बाबा रामदेव छोड़िए, डॉ.(मे.जन.) सिन्हा के डॉ. गुलेरिया से पूछे सवाल में दिलचस्पी लेंगे आप?

कोरोना जैसे हालात में AIIMS ने जारी कीं भ्रामक गाइडलाइंस, आर्मी डॉक्टर ने गुलेरिया पर दागे सवाल
AIIMS की बदलती गाइडलाइन ने कई लोगों के जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचाया है. क्योंकि शुरुआत में AIIMS की तरफ से जो गाइडलाइन जारी की गई उसे बाद में यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि इसे कोरोना मरीजों पर बहुत प्रभावी नहीं पाया गया है. यानी कुल मिलाकर देखें तो आम आदमी ने अपनों को तो खोया ही, उन्हें भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ है.

एम्स चीफ डॉ रणदीप गुलेरिया
स्नेहा मोरदानी
नई दिल्ली,23 मई
AIIMS निदेशक गुलेरिया पर उठ रहे सवालआर्मी डॉक्टर वीके सिन्हा ने लिखा खुला पत्रडॉ. गुलेरिया से कंफ्यूजिंग गाइडलाइन पर मांगी सफाई
कोरोना महामारी की दूसरी लहर बेहद घातक साबित हुई है. एक तरफ पूरा देश अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा था तो वहीं बाजार में रेमडेसिविर जैसी दवाइयों की भयंकर कालाबाजारी भी देखने को मिली.

वहीं श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को भारी पैसा खर्च करने के साथ-साथ लंबे इंतजार का भी सामना करना पड़ा. वहीं AIIMS की बदलती गाइडलाइन ने कई लोगों को जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचाया है. क्योंकि शुरुआत में AIIMS की तरफ से जो गाइडलाइन जारी की गईं उसे बाद में यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि इसे कोरोना मरीजों पर बहुत प्रभावी नहीं पाया गया है.

यानी कुल मिलाकर देखें तो आम आदमी ने अपनों को तो खोया ही, उन्हें भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ है. मेजर जनरल (डॉ) वीके सिन्हा ने ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हुए AIIMS के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया को खत लिखा है. उन्होंने एम्स निदेशक को एक खुला खत लिखकर उनसे सफाई मांगी है.

उन्होंने लिखा, मैं एक चिकित्सा विधर्मी हूं, जिसके अंदर सवाल करने की एक खास विशेषता है. मैंने तर्क की कसौटी पर कसने के बाद किसी बात को मानने की प्रवृत्ति, चिकित्सा क्षेत्र के प्रणेताओं से विरासत में पाई है. आप, निश्चय ही आज घर-घर में जाने जाते हैं. आप इसके हकदार भी हैं क्योंकि आप ऐसी मेडिकल इमरजेंसी में भी देश को रास्ता दिखा रहे हैं. लोग डॉक्टरों की ओर देखते हैं और डॉक्टर उत्कृष्ट संस्थानों की ओर. आप अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक हैं जो बड़ा ही प्रतिष्ठित पद है और इसका अपना ही आभामंडल है, होना भी चाहिए. आपके शब्दों को देश के आम लोग और पूरी चिकित्सा बिरादरी अटल सत्य के तौर पर देखती है. इसलिए, आपकी जिम्मेदारी बहुत अधिक हो जाती है.

उन्होंने आगे लिखा- ‘मैं आपका ध्यान एम्स के 7 अप्रैल 2021 के दिशा-निर्देशों की ओर दिलाना चाहता हूं. एक पन्ने का दिशा-निर्देश देश भर के विशेषज्ञों से लेकर दूर-दराज के इलाकों में चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ की तरह काम करने वाले झोलाछाप डॉक्टरों के लिए बाइबिल बन गया. एम्स के इस दिशा-निर्देश में हल्के संक्रमण की स्थिति में होम आइसोलेशन के मामले में आइवरमेक्टिन देने की सलाह दी गई थी. लेकिन 7 अप्रैल की तारीख तक कोविड के इलाज में इस दवा की उपयोगिता से कहीं ज्यादा सामग्री उसके खिलाफ ही थी.

मार्च में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि “कोविड-19 के रोगियों के इलाज में आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल को लेकर मौजूदा साक्ष्य अनिर्णायक हैं”. वास्तविकता तो यह है कि मेडिकल साक्ष्य व्यवस्था को समझने वाले लोगों के लिहाज से कभी ऐसा कोई साक्ष्य था ही नहीं. इस तरह की किसी भी बात पर आपने ध्यान ही नहीं दिया? आपका ध्यान डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों पर भी नहीं गया या मेडिकल सबूत नहीं होने को आपने गलत समझ लिया, यह असंभव और समझ से परे है. चिकित्सा में क्या सही है और क्या गलत, इस बारे में फैसला सुनाने वाले देश के सबसे बड़े जज होने के नाते आप इस तरह की चूक नहीं कर सकते.

