वनभूलपुरा मामले में कमजोर सिद्ध सुको में उत्तराखंड का स्थायी अधिवक्ता हटाया

Uttarakhand: Government Removed Co Permanent Advocate Due To Weak Lobbying In Banbhoolpura Encroachment Case

Uttarakhand: बनभूलपुरा मामले में कमजोर पैरवी को लेकर सरकार ने SC में तैनात सह स्थायी अधिवक्ता को हटाया

नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। कोर्ट के फैसले के खिलाफ बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सुप्रीम कोर्ट चले गए थे।

देहरादून/नई दिल्ली 10 मई । उत्तराखंड सरकार ने उच्चतम न्यायालय में तैनात एडवोकेट ऑन रिकार्ड-सह स्थायी अधिवक्ता अभिषेक अत्रैय को हटा दिया है। उन पर हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर वाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रभावी पैरवी न करने का आरोप है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। कोर्ट के फैसले के खिलाफ बनभूलपुरा क्षेत्र के निवासी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। उन्होंने उत्तराखंड राज्य को भी पार्टी बनाया था। रेलवे मंत्रालय का मामला होने पर सरकार इस मसले में तटस्थ रहने का प्रयास करती रही। लेकिन मामला न्यायालय में जाने के बाद उसे अपना पक्ष रखना पड़ा।

इस मामले में न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। न्यायालय में राज्य की ओर से जो पक्ष रखा गया, उससे राज्य असहज है। अपर सचिव न्याय सुधीर कुमार सिंह ने अधिवक्ता अत्रैय को पत्र जारी कर शासन की कार्रवाई से अवगत करा दिया है।

पत्र में कहा गया है कि उन्होंने उच्च न्यायालय में स्वयं प्रभावी पैरवी व बहस नहीं की। दायर वाद की सही जानकारी न दिए जाने और राज्य सरकार के निर्देश के बिना वहां पक्ष रख दिया गया। कोर्ट में रखे गए पक्ष का पत्र में उल्लेख किया गया है। कहा गया है कि न्यायालय में कहा गया कि मामले में उचित समाधान के लिए प्रयास जारी है। इस तरह के कथन से राज्य सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई। सह स्थायी अधिवक्ता अत्रैय से सभी वादों की सूची भी मांग ली गई है।

ये है मामला

हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। 28 दिसंबर को रेलवे-प्रशासन की टीम पिलरबंदी करने पहुंची तो बनभूलपुरा के हजारों लोगों ने 10 घंटे धरना दिया। 29 दिसंबर को बनभूलपुरा क्षेत्र की हजारों महिलाओं ने कैंडल मार्च निकाला। 30 दिसंबर को बनभूलपुरा क्षेत्र में आमसभा हुई।

31 दिसंबर को रेलवे ने अखबारों में अतिक्रमण हटाने का सार्वजनिक नोटिस जारी किया। दो जनवरी को रेलवे ने मुनादी शुरू की। दो जनवरी को बनभूलपुरा मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई। पांच जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया और अगली तिथि सात फरवरी लगा दी।

जिला न्यायालय ने बताया अतिक्रमण अवैध

उधर,बनभूलपुरा में रेलवे भूमि पर अतिक्रमण मामले में आया नया मोड़, कोर्ट ने रेलवे की कार्रवाई को बताया सही

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश नीलम रात्रा और कंवर अमनिंदर सिंह की अदालत ने साल 2021 में उत्तर पूर्व रेलवे (एनईआर) की ओर से जारी बेदखली नोटिस के खिलाफ दर्ज 33 अपीलों को गुरुवार को खारिज कर दिया। रेलवे भूमि पर अतिक्रमण करने वाले को जगह खाली करने का भी आदेश दिया।

हल्द्वानी के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश नीलम रात्रा और कंवर अमनिंदर सिंह की अदालत ने साल 2021 में उत्तर पूर्व रेलवे (एनईआर) की ओर से जारी बेदखली नोटिस के खिलाफ दर्ज 33 अपीलों को गुरुवार को खारिज कर दिया। कोर्ट ने रेलवे भूमि पर अतिक्रमण करने वाले को जगह खाली करने का आदेश भी दिया।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भूमि रेलवे की ही है, जिस पर अवैध रूप से कब्जा किया गया।

बता दें कि उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2022 को 31.87 हेक्टेयर रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था।

