पीएफआई पर प्रतिबंध का स्वागत क्यों कर रहे हैं मुसलमान?

Creckdown on PFI : पीएफआई पर सरकार के ऐक्शन का समर्थन क्यों कर रहे हैं मुसलमान, कभी सोचा? यह राज जान लीजिए
कट्टर इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर सरकार ने कार्रवाइयां कीं तो कई मुसलमान संगठन समर्थन में उतर गए। ऐसा कम ही होता है कि किसी मुस्लिम संगठन पर कार्रवाई हो और मुसलमान उसका समर्थन करें। तो फिर पीएफआई पर ऐक्शन के समर्थन के पीछे क्या है राज, जान लें।

हाइलाइट्स
पीएफआई पर छापेमारियों, नेताओं की गिफ्तारियों और अब बैन का समर्थन
कई मुस्लिम संगठनों ने आगे आकर सरकार की कार्रवाइयों का समर्थन किया
पसमंदा मुस्लिम महाज से लेकर अजमेर शरीफ दरगाह तक से उठी आवाज
PFI के लोगों को Uttar Pradesh के मुस्लिमों ने दिखाया आईना, कहा- इन सब को जेल में डालो

नई दिल्ली 29 सितंबर: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर देशव्यापी छापेमारियां हुईं तो अलग-अलग मुस्लिम संगठन खुलकर समर्थन में उतर गए। कुछ संगठनों ने तो बाकयादा बयान जारी कर कहा कि पीएफआई देश में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा था और सरकार की कार्रवाई आतंकवाद को रोकने के लिए है। ऐसे कम ही मौके होते हैं जब किसी मुस्लिम संगठन पर ऐक्शन हो और मुसलमान अपनी तरफ से सक्रियता दिखाकर समर्थन में उतर जाएं। ऐक्शन तो दूर की बात, जांच-परख या सर्वेक्षण तक का भरपूर विरोध होता है। यहां तक कि संविधान और कानून के नजरिए से भी कुछ सुधारों की चर्चा छिड़े तो मुसलमानों की तरफ से जोरदार विरोध शुरू हो जाता है। फिर पीएफआई का क्या मसला है कि मुसलमान खुश हैं। या कहें तो मुसलमानों का बड़ा वर्ग कम-से-कम नाराज नहीं ही है, इसका अनुभव तो जरूर हो रहा है। यह सवाल आपके जेहन में भी कौंध रहा होगा।

पीएफआई पर ऐक्शन के समर्थन का राज समझें

दरअसल, मुसलमानों के बीच भी कई स्तर पर विभाजन है। कई फिरके हैं, कई मस्लक हैं और इनसे इतर भारत में उनकी कई जातियां भी हैं। धार्मिक स्तर पर फिरके और मस्लक हैं तो जातीय और सामाजिक स्तर पर भी अशराफ और पसमांदा का अलगाव है। भारतीय समझ और संस्कृति के लिए काम करने वाली संस्था जयपुर डायलॉग्स के संजय दीक्षित ने अपने एक यूट्यूब वीडियो में इस पर विस्तार से बात की है। इस्लामी मामलों के जानकार दीक्षित बताते हैं कि पीएफआई और उसके समर्थक वर्ग जिस इस्लाम को मानते हैं, उसके भारत और भारतीय उप-महाद्वीप में बहुत कम अनुयायी हैं। वो कहते हैं कि भारत में सूफी बरेलवी और सुन्नी देवबंदी मुसलमानों का दबदबा है। वहीं, पीएफआई वाले अहले हदीस के अनुयायी हैं। दूसरी बात ये कि पीएफआई के नेता और समर्थक ज्यादातर संख्या में अशराफ यानी उच्च जातियों से हैं, इसलिए पसमांदा महाज जैसे संगठन खुलकर उनका विरोध करते हैं। दीक्षित ने कहा, ‘मैं हमेशा कहता रहा हूं कि पीएफआई पर कार्रवाई करें, दूसरे लोग साथ नहीं आएंगे। मैं ऐसा क्यूं कहता रहा हूं? जयपुर डायलॉग्स और मेरी व्यक्तिगत जो जानकारी इस्लामी संगठनों के बारे में है, उसके आधार पर कहता हूं।’

पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई पर मुस्लिम संगठनों की युवाओं से धीरज रखने की अपील