इसमें आश्चर्य नहीं कि एक माह के भीतर ही आइवरमेक्टिन के उपयोग पर आपके रुख के खिलाफ सरकार और आईसीएमआर सार्वजनिक तौर पर सामने आ गए. लेकिन तब तक आइवरमेक्टिन के लिए मारामारी मच चुकी थी. यह दुकानों से गायब हो चुकी थी और संभवतः ज्यादा कीमत पर बेची जा रही थी और निर्माता और डीलर जमकर कमाई कर रहे थे.

लेकिन चलिए, इसे जाने दें क्योंकि घबराहट की स्थिति में मरीजों को एक-दो गोली निगल लेने से कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ होगा. लेकिन अस्पतालों में भर्ती मरीजों के मामलों में अनिवार्य रूप से रेमडेसिविर देने की सिफारिश की गई. एम्स की यह सिफारिश चौंकाने वाली थी क्योंकि जैसा कि आप निस्संदेह जानते ही होंगे, कोविड में इसके उपयोग का समर्थन करने वाला (कुछ घटिया बनावटी साक्ष्यों को छोड़कर जिनकी पोल पहले ही खुल चुकी है) कोई सबूत नहीं. वास्तविकता तो यह है कि डब्ल्यूएचओ ने तो पिछले साल नवंबर में ही इसे कोविड की दवाओं की सूची से हटा दिया था.

अब जब महामारी की दूसरी लहर नियंत्रण से बाहर हो गई, रेमडेसिविर ने आधुनिक चिकित्सा के हॉल ऑफ शेम में अपने लिए जगह बना ली है. रेमडेसिवर हर गलत कारण से सुर्खियों में रही- कालाबाजारी, मुनाफाखोरी से लेकर जमाखोरी और बाजार में बिकती नकली दवा तक के लिए.

आपने हमें यह बताने में भी तीन हफ्ते से अधिक का समय लगा दिया कि कोविड में इस दवा के उपयोग के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है. क्या आपको यह बात पता नहीं थी कि भ्रामक दिशा-निर्देश पर इलाज चल रहा था? एक पल्मोनोलॉजिस्ट होने के नाते मेरे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि टैमीफ्लू संबंधी गड़बड़झाले के बारे में आपको भी जानकारी होगी. एक बार फिर यह भी आपकी ही निगरानी में हुआ.

जब भी पर्चे पर रेमडेसिविर लिखा जाता, कुछ पहुंच वाले लोगों को छोड़कर ज्यादातर आम लोगों के लिए इसे पाना असंभव ही था. लोगों में इतनी हताशा थी कि वे अपने रिश्तेदारों और प्रियजनों को बचाने के लिए इस दवा की कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे. एक ऐसी दवा जिससे रोगियों के बचने की संभावना पर कोई असर ही नहीं पड़ना था. चूंकि अब तक सारे लोग चुप हैं तो मैं यह कहना चाहूंगा कि यह अपने आप में एक चिकित्सा घोटाला है जिसकी कोई मिसाल नहीं मिलती.

स्टेरॉयड के उपयोग पर सलाह तो सबसे भयावह और कपटपूर्ण है. पिछले दो हफ्तों के दौरान आप खुद भी कोविड के मामलों में स्टेरॉयड के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ आगाह कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी से लेकर छोटे गांवों तक हर एक अस्पताल, डिस्पेंसरी और डॉक्टर (नीम-हकीम समेत) सभी तरह के रोगियों के लिए स्टेरॉयड टैबलेट या इंजेक्शन लिख रहे हैं. कहने की जरूरत नहीं कि इसके कारण रोग के बढ़ने से लेकर दूसरे बैक्टीरिया और फंगस संक्रमण के रूप में विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं.

वायरल संक्रमण के शुरुआती दिनों में स्टेरॉयड नहीं दिया जाना चाहिए. एक डॉक्टर के लिए यह आम समझ की बात है. लेकिन रोगियों की बेशुमार भीड़ और विकराल संकट के इस दौर में डॉक्टरों ने आप पर और एम्स द्वारा जारी दिशा-निर्देशों पर भरोसा किया.

डॉक्टर गुलेरिया, आपके अधीन एम्स ने एक अस्पष्ट और भ्रामक फ्लो-चार्ट जारी करने की घातक गलती की जिसमें किसी भी समय-सीमा की परवाह किए बिना स्टेरॉयड के उपयोग का सुझाव दिया गया था. दवा लिखने की अपनी बारीकियां होती हैं जो डॉक्टरों के फैसलों से भी जुड़ी होती हैं. महामारी की भयावहता के युद्ध जैसे मौजूदा हालात में यह समझ-बूझ की स्थिति जाती रही. आपका एक दिशा-निर्देश/ फ्लोचार्ट लोगों के जीवन-मौत का फैसला करने वाला बन गया. इसे एक अप्रत्याशित या अनपेक्षित चूक कहें या स्पष्टता की कमी, यह वास्तव में एक बड़ी गलती है. लेकिन इन परिस्थितियों में?

