नया संसद भवन

 

New Parliament Video: कैसी है अपनी नई संसद, कहां पर बैठेंगे प्रधानमंत्री मोदी और कहां बैठेगा विपक्ष, अंदर से देखिए

नई संसद भवन के अंदर की पहली झलक, इतना भव्य कि मन गदगद हो जाएगा
Nai Sansad Bhavan Video: नई संसद का वीडियो सामने आ गया है। वीडियो में नई संसद की नक्काशी और स्थापत्य कला का नजारा देखा जा सकता है। नई संसद को बनने में करीब ढाई साल का वक्त लगा है। चार मंजिला इस इमारत की नक्काशी जबरदस्त है।

हाइलाइट्स
1-नई संसद भवन का वीडियो जारी, बेहतरीन और विहंगम तस्वीरें
2-28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका करेंगे उद्घाटन
3-रिकॉर्ड वक्त में बनकर तैयार हुई है नई संसद

नई दिल्ली 27 मई: देश की नई संसद का उद्घाटन से पहले वीडियो आ गया है। विहंगम और बेहतरीन नजारे वाली संसद का वीडियो भी बेहद जबरदस्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नई संसद का उद्घाटन करने वाले हैं। इस वीडियो में संसद के गेट से लेकर लोकसभा और राज्यसभा में बैठने से लेकर इसकी नक्काशी तक का वीडियो है। हालांकि, नई संसद के उद्घाटन पर पक्ष और विपक्ष में घमासान मचा है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल नई संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं।
नई संसद की छत पर अशोक स्तंभ शान से लगा है। गेट पर सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। 4 मंजिला इस भवन में हरियाली का भी खास ध्यान रखा गया है। नई संसद करीब ढाई साल के रिकॉर्ड वक्त में बनकर तैयार हुआ है।

कहां बैठेंगे प्रधानमंत्री  मोदी

संसद में स्पीकर के दायीं तरफ सत्ता पक्ष के लिए होता है, वहीं बायीं तरफ वाला हिस्सा विपक्ष का होता है। पुरानी संसद की तरह ही लोकसभा की सीटें यहां भी हरी हैं जबकि राज्यसभा की लाल। नई संसद का निर्माण पुरानी संसद भवन के ठीक बगल में किया गया है। लोकसभा में स्पीकर के बैठने के ठीक ऊपर अशोक चक्र लगा हुआ है। नई लोकसभा में सेंट्रल हॉल नहीं है। लोकसभा में बेहतरीन कालीन बिछा हुआ हैं ।

मोदी का ट्वीट

नई संसद का वीडियो आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से नई संसद के वीडियो को सम्मान से जोड़ दिया है। मोदी ने ट्वीट किया है कि नई संसद भवन सभी भारतीय को गर्व से भर देगा। इस वीडियो के जरिए इस खूबसूरत इमारत की तस्वीरें दिखती हैं। मैं सभी से खास आग्रह करता हूं कि इस वीडियो अपनी आवाज में शेयर करें। मैं उसमें से कुछ वीडियो को रीट्वीट करूंगा। हैशटैग #MyParliamentMyPride का यूज करना नहीं भूले।

राज्यसभा बड़ा और विहंगम

राज्यसभा में भी सभापति के आसन के ऊपर अशोक चक्र लगा हुआ है। राज्यसभा में लाल कालीन का इस्तेमाल किया गया है। राज्यसभा में दो बड़े स्क्रीन लगे हुए हैं जबकि स्पीकर के ठीक सामने राज्यसभा के अधिकारियों के बैठने की जगह है। नई संसद अत्याधुनिक है। हर सीट पर सांसदों के लिए स्क्रीन लगी हुई है।

गौरतलब है कि संसद सदस्यता हुकूमत से भारत को सत्ता हस्तांतरित किए जाने का प्रतीक था। लेकिन कांग्रेस ने दावा किया है कि इसका कोई सबूत नहीं है। कांग्रेस ने यह दावा भी किया कि इस रस्मी ‘राजदंड’ को तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। कई मंत्रियों ने टाइम्स की 1947 की रिपोर्ट शेयर की है।