दरअसल में बरेली में एनईआर इज्जतनगर रेल मंडल के राज्य संपदा अधिकारी ने वर्ष 2021 में रेलवे भूमि पर कब्जा करने वालों को नोटिस जारी किया था। इसपर बनभूलपुरा के लोगों ने दावा किया कि एनईआर की ओर से जारी नोटिस कानून के विरुद्ध है और विवादित भूमि नगरपालिका बोर्ड की सीमा में आती है।

इस पर रेलवे ने कहा कि भूमि खाली करने की प्रक्रिया सार्वजनिक परिसर (बेदखली) अधिनियम में शुरू की गई थी। अवैध रूप से कब्जा की गई रेलवे भूमि के लेआउट के साथ कब्जेदारों को नोटिस जारी किए गए थे।

बीते चार मई को न्यायालय ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि देशभर में नगरपालिका सीमा के तहत केंद्र सरकार और अन्य केंद्रीय संगठनों की कई संपत्तियों का निर्माण किया गया है।

इससे यह दावा नहीं किया जा सकता कि संबंधित विभागों के पास उस संपत्ति का स्वामित्व नहीं है। न्यायालय ने माना कि जब यह स्पष्ट है कि भूमि रेलवे की है, तो कब्जा अब अतिक्रमण है। इसपर रेलवे की कार्रवाई वैध है।

राज्य संपदा अधिकारी की प्रक्रिया को बताया सही:

एडीजे कंवर अमनिंदर सिंह की कोर्ट ने इस्लाम पुत्र इकबाल हुसैन निवासी किदवई नगर हल्द्वानी व अन्य की अपील पर कहा कि अपीलार्थी ने राज्य संपदा अधिकारी के सामने आठ फरवरी 2021 को एकपक्षीय साक्ष्य दाखिल किया। राज्य संपदा अधिकारी ने 19 फरवरी 2021 को वादी की एकपक्षीय बहस सुनी। दो जुलाई 2021 को प्रश्नगत आदेश पारित किया गया।

आदेश पत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि राज्य संपदा अधिकारी ने ऐसी कार्यवाही नहीं की, जिससे अपीलार्थी को अन्य जानकारी एकत्रित करने का मौका न मिला हो।

इन उपरोक्त परिस्थितियों में न्यायालय का मत है कि राज्य संपदा अधिकारी ने नैसर्गिक सिद्धांत का अनुपालन किया है।

तर्कहीन है नोटिस का विरोध:

कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थी ने उदासीनता एवं पैरवी में कमी के कारण राज्य संपदा अधिकारी के समक्ष न तो अपना साक्ष्य प्रस्तुत किया और न कार्यवाही में हिस्सा लिया। ऐसी परिस्थिति में राज्य संपदा अधिकारी की प्रक्रिया को अवैधानिक नहीं कहा जा सकता। अब इस मामले में यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रश्नगत संपत्ति रेलवे विभाग की है और इस मामले में अपीलार्थी का कब्जा अनाधिकृत है।

अपीलार्थी के कब्जे के संबंध में जो बिंदु उठाये गये हैं, वह बलहीन एवं तर्कहीन पाये जाते हैं। न्यायालय का मत है कि राज्य संपदा अधिकारी की ओर से अपीलार्थी के बेदखली का जो आदेश पारित किया गया है, वह उचित एवं दस्तावेजों के आधार पर है और उसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण मौजूद नहीं है।

मामले में राज्य संपदा अधिकारी ने अपने आदेश को उचित कारण से समर्थित किया है और उसे गलत या अनुचित कहना सही नहीं होगा।

पुनर्वास को लेकर सुप्रीम कोर्ट में है मामला:

बनभूलपुरा प्रकरण में पुनर्वास को लेकर मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है। दो मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के निर्देश पर रोक संबंधी उसका आदेश याचिकाओं के लंबित रहने तक जारी रहेगा।

असल में सुप्रीम कोर्ट ने पांच जनवरी को एक अंतरिम आदेश में अतिक्रमण हटाने के हाई कोर्ट के निर्देश पर रोक लगा दी थी। उसने इसे मानवीय मुद्दा बताया था। कहा था कि 50 हजार लोगों को रातोंरात नहीं हटाया जा सकता। मामले में अगली सुनवाई अगस्त में होगी।

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