन घोटाले उठाने को पार्टी नेतृत्व को मनाने की कोशिश कर रहे थे और आडवाणी आदि उन्हें समझा रहे थे कि कांग्रेस के नेताओं पर जितना भले हमला करो लेकिन उनके परिजनों को बख्श दो। जेटली उस समय हैरान रह गए जब अहमद पटेल ने उन्हें कहा कि जेटली को अपने पार्टी नेतृत्व की बात मान वढेरा के जमीन सौदों को भूल जाना चाहिए। उनके हर पार्टी में संबंध थे। माना जाता है कि जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अहमद पटेल को राज्य सभा जाने से रोकने को पूरा जोर लगाया हुआ था तो भाजपा में पटेल की पैंठ ने ही उन्हें जिताया था ।

राजीव गांधी के वक्त अहमद पटेल का कद बढ़ा था

कांग्रेस में अहमद पटेल का कद 1980 और 1984 के वक्त और बढ़ गया जब इंदिरा गांधी के बाद जिम्मेदारी संभालने के लिए राजीव गांधी को तैयार किया जा रहा था। तब अहमद पटेल राजीव गांधी के करीब आए। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी 1984 में लोकसभा की 400 सीटों के बहुमत के साथ सत्ता में आए थे और पटेल कांग्रेस सांसद होने के अलावा पार्टी के संयुक्त सचिव बनाए गए। उन्हें कुछ समय के लिए संसदीय सचिव और फिर कांग्रेस का महासचिव भी बनाया गया।

नरसिम्हा राव के वक्त मुश्किलों से जूझना पड़ा था

1991 में जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो अहमद पटेल को किनारे कर दिया गया। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्यता के अलावा अहमद पटेल को सभी पदों से हटा दिया गया। उस वक्त गांधी परिवार का प्रभाव भी कम हुआ था, इसलिए परिवार के वफादारों को भी मुश्किलों से जूझना पड़ा। नरसिम्हा राव ने मंत्री पद की पेशकश की तो पटेल ने ठुकरा दी। वे गुजरात से लोकसभा चुनाव भी हार गए और उन्हें सरकारी घर खाली करने के लिए लगातार नोटिस मिलने लगे, लेकिन किसी से मदद नहीं ली। दूसरी बार सोनिया के निजी सचिव, मूलतः टाइपिस्ट वी जार्ज ने सोनिया दरबार से उनकी छुट्टी कर दी थी लेकिन अब अहमद पटेल के सोनिया दरबार से हटते ही वी जार्ज के भ्रष्टाचार के वो किस्से अखबारों में आने शुरू हुए कि सोनिया को वी जार्ज से छुटकारा पाने में ही भलाई सूझी और अहमद पटेल का उनके दरबार में फिर सिक्का जम गया। लो प्रोफाइल अहमद पटेल के कहे को सोनिया का कहा माना जाता था। पार्टी कोषाध्यक्ष कोई भी हो,कोष राजीव गांधी के समय से ही अहमद पटेल के ही जिम्मे रहा है। उन पर गुजरात में कांग्रेस को समाप्त करने का भी आरोप रहा है। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे तो उन्होंने माधव सोलंकी को हटा अमर सिंह चौधरी को मुख्यमंत्री क्या बनाया, कांग्रेस वहां आज तक संभव नहीं पाई।

बेहद स्ट्रैटजिक तरीके से काम करते थे

2004 में UPA की सरकार बनी तो अहमद ने कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया और पार्टी के लिए काम करते रहने की इच्छा जताई। 2004 से 2014 तक UPA के दोनों कार्यकाल में उन्होंने पार्टी और सरकार के बीच तालमेल का काम बेहतर तरीके से किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देर रात तक काम करना और किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को किसी भी वक्त फोन कर कोई भी काम सौंप देना पटेल की आदतों में शामिल था। कहा जाता है कि वे एक मोबाइल फोन हमेशा फ्री रखते थे जिस पर सिर्फ 10 जनपथ से ही फोन आते थे। वे बहुत ही स्ट्रैटजिक तरीके से काम करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनौती का सामना करने के लिए भी बयानबाजी की बजाय स्ट्रैटजी से काम करने की बात कहते थे।

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