ज्ञानवापी शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं , सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आया फैसले में आड़े

ज्ञानवापी में कार्बन डेटिंग की मांग खारिज, सवाल अभी भी वही- शिवलिंग है या फव्वारा? जानिए आगे क्या हैं रास्ते

Gyanvapi Masjid Carbon Dating Issue: ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने के मामले में वाराणसी कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। इस मामले में कोर्ट ने हिंदू पक्ष के एक धड़े की अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ज्ञानवापी शिवलिंग की कार्बन डेटिंग नहीं होगी।

हाइलाइट्स
1-जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने से किया इनकार
2-कोर्ट ने हिंदू पक्ष की ओर से दायर याचिका को किया खारिज, बताया हो सकता है नुकसान
3-कोर्ट ने शिवलिंग पर पड़ने वाले प्रभाव को याचिका के खारिज किए जाने को बताया है आधार
4-हिंदू पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट में मामले को उठाने की तैयारी कर रही, शिवलिंग पर अधिकार की मांग

लखनऊ 14 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश में गरमाए ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में शुक्रवार को महत्वपूर्ण मोड़ आया। वाराणसी कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए हिंदू पक्षकारों की ओर से मस्जिद परिसर के वजूखाने में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कार्बन डेटिंग की मांग को नहीं माना जा सकता है। मुस्लिम पक्ष इसे अपनी जीत के रूप में पेश कर रहा है। लेकिन, क्या यह किसी पक्ष की जीत है? क्या हिंदू पक्ष की हार है? इस पर विधि विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। वकीलों का कहना है कि ऐसा तो बिल्कुल नहीं है कि यह किसी भी पक्ष की जीत है। हिंदू पक्ष की ओर से भी शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग के खिलाफ आवाज उठाई जा रही थी। याचिकाकर्ता राखी सिंह ने कार्बन डेटिंग के कारण शिवलिंग को नुकसान पहुंचने की आशंका को लेकर कोर्ट से बाहर तक इसका विरोध किया था। ऐसे कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वह किसी के खिलाफ नहीं है। फिर भी आज के समय में सवाल वही बरकरार है, ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखान में मिली आकृति शिवलिंग है या फव्वारा। यह कैसे तय होगा? कहां से तय होगा? क्या हिंदुओं को शिवलिंग की पूजा का अधिकार मिलेगा? ये सारे सवाल वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद भी बरकरार हैं। हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहा है।

क्या आया है आदेश?

वाराणसी जिला एवं सत्र न्यायालय में जिला जज डॉक्टर अजय कुमार विश्वेश की अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला देते हुए शिवलिंग के कार्बन डेटिंग कराने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। जिला जज अजय सिंह विश्वेश की कोर्ट ने कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज करते हुए कहा कि 16 मई को जिस स्थान पर शिवलिंग मिला था, उसे सील करने का आदेश दिया गया था, वह आदेश बरकरार रहेगा। यानी, शिवलिंग का स्थल वजूखाना अभी सील ही रहेगा। कार्बन डेटिंग के संबंध में कोर्ट ने कहा कि वैज्ञानिक जांच के दौरान टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने या ग्राउंड पेनिनट्रेटिंग रडार के प्रयोग करने से कथित शिवलिंग को क्षति पहुंच सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई के आदेश में शिवलिंग को सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। ऐसे में यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा। अगर कथित शिवलिंग को कोई नुकसान पहुंचता है तो इससे आम लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस लग सकती है।

कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि तमाम स्थितियों को देखते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग को सर्वे सर्वे से संबंधित निर्देश दिया जाना उचित नहीं होगा। ऐसा आदेश देने के बाद इस केस में निहि सवालों के न्यायपूर्ण समाधान की कोई संभावना नहीं दिखती है। इसलिए कोर्ट ने इस प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया है कि ज्ञानवापी मस्जिद की कार्बन डेटिंग नहीं होगी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस केस में दोनों पक्षों के पास विकल्प क्या है? क्योंकि, कोर्ट ने शिवलिंग के अस्तित्व को किसी भी स्थिति में खारिज नहीं किया है।

हिंदू पक्ष क्या कह रहा है?

