देहरादून के दिग्गज पत्रकार -लेखक-उद्यमी राज कंवर दिवंगत

नहीं रहे पत्रकार,लेखक और उद्यमी राज कंवर (8 अक्तूबर 1930-31अक्तूबर2022)
देहरादून 30 अक्टूबर। देश विभाजन के समय पाकिस्तान से देहरादून आ बसी पीढ़ी का एक और प्रतिनिधि विदा हो गया। आखिरी सांस तक पढ़ने – लिखने में व्यस्त रहे राज कंवर अपने पीछे पत्नी,दो पुत्र और एक पुत्री का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। इनमें एक पुत्र दिल्ली और एक पुत्र और पुत्री विदेश में हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर रहे राज कंवर आधा दर्जन अंग्रेजी अखबारों के स्ट्रिंगर भी रहे। ओएनजीसी के पहले पीआरओ, हिमाचल प्रदेश जनसंपर्क विभाग में संपादक ,द वैनगार्ड समेत दो अंग्रेजी पत्रों के संस्थापक रहे राज कंवर ने ‘ओएनजीसी: ए अनटोल्ड स्टोरी ‘,’ डेट लाइन देहरादून ‘ जैसी पुस्तकें भी लिखी।
1970 में आयलफील्ड इक्विपमेंट कंपनी बनाई। प्रतिष्ठित दून क्लब के अध्यक्ष भी रहे। देहरादून में किसी भी साहित्यिक आयोजन के वे स्थायी चेहरे थे।

पत्रकार से लेखक बने राज कंवर, देहरादून के प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं। बढ़ती उम्र के बावजूद उनकी कलम आखिरी समय तक जारी रही । 90 वर्षीय लेखक आखिरी तक आठ घंटे लिखते रहे । उनकी नवीनतम किताब का नाम ‘राइटर ऑफ ऑबिटरीज’ है।

अपनी अगली पुस्तक पर बोलते हुए, कंवर ने कहा, “किसी के मरने के बाद हम हमेशा समाचार पत्रों और अन्य प्लेटफार्मों में मृत्युलेख देखते हैं, लेकिन लोग मुश्किल से ही जानते हैं कि एक मृत्युलेख क्या है या इसके पीछे का इतिहास क्या है। मैं अपनी अगली पुस्तक में इन सूक्ष्म विवरणों को एक साथ रखने की योजना बना रहा हूं और लगभग छह महीने से इसके बारे में शोध कर रहा हूं।

सप्ताह में छह दिन हर दिन आठ घंटे काम करने वाले कंवर कहते हैं कि कोविड-19 महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन उनके लिए मस्त समय था।

“लॉकडाउन मेरे लिए एक वरदान था क्योंकि मैं अपनी नई किताब के लिए अपने लेखन और शोध पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता था। पहले, बहुत से लोग किसी न किसी काम के लिए मुझसे मिलने आते थे और मेरा बहुत समय उन गतिविधियों में चला जाता था क्योंकि मैं लोगों को ना नहीं कह सकता। लेकिन महामारी के बाद, कम लोग मुझसे मिलने आते हैं, वह भी केवल आपात स्थिति में, और इसीलिए मैं अपना सारा समय लेखन या अपने परिवार के साथ बिताता हूं”

कंवर ने कहा, “मैंने पिछले कुछ महीनों में बहुत सारे नए शब्द, मुहावरे सीखे हैं, अपनी शब्दावली पर बहुत काम किया है।”

हालाँकि, उम्र के कारण, कंवर खुद को लिखने में सक्षम नहीं है, बल्कि ज्यादातर अपने सचिव को निर्देश देता है जो उसके लिए लिखता है।

कंवर की अंतिम पुस्तक, ‘डेटलाइन देहरादून, जो इस साल जनवरी में स्वयं प्रकाशित हुई थी, इस साल के अंत तक इसका तीसरा संशोधित संस्करण भी आने वाला था।

