अतीक:44 साल,101 मुकदमें,पहली बार सजा वो भी आजीवन कारावास

Atiq Ahmed: 44 साल, 101 मुकदमों के बाद पहली बार दोषी हुआ अतीक, जानें 17 साल में सजा तक पहुंचे मामले की कहानी
माफिया अतीक अहमद उमेश पाल अपहरण कांड में दोषी करार दिया गया है। घटना 2006 की है। इसे लेकर मुकदमा 2007 में दर्ज हुआ।

अतीक अहमद

अतीक अहमद उमेश पाल अपहरण कांड में उम्रकैद की सजा सुनाई है। अतीक के साथ दोषी करार दिए गए दिनेश पासी और शौकत हनीफ को भी उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। हालांकि, अतीक के भाई अशरफ समेत सात जीवित आरोपित मंगलवार को दोष मुक्त करार दिए गए हैं। सज़ा घोषित होते ही अतीक और उसका भाई दोनों रोते नज़र आते। माफिया अतीक पर आज से 44 साल पहले पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। तब से अब तक उसके ऊपर सौ से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन पहली बार किसी मुकदमे में उसे दोषी ठहराया गया है।

अतीक अहमद ने सजा की घोषणा के बाद जज से कहा -यहां नहीं रहना, वापस साबरमती भेज दो

 

 

फूलपुर से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद अतीक अहमद को जून 2019 में गुजरात की साबरमती केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था.

उमेश पाल अपहरण मामले में आजीवन कारावास सजा के बाद माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed) ने जज से कहा कि मुझे यहां नहीं रहना है. मुझे साबरमती जेल वापस भेजा जाए. कोर्ट ने माफिया अतीक अहमद समेत तीन आरोपितों को दोषी घोषित किया है. करीब 17 साल पुराने मामले में एक-एक लाख रुपये का अर्थ दंड भी लगाया गया है.

बता दें कि माफिया और पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ को उमेश पाल के अपहरण के मामले में प्रयागराज की एमपी-एमएलए अदालत में दोपहर करीब 12 बजे पेश किया गया. अहमद को गुजरात की साबरमती जेल और अशरफ को बरेली जेल से सोमवार को प्रयागराज में नैनी केन्द्रीय कारागार लाया गया था. जिला शासकीय अधिवक्ता गुलाब चंद्र अग्रहरि ने बताया कि प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट के जज दिनेश चंद्र शुक्ला ने साल 2006 में हुए उमेश पाल अपहरण मामले में अतीक अहमद, उसके वकील शौकत हनीफ और पूर्व सभासद दिनेश पासी समेत तीन आरोपितों को भारतीय दंड संहिता की धारा 364-ए के तहत दोषी करार देते हुए सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनायी. अदालत ने तीनों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. यह रकम उमेश पाल के परिजनों को दी जाएगी.

अतीक अहमद को जून 2019 में साबरमती जेल भेजा गया था

कोर्ट ने अतीक अहमद के भाई अशरफ समेत सात आरोपियों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. इस मामले में कुल 11 अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था. सुनवाई के दौरान उनमें से एक की मौत हो गयी थी. कचहरी परिसर में मौजूद वकीलों ने दोषियों को फांसी देने की मांग करते हुए नारेबाजी की.

फूलपुर से समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद अतीक अहमद को जून 2019 में गुजरात की साबरमती केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था. उत्तर प्रदेश में जेल में रहने के दौरान रियल एस्टेट व्यवसायी मोहित जायसवाल के अपहरण और मारपीट का आरोप लगने के बाद अतीक को साबरमती जेल भेजा गया था.

आइये जानते हैं उस मामले के बारे में जिसमें अतीक दोषी घोषित किया गया। कैसे उमेश पाल ने 17 साल तक अतीक को सजा दिलाने के लिए संघर्ष किया। कैसे सजा मिलने से पहले उमेश की हत्या कर दी गई।

अतीक अहमद और राजू पाल जिसे अतीक अहमद को चुनौती देने पर मार दिया गया था

किस मामले में दोषी करार दिया गया अतीक?

घटना 2006 की है। इसे लेकर मुकदमा 2007 में दर्ज हुआ। लेकिन, कहानी 2005 से शुरू होती। दरअसल 25 जनवरी 2005 का दिन इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से नवनिर्वाचित विधायक राजू पाल पर जानलेवा हमला हुआ। शहर के पुराने इलाके सुलेमसराय में बदमाशों ने राजू पाल की गाड़ी पर गोलियों की बौछार कर दी थी। सैकड़ों राउंड फायरिंग से गाड़ी में सवार लोगों का पूरा शरीर छलनी हो गया।

