बिपरजॉय तूफ़ान को भारत ने पराजित किया इसरो के रीयलटाइम डाटा से, कोई जनहानि नहीं

How Isro Satellites Help India To Beat Cyclone Biparjoy

झुकता है तूफान भी, झुकाने वाला चाहिए… बिपरजॉय को हरा भारत ने दिखा दी अपनी आसमानी ताकत

चन्द्र प्रकाश पाण्डेय

चक्रवाती तूफान बिपरजॉय अब कमजोर हो गया है। इतने खतरनाक तूफान के बावजूद भी अब तक इससे कोई जनहानि  नहीं हुई है। ये करिश्मा मुमकिन हुआ है इसरो के सैटलाइटों के दम पर। उन्होंने तूफान को ट्रैक कर और उससे जुड़े रियल टाइम डेटा को साझा करके समय रहते लोगों को सुरक्षित जगह पर निकालना संभव किया।

हाइलाइट्स
बिपरजॉय तूफान अब कमजोर पड़ा, राजस्थान की तरफ बढ़ रहा
तूफान से अबतक किसी की मौत की खबर नहीं है, कई पेड़ गिरे हैं
भारत ने अगर इस खतरनाक तूफान को हराया है तो इसमें बड़ी भूमिका इसरो की है
इसरो के सैटलाइटों से मिले डेटा ने समय रहते लोगों का रेस्क्यू करने में मदद की

नई दिल्ली 16 जून : चक्रवाती तूफान बिपरजॉय अब गुजरात के बाद राजस्थान की ओर बढ़ना शुरू कर चुका है। तूफान की वजह से कच्छ, सौराष्ट्र और गुजरात के तटीय इलाकों में 130-140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं और बारिश हुईं। हालांकि, अब बिपरजॉय कमजोर हो चुका है। तूफान ने कच्छ और सौराष्ट्र में काफी तबाही मचाई है। हालांकि, राहत की बात ये है कि इंसानी जान को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। हां, तूफान आने से पहले ही भावनगर में बकरियों को बचाने की कोशिश में दो लोगों की मौत जरूर हुई है। तूफान की वजह से तमाम जगहों पर कई पेड़ गिर गए हैं, 23 लोग जख्मी हुए हैं और कुछ जगहों पर कुछ मवेशियों की मौत हुई है। बिजली के खंभे गिरने से 45 गांव अंधेरे में डूब गए। बिपरजॉय बंगाली भाषा का शब्द है जिसका मतलब है आपदा। इतने खतरनाक तूफान के बाद भी अगर बेशकीमती जिंदगियों को नुकसान नहीं पहुंचा है तो इसके लिए केंद्र, राज्य और आपदा राहत से जुड़ी एजेंसियों का बेहतरीन तालमेल से काम करना है। इसका बड़ा श्रेय इसरो के सैटेलाइटों को जाता है, जिनके डेटा ने समय रहते बचाव की तैयारी का मौका दिया।

भारत में हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। कभी बाढ़ तो कभी तूफान, कभी भूकंप तो कभी सूखा। ऐसे प्राकृतिक हादसों के दौरान ISRO के सैटलाइट किसी देवदूत की तरह काम करते हैं। सैटलाइट से रियल टाइम मिले डेटा और तस्वीरों से तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का न सिर्फ समय रहते सटीक अनुमान लगता है जबकि आपदा के बाद राहत और बचाव में भी मदद मिलती है। इसरो के सैटलाइट्स की मदद से बिपरजॉय के बारे में सटीक अनुमान लगाया जा सका और समय रहते 1 लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। तूफान कितने खतरनाक स्तर का है, इसका सही-सही अंदाजा लगने के बाद उससे निपटने के लिए भी युद्ध स्तर पर तैयारी की गई थी। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की 33 से ज्यादा टीमें तैनात की गईं। 631 मेडिकल टीमों को तैयार रखा गया। 302 ऐम्बुलेंस तूफान के वक्त लोगों की मदद के लिए तैनात किए गए। 8 तटीय जिलों में 3,851 क्रिटिकल केयर बेड स्थापित किए गए। 1148 गर्भवती महिलाओं को रेस्क्यू किया गया और 680 महिलाओं की सेफ डिलिवरी कराई गई।