“डेटलाइन देहरादून’ के पहले दो संस्करणों की लगभग 1,300 प्रतियां – मेरे शहर, इसके स्कूलों, इसकी संस्कृति के बारे में मेरे द्वारा लिखे गए सभी लेखों का संग्रह – बिकने के बाद, मैंने इसे थोड़ा बदलने और कुछ जोड़ने का फैसला किया। इसलिए, मैंने देहरादून के प्रतिष्ठित जोड़ों का साक्षात्कार लेना शुरू किया, जिन्होंने इस शहर में मूल्यवर्धन किया है। यह बताते हुए राज कंवर ने बताया था कि इसे संशोधित तीसरे संस्करण में ‘मेड फॉर ईच-अदर’ नामक एक खंड में जोड़ा जाएगा।

8 अक्टूबर 2020 को अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले कंवर ने कहा था, “मैं उम्र के हिसाब से 90 साल का हो सकता हूं, लेकिन दिल से, मैं अभी भी बहुत छोटा हूं और अपने 20 के दशक में हूं। शादी के 57 साल बाद, एक साथ रहने के आनंद का अनुभव करने के बाद, मैं अभी भी अपनी पत्नी के साथ मजाक करता हूं। मैं कोई भव्य समारोह नहीं करना चाहता, बल्कि जरूरतमंदों की मदद करना चाहता हूं और जितना हो सके समाज को वापस देना चाहता हूं। ”

लेखक ने अब तक चार पुस्तकें लिखी हैं। उनकी पहली पुस्तक ‘अपस्ट्रीम इंडिया’ थी – ओएनजीसी का आधिकारिक इतिहास 2006 में अपने स्वर्ण जयंती समारोह के साथ तालमेल बिठाने के लिए प्रकाशित हुआ। इसके बाद ‘ओएनजीसी: द अनटोल्ड स्टोरी’ आई, जिसे ब्लूम्सबरी ने प्रकाशित किया और दिसंबर 2018 में लॉन्च किया। चौथी प्रकाशनाधीन पुस्तक थी ‘राइटर आफ आर्बिटरीज’।

देहरादून स्थित थिंक टैंक, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा, “कंवर सर, एक विश्वकोश और देहरादून पर एक संस्थान है। उन्होंने आजादी के बाद के वर्षों में दून घाटी को विकसित होते देखा है। उन्होंने एक पत्रकार के रूप में काम किया जब पूरी घाटी में मुश्किल से 3-4 पत्रकार थे, इसलिए वह शहर को अपनी हथेली के पीछे की तरह जानते हैं। यही उनके लेखन में देहरादून की उनकी यादों के माध्यम से देखा जा सकता है।

पंडित नेहरू के आखिरी 5 दिन:‘मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं’ से ‘रोशनी चली गई’ तक; नेहरू की जिंदगी का आखिरी हफ्ता कैसे बीता? राज कंवर के हवाले से
दैनिक भास्कर 5 महीने पहले लेखक: शुभम शर्मा

तारीख 23 मई 1964। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पत्रकार ने पंडित नेहरू से उनके उत्तराधिकारी को लेकर सवाल पूछा, जवाब में नेहरू ने कहा- ‘मैंने इस बारे में सोचना तो शुरू किया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरी मौत इतनी जल्दी होगी।’

तारीख 27 मई 1964। समय दोपहर के 2 बजे। देश के तत्कालीन इस्पात मंत्री सी. सुब्रमण्यम संसद में घोषणा करते हैं, “रोशनी चली गई।” इसका मतलब था देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अब इस दुनिया में नहीं रहे।