बदमाशों ने फायरिंग रोकी तो समर्थक राजू पाल को एक टैंपो में लेकर अस्पताल ले जाने लगे। हमलावरों ने ये देखा तो उन्हें लगा राजू जिंदा हैं। तुरंत हमलावरों ने अपनी गाड़ी टैंपो के पीछे लगा ली और फिर फायरिंग शुरू कर दी। करीब पांच किलोमीटर तक वह टैंपो का पीछा करते गए। जबतक राजू पाल अस्पताल पहुंचे, उन्हें 19 गोलियां लग चुकी थीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। दस दिन पहले ही राजू की शादी पूजा पाल से हुई थी। राजू पाल के दोस्त उमेश पाल इस हत्याकांड के मुख्य गवाह थे।

हत्याकांड के बाद अतीक ने कई लोगों से कहलवाया कि उमेश केस से हट जाएं नहीं तो उन्हें दुनिया से हटा दिया जाएगा। उमेश नहीं माने तो 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण कर लिया गया। उसे करबला स्थित कार्यालय में ले जाकर अतीक ने रात भर पीटा था। अतीक ने उनसे अपने पक्ष में हलफनामा लिखवा लिया। अगले दिन उमेश ने अतीक के पक्ष में अदालत में गवाही भी दे दी। हालांकि वह समय बदलने का इंतजार कर रहे थे।

जब उमेश ने अतीक के पक्ष में हलफनामा दे दिया फिर अपहरण का मामला कैसे शुरू हुआ?

2007 में बसपा सरकार बनी। मायावती मुख्यमंत्री बनीं। 2007 के चुनाव में एक बार फिर शहर पश्चिमी सीट से अतीक के भाई अशरफ को राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने हरा दिया। इसके बाद अतीक पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। हालात बदले तो उमेश ने अपने अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया। इस मामले की उमेश सालों पैरवी करते रहे। उमेश पाल ने अपने अपहरण के मामले को लगभग अंजाम तक पहुंचा दिया, लेकिन फैसले से एक महीने पहले उनकी हत्या कर दी गई। अब इसी मामले में अतीक दोषी करार दिया गया। इसके साथ ही 44 साल तक अपने आतंक को कायम रखने वाले अतीक को जिदंगी में पहली बार सजा हुई है।

अपहरण वाले दिन क्या हुआ था?

तो 28 फरवरी 2006 को अतीक के लोगों ने उमेश को उठा लिया। रातभर उन्हें पीटा गया। उमेश को उस समय लगा था कि यह उसकी आखिरी रात है। अतीक ने उससे हलफनामा पर दस्तखत करा लिए। हलफनामे पर लिखा था कि वह घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे। न ही उन्होंने किसी को वहां देखा था। अगले दिन यानी एक मार्च को अतीक ने अदालत में उमेश के हलफनामा को प्रस्तुत कर अदालत के सामने गवाही भी दिलवा दी। उस समय शासन प्रशासन में अतीक की तूती बोलती थी।

2007 में जब बसपा सरकार बनी तो स्थिति बदलने लगी। अतीक के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई। पांच जुलाई 2007 को उमेश ने अतीक, अशरफ समेत कुल 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। इनमें से एक की मौत हो चुकी है।

अतीक अहमद

अतीक पर दर्ज हो चुके हैं 101 मुकदमे

अतीक के खिलाफ कुल 101 मुकदमे दर्ज हुए। वर्तमान में कोर्ट में 50 मामले चल रहे हैं, जिनमें एनएसए, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट के डेढ़ दर्जन से अधिक मुकदमे हैं। उस पर पहला मुकदमा 1979 में दर्ज हुआ था। इसके बाद जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हत्या, लूट, रंगदारी अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे। मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ता गया।

एक बार एनएसए भी लगाया जा चुका है

1989 में वह पहली बार विधायक हुआ तो अपराध की दुनिया में उसका दखल कई जिलों तक हो गया। 1992 में पहली बार उसके गैंग को आईएस 227 के रूप में सूचीबद्ध करते हुए पुलिस ने अतीक को इस गिरोह का सरगना घोषित कर दिया। 1993 में लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड ने अतीक को काफी कुख्यात किया। गैंगस्टर एक्ट के साथ ही उसके खिलाफ कई बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई भी की गई। एक बार तो उस पर एनएसए भी लगाया जा चुका है।

कई मुकदमों में मुकर गए गवाह

अपराध और राजनीति के साथ -साथ अतीक अब ठेकेदारी और जमीन के धंधे में भी कूद पड़ा। जमीन के क्रय विक्रय और रंगदारी से अतीक ने ही नहीं, बल्कि उसके गुर्गों ने भी अकूत संपत्ति जुटा ली। अतीक का भय इतना था कि उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज करने की हिम्मत नहीं करता था। अगर कर भी दिया तो बाद में गवाह मुकर जाते। कई मामलों में वादी ने ही लिखकर दे दिया कि उसने अतीक के खिलाफ गलत मुकदमा लिखाया था। यहां तक कि प्रदेश सरकार ने अतीक के खिलाफ कई गंभीर मुकदमें वर्ष 2001, 2003 और 2004 में वापस ले लिये थे। कई मामलों में तो पुलिस ने अतीक के नामांकन को गलत बता अंतिम रपट लगा दी थी।

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