कोविड से हुई मौतों में स्टेरॉयड के दुरुपयोग से हुई मौतों का अनुपात क्या रहा, इसका पता कभी नहीं चल सकेगा; न ही उन परिवारों की संख्या का पता चल सकेगा जिन्होंने अपनी संपत्ति गिरवी रखकर या अपनी जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को बेहद महंगे लेकिन बेकार रेमडेसिविर खरीदने के लिए बेच दिया.

दिशा-निर्देशों में दिए गए टॉसिलजुमाब या प्लाज्मा से होने वाले फायदे को लेकर भी मेरी शंकाओं के ऐसे ही कारण हैं क्योंकि ये भी वैज्ञानिक जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतरते. मुझे नहीं पता कि हमलोगों को इस नाजुक स्थिति में डालने को लेकर दोषी को आप कठघरे में खड़ा करेंगे या नहीं? मैं तो बस आपको नायक की जिम्मेदारी के सिद्धांत की याद दिलाना चाहता हूं.

ये है मूल पत्र ,अविकल

From one doctor to another: An open letter to AIIMS director Dr Randeep Guleria
By Major General (Retd) Dr V.K. Sinha
May 22, 2021 at 8:17 AM
Respected Dr Guleria,

I am a medical heretic who has inherited the trait of ‘questioning’ from the pioneers of modern medicine. You of course, have become a household name, a position well deserved for guiding the nation during the worst medical tragedy in our living memory.

People look up to doctors and doctors look up to institutions of excellence. The exalted status of the Director of All India Institute of Medical Sciences that you occupy has a halo that is richly deserved. Your words are treated as the Gospel by the entire medical fraternity in the country. Your responsibility therefore, is both onerous and unenviable.

But I draw your attention to the guidelines issued by AIIMS on April 07 of this year. It took up a solitary page in the manner of a flow chart that became the Bible of Covid treatment, from specialists down to the quacks.

For management of mild cases in home isolation, the AIIMS guideline advised prescribing Ivermectin. But as on 07th April there was overwhelming medical literature against the use of this drug. In March itself, WHO had noted that “current evidence on the use of Ivermectin to treat COVID-19 patients is inconclusive”. In fact, there never was any evidence to start with. Could you have missed WHO’s guideline or been unaware of the lack of medical evidence?

In a matter of weeks, the govt and ICMR publicly opposed the use of Ivermectin. By then of course there was a mad scramble for Ivermectin, which disappeared from pharmacies and was sold at a premium. But let it pass as no great harm was done to a patient by a couple of tablets that he gulped down in a state of panic.

Inexplicably Remdesivir was also recommended for cases admitted in hospitals. This recommendation was shocking because as you would have known, there is not an iota of evidence (except some low-quality manufactured evidence which has already been discredited) to support its use in Covid. In fact, WHO had dropped this medicine from the list of Covid drugs in November last year.

As the second wave of the pandemic spun out of control, Remdesivir earned for itself a place in the hall of shame of modern medicine. Black marketing, profiteering, counterfeiting, hoarding- the drug hogged the headlines for all the wrong reasons.

You took more than three weeks to tell us that there was no evidence to support the use of this drug. Weren’t you aware of this fact earlier? As a Pulmonologist, I have reasons to believe that you would have been aware of the Tamiflu fiasco. Yet AIIMS prescribed Remdesivir under your watch.

For a majority of Indians, procuring Remdesivir became an impossible task. Such was the desperation that relatives of patients were willing to pay any price for the drug to save their loved ones- a drug that unfortunately does not work by your own admission. Dare I say this has been a medical scam with few parallels?

Even more horrific has been the advisory on the use of steroids. Though for the last two weeks we find you are crying yourself hoarse against the indiscriminate use of steroids in Covid cases, every single hospital, dispensary and physician (unqualified quacks included) from the national capital to villages have been indiscriminately prescribing steroid tablets or injections to Covid patients. This has had disastrous consequences and led to hastening the progress of the disease besides causing bacterial and fungal infections.

That steroids should not be given during the first few days of a viral infection is plain common sense in the practice of medicine. Sadly, common sense is not very common. Most medical practitioners, unfortunately, continue to blindly follow the guidelines issued by AIIMS.

The practice of medicine requires sound judgement by discerning clinicians. This has not been possible in the present war like situation. The AIIMS guideline came to be followed blindly by physicians. An unintended error, lack of clarity or a genuine mistake might not have been fatal in normal times. But under these circumstances?

What proportion of Covid deaths could be attributed to the misuse of steroids will never be known; nor the number of families who pawned their meagre possessions or sold their tiny parcels of land for a prohibitively expensive but useless Remdesivir.

I have similar reasons to flag concerns on convalescent plasma and Tocilizumab in the guideline that does not pass muster of scientific scrutiny.

I conclude by referring to the doctrine of vicarious responsibility and with wishes for AIIMS to continue the good work for which it is rightly known. With profound regards,

Major General

(Dr) VK Sinha, VSM (Rtd) (The writer is Quondam- Professor & Head of Orthopaedics, AFMC, Pune. Views are personal)

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