भारत में 1970 से 2019 के बीच 117 चक्रवाती तूफान आए जिसमें 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई। 1970 में तो पड़ोसी बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में आए तूफान भोला ने तो 3 लाख जिंदगियां छीन ली थी। आज से एक-दो दशक पहले तक तूफान बहुत तबाही मचाते थे, सैकड़ों-हजारों लोगों की मौत होती थी लेकिन अब अडवांस्ड सैटलाइट की वजह से जिंदगियां बचाने में मदद मिली है। जैसे-जैसे इसरो के सैटलाइट अत्याधुनिक तकनीकों से लैस होते गए, तूफान समेत तमाम मौसमी परिस्थितियों का सटीक पूर्वानुमान आसान हो गया। इससे जिंदगियों को बचाने में मदद मिली। 1999 में ओडिशा में आए चक्रवात में 9,658 लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद भारत में कई तूफान आए लेकिन जिंदगियों को उतना ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा, जिसका श्रेय बेशक इसरो के सैटलाइटों को ही जाता है।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए इसरो बाकायदे डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट (DMS) प्रोग्राम चलाता है। इसमें अंतरिक्ष से सैटलाइटों की तरफ से भेजे गए डेटा, तस्वीरों आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसरो किसी प्रातिक आपदा के वक्त या उसके बाद सैटलाइट से मिले रियल टाइम इन्फॉर्मेशन को केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रालयों और विभागों को भेजता है। इसमें उसके अपने सैटलाइट तो डेटा भेजते ही हैं, दूसरी स्पेस एजेंसियों के सैटलाइट भी मदद करते हैं। इसकी वजह ये है कि इसरो आपदा प्रबंधन के सिलसिले में कई अन्य देशों के साथ इंटरनैशनल चार्टर स्पेस ऐंड मेजर डिजास्टर्स, सेंटिनेल एशिया, UNESCAP जैसे अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क में साथ मिलकर काम करता है।

इसरो के सैटलाइटों की मदद से मौसम की स्थितियों पर लगातार नजर रखी जाती है। सैटलाइटों के जरिए टेलिकम्यूनिकेशन, ब्रॉडकास्टिंग, मौसम, सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन में मदद मिलती हैं। फिलहाल इसरो के दो मौसम उपग्रह हैं- INSAT-3D और INSAT-3DR। इन दोनों सैटलाइट्स पर डेटा रिले ट्रांसपोंडर (DRT) लगे हुए हैं जो ग्राउंड स्टेशनों तक डेटा की आवाजाही का काम करते हैं। सैटलाइटों से ये डेटा सीधे अर्थ स्टेशन पहुंचते हैं।

वैसे ये पहली बार नहीं हुआ है जब भारत में किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त इसरो के सैटलाइट तारणहार बनकर उभरे हैं। इससे पहले भी हुदहुद, अम्फान, फानी जैसे खतरनाक तूफानों और कई राज्यों में बाढ़ के दौरान इन सैटलाइट्स की वजह से हजारों जिंदगियों को बचा पाना मुमकिन हुआ।

2019 में जब चक्रवाती तूफान फानी ने भारत में दस्तक दी थी तब इसरो के सैटलाइट की मदद से एक हफ्ते से ज्यादा पहले ही तूफान के बारे में जानकारी मिल गई थी। इसरो के 5 सैटलाइट – लगातार उस पर नजर रखे हुए थे। वे हर 15 मिनट पर ग्राउंड स्टेश को डेटा भेज रहे थे जिससे तूफान को ट्रैक करने, उसकी गति और दिशा का पूर्वानुमान करने में मदद मिली और समय रहते रेस्क्यू ऑपरेशन से सैकड़ों जिंदगियां बचाई जा सकीं।

इसी तरह दिसंबर 2016 में बंगाल की खाड़ी में उठे तूफान वरदा के वक्त भी इसरो के सैटलाइटों ने तमिलनाडु में 10 हजार लोगों को समय से रेस्क्यू करने में मदद की थी। तब INSAT-3DR और ScatSat-1 सैटलाइटों से मिले डेटा के आधार पर चेन्नै, थिरुवल्लुर और कांचीपुरम जिलों से 10 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया था।

अक्टूबर 2014 में भी हुदहुद तूफान के वक्त इसरो के सैटलाइट INSAT-3D से भेजी तस्वीरों की बदौलत तूफान को ट्रैक करने में मदद मिली थी। अगर आपको सटीक जानकारी हो जाए कि कब कोई तूफान उठ रहा है, कब किस रफ्तार से कहां पहुंचेगा तो समय रहते लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजना आसान हो जाता है। इन सैटलाइटों ने यही काम किया।

सिर्फ तूफान ही नहीं, बाढ़ और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं के वक्त भी इसरो के सैटलाइट काफी मददगार साबित होते हैं। नजीर के तौर पर 2018 में केरल में आई भीषण बाढ़ को ही लीजिए। तब इसरो के 5 सैटलाइटों ने बाढ़ के हालात की निगरानी करके आपदा राहत में मदद की थी।

 

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