22 मई 1964 के दिन पंडित नेहरू बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा के साथ। किसी को यकीन नहीं था कि नेहरू का इस तरह अचानक निधन हो जाएगा ।
मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं’ से ‘रोशनी चली गई’ तक के बीच पांच दिनों का अंतर था। जिंदगी के आखिरी दिनों में पंडित नेहरू अपनी बेटी इंदिरा गांधी और कुछ स्टाफ के साथ देहरादून गए थे। उनकी इस यात्रा के गवाह वरिष्ठ पत्रकार राज कंवर ने तमाम लेखों के जरिए पूरी डिटेल्स साझा की हैं। आगे हम राज कंवर के लेखों, उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स और अलग-अलग इंटरव्यू के आधार पर पंडित नेहरू के आखिरी दिनों की कहानी पेश कर रहे हैं।

23 और 24 मई 1964ः कपूर के पेड़ के नीचे घंटों बैठे रहे

साल 1964 के जनवरी महीने में ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के भुवनेश्वर अधिवेशन के दौरान पंडित नेहरू को हार्ट अटैक आया था। इसके बाद से उनकी सेहत लगातार खराब रहने लगी थी। वरिष्ठ पत्रकार राज कंवर कहते हैं, उन्होंने 23 मई 1964 को देहरादून की अंतिम यात्रा की थी। मैं भी उस यात्रा में पंडित जी के साथ था। इस दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी के हर पल को बेहद सादगी के साथ बिताया।

पंडित नेहरू अपने देहरादून दौरे के दौरान वरिष्ठ पत्रकार राज कंवर और उनकी बहन के साथ सर्किट हाउस में मुलाकात करते हुए।
उन्होंने अपनी जिंदगी के अंतिम क्षण पसंदीदा जगह पर गुजारे, जो उनके दिल के बेहद करीब थी।
नेहरू देहरादून के सर्किट हाउस के मैदान में टहलते हुए अपने पसंदीदा कपूर के पेड़ के नीचे घंटों चुपचाप बैठे रहे। उन्हें देखकर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा कि जिस इंसान के साथ हम समय बिता रहे हैं वह कुछ दिनों बाद इस दुनिया को अलविदा कह जाएगा।

25 मई 1964ः इंदिरा गांधी के साथ आसपास घूमने निकले

25 मई को नेहरू ने अपने पुराने मित्र और पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश से मसूरी रोड स्थित कोटलगांव में मुलाकात की। इस दौरान उनके साथ इंदिरा गांधी भी मौजूद थीं। शाम के समय टहलते हुए इंदिरा गांधी के साथ सहस्त्रधारा झरने का दौरा कर वे सर्किट हाउस लौट आए। घूम कर आने के बाद नेहरू तरो-ताजा और आरामदायक महसूस कर रहे थे।

ये तस्वीर 25 मई 1964 की है जब नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा के साथ देहरादून में समय गुजारा था। शाम के समय टहलते हुए इंदिरा के साथ नेहरू ने सहस्त्रधारा झरने का लुत्फ उठाया था।
राज कंवर ने बताया कि पता नहीं क्यों, पर पंडित नेहरू को देहरादून में इतना मजा आ रहा था कि वह दिल्ली नहीं लौटना चाहते थे। उन्होंने दिल्ली वापस जाने के कार्यक्रम को एक दिन के लिए टालने की बात कही, लेकिन इस तरह दौरे के कार्यक्रम में बदलाव करना मुश्किल था।

इसी बीच देहरादून के तत्कालीन जिलाधिकारी उनकी देहरादून में रहने की इच्छा को भांप गए थे। उन्होंने साहस जुटाते हुए नेहरू से कहा कि ‘साहब दिल्ली से सभी फाइल देहरादून मंगा ली जाएगी और आप काम यहां से कर सकते हैं।’

इस बात का उत्तर देते हुए नेहरू ने कहा, ‘हां काम तो सब हो जाएगा, लेकिन दिल्ली जाना जरूरी है।’

26 मई 1964ः देहरादून से दिल्ली के लिए उड़ान भरी

26 मई को नेहरू ने देहरादून से दिल्ली के लिए शाम 4 बजे उड़ान भरी। 26 मई को इसलिए वो दिल्ली के लिए लौटे थे ताकि रात भर आराम कर सकें। दरअसल, नेहरू ने 27 मई से लोकसभा का 7 दिनों का विशेष सत्र बुलाया था, जिसमें वें खासतौर से कश्मीर और शेख अब्दुल्ला को लेकर लोकसभा में कुछ सवालों के जवाब देने वाले थे।

