अनुच्छेद 370 पर राकेश द्विवेदी ने कहा क्या जो वायरल है? पढ़ा दिया नये सिरे से इतिहास

While Arguing In Supreme Court On Article 370 The Lawyer Turned Those Pages Of History That All The Judges Kept Listening Silently
आर्टिकल 370 पर सुप्रीम कोर्ट में वकील ने इतिहास का वो पन्ना पलट दिया कि सभी जज चुपचाप सुनते रह गए, वायरल हुआ वीडियो
देश आजाद हो गया, लेकिन उन्हीं अंग्रेजों को गवर्नर जनरल से लेकर सेना प्रमुख तक बनाए रखा गया जिन्होंने भारत के दो टुकड़े कर दिए थे। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम लिए बिना वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 पर ऐसी दलीलें दी कि पूरी पीठ चुपचाप सुनती रही।
मुख्य बिंदु
सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 का विरोध कर रहे वकील राकेश द्विवेदी के जबर्दस्त तर्क
वरिष्ठ वकील ने उस वक्त के कश्मीर के हालात का जिक्र किया और नेहरू की गलतियां बताईं
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी अंग्रेजों को सम्मान दिया लेकिन वो भारत के खिलाफ ही गये
नई दिल्ली 05 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर को राज्य के दर्जे की वापसी की मांग वाली याचिकाओं पर जारी बहस के दौरान एक से बढ़कर एक दलीलें दी जा रही हैं। सभी पक्ष उस वक्त की परिस्थितियों की अपनी-अपनी दृष्टि से व्याख्या कर रहे हैं। अनुच्छेद 370 के पक्षधर बता रहे हैं कि कैसे उस वक्त के गैर-मामूली हालात में जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करवाया गया और कैसे उसके लिए संविधान में किए गए विशेष प्रबंधों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसके जवाब में भी जोरदार तर्क दिए जा रहे हैं- इतिहास के पन्नों से ही।

याचिका का विरोध कर रहे एक वकील राकेश द्विवेदी की एक बहस का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वो बता रहे हैं कि कैसे भारत ने आजादी के वक्त ऐतिहासिक गलतियां कीं।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी अपनी दलील में कहते हैं, ‘हम सच्चाई के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर कौन था, औचिनलेक। भारत के तीनों जनरल ब्रिटिश थे। पाकिस्तान के तीनों जनरल ब्रिटिश थे। यह युद्ध (कश्मीर पर पाकिस्तान की तरफ से हमला) क्या था? चर्चिल ने ही तय किया था कि भारत का विभाजन होगा। यह जियो-पॉलिटिक्स का खेल था सब। यह युद्ध एक ब्रिटिश युद्ध था। उन्होंने दोनों तरफ से इसकी तैयारी की थी। हमलावर कहां से आए थे? उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) से। दो कार्यकालों के बाद मिस्टर कनिंघम, जो उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के गवर्नर रह चुके थे, उन्हें जुलाई में वापस बुलाया गया। चुनाव से ठीक पहले।’

द्विवेदी ने उस वक्त की परिस्थितियां बताते हुए आगे कहा, ‘हमलावर प्रशिक्षित किये गये, सेना के हथियारों के साथ ट्रकों पर भेजा गया। पाकिस्तान की सेना भारत से अभी-अभी अलग हुई थी। और सबसे बड़ा, सबसे स्पष्ट उदाहरण है, कौन लड़ रहा था? आज पीओके क्या है? पीओके का दो-तिहाई हिस्सा गिलगित-बााल्टिस्तान है। और वहां किसने युद्ध लड़ा? हमलावरों ने नहीं। लड़ा मेजर ब्राउन । वहां का एजेंट कौन था? उन्हें कनिंघम ने ठीक उसी जुलाई में दोबारा पोस्ट किया था। उन्होंने महाराजा (हरि सिंह) के सभी फोर्सेज को मार डाला। वहां तैनात अंसार अहमद गिरफ्तार कर लिये गये थे। उन्होंने चार दिनों में पाकिस्तान का झंडा लहरा इसे कनिंघम को सौंप दिया। उन्होंने पाकिस्तान की सेना आलम के पास भेजी और उन्होंने गिलगित-बल्तिस्तान पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान के साथ युद्ध कहाँ था? वो तो ब्रिटिश था। लेकिन अगर हम इन सब से आंखें मूंद लेते हैं।’
वो कहते हैं, ‘भला ये हमलावरों का युद्ध है? हमलावर अपने आप श्रीनगर तक नहीं आ सकते थे। युद्ध लगभग कारादु और कारगिल से लेकर लेह के करीब तक पहुंच गया था। तो यह एक अलग तरह का युद्ध था, लेकिन कोई नहीं कह सकता था क्योंकि माउंटबेटन वहां गवर्नर जनरल के रूप में थे। पता नहीं हमारे नेताओं ने ऐसा क्यों किया? जिन्ना ने तो साफ कहा, मैं किसी भी ब्रिटिश गवर्नर-जनरल को स्वीकार नहीं करूंगा। लेकिन हमारे यहां कहा गया, नहीं, हमें गवर्नर जनरल स्वीकार हैं। तो यह युद्ध क्या है? यही नहीं, जब युद्ध शुरू हुआ, तो उन्होंने (नेहरू सरकार ने) एक डिफेंस कमिटी का गठन किया और माउंटबेटन को इसका अध्यक्ष बनाया दिया। तो यह एक गजब की स्थिति है’

वरिष्ठ वकील आगे कहते हैं, ‘ऑचिनलेक सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं। सभी जनरल ब्रिटिश हैं और एक ब्रिटिशर विद्रोह कर रहा है और जब वह इंग्लैंड लौटता है तो उसे ब्रिटिश साम्राज्य का पदक दिया जाता है। तो यह युद्ध की स्थिति नहीं है। इसलिए जब आप संविधान और 370 को पढ़ते हैं, तो कृपया इन बातों को ध्यान में रखें कि हमारे नेता किन परिस्थितियों में कैसे आगे बढ़ रहे थे। हमारी हमलावरों को पीछे धकेलने और अपनी जमीन वापस पाने की चाहत ही नहीं थी। उन्होंने एक समय पर जानबूझकर युद्ध रोक दिया और संयुक्त राष्ट्र चले गए क्योंकि अगर हम मीरपुर तक और पीछे चले गए होते तो वह गिलगित-बल्तिस्तान से कनेक्शन टूट जाता।’

राकेश द्विवेदी ने अपनी बहस जारी रखते हुए कहा, ‘ये सभी सच्चे तथ्य हैं। कोई भी इसे नकार नहीं सकता। और संयुक्त राष्ट्र क्या था? वही शक्ति जो जियो पॉलिटिक्स की वजह से भारत का विभाजन करना चाहती थी, अमेरिका और ब्रिटेन, उन्हें मध्यस्थ बनाया गया था। सौभाग्य से, पाकिस्तान ने पीओके खाली करने से इनकार कर दिया। इसलिए वह प्रस्ताव खत्म हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के बारे में बात करने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन उस समय 370 के निर्माण में स्थिति की गंभीरता को देखें।’

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