मत: मुख्तार की मौत पर आंसू बहाने वालों को भी निपटाये जनता

Mukhtar Ansari Death Samajwadi Party Rjd And Other Opposition Leader Raised Question On Mafia Death In Banda Jail Up
मत: नेताजी! आपका फर्ज समाज की रक्षा करना है, मुख्तार तो समाज का दुश्मन था ना?
जेल में बंद गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार अंसारी की गुरुवार शाम दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। 60 वर्षीय अंसारी उत्तर प्रदेश में युसूफपुर निवासी था। मुख्तार की मौत के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने कई सवाल उठाए हैं। मुख्तार पर हत्या, अपहरण और जबरन वसूली के कई मामले थे।

अपराध की गलियों से लेकर सत्ता के गलियारे का तय किया सफर
मुख्तार ने 1980 के दशक में अपराध की दुनिया में रखा था कदम
मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर जिलों में क्राइम में रहा शामिल

मुख्तार अंसारी पिछले कुछ समय से समाचारों की सुर्खियों में बने हुए थे। पूर्व विधायक की हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे मुख्तार की जेल में तबीयत खराब होने की खबरें आई थीं। दावा किया गया था कि 19 मार्च को खाना खाने के बाद उनकी नसों और अंगों में दर्द होने लगा। दो दिन पहले मंगलवार को ही उनकी अस्पताल से छुट्टी हुई थी। गुरुवार शाम को अचानक फिर से जेल में बेहोश होकर गिरने की खबर आई। आननफानन में उन्हें बांदा मेडिकल कॉलेज में ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया गया। मुख्तार की मौत के बाद विरोधी दलों की तरफ से मौत के कारणों पर सवाल उठाया जा रहा है। मुख्यार अंसारी क्या थे, इस बारे में बहुत लिखने की गुंजाइश नहीं है। उनके बारे में पूर्वांचल के लोग तो नाम से ही जान जाते हैं। शेष लोगों के लिए मुख्तार के बारे में अपराध की दुनिया से लेकर राजनीति, पत्नी से लेकर परिवार तक के बारे में कई हजार शब्द लिखे जा चुके होंगे। फिलहाल सवाल है कि मौजूदा दौर में हमारे राजनेता जो मुख्तार की मौत को लेकर सवाल कर रहे हैं यह कहां तक सही है?

सिर्फ आदर्श वाक्य ना बने राजनीति
आदर्श रूप से राजनीति लोगों की सेवा करने का माध्यम है। हालांकि, यह सिर्फ आदर्श वाक्य बनकर ही रह गया है। अपवाद से इनकार नहीं किया जा सकता है। मुख्तार की मौत के संदर्भ में सवाल है कि हत्या, अपहरण, रंगदारी से लेकर जबरन वसूली जैसे मामले में दोषी के पक्ष में खड़े होना कहां तक सही है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव कहते हैं किसी बंधक या कैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा। ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच होनी चाहिए। दूसरी तरफ, राजद के तेजस्वी यादव कहते हैं कि कुछ दिन पूर्व उन्होंने शिकायत की थी कि उन्हें जेल में जहर दिया गया है फिर भी गंभीरता से नहीं लिया गया। प्रथम दृष्टया ये न्यायोचित और मानवीय नहीं लगता। संवैधानिक संस्थाओं को ऐसे विचित्र मामलों व घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद, AIMIM के असदउद्दीन ओवैसी से लेकर बसपा की मायावती ने अंसारी की जेल में हुई मौत को लेकर उनके परिवार की तरफ से लगातार आशंकाएं और गंभीर आरोपों का जिक्र किया है। मुख्तार ने कोर्ट में अर्जी देकर पहले ही खाने में जहर मिलाकर अपनी हत्या की आशंका व्यक्त की थी। हालांकि, अधिकारियों की तरफ से इससे इनकार किया गया था। अब सवाल है कि मौत जांच का विषय है। आप राजनेता हैं तो राजनीति कीजिए लेकिन अपराधियों के पक्ष में बैटिंग करने से परहेज करना चाहिए। भारत की राजनीति में अपराधियों ने पिछले चार दशक में जो सफलता पाई है, यह सबके सामने ही है। राजनीति और अपराध के कॉकटेल से समाज का कितना भला हुआ है ये कहने की जरूरत नहीं है।