देश की आजादी से ठीक पहले की शाम हिंदू रीति-रिवाज से क्या-क्या हुआ था? अब यह खंगाला जा रहा है। सरकार ने सेंगोल का ‘राज’ खोला है, कांग्रेस इसे झूठा दावा बता रही है। आज सुबह जयराम रमेश ने व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला तंज कसा तो गृह मंत्री अमित शाह ने कह दिया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है। सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी हुई है। ऐसे में अब सरकार ने सबसे बड़े सबूत के तौर पर 25 अगस्त 1947 की TIME मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट शेयर की है। इसमें जो लिखा है उससे बहुत कुछ साफ हो जाता है। टाइम का वो आर्टिकल पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि कांग्रेस का विरोध किस बात को लेकर है। जयराम रमेश ने भाजपा पर सेंगोल के बारे में झूठी कहानी फैलाने का आरोप लगाया है। उनका साफ तौर पर कहना है कि माउंटबेटन, राजाजी और पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसे भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में मानने का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। सेंगोल (राजदंड) का इस्तेमाल सैकड़ों साल पहले चोल साम्राज्य के समय होता था।अब पढ़िए टाइम मैगजीन की वो रिपोर्ट, जिसे केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रूफ के तौर पर दिखाया है।

टाइम मैगजीन की ग्राउंड रिपोर्ट

‘जैसे ही बड़ा ऐतिहासिक दिन करीब आता गया, भारतीयों ने अपने-अपने ईश्वर को धन्यवाद देना शुरू किया और विशेष पूजा प्रार्थना, भजन आदि सुनाई देने लगे… भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने से पहले शाम को जवाहरलाल नेहरू धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त रहे। दक्षिण भारत में तंजौर से मुख्य पुजारी श्री अंबलवाण देसिगर स्वामी के दो प्रतिनिधि आए थे। श्री अंबलवाण ने सोचा कि प्राचीन भारतीय राजाओं की तरह, भारत सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के रूप में नेहरू को पवित्र हिंदुओं से सत्ता का प्रतीक और अथॉरिटी हासिल करनी चाहिए। पुजारी के प्रतिनिधि के साथ भारत की विशिष्ट बांसुरी की तरह के वाद्य यंत्र नागस्वरम को बजाने वाले भी आए थे। दूसरे संन्यासियों की तरह इन दोनों पुजारियों के बाल बड़े थे और बालों में कंघी नहीं की गई थी… उनके सिर और सीने पर पवित्र राख थी… 14 अगस्त की शाम को वे धीरे-धीरे नेहरू के घर की तरफ बढ़े…।

एक संन्यासी ने नेहरू को सुनहरा राजदंड दिया

पुजारियों के नेहरू के घर पहुंचने के बाद नागरस्वम बजता रहा। इसके बाद उन्होंने पूरे सम्मान के साथ घर में प्रवेश किया। दो युवा उन्हें बड़े पंखे से हवा दे रहे थे। एक संन्यासी ने पांच फीट लंबा सोने का राजदंड लिया हुआ था। इसकी मोटाई 2 इंच थी। उन्होंने तंजौर से लाए पवित्र जल को नेहरू पर छिड़का और उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाया। इसके बाद उन्होंने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और उन्हें गोल्डन राजदंड सौंप दिया। उन्होंने नेहरू को पके हुए चावल भी दिए, जिसे तड़के दक्षिण भारत में भगवान नटराज को अर्पित किया गया था। वहां से प्लेन से दिल्ली लाया गया था।

इसके बाद शाम में नेहरू और दूसरे लोग संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के घर गए। वापस आने पर चार केले के पौधे लगाए गए। यह अस्थायी मंदिर के खंभे के तौर पर लगाया गया। पवित्र अग्नि के ऊपर हरी पत्तियों की छत तैयार की गई और ब्राह्मण पुजारी शामिल हुए। हजारों महिलाओं ने भजन गाए। संविधान तैयार करने वाले और मंत्री बनने जा रहे लोग पुजारी के सामने से गुजरे और उन्होंने पवित्र जल छिड़का। बुजुर्ग महिला ने प्रत्येक पुरुष के माथे पर लाल टीका लगाया। भारत के शासक शाम को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में थे। 11 बजे वे संविधान सभा हॉल में इकट्ठा हुए… नेहरू ने एक प्रेरक भाषण दिया- आधी रात के इस पहर में जब दुनिया सो रही है…।’

