उत्तरकाशी अपडेट: 418 घंटे बाद मुस्कराते हुए सुरंग से निकले 41 बहादुर श्रमिक

Workers Trapped In Silkyara Tunnel Of Uttarkashi Were Rescued
400 घंटे बाद सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकाला, देखते ही लोग रो पड़े
उत्तरकाशी सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकाला जाने लगा है। अब तक कई हंसते हुए मजदूरों को बाहर निकाला जा चुका है। वहीं, सुरंग के बाहर खड़े लोग रो पड़े।
देहरादून 28 नवंबर: उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में आज 17वें दिन बड़ी सफलता टीम को मिली है। 418 घंटे के बाद मंगलवार रात करीब साढ़े सात बजे मजदूरों को निकाला जाना शुरू हुआ। करीब पौने नौ बजे तक सभी 41 मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। सुरंग से बाहर आए सभी मजदूरों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहले माला पहनाकर स्वागत किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक भावुक पल बताते हुए इसे मानवता और टीम वर्क की जीत बताया है। इसके बाद मुख्यमंत्री धामी ने मजदूरों से काफी देर तक बात कर उनका हालचाल जाना। सुरंग से बाहर आए पहले मजदूर को तैनात ऐंबुलेंस के जरिये निकटवर्ती चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां जहां 41 बिस्तरों का एक अलग वार्ड बनाया गया है। सुरंग के बाहर मौजूद लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने जवानों और वहां मौजूद लोगों को मिठाई बांटी।
वहीं, इससे पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट किया, कि सिलक्यारा टनल में चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में बड़ी सफलता मिली है। पाइप पुशिंग मलबे के आर-पार हो चुका है। अब श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने की तैयारी शुरू कर दी गई है।

दीपावली यानी 12 नवंबर को उत्तरकाशी के निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग में काम करने वाले 41 मजदूर फंस गए थे। 17 दिनों से रेस्क्यू अभियान चल रहा था। मंगलवार को ये अभियान पूरा हुआ। इस दौरान ऑगर मशीन में कई बार खराबी आई, जिसे ठीक करके कई बार काम शुरू हुआ, लेकिन आखिर में ऑगर मशीन की ब्लेड खराब हो गईं, जिसके बाद रैट माइनर्स को लगाया है। मंगलवार रात को मजदूरों को निकालने का सिलसिला जारी हुआ।

Madras Sappers Why They Called In Uttarkashi Tunnel Rescue Operation Manual Drilling
कहानी मद्रास सैपर्स की, जो अब चूहे की तरह हाथों से खोदी उत्तरकाशी की ढही सुरंग
उत्तरकाशी सुरंग दुर्घटना में 17 दिन बाद 41 श्रमिकों को निकाला जा सका। मैनुअल ड्रिलिंग की जरूरत महसूस हुई तो सेना के मद्रास सैपर्स के जवान बुलाए गए। इंजीनियर रेजीमेंट के 30 जवान मौके पर पहुंचे।

उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बचाने का अभियान जैसे ही पूरा होने के करीब पहुंचने लगता था, एक नई अड़चन आकर खड़ी हो जाती थी। सिलक्यारा सुरंग में ऑगर मशीन के टूटे हुए हिस्से निकाले जा रहे थे। आगे मैनुअल ड्रिलिंग होनी थी। जी हां, बचाव अभियान 360 डिग्री पर हुआ। हाथों से खुदाई हुई और लम्बवत ड्रिलिंग भी साथ चली। वास्तव में, यह काम काफी चुनौतीपूर्ण था। मशीनें बार-बार फेल हो रही थी इसलिए चूहे की तरह हाथों से सुरंग को खोदा गया। मैनुअल ड्रिलिंग में भारतीय सेना के जांबाज और रेट होल माइनर्स जुटे। एक अधिकारी ने बताया है कि हाथों से, हथौड़ा-छीनी से टनल से मलबा हटाया गया। ऐसे में भारतीय सेना के उन जांबाजों को आवाज दी गई है, जो इस काम में माहिर हैं। सुरंग सफाई को भारतीय सेना से जुड़ी मद्रास सैपर्स की एक यूनिट पहुंची ।

मुश्किल मिशन का जवाब मद्रास सैपर्स
मद्रास सैपर्स का नाम चर्चा में कम ही आता है, ऐसे में लोग इसके बारे में कम जानते हैं। सरल भाषा में समझिए तो यह सेना की इंजीनियरिंग कोर या कहें कि टॉप क्लास के इंजीनियर्स हैं। यह कोर ऑफ इंजीनियर्स का एक इंजीनियर ग्रुप है। जहां इंजीनियरों की जरूरत हो और मिशन मुश्किल हो, वहां इन्हें आवाज दी जाती है। इसलिए उत्तरकाशी की टनल में मैनुअल ड्रिलिंग की बात हुई तो इन्हें बुलाया गया।

यह कोर अंग्रेजों के जमाने से है। अंग्रेजों ने इन्हें ऐसे सपोर्ट ग्रुप के तौर पर बनाया था जिसे हाथों में हथियार लेने की जरूरत नहीं होगी। हालांकि समय के साथ मद्रास सैपर्स ने कई लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह भारतीय सेना का शुरुआती इंजीनियरिंग ग्रुप रहा है। भारत की आजादी के फौरन बाद 1947 में मद्रास सैपर्स को जम्मू में तैनात किया गया था। इनमें से ज्यादातर दक्षिण भारतीय थे, जो पहले कभी इस तरह के मौसम में नहीं रहे थे। फिर भी इनकी बहादुरी समझिए, विषम परिस्थितियों बाद भी इन्होंने सेना के आगे बढ़ने को रोड ब्लॉक को क्लियर कर दिया। हैदराबाद को भारत में शामिल कराने के ऑपरेशन पोलो के दौरान भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका देखी गई।

सैपर्स का मतलब पता है?

तमिल में मद्रास सैपर्स के सदस्यों को ‘थंबीस’ कहा जाता है, जिसका मतलब छोटा भाई होता है। इनकी बहादुरी के बारे में मद्रास आर्मी के तत्कालीन कमांडर-इन चीफ जनरल फ्रेडरिक रॉबर्ट्स ने 1883 में कहा था, ‘हम निश्चिंत हो सकते हैं कि जब भी भारतीय सेना को तैनात करने को बुलाया जाएगा, महारानी के अपने सैपर्स और माइनर्स उस सेना का हिस्सा जरूर होंगे। जब भी मद्रास सैपर्स को तैनात किया गया है उन्होंने उनका (तत्कालीन महारानी) गौरव बढ़ाया है।’ असाधारण सेवा और वीरता को जब ब्रिटिश सेना ने पुरस्कार देना शुरू किया तो ऐसा पहला अवॉर्ड मद्रास सैपर्स के हवलदार चोकलिंगम को 1834 में कर्नाटक युद्ध में उनकी बहादुरी को दिया गया था।

मद्रास सैपर्स करते क्या हैं?

मद्रास सैपर्स भारतीय सेना की इंजीनियरिंग रेजीमेंट है। ये कोर ऑफ इंजीनियर्स से संबंधित हैं। किसी भी इंजीनियरिंग यूनिट की मुख्य जिम्मेदारी पैदल सेना की यूनिटों को पुल, हेलिपैड, नदी पर अस्थायी पुल आदि तैयार करने में मदद करना है। सैपर का शाब्दिक अर्थ एक ऐसे सैनिक से है जो सड़कों और पुलों के निर्माण, मरम्मत, माइन्स बिछाने और हटाने जैसे महत्वपूर्ण टास्क निभाता है।
इनका मुख्यालय बेंगलुरु में है। ये ब्रिटिश राज में मद्रास प्रेसिडेंसी आर्मी के समय से हैं और कोर ऑफ इंजीनियर्स के दो और समूहों (बंगाल सैपर्स और बॉम्बे सैपर्स) से भी पहले से हैं। इनका आदर्श वाक्य है- सर्वत्र। ये 30 सितंबर 1780 से सेवा में हैं। सेना के एक अधिकारी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि दक्षिण भारत के पांच राज्यों से नौजवान इसमें भर्ती किये जाते हैं और जबर्दस्त ट्रेनिंग बाद ये स्किल्ड सोल्जर यानी सैपर्स बनते हैं।

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