न्यायिक अभिरक्षा में यदि किसी की भी मृत्यु होती है तो ये एक गंभीर विषय है। उसके बारे में एक प्रक्रिया बनी हुई है। जब मुख्तार अंसारी पंजाब से उत्तर प्रदेश लाए गए थे तब भी उनकी हालत गंभीर थी। इससे पहले भी, सीनियर एडवोकेट्स ने अदालत को मुख्तार अंसारी के स्वास्थ्य के बारे में अवगत कराया था। उन लोगों ने कहा था कि उन्हें मेडिकल हेल्प की आवश्यकता है… उसके बाद, उन्हें सभी उचित इलाज उपलब्ध कराए गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसके बावजूद कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
-विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह

अपराधियों को संरक्षण देने की परंपरा बदलें
जहां तक बात न्याय प्रक्रिया की है तो नेताओं की मांग जायज है। हालांकि सवाल है कि क्या मुख्तार जैसे दुर्दांत अपराधियों के अत्याचार का शिकार हुए लोगों के न्याय की आवाज क्या कभी नेताओं ने उठाई? उससे भी बड़ा सवाल है कि नई पीढ़ी के नेता भले ही वे किसी भी दल के हों क्या यह मंशा रखते हैं कि आज राजनीति में अपराध की जगह नहीं होनी चाहिए? अगर ऐसा है अखिलेश हों या तेजस्वी उन्हें अपने-अपने पिता के सियासी दौर में अपराधियों को संरक्षण दिए जाने का परंपरा को बदलना चाहिए। लेकिन दुख की बात है कि आज के नेता न्याय की मांग की आड़ में आज भी सजा पाए अपराधियों के पक्ष में आवाज उठाते दिखते हैं। दरअसल, हत्या, अपहरण से लेकर जबरन वसूली में उम्रकैद से लेकर 10 साल की सजा काट रहे हों, समाज के दुश्मन हैं। वहीं, नेताजी का दायित्व समाज के साथ खड़ा होने का है।
ये भी राजनेता ही हैं
मुख्तार अंसारी की मौत पर कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि लोग जो संदिग्ध मौत की बात कहते हैं, वो जांच का विषय है। जांच में सत्यता के आधार पर बयान करना चाहिए। आज के दिन विज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। फॉरेंसिक रिपोर्ट पर ही विश्वास किया जा सकता है…किसी की मौत पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। अंसारी की मौत पर JDU नेता के.सी. त्यागी ने कहा कि मुख्तार अंसारी एक आपराधिक प्रवृत्ति के नेता थे। दुर्भाग्य से वे लोकसभा और विधानसभा के भी सदस्य रह चुके थे। उनकी मृत्यु ने पूर्वांचल की राजनीति में काफी उथल-पुथल की है। सपा को इसे अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहिए नहीं तो चुनाव में समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान होगा।
अपराध मुक्त राजनीति पर जुबानी जमा खर्च
एक आदमी जो कोयला खनन, रेलवे निर्माण और अन्य क्षेत्रों में फैले ठेकेदारी के धंधे को लेकर गैंगवॉर में उलझे उसे क्या कहेंगे। भले ही कुछ लोग उसमें रॉबिन हुड वाली छवि देखें लेकिन इससे ना तो उसके अपराध कम होंगे ना ही समाज में उसके अपराध से पीड़ित लोगों का दर्द। पीड़ा तो तब होती है जब ऐसे समाज के दुश्मनों को ‘गरीबों के मसीहा’ के रूप में चित्रित किया जाता है। वहीं, ये लोग शान से राजनीतिक दलों में शामिल होते हैं। राजनीतिक दल भले ही वे किसी भी विचारधारा के हों उम्मीदवारों में अपराध भूल कर उसकी जीत की गारंटी देखते हुए उसे गले लगाने से बिल्कुल भी परहेज नहीं करते। आज कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर क्षेत्रीय दल सभी अपराध मुक्त राजनीति की बात तो करते हैं लेकिन सभी दलों में कमोबेश अपराधी पृष्ठभूमि वाले लोग अपनी जगह बनाए हुए हैं। ऐसे में अपराधमुक्त राजनीति की बात राजनीति दलों की तरफ से सिर्फ जुबानी जमा खर्च ही दिखती है।

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