‘किसान’ आंदोलन में दक्षिण के किसान क्यों नहीं हैं?

MSP की गारंटी’ वाले आंदोलन से क्यों दूर हैं साउथ इंडिया के किसान संगठन? समझिए
: एमएसपी की लीगल गारंटी समेत कई मांगों को लेकर किसान फिर से सड़कों पर हैं. इसमें ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान हैं. दावे हैं कि इन आंदोलनों से दक्षिण भारत के किसान दूरी रखते हैं,लेकिन क्या ऐसा सच में है? और इसका कारण क्या है?
नई दिल्ली,22 फरवरी 2024। राजधानी दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर पंजाब और हरियाणा में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान दिल्ली पहुंचने की कोशिश में हैं, तो पुलिस और सुरक्षाबलों ने भी उन्हें रोकने की पूरी तैयारी की है.

फिलहाल, किसानों ने अपने ‘दिल्ली चलो मार्च’ को दो दिन को टाल दिया है. ये फैसला खनौरी बॉर्डर पर एक युवक की मौत बाद हुआ है.

प्रदर्शन करते किसानों की कई मांगें हैं. इनमें सबसे बड़ी मांग एमएसपी पर कानूनी गारंटी की है. एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य किसी फसल की कम से कम कीमत होती है. सरकार एमएसपी पर किसानों से फसल खरीदती है.
किसान संगठनों का दावा है कि सरकार ने उनसे एमएसपी की गारंटी पर कानून लाने का वादा किया था.लेकिन अब तक पूरा नहीं किया.

मौजूदा प्रदर्शन किसानों के दो संगठन- संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनैतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में हो रहा है.ये पंजाब और हरियाणा के हैं. आंदोलन को राकेश टिकैत की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भारतीय किसान यूनियन का साथ भी मिल सकता है.

इससे पहले तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में भी मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दे दावा किया था कि दक्षिण भारत के किसान कृषि कानूनों के साथ हैं और वो इस आंदोलन में नहीं हैं. हालांकि, तब ऐसी कई खबरें आई थीं, जिसमें दावा था कि दक्षिण भारत के किसान भी तीन कृषि कानून विरोधी आंदोलन में शामिल हुए थे.

क्या दक्षिण के किसान आंदोलन में शामिल नहीं?

कुछ दिन पहले तमिलनाडु के थंजावुर रेलवे स्टेशन पर 100 से ज्यादा किसानों को गिरफ्तार किया गया था. ये किसान दिल्ली में किसान आंदोलन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई से नाराज थे. उन्होंने थंजावुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोकने की कोशिश की थी.

इससे पहले कर्नाटक और तमिलनाडु के कई किसान भी दिल्ली की ओर रवाना हुए थे. लेकिन उन्हें बीच में ही रोक दिया गया. संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया था कि कर्नाटक के करीब 100 किसानों को भोपाल स्टेशन में रोक लिया गया था. ये किसान 13 फरवरी को दिल्ली चलो मार्च में शामिल होने आ रहे थे.
अगर इन्हें छोड़ दिया जाए तो दक्षिण भारत का कोई बड़ा किसान संगठन इस आंदोलन में सक्रिय रूप से फिलहाल शामिल नहीं है.

… आखिर ऐसा क्यों?

एमएसपी की मांग को लेकर दक्षिण भारत के किसानों के पुरजोर तरीके से आंदोलन में शामिल न होने का एक कारण ये माना जाता है कि गेहूं और धान की सबसे ज्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर भारत के राज्यों से होती है.

आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2022-23 में सरकार ने कुल 846.45 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद एमएसपी पर की थी.सरकार ने इस पर 1.74 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे.सरकार ने सबसे ज्यादा धान पंजाब के किसानों से खरीदा था.
पंजाब के 9 लाख से ज्यादा किसानों से 2022-23 में 182.11 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था और इसके लिए 37,514 करोड़ रुपये दिए थे.वहीं,हरियाणा के 2.82 लाख किसानों से 59.36 लाख मीट्रिक टन और उत्तर प्रदेश के 9.40 लाख किसानों से 65.50 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की थी.
इतना ही नहीं,रबी सीजन 2022-23 में सरकार ने 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर की थी,जिसमें से 70 प्रतिशत से ज्यादा खरीद पंजाब,हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों से हुई थी.
सरकार ने पंजाब के करीब 8 लाख किसानों से 121.17 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था.इसके लिए 25,748 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.जबकि,हरियाणा के सवा 3 लाख किसानों से 63.17 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी और इस पर सरकार ने 13,424करोड़ रुपये खर्च किए थे.वहीं,उत्तर प्रदेश के 81 हजार से ज्यादा किसानों से 2.20 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था.इस पर सरकार ने 468 करोड़ रुपये का खर्चा किया था.

इसके उलट, दक्षिण के पांच राज्यों- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के किसानों से 214.34 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था. जो कुल धान की खरीद का 25 फीसदी है. वहीं, दक्षिण के किसी भी राज्य से सरकार एमएसपी पर गेहूं की खरीद नहीं करती है.

एक कारण ये भी!

इसकी एक दूसरा कारण उत्तर और दक्षिण में फसलों का पैटर्न भी अलग-अलग है. दक्षिण भारत के राज्यों में गन्ना, धान, कॉफी, सुपारी, दालें, काली मिर्च और इलायची जैसी फसलों की खेती होती है. इसमें धान छोड़ दें बाकी फसलें ऐसी हैं जिनपर एमएसपी का कोई फर्क नहीं पड़ता.

इतना ही नहीं, दक्षिण के राज्यों में ज्यादातर किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों में बेच देते हैं. यहां उन्हें एमएसपी से ज्यादा दाम मिल जाता है. इसके अलावा कॉफी बोर्ड और राज्य सरकारें भी एमएसपी से ज्यादा कीमत पर किसानों से फसल खरीदती हैं.

इसके अलावा, अगर सूखा या बाढ़ की स्थिति बनती है और फसलों को नुकसान पहुंचता है तो यहां की राज्य सरकारें किसानों के लिए मुआवजे की व्यवस्था भी करती हैं. उनके ऋण भी माफ कर दिए जाते हैं. हाल ही में कर्नाटक सरकार ने 2024-25 का बजट पेश किया है, जिसमें ‘रायथा समृद्धि’ योजना शुरू की गई है. इसमें 57 हजार किसानों के कर्ज पर ब्याज को माफ किया जाएगा.

चार दौर की बातचीत रही है परिणामहीन

किसान संगठनों का मौजूदा आंदोलन लगभग दो हफ्ते से जारी है. किसानों एमएसपी पर लीगल गारंटी तो मांग ही रहे हैं. साथ ही उनकी और भी कई मांगें हैं.

अब तक किसान नेताओं और सरकार के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है. 18 फरवरी को चौथे दौर की बातचीत हुई थी. इसमें सरकार ने एक नया प्रस्ताव रखा था, लेकिन किसानों ने इसे मानने से मना कर दिया था.
फिलहाल, बुधवार को खनौरी बॉर्डर पर एक युवक की मौत के बाद किसानों ने दिल्ली कूच को दो दिन को टाल दिया है. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने बताया कि शुक्रवार शाम  बैठक होगी, जिसमें आगे की रणनीति तय होगी.

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