हिंदू पक्ष की ओर से मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। हिंदू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि हमारे लिए यह कोई झटका नहीं है। हम जल्द से जल्द वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके मामले का हल निकालना चाहते हैं। यह साफ होना चाहिए कि मिली आकृति ‘शिवलिंग’ है या कोई फव्वारा। यह वैज्ञानिक जांच से ही साबित होगा। जिला कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का संदर्भ दिया है, इसलिए हम सीधे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और इस आदेश को चुनौती देंगे। वहीं, ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील विष्णु जैन ने कहा कि कोर्ट ने कार्बन डेटिंग की मांग की हमारी मांग को खारिज कर दिया है। हम इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और वहां इसे चुनौती देंगे। मैं अभी तारीख की घोषणा नहीं कर सकता, लेकिन हम जल्द ही इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।

अब मांग शिवलिंग के पूजा के अधिकार की

वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की वैधता पर कोई सवाल नहीं उठाए हैं। केवल कार्बन डेटिंग की मांग को खारिज किया है। इसका आधार 17 मई को सुप्रीम कोर्ट का आदेश बनाया गया है। दरअसल, 16 मई को वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजुखाने में मिले कथित शिवलिंग के इलाके को सील करने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी विवादित स्थल को सुरक्षित रखने का आदेश दिया था। ऐसे में निचली अदालत ने ताे इस मामले में अपना पक्ष साफ कर दिया है। अब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंच सकता है। वैसे भी अगर कार्बन डेटिंग के पक्ष में भी फैसला आता तो इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाता ही। ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट के पास ही पहुंचने वाला है। वहां के आदेश के साथ हिंदू पक्ष पूजा का अधिकार की भी मांग शुरू कर सकता है।

ज्ञानवापी केस में अब तक क्या-क्या हुआ

1991: पहली बार कोर्ट में मुकदमा दायर कर पूजा की इजाजत मांगी गई।
1993: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया।
2018: सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर की वैधता 6 महीने की बताई।
2019: वाराणसी कोर्ट में पांच महिलाओं की ओर से दायर मामले पर फिर सुनवाई शुरू हुई।
2021: फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी।
26 अप्रैल 2022: वाराणसी कोर्ट ने अजय मिश्रा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी मस्ज़िद प्रांगण में श्रृंगार गौरी मंदिर का सर्वे करने के आदेश दिया।
6 मई 2022: कोर्ट कमिश्नर ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम शुरू किया।
7 मई 2022: मस्जिद पक्ष ने कोर्ट में याचिका दायर कर कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा की निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
12 मई 2022: कोर्ट ने अजय मिश्रा को हटाने से मना कर दिया। सर्वे के लिए दो और कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए दिए।
14 मई 2022: कोर्ट की ओर से नियुक्त सर्वे कमीशन ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे शुरू किया।
16 मई 2022: हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग होने का दावा किया। मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया।
16 मई 2022: वाराणसी कोर्ट ने वजूखाने को सील करने का आदेश दिया।
19 मई 2022: कोर्ट कमीशन ने ज्ञानवापी मस्जिद की सर्वे रिपोर्ट वाराणसी कोर्ट में दाखिल की।
19 मई 2022 : मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट ने श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की याचिका पर सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी कोर्ट को 20 मई तक इस याचिका पर सुनवाई टालने का आदेश दिया।
20 मई 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी ज़िला जज को श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की याचिका सुनने योग्य है या नहीं, इस पर फैसला देने का आदेश दिया। इसके लिए वाराणसी कोर्ट को आठ सप्ताह का समय दिया गया।
24 अगस्त 2022: वाराणसी कोर्ट में माता श्रृंगार गौरी के दैनिक पूजन से संबंधित याचिका के पोषणीयता मामले की सुनवाई पूरी हुई।
12 सितंबर 2022: वाराणसी कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज की। कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा करने की याचिका सुनने योग्य है।
22 सितंबर 2022: हिंदू पक्ष के पांच में चार पक्षकारों ने वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से कार्बन डेटिंग या वैज्ञानिक जांच कराने की मांग की।
11 अक्टूबर: वाराणसी कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
14 अक्टूबर: वाराणसी जिला जज की कोर्ट ने ज्ञानवपी मस्जिद के वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग खारिज कर दी गई।

VaranasiIs There Shivling Or Fountain In Gyanvapi Even After The Verdict Of Varanasi Court Question Remains

ज्ञानवापी पर फैसलाः ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग पर हिंदू पक्ष में ही 2 सुर,आखिर किस बात का है विरोध,समझिए

Gyanvapi Shringar Gauri Dispute: ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मामले में शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग हिंदू पक्ष के 4 याचिकाकर्ताओं की तरफ से की गई है। वहीं मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष की मुख्य वादी राखी सिंह की तरफ से विरोध किया गया है। आखिर ये पूरा मामला है क्या और कार्बन डेटिंग से कौन सी बातें मालूम हो जाती हैं। इसे लेकर हिंदू पक्ष में ही दो फाड़ क्यों हो गया है, आइए समझते हैं हर एक बात।

कार्बन डेटिंग होती क्या है?