अपनी मृत्यु से 1 दिन पूर्व देहरादून से दिल्ली वापस जाते समय नेहरू ने सभी का हाथ जोड़कर अभिवादन किया। किसी को मालूम नहीं थी कि ये उनकी और नेहरू की आखिरी मुलाकात होगी।
हेलिकॉप्टर के दरवाजे पर खड़े होकर नेहरू ने सभी को हाथ हिलाकर अभिवादन किया। पत्रकार राज कंवर के मुताबिक उस दौरान नेहरू को अपना बांया हाथ उठाने में दिक्कत हुई थी और इंदिरा गांधी ने उनको सहारा दिया था। साथ ही बाएं पैर के हिलने में भी थोड़ी दिक्कत महसूस हो रही थी।

रात करीब 8 बजे दिल्ली पहुंचकर नेहरू सीधे प्रधानमंत्री हाउस चले गए। पिछले कुछ समय से अस्वस्थ रहने के कारण वे उस दिन थोड़ा थके हुए थे। निधन से पूर्व की आखिरी रात उनके लिए भारी थी। नेहरू रातभर करवटें बदलते रहे और उन्हें पीठ के साथ कंधे में भी हल्का दर्द महसूस हो रहा था। उनके सेवक नाथूराम उन्हें लगातार दवाइयां देकर सुलाने का प्रयास कर रहे थे।

27 मई 1964ः इसी दिन नेहरू ने दुनिया को अलविदा कहा

8 घंटे कोमा में रहने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री की मौत हो गई। अगले दिन उनका पार्थिव शरीर जनता के आखिरी दर्शन के लिए रखा गया और 29 मई को उनका हिंदू रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया।
नेहरू 27 मई की सुबह 6 बजे उठे और कंधे में दर्द की शिकायत की। देखते ही देखते सुबह करीब साढ़े 6 बजे उन्हें अचानक पैरालिसिस अटैक आ गया और फिर दिल का दौरा पड़ा। इससे पहले कि किसी डॉक्टर को बुलाया जाता, वह बेहोश हो गए। इंदिरा गांधी ने तुरंत उनके डॉक्टरों को फोन किया। तीन डॉक्टरों की टीम ने वहां पहुंच कर काफी कोशिश की, लेकिन नेहरू कोमा में पहुंच चुके थे। उनके शरीर से कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा था और 8 घंटे कोमा में रहने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री के देहावसान की घोषणा कर दी गई।

दोपहर 2 बजे तत्कालीन इस्पात मंत्री सी. सुब्रमण्यम अचानक संसद में दाखिल हुए। उन्होंने भरी संसद में दबे स्वर में सिर्फ इतना कहा, ‘रोशनी चली गई।’।जिसके बाद नेहरू के निधन की आधिकारिक घोषणा कर दी गई। तुरंत प्रभाव से लोकसभा भी स्थगित कर दी गई और कुछ घंटों बाद गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की गई।

16 साल 9 महीने और 12 दिन तक देश के पहले PM रहे नेहरू की मृत्यु को 58 साल हो गए हैं। 27 मई 1964 को दोपहर के 2 बजकर 5 मिनट पर अचानक रेडियो पर खबर आई कि पंडित नेहरू अब इस दुनिया में नहीं रहे। कुछ ही समय में ये खबर आग की तरह पूरी दुनिया में फैल गई और देखते ही देखते PM आवास के बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी होती चली गई।

अब तक PM कार्यकाल में नेहरू भारत के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले व्यक्ति थे। 27 मई को देशभर में शादियों का समय था। जैसे ही नेहरू के निधन की खबर फैली, देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। शादियां तो हुईं, लेकिन कहीं कोई बैंड बाजा नहीं बजा।

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