आतंकी संगठन भी करते हैं एक-दूसरे पर हमला

वो वैश्विक आतंकी संगठनों के बीच के झगड़ों का हवाला देकर समझाते हैं। वो कहत हैं, ‘यदि आप अफगानिस्तान में देखें तो अलकायदा और तालिबान में 36 का आंकड़ा क्यों है? आईएसआईएस के आतंकी तालिबान पर हमले क्यों कर रहे हैं?’ वो आगे बताते हैं, ‘सेंट्रल एशिया और भारतीय उप-महाद्वीप में हनफी इस्लाम हैं। अरब और उसके आसपास के इस्लाम के जो फिरके या मस्लक हैं, यानी हनबली और सफाई, वो हनफियों को पसंद नहीं करते हैं। इनमें खास तौर से मुकल्लिद और गैर-मुकल्लिद का बहुत बड़ा अंतर है।’

मुकल्लिद और गैर-मुकल्लिद का अंतर जानें
संजय दीक्षित मुकल्लिद का मतलब भी बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘मुकल्लिद में कयास यानी तकलीद चलती है। इसके तहत उलेमा को यह अधिकार होता है कि वो कुरान और हदीसों से जुड़े मुद्दों की अपने हिसाब से व्याख्या करें। और वो जो भी व्याख्या करेंगे, उनके अनुयायियों पर वो फर्ज हो जाता है। यानी उलेमा ने कुरान और हदीसों की व्याख्या जिस रूप में भी की, उसके अनुयायी वही मानेंगे। लेकिन, अरब और आसपास के मुस्लिम मुमालिकों में जो इस्लाम चलता है, वहां उलेमाओं की व्याख्या को मानना फर्ज नहीं होता है। यानी उलेमा जो कहें, वही सही, यह अरब वर्ल्ड में अनिवार्य नहीं होता है। इसे वो गैर-मुकल्लिद मुसलमान हैं।’

अहले हदीस को मानते हैं पीएफआई वाले

बकौल संजय दीक्षित, भारत में भी गैर-मुकल्लिद की शाखा है जो बहुत छोटी है। इस भारतीय गैर-मुकल्लिद शाखा का नाम है- अहले हदीस। भारत में अहले हदीस का फिरका बहुत छोटा है। पीएफआई और भारत से भागे इस्लामी धर्मगुरु जाकिर नाइक इसी अहले हदीस को मानने वाले हैं। वो कहते हैं, ‘अभी दावा किया जा रहा है कि सरकार ने पहले ही मुसलमानों को साध लिया, इसलिए पीएफआई का कोई समर्थन नहीं कर रहा है बल्कि उनके खिलाफ हुई कार्वाइयों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि न देवबंदी और न बरेलवी, कोई इनका समर्थन नहीं कर रहा है। ये जान लीजिए कि दोनों मुकल्लिद हैं।’
वो आगे कहते हैं, ‘पीएफआई वाले अधिकतर अहले हदीस वाले यानी गैर-मुकल्लिद हैं। जाकिर नाइक भी यही था। जाकिर नाइक का सबसे बड़ा समर्थन पीएफआई में ही था। भारत से अलकायदा और आईएसआईएस में जाने वाले ज्यादातर पीएफआई के माध्यम से ही गए हैं।’ वो कहते हैं, ‘क्या आपने कभी सोचा कि अलकायदा और आईएसआईएस में शामिल होने के लिए ज्यादातर मुसलान केरल से ही क्यों गए जबकि वह राज्य सबसे ज्यादा शिक्षित है? यह तभी समझ पाएंगे जब आपको मुकल्लिद और गैर-मुकल्लिद का अंतर समझेंगें।

संजय दीक्षित कहते हैं, ‘तकलीद वो होते हैं अपने उलेमाओं की नकल करते हैं और जो तकलीद नहीं होते वो उलेमाओं की नहीं सिर्फ रशीदुन खलीफाओं की करते हैं। रशीदी यानी जो शुरुआती चार खलीफा हैं। गैर-मुकल्लिद उन्हीं चार खलीफाओं- अबू बक्र, उमर, उथमन या उस्मान और अली, की नकल करते हैं। उनके यहां कयास नहीं चलता है। वो इसे कयासबाजी कहते हैं जो उलेमा करते हैं। जबकि पीएफआई वालों का पूरा का पूरा भरोसा उलेमाओं पर है। इसलिए देवबंदियों और बरेलवियों का पीएफआई वालों से बिल्कुल वैचारिक अलगाव है।’

देशविरोधी है PFI, बैन लगाने के मोदी सरकार के फैसले का स्वागत है… पसमांदा मुस्लिम महाज का ऐलान