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजुखाने में मिले शिवलिंग का कार्बन डेटिंग (Carbon Dating of Shivling) कराए जाने की मांग की गई है। इसके जरिए शिवलिंग की उम्र का पता लगाया जाना है। हालांकि हिंदू पक्ष में ही दो तरह के सुर उठने लगे हैं। आखिर कार्बन डेटिंग क्या होती है? शिवलिंग में यह परीक्षण कराये जाने से कौन सी बातें स्पष्ट हो सकती हैं? और इस एक मुद्दे को लेकर हिंदू पक्ष में ही दो फाड़ कैसे हो गया, आइए समझते हैं हर एक पहलू।

सबसे पहले कोर्ट के आदेश पर ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराया गया था। सर्वे के दौरान मस्जिद के वजू खाने में एक शिवलिंग नुमा आकृति मिली थी, जिसे हिंदू पक्ष ने आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग बताया था। वहीं मुस्लिम पक्ष इसे फव्वारा बता रहा था। श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन मामले में कुल 5 वादी महिलाएं हैं, जिनमें से चार वादी महिलाओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने सर्वे के दौरान वजू खाने में मिले शिवलिंग के कार्बन डेटिंग की मांग के लिए याचिका दी थी। इस पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। हालांकि मुख्य वादी राखी सिंह के वकील की तरफ से इसका विरोध किया गया है।

हिंदू पक्ष की मुख्य वादी का विरोध

कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर दी गई याचिका के खिलाफ हिंदू पक्ष की ही मुख्य वादिनी राखी सिंह के वकील की तरफ से इसका विरोध किया गया। राखी सिंह के वकील ने इस प्रक्रिया में शिवलिंग के क्षतिग्रस्त होने खतरा बताया। साथ ही धार्मिक भावनाएं आहत होने का भी हवाला दिया। पिछली सुनवाई में दोनों पक्षों के बीच जमकर बहस भी हुई थी सुनवाई पूरी होने के बाद जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने इस पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मुस्लिम पक्ष की तरफ से भी कार्बन डेटिंग का विरोध किया गया है। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमिटी की तरफ से विरोध जताते हुए कहा गया कि कार्बन डेटिंग उन चीजों की होती है जो कार्बन को अवशोषित करे। पेड़-पौधों से लेकर मरे हुए इंसान और जानवर की हड्डियों की जांच की जा सकती है। लेकिन किसी लकड़ी या फिर पत्थर की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती है क्योंकि ये कार्बन को अवशोषित नहीं कर सकते हैं।

ये कार्बन डेटिंग है क्या?

दरअसल, कार्बन डेटिंग ऐसी विधि है, जिसकी सहायता से उस वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है। मान लीजिए कोई पुरातात्विक खोज की जाती है या फिर वर्षों पुरानी कोई मूर्ति मिल जाती है, तो कैसे पता चलेगा कि वह कितनी पुरानी है। कार्बन डेटिंग से उम्र की गणना की जाती है इसे अब्सल्यूट डेटिंग भी कहा जाता है। इसको लेकर भी कई सवाल है कई बार यह इससे भी सही उम्र का अंदाजा नहीं लग पाता है। हालांकि इसकी सहायता से 40 से 50 हजार साल की सीमा का पता लगाया जा सकता है।

कार्बन डेटिंग को ऐसे समझें

कार्बन डेटिंग के तरीके को ऐसे समझा जा सकता है। वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप मौजूद हैं। यह पृ्थ्वी के प्राकृतिक प्रक्रियाओं के हिस्से के रूप में होते हैं। कार्बन के यह तीन रूप हैं- कार्बन 12,कार्बन 13 और कार्बन 14। कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 की आवश्यकता होती है। इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। कार्बन 14,कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है। इसका अर्धआयुकाल 5730 साल से भी अधिक का है। वैज्ञानिकों के मुताबिक रेडियो कार्बन का जितनी तेजी से क्षय होता है,उससे 27 से 28 प्रतिशत ज्यादा इसका निर्माण होता है,जिससे संतुलन की अवस्था प्राप्त होना मुश्किल होता है।

कई देशों में होता है यूज

कार्बन डेटिंग की तकनीक का इस्तेमाल भारत ही नहीं दुनिया के अधिकतर देशों में किया जाता है। इस तकनीक की खोज 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी ने की थी। इस खोज के लिए विलियर्ड लिबी को साल 1960 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। हालांकि इसकी कुछ सीमाएं हैं। निर्जीव वस्तुओं की उम्र का आंकलन इस विधि से नहीं किया जा सकता है। अब टेराकोटा की मूर्ति की उम्र का अंदाजा इसके जरिए नहीं लगाया जा सकता है।

कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग हिंदू पक्ष के 4 याचिकाकर्ताओं की तरफ से की गई है। वहीं मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष की मुख्य वादी राखी सिंह की तरफ से विरोध किया गया है। राखी सिंह के वकील का कहना है कि उसके शिवलिंग नहीं होने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। शिवलिंग था, है और रहेगा। किसी तरह की वैज्ञानिक जांच कराए जाने की जरूरत नहीं है। कार्बन डेटिंग कराकर शिवलिंग होने के प्रति अविश्वास पैदा किया जा रहा है।

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