इस तरह से देखें तो केंद्रीय मंत्री ने जो आर्टिकल शेयर किया है उसके पहले हिस्से में सेंगोल नेहरू को दिए जाने का जिक्र तो है लेकिन स्पष्टता न होने के कारण कांग्रेस प्रश्नचिन्ह लगा रही है।

सेंगोल का सच क्या है? 19? चुनावी फायदे के लिए, राजनीतिक फायदे के लिए डर का माहौल

 

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सेंगोल का सच क्या है? 1947 की वो कहानी फर्जी बता कांग्रेस ने मांगा प्रूफ, शाह बोले- भारत की संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है

नई संसद में देश का ‘राजदंड’ सेंगोल, सदियों पुरानी है कहानी

इस समय देश में सेंगोल प्रतीक पर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। 2600 साल पुराना इतिहास और चोल वंश की परंपरा का जिक्र करते हुए सरकार ने 14 अगस्त 1947 की रात की एक घटना बताई और कहा कि तमिलनाडु के पुरोहितों ने सेंगोल को सत्ता ट्रांसफर के प्रतीक के तौर पर नेहरू को इसे सौंपा था। हालांकि कांग्रेस ने इसे झूठ बताया है।

नई दिल्ली 27 मई: नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विवाद पहले से चल रहा था, अब सेंगोल कनेक्शन ने नया ऐंगल जोड़ दिया है। सरकार ने शॉर्ट फिल्म जारी की और नेहरू का जिक्र कर सत्ता हस्तांतरण में सेंगोल की महत्ता समझाई। सोशल मीडिया से लेकर टीवी स्टूडियो तक की डिबेट में सेंगोल का जिक्र हो रहा है। उधर, 28 मई के कार्यक्रम का बहिष्कार कर चुकी कांग्रेस ने सेंगोल खुलासे पर सरकार को घेरा है। पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि नई संसद को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की झूठी कहानियों से पवित्र किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस ने दावे ज्यादा किए और तथ्य कम रखे हैं। एक न्यूज आर्टिकल का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए जयराम ने 4 बातें कही हैं। वह लिखते हैं कि तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा एक शाही राजदंड की बात कही गई थी और मद्रास शहर में तैयार कर अगस्त 1947 में नेहरू को भेंट की गई थी।
दूसरे पॉइंट में जयराम ने साफ कहा, ‘इस बात के कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हैं कि माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू ने इस राजदंड को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना था। इस बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वे सब फर्जी हैं। यह कुछ लोगों के दिमाग की उपज है और अब उसे फैलाया जा रहा है।’ सरकार और भाजपा के नेता यह कहकर आलोचना कर रहे हैं कि इतने महत्वपूर्ण प्रतीक को संग्रहालय में रखकर भुला दिया गया। इस पर जयराम ने लिखा कि राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय में सबको देखने के लिए रखा गया था। 14 दिसंबर 1947 को नेहरू ने क्या कहा था, वह पब्लिक डोमेन में है। कांग्रेस नेता ने एक पेज का स्क्रीनशॉट शेयर किया है जिसमें कहा गया है कि मैं भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करता हूं।

कांग्रेस ने निकाला तमिलनाडु राजनीतिक कनेक्शन

चौथे पॉइंट में जयराम ने लिखा है कि राजदंड का इस्तेमाल प्रधानमंत्री और उनके समर्थक तमिलनाडु में अपने राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह ऐसी ब्रिगेड है जो अपने विकृत उद्देश्यों के हिसाब से तथ्यों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है। आखिर में उन्होंने कहा कि असली सवाल यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नई संसद के उद्घाटन कार्यक्रम में क्यों बुलाया नहीं जा रहा है? नई संसद में सेंगोल की स्थापना की घोषणा के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चेन्नई में कहा था कि यह तमिलनाडु के लिए गर्व की बात है। न्यूज रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे बड़ा तथ्य इस बारे में एक ब्लॉग पोस्ट को बताया गया है जिसे प्रसिद्ध एक तमिल लेखक ने लिखा था।

