मत:क्या कोई सरकार आपकी संपत्ति छीन कर औरों में बांट सकती है? कानून से बिल्कुल

Can Government Confiscate Your Property And Distribute It Among Muslims? Is It Just An Election Hoax Or Is There Some Reality Too?
क्या कोई सरकार आपकी संपत्ति छीन मुस्लिमों में बांट सकती है? मात्र चुनावी नारा है या सच?
प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वे संपत्ति जुटाकर जिनके ज्यादा बच्चे हैं,उनको बांटेंगे। घुसपैठियों को बांटेंगे। आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? मोदी ने कहा कि क्या आपको ये मंजूर है ? आपकी संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है क्या? क्या आपकी संपत्ति, आपकी मेहनत से कमाई संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है? इस पर कांग्रेस ने भी पलटवार किया है। मोदी के इस बयान में कितनी सच्चाई है, इस स्टोरी में जानेंगे।
नई दिल्ली 23 अप्रैल 2024: क्या आपकी संपत्ति सरकार ले सकती है? क्या उसे दूसरे लोगों में बांटा जा सकता है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं,जो इन दिनों चुनावी रैलियों में गूंज रहे हैं। दरअसल,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को राजस्थान के बांसवाड़ा में जनसभा में कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र कह रहा है कि वे माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगें। फिर वह संपत्ति बांट देंगें। इसे उनको बांटेंगे जिनके बारे में मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। मोदी ने कहा कि पहले जब उनकी सरकार थी,तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये है कि वे संपत्ति जुटाकर जिनके ज्यादा बच्चे हैं,उनको बांटेंगे। घुसपैठियों (बांग्लादेशी) को बांटेंगें। आपकी मेहनत की कमाई का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? मोदी ने कहा कि क्या आपको ये मंजूर है ? आपकी संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है क्या? क्या आपकी संपत्ति को,आपकी मेहनत से कमाई संपत्ति को सरकार को ऐंठने का अधिकार है?

मोदी के इस बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी पलटवार किया कि पहले चरण के मतदान में निराशा हाथ लगने के बाद नरेंद्र मोदी के झूठ का स्तर इतना गिर गया है कि घबरा कर वह अब जनता को भटकाना चाहते हैं। कांग्रेस के ‘क्रांतिकारी मेनिफेस्टो’ को मिल रहे अपार समर्थन के रुझान आने शुरू हो गए हैं। देश अब अपने मुद्दों पर वोट करेगा,अपने रोजगार,अपने परिवार और अपने भविष्य के लिए वोट करेगा। भारत भटकेगा नहीं!

राहुल ने क्या कहा था तेलंगाना की रैली में,चुनावी घोषणापत्र में ऐसा क्या, जिसे लेकर मोदी बना रहे मुद्दा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हैदराबाद में 6 अप्रैल को चुनावी रैली में ‘जितनी आबादी उतना हक’ का नारा देते हुए देश में आर्थिक-सामाजिक सर्वे कराने की बात कही थी। उन्होंने कहा, अगर पार्टी जीतकर सत्ता में आई तो देश में जातिगत जनगणना के साथ आर्थिक सर्वे भी होगा ताकि पता लग पाये कि किसके पास कितना पैसा पहुंच रहा है। देश की अधिकतर संपत्ति पर किसका कंट्रोल है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भी सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराने का वादा किया है। पार्टी का कहना है कि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर जनता को योजनाओं का लाभ दिया जाएगा।

नेताओं के बयान जो भी हों, मगर अब ये सवाल तो सबके जेहन में है कि क्या सरकार नागरिकों की संपत्ति ले सकती है? इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानेंगे कि क्या कहता है कानून, क्या हैं नियम…

जानिए संविधान संशोधन के बाद संपत्ति का अधिकार क्या है?
आजादी के बाद भारत में संपत्ति का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 में एक मूल अधिकार के रूप में मान्य था। इन प्रावधानों ने नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने,धारण करने और इसका निपटारा करने के अधिकार की गारंटी दी। कानून के अधिकार के बिना संपत्ति से वंचित करने पर रोक लगा दी। बाद में इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 44वें संशोधन अधिनियम,1978 से लाया गया, जिसने संपत्ति के मूल अधिकार को पूरी तरह समाप्त कर दिया। अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 को 20 जून, 1979 से हटा दिया गया। इस संशोधन से संविधान में एक नया प्रावधान अनुच्छेद 300-A जोड़ा गया,जिसने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के बजाय विधिक अधिकार कर दिया ।

