उप्र राजनीति में बड़ी बैठक, 4 साल में योगी पहली बार केशव प्र. मौर्य के घर

UP की राजनीति में बड़ी मुलाकात:पहली बार डिप्टी CM केशव के घर पहुंचे CM योगी; दोनों के बीच थी अनबन, एक हफ्ते पहले केशव ने कहा था- CM दिल्ली से तय होगा
लखनऊ 22 जून।उत्तर प्रदेश की राजनीति से बड़ी खबर है। चार साल में पहली बार राजधानी लखनऊ में डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य के सरकारी आवास पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलने पहुंचे। यह हाल तब है जब दोनों के घरों में एक मिनट का रास्ता है। आज दोनों के बीच बैठक हुई। इस दौरान संघ के कई बड़े पदाधिकारी और भाजपा नेता भी मौजूद रहे।

बताया जाता है कि लंबे समय से दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। डिप्टी CM और CM के बीच आपसी मनमुटाव कई बार खुलकर भी सामने आ चुका है। योगी आदित्यनाथ ने यह कह कर कभी सरकार में मौर्य की नहीं चलने दी कि दो पावर सेंटर होने से अव्यवस्था होती है। कुंठित केशव प्रसाद मौर्य ने हफ्ते पहले ही आगरा में एक कार्यक्रम में कहा था कि UP में CM का चेहरा दिल्ली से ही तय होगा।

सभी नेताओं ने एक साथ लंच किया। इससे पहले केशव ने सभी का स्वागत किया।

संघ और सरकार के लोग भी मुख्यमंत्री के साथ मिलने पहुंचे

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा उप मुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा,संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होशबोले,सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल और क्षेत्र प्रचारक अनिल सिंह समेत कुछ और पदाधिकारी भी केशव मौर्य के आवास पर पहुंचे थे। सभी लोगों ने यहीं पर दोपहर का भोजन किया और केशव मौर्य के बेटे और बहू को आशीर्वाद दिया।

दरअसल, कोरोना और लॉकडाउन के बीच में केशव मौर्य ने बेटे की शादी की थी। शादी में प्रोटोकॉल की वजह से कोई भी VIP शामिल नहीं हुआ था। बताया जाता है कि मिलने और लंच के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है।
डिप्टी CM केशव मौर्य के घर के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी।

संगठन मंत्री और प्रदेश प्रभारी के साथ रात में हुई थी बैठक

सोमवार रात ही BJP की कोर कमेटी की बैठक CM आवास पर हुई थी। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी CM डॉक्टर दिनेश शर्मा, केंद्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष और प्रदेश प्रभारी राधा मोहन सिंह भी शामिल हुए थे। बताया जा रहा है कि इस दौरान केंद्रीय नेतृत्व के सामने भी दोनों के बीच की अनबन खुलकर सामने आई थी। केशव ने पार्टी और सरकार में उपेक्षा की शिकायत की थी।

बीच का रास्ता निकालने की कोशिश

UP में 2017 में BJP सरकार के गठन से लेकर अब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य के बीच सब कुछ ठीक नहीं रहा है। कई बार दोनों के बीच का विवाद खुलकर सामने भी आ चुका है। 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान केशव मौर्य ने पिछड़े वर्ग में काफी अच्छी पैठ बना ली थी। इसी के सहारे UP में BJP की सरकार बनी थी।

अब केशव के साथ 17% OBC वोट बैंक है। इसे किसी भी हालत में BJP गंवाना नहीं चाहती है। वहीं, योगी के हिंदूवादी चेहरे को भी प्रदेश में काफी पसंद किया जाता है। ऐसे में पार्टी योगी और केशव दोनों को ही नाराज नहीं करना चाहती है। इसलिए अब बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है।

CM के दावेदार थे केशव, डिप्टी CM पद से संतुष्ट होना पड़ा

2017 विधानसभा चुनाव के दौरान केशव मौर्य की अध्यक्षता में ही BJP ने यूपी में शानदार जीत हासिल की थी। तब यह माना जा रहा था कि केशव ही अगले CM होंगे, लेकिन पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को कुर्सी सौंप दी। तब केशव को डिप्टी CM पद से ही संतोष करना पड़ा था। डिप्टी CM होने के बावजूद केशव को कम तवज्जो दी जाती रही।

योगी गुट के लोग हमेशा सरकार में हावी रहे। यहां तक कि केशव अपने मन से अपने ही विभाग के अफसरों को ट्रांसफर भी नहीं कर पाते थे। इसके लिए भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंजूरी लेनी पड़ती थी। इससे केशव सरकार में होने के बावजूद खुश नहीं थे।

कब-कब योगी और केशव में टकराव हुआ?

2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य की नेमप्लेट एनेक्सी मुख्यमंत्री कार्यालय से हटा दी गई थी। विवाद बढ़ने पर दोनों लोगों का कार्यालय सचिवालय स्थित विधान भवन में स्थापित किया गया।
केशव की अगुवाई वाले लोक निर्माण विभाग (PWD) के कामकाज की समीक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद करने लगे थे। विभाग के अफसरों के साथ मुख्यमंत्री सीधे बैठक करने लगे थे। इससे केशव को दूर रखा जाता था।
मुख्यमंत्री ने PWD के कामकाज की समीक्षा शुरू की तो केशव प्रसाद मौर्य ने CM योगी के अधीन लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी में भ्रष्टाचार को लेकर मुखर हो गए। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जांच की मांग शुरू कर दी।
योगी आदित्यनाथ पर दर्ज मुकदमें आसानी से वापस हो गए, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य की बारी आई तो फाइलें इधर-उधर होने लगीं। PMO के हस्तक्षेप के बाद केशव के खिलाफ दर्ज मुकदमें हटा दिए गए।
PWD के MD की नियुक्ति भी मुख्यमंत्री कार्यालय से होती थी। केशव जिन अफसरों का नाम सुझाव में देते थे, उन्हें नहीं नियुक्त किया जाता था।
PWD निर्माण संबंधित जारी किए जा रहे बजट में मुख्यमंत्री कार्यालय के द्वारा बीते 4 साल में कई बार फाइलें वापस कर दी गईं। इसको लेकर केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री कार्यालय में कई बार हंगामा हुआ।

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