चर्चा शुरू हुई तो भारत के पहले भारतीय गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी के परपोते सी. आर. केसवन सामने आए। उन्होंने चेन्नई में प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने इस पवित्र राजदंड सेंगोल को फिर से जीवंत किया है। उन्होंने कहा कि 1947 में जब आजादी नजदीक थी तब राजगोपालाचारी ने नेहरू को बताया था कि यह प्राचीन परंपरा है कि जब सत्ता का हस्तांतरण होता है तब पवित्र राजदंड सेंगोल को मुख्य पुजारी नए राजा को देते हैं और यही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह राजदंड पहले माउंटबेटन को दिया गया। बाद में पुजारी ने इसे गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को दे दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। इसके बार में किसी को नहीं पता था। उन्होंने यह भी कहा कि इस राजदंड को संग्रहालय में यह कहकर रख दिया गया कि यह एक गोल्डन वॉकिंग स्टिक है जो नेहरू को दी गई थी।

सरकार के जारी वीडियो में 96 साल के वुम्मिडी इत्तिराजुलु और वुम्मिडी सुधाकर को दिखाया गया है। इत्तिराजुलु कहते हैं, ‘अधीनम की ओर से कहा गया था कि इसे बनाना है। किसी ने कहा था। उन्होंने हमें ड्रॉइंग्स दिखाई। यह गोल चीज थी। एक लंबा दंड था। वैसा ही बनाना था। इसे महत्वपूर्ण जगह पर रखना था। ऐसे में उच्च क्वॉलिटी का बनना था। उन्होंने ऑर्डर दिया था कि इसे सिल्वर का बनाया जाए, उस पर सोने की परत चढ़ाई जाए। इसके बनाने के काम में शामिल होकर मैं काफी खुश था।’

शाह बोले, कांग्रेस को इतनी नफरत क्यों है

सरकार ने टाइम मैगजीन का दिया सबूत

कांग्रेस ने इसे वॉकिंग स्टिक मान लिया

जयराम के सवाल उठाने के बाद सरकार के सूत्रों ने तमिल धार्मिक साहित्य को सबूत के तौर पर सामने रखा है जिसमें कहा गया है कि सेंगोल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सौंपा गया था। उस समय टाइम मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट में भी सेंगोल को लेकर जानकारी सामने आई थी। गृह मंत्री अमित शाह ने भी आज ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा कि कांग्रेस पार्टी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है। तमिलनाडु के पुरोहित ने पंडित नेहरू को पवित्र सेंगोल सौंपा था। यह भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक था लेकिन इसे ‘वॉकिंग स्टिक’ बताकर संग्रहालय में रख दिया गया था।

जयराम ने जिस रिपोर्ट को शेयर किया है उसमें कहा गया है कि 25 अगस्त 1945 को टाइम मैगजीन में प्रकाशित हुआ था कि मुख्य पुजारी ने सेंगोल को सत्ता का प्रतीक बताया था लेकिन यह नहीं लिखा है कि नेहरू ने ऐसा किया था। किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में भी ऐसा ही लिखा है। डॉ. आंबेडकर की किताब ‘थॉट्स ऑन लिग्विंस्टिक स्टेट्स’, पेरी एंडरसन की किताब द इंडियन आइडियोलॉजी और यास्मीन खान की ग्रेट पार्टिशन सब में इस बात की आलोचना की गई थी जिस तरह से धार्मिक समारोह में नेहरू ने हिस्सा लिया था लेकिन किसी ने सत्ता के ट्रांसफर के प्रतीक के तौर पर सेंगल की बात नहीं की।

सरकार ने तैयार किया है वीडियो

अखिलेश का व्यंग्य

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण (एक-हाथ से दूसरे हाथ में जाने) का प्रतीक है… लगता है भाजपा ने मान लिया है कि अब सत्ता सौंपने का समय आ गया है। सोशल मीडिया पर भी डिबेट छिड़ी हुई है। कई लोगों ने लिखा है कि भारत का राजचिह्न, अशोक के सिंह-स्तंभ की अनुकृति है। इसमें चार सिंह हैं, जो एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं। फिर सेंगोल का विचार कहां से और क्यों लाया जा रहा है। कितने प्रतीक चिन्ह होंगे?

 

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