सरकार के ऐक्शन के समर्थन में उतरे मुस्लिम संगठन
अजमेर शरीफ दरगाह से भी पीएफआई के विरोध में जोरदार आवाज उठी है। दरगाह के आध्यात्मिक प्रमुख जैनुल आबेदीन अली खान ने पीएफआई पर हुई कार्रवाइयों स्वागत किया है। उन्होंने कहा, ‘देश सुरक्षित है तो हम सुरक्षित हैं, देश किसी भी संस्था या विचार से बड़ा है और अगर कोई इस देश, यहां की एकता और संप्रभुता या देश की शांति खराब करने की बात करता है, तो उसे इस देश में रहने का अधिकार नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने खुद पहली बार सरकार से दो साल पहले पीएफआई पर बैन लगाने की मांग की थी।’ संजय दीक्षित बताते हैं कि जयपुर में आधे से ज्यादा मस्जिदों पर अहले हदीस वालों ने कब्जा कर लिया है जबकि यहां उनके अनुयायियों की संख्या एक प्रतिशत भी नहीं होगी। अजमेर शरीफ दरगाह के इन बयानों के पीछे यही राज है।
संजय दीक्षित कहते हैं, ‘इसलिए इन्हें बाकी मुसलमानों का समर्थन मिल नहीं रहा है। यही वजह है कि जब छापेमारियां हुईं तो आसानी से पीएफआई नेता गिरफ्त में आ गए। दूसरी बात यह है कि पीएफआई के लगभग पूरी लीडरशिप अशराफ यानी उच्च जाति का है। इनके सारे अनुयायी भी अशराफ हैं। चूंकि ये अशराफ हैं, इसलिए पसमांदा महाज (निचली जातियों के मुसलमानों के संगठन) ने भी पीएफआई पर हुई कार्रवाई का खुलकर समर्थन किया है।’

‘PFI को बैन कर दो,ये ISIS के लिए आतंकी भर्ती करता है ‘: NIA की ताबड़तोड़ कार्रवाई का मुस्लिम संगठनों ने किया समर्थन, मोदी को पत्र भेज उठाई माँग

हसन मजीदी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर की PFI को बैन करने की माँग (फोटो साभार: Zee)

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के खिलाफ गुरुवार (22 सितंबर 2022) को हुई ताबड़तोड़ कार्रवाई का तमाम मुस्लिम संगठनों ने भी समर्थन किया है। इन संगठनों में सूफी खानकाह एसोसिएशन व ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज भी शामिल हैं। सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी ने तो पीएम मोदी को पत्र लिखकर PFI को बैन करने की माँग की है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सूफी खानकाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौसर हसन मजीदी के पत्र में पीएम मोदी से कहा गया कि पीएफआई देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है इसलिए उसे बैन कर देना चाहिए। उन्होंने, आरोप लगाते हुए कहा है पीएफआई देश के नौजवानों को भटका कर आतंकी बना रहा है और पिछले दो सालों से देश के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए ISIS (आईएसआईएस) के लिए लड़ाकों की भर्ती कर रहा है।

कौसर हसन मजीदी ने यह भी कहा कि PFI (पीएफआई) की विचारधारा देशहित में नहीं है। यह लगातार देश में जहर घोलने का काम कर रहा है। जिस संगठन की विचारधारा देश के खिलाफ हो उसे बैन कर देना ही अच्छा है। उन्होंने यह भी कहा, बैन करना पुरानी माँग रही है लेकिन केवल बैन करने से कुछ नहीं होगा बल्कि ऐसी विचारधारा के खिलाफ कुछ ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। जब तक ऐसी विचारधारा के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए जाएँगे तब तक ऐसे संगठन सामने आते रहेंगे।

वहीं, ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष परवेज हनीफ ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा, “भारत सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की संदिग्ध गतिविधियों के आधार पर ही उसके खिलाफ मामला दर्ज किया है और इसके कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज छापा मारने के सरकार के फैसले से सहमत है। यह मानते हुए कि यह देश के सर्वोत्तम हित में है। हमारा संगठन भारतीय संविधान का पूर्ण समर्थन करता है।”

प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा है “पीएफआई खुद को इस्लाम के रक्षक के रूप में पेश करके देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। हमने उसकी नीतियों का बार-बार विरोध किया है और उस पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है।”

गौरतलब है कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पीएफआई पर टेरर फंडिंग, आतंकियों को ट्रेंड करने, दंगा भड़काने समेत कई प्रकार की देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप लगता रहा है। इसी सिलसिले में एनआईए और ईडी ने 93 जगहों पर छापेमारी करते हुए पीएफआई के 106 सक्रिय कार्यकर्ताओं व नेताओं को गिरफ्तार किया है। इससे पहले रविवार (18 सितंबर 2022) को भी एनआईए ने पीएफआई के 23 ठिकानों में छापेमारी करते हुए 4 लोगों को गिरफ्तार किया था।

ऐसी आशंका जताई जा रही है कि गत रविवार व उससे पहले एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए पीएफआई के नेताओं से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर देश भर में एक साथ छापेमारी की है। इस छापेमारी को जाँच एजेंसियों के लिए बड़ी सफलता कहा जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *