प्रथम चरण: उत्तर भारत में मतदान कम, दक्षिण भारत में बंपर वोटिंग का क्या संकेत है?

Will Bjp To Cross 400 Loksabha Seats Due To Low Voting In North India, Know The Opinion Of Experts
उत्तर भारत में कम वोटिंग से क्या 400 के पार पहुंचेगी भाजपा, जानिए विशेषज्ञों की राय
भाजपा इस लोकसभा चुनाव में 400 के पार पहुंचने का दावा कर रही है। पहले चरण की वोटिंग के बाद जिस तरह से उत्तर से लेकर दक्षिण तक वोटिंग पैटर्न में फर्क देखने को मिला है, उससे भाजपा के दावे पर सवाल उठ रहे हैं। इसके सटीक जवाब राजनीतिक विशेषज्ञ से जानते हैं।

नई दिल्ली 20 अप्रैल,2024: इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने लिए अबकी बार 400 पार का कैंपेन कर रही है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी दक्षिण भारत में ज्यादा सीट पाने के लिए अपनी ताकत झोंक दी। उन्होंने वहां पर जमकर रैलियां कीं। विपक्षी इंडिया गठबंधन एनडीए के मुकाबले दक्षिण में बेहतर स्थिति में दिख रहा है। पहले चरण की 102 सीटों में से दक्षिण की सीटों पर जमकर हुई वोटिंग और उत्तर भारत के राज्यों में कम वोटिंग ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ लोग इसे बदलाव की आहट बता रहे हैं तो कुछ का कहना है कि जनता कोई बदलाव नहीं चाहती है। इन्हीं सवालों के जवाब कुछ एक्सपर्ट से जानेंगे कि पहले चरण की वोटिंग प्रतिशत के मायने क्या हैं। उससे पहले नीचे दिए ग्राफिक से 2019 के चुनाव में इन 102 सीटों पर पार्टियों का हाल जान लेते हैं-

उत्तर भारतीय राज्यों में कम वोटिंग अंतर खड़ी कर सकता है मुश्किलें
विशेषज्ञों के अनुसार, उत्तर भारतीय राज्यों में कम वोटिंग से भाजपा की टेंशन बढ़ सकती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि मध्य प्रदेश में 2019 में 75 प्रतिशत  वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 63 प्रतिशत  रह गई। वहीं, बिहार में 47 प्रतिशत  वोटिंग हुई, जो पिछली बार 53 प्रतिशत  के मुकाबले 6 प्रतिशत  कम है। राजस्थान में इस बार 57.87 प्रतिशत   वोटिंग हुई, जो पिछली बार 63.71 प्रतिशत  के मुकाबले करीब 6 प्रतिशत  कम है। उत्तर प्रदेश में इस बार जिन सीटों पर मतदान हुए हैं, उन सीटों पर 2019 के चुनाव में करीब 67 प्रतिशत मतदान हुए थे। वहीं इस बार 57 प्रतिशत वोट ही पड़े हैं। इन राज्यों में इतना अंतर किसी भी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
तो क्या नॉर्थ में कम वोटिंग होना किसी तरह का संकेत है?
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) में लोकनीति के प्रोफेसर और सह-निदेशक संजय कुमार कहते हैं कि पहले फेज में जो भी वोटिंग हुई और जो वोट पैटर्न रहा, उससे भाजपा की सेहत पर कोई खास असर नहीं दिखाई पड़ता है। भाजपा जैसी 2019 में थी, वैसी ही इस बार भी दिखाई पड़ रही है। हर जगह मोदी ही मोदी की बात हो रही है। बिहार और मध्य प्रदेश में कम वोटिंग जरूर हुई है, मगर उसका असर ज्यादा नहीं पड़ेगा। वैसे भी इस वोटिंग पैटर्न के आधार पर अभी से कुछ भी संकेत बताना मुश्किल है। दक्षिण और पूर्वोत्तर में रिकॉर्ड वोटिंग हुई है। वहां पहले भी इसी तरह की वोटिंग होती रही है।
कम मतदान के मायने: यह सत्ता परिवर्तन का संकेत या बदलाव नहीं चाहती जनता
एक्सपर्ट के अनुसार, कई बार लोकसभा चुनाव में कम मतदान होने के मायने यह होते हैं कि जनता कोई बदलाव नहीं चाहती है। दूसरा, यह है कि इसमें मौसम की भी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। उत्तर भारत में बेतहाशा गर्मी पड़ रही है। वहीं, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि कम वोटिंग से सत्ता परिवर्तन के संकेत मिल सकते हैं। ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कम वोटिंग होने का मतलब सत्ता परिवर्तन होता है तो यह कहना जल्दबाजी होगी। कई बार बंपर वोटिंग से भी सत्ता परिवर्तन देखा गया है।

5 चुनावों में मतदान प्रतिशत में गिरावट, 4 बार बदली सरकार
एक्सपर्ट्स के अनुसार, देश में बीते 12 आम चुनावों में से 5 में मतदान प्रतिशत में गिरावट आई थी। इनमें से 4 बार सरकार बदल गई। सिर्फ एक बार ऐसा था कि जब कम वोटिंग के बाद भी सत्ताधारी दल की वापसी हुई। 1980 के चुनाव में मतदान प्रतिशत गिरा और जनता पार्टी की सरकार को हटाकर कांग्रेस की सरकार बनी। 1989 में वोटिंग प्रतिशत गिरा और कांग्रेस को हटाकर वीपी सिंह की अगुवाई वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी। 1991 में फिर मतदान प्रतिशत गिरा और कांग्रेस ने सरकार बनाई। बस 1999 का साल ऐसा था, जब कम मतदान होने के बाद भी सत्ता में बदलाव नहीं हुआ। इसके बाद 2004 में मतदान में गिरावट आई और भाजपा को हटाकर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई।
2019 में 21 स्विंग सीटों में से भाजपा एक भी नहीं जीती
दक्षिण भारत में 2019 के चुनाव में भाजपा ने 40 सीटें जीती थीं। वहीं द्रमुक ने 24, जबकि कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थीं। 102 सीटों में से 21 को स्विंग सीट कहा जा रहा है, जहां द्रमुक ने 2009 और 2019 में 13 सीटें जीती थीं। वहीं, 2014 में स्थिति पलट गई थी। इनमें से 12 सीटें तो अन्नाद्रमुक ने जीतीं, मगर पीएमके ने धरमपुरी की एक सीट अपने खाते में डाल ली। इनमें भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। बीते चुनावों में भाजपा का इन राज्यों में वोटिंग प्रतिशत 5 प्रतिशत  से कम ही रहा है।
दक्षिण में भगवा रंग फीका

2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में भाजपा का कमल नहीं खिल पाया था। द्रमुक की अगुवाई वाले गठबंधन (कांग्रेस और माकपा समेत) ने तमिलनाडु की कुल 39 सीटों में से 38 पर कब्जा जमा लिया था। वहीं, एक सीट पर ही अन्नाद्रमुक को जीत मिली थी। केरल में भी भाजपा का अभी तक कोई खाता नहीं खुला है। बीते चुनाव में तीन सीटें ऐसी थीं, जहां भाजपा का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा था, मगर वे सीटें जीत में नहीं बदल पाई थीं। यहां पर कुल 20 सीटों में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ गठबंधन ने 15 सीटें जीती थीं। वहीं, वाम दलों के गठबंधन 1 सीट ही जीत पाया था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को 2, केरल कांग्रेस (एम) को 1, रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी भाजपा के हाथ एक भी सीट नहीं लगी थी।

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