क्या कहता है संपत्ति का अधिकार का नया नियम

फिलहाल, संपत्ति का अधिकार मुख्य रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-A से शासित होता है। इसमें कहा गया है कि कानूनी प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। पहले के प्रावधानों के विपरीत मौजूदा स्थिति यह है कि संपत्ति का अधिकार पूर्ण नहीं है और इसे कानून से विनियमित किया जा सकता है। इस संशोधन के अनुसार, निजी संपत्ति एक मौलिक मानव अधिकार है। इसे कानूनी प्रक्रियाओं और आवश्यकताओं का पालन किए बिना राज्य नहीं ले सकता।

जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने दी थी ये थ्योरी
19वीं सदी में  जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने संपत्ति के बारे में दो किताबों में लिखकर दुनिया में तहलका मचा दिया।’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ और ‘दास कैपिटल’ जैसी किताबों ने एक समय पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णायक असर डाला था। माना जाता है कि रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इसी का उदाहरण था। यहां तक कि 20वीं सदी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है। पहले समझें कि कार्ल मार्क्स के वे कौन से सिद्धांत हैं, जिन्होंने नए वर्ग और संपत्ति के बंटवारे को लेकर नया ताना-बाना समझाया था।
राजनीतिक कार्यक्रम यानी एक दिन होगा सर्वहारा का कब्जा
मार्क्स ने’कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ समेत कई लेखों में पूंजीवादी समाज में ‘वर्ग संघर्ष’ की कल्पना की। उन्होंने बताया था कि आखिरकार इस संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता कब्जा लेगा। इस बात को उन्होंने विस्तार से अपनी रचना दास कैपिटल में भी जिक्र किया। 20वीं सदी में मजदूरों ने रूस, चीन और क्यूबा जैसे देशों में शासकों को उखाड़ फेंका और निजी संपत्ति और उत्पादन के साधन कब्जा  लिये।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि मार्क्स को ग्लोबलाइजेशन का पहला आलोचक माना जा सकता है, जिन्होंने दुनिया में बढ़ती अमीरी-गरीबी में खाई के बारे में बात की थी। आज कुछ लोगों के हाथों में दुनिया की 50 प्रतिशत  से ज्यादा दौलत है।

अकूत मुनाफा और अतिरिक्त मूल्य पर एकाधिकार
मार्क्स के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण पक्ष है- ‘अतिरिक्त मूल्य।’ इसे एक मजदूर अपनी मजदूरी के अलावा पैदा करता है। मार्क्स का कहना है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की कीमत पर अपना मुनाफा अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं। ऐसे में पूंजी कुछ ही हाथों में केंद्रित होती जाती है। इससे बेरोजगारी बढ़ती है और मजदूरी में भी गिरावट आती है।

आजादी बाद संत विनोबा ने भूदान आंदोलन चलाया
संपत्ति का असमान वितरण देखते हुए आजादी बाद संत विनोबा भावे ने 1951 में भूदान आंदोलन शुरु किया। यह स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था। विनोबा की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों से न हो, बल्कि  आंदोलन से इसे कामयाब बनाया जाए। 1956 तक इस आंदोलन में दान में 40 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन मिली, मगर बाद में यह आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधीजी ने दिया था ट्रस्टीशिप का सिद्धांत
दरअसल विनोबा ने गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों का इस्तेमाल कर सर्वोदय समाज स्थापित किया। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था।

गांधीजी ने भी ट्रस्टीशिप का जो सिद्धांत दे कहा कि भूस्वामी और अमीर लोग अपनी संपत्ति के न्यासी के रूप में काम करें । उन्हें अपने संपत्ति का अधिकार सामान्य जन में समर्पित कर देना चाहिए। संपत्ति के बावजूद उन्हें खुद को मजदूर वर्ग के स्तर पर ले जाना चाहिए और मेहनत करके जीवन-यापन करना चाहिए। हालांकि, गांधीजी का ये सिद्धांत लोगों ने नहीं अपनाया।

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