यूसीसी रोकेगा मुस्लिम महिलाओं से शरिया के नाम पर अपराध:सुबुही खान

देहरादून 19 कोई कथा कहानी नहीं। समान नागरिक संहिता पर बिंदुवार तथ्यात्मक चर्चा। वह भी बिना मध्यांतर करीब तीन घंटे। सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता और एक्टीविस्ट श्रीमती सुबुही खान की ध्येय निष्ठा का तब कायल होना पड़ता है जब पता चलता है कि मैडम का पांच साल का पुत्र है और इनकी भारत भर में होने वाली यात्रा गंगा यात्रा, यमुना यात्रा और भारत राष्ट्रीय जागरण यात्राओं में उससे कोई व्यवधान नहीं होता। खुद को सनातनी मुसलमान घोषित करने वाली सुबुही खान से श्रोताओं ने अवसर मिलते ही उनकी इस पहचान के बारे में पूछना ही पूछना था जिससे कट्टरवादी मुस्लिम मौलाना बेतरह चिढ़ते हैं। इसी के चलते एक टीवी डिबेट में उनके हाथों जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एक प्रोफ़ेसर और स्वयंभू इस्लाम प्रवक्ता की लूज टॉक पर कैमरों के सामने ठुकाई महीनाभर चर्चा में रही थी। उनका कहना था कि वे कट्टर मुसलमानों और कट्टर हिन्दूओं के बीचोबीच खड़ी हैं। उनके अनुसार वें दोनों समाजों के कट्टरपंथियों की आंखों की किरकिरी हैं। ज्ञातव्य है कि सुबुही खान ने एक गैर मुस्लिम से विवाह किया है लेकिन इस्लाम नहीं छोड़ा है जबकि इस हालत में कट्टर हिन्दू और मुसलमान दोनों ही चाहते हैं कि वे इस्लाम छोड़ दें।
देहरादून की संभवतः इसी महीने आज दूसरी सारस्वत यात्रा थी। पहली की सूचना मिस हो गई थी। तो आज सुबह जब ‘आईलीड वूमन उत्तरांखड यंग थिंकर्स फोरम’ की संयोजक भाजपा नेत्री नेहा जोशी का संदेश देखा तो चूकने का प्रश्न ही नहीं था। सुबुही खान और मेरे बीच समन्वय के तीन बिंदू हैं। वे आज पूर्व भाजपा नेता के एम गोविंदाचार्य के नजदीक हैं और उन्हें अपना गुरु मानती हैं। गोविंदाचार्य जी के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में मध्य क्षेत्र संगठन मंत्री रहते मुझे भी एक बार देहरादून में नाटकीय स्वागत करने का अवसर मिला था। परिषद के मथुरा अधिवेशन में भी हमारी टीम की उनसे रोचक मुठभेड़ हुई थी। उनके ज्ञान और त्याग तपस्या ने अभाविप को न जाने कितने समर्पित कार्यकर्ता दिये हैं। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी से सीधे टकराव ने भाजपा से उनका संबंध समाप्त करा दिया। भाजपा यह तक भूल गई कि महामंत्री के रूप में उन्होंने कल्याण सिंह जैसे जनाधार वाले नेता के विद्रोह को किस कौशल से संभाला था। खैर, उसके बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी अध्ययन अवकाश के नाम पर किनारे ही हैं। विकास को लेकर उनका एक चर्चा का वायदा है,जो न जाने कब पूरा होगा।
दूसरे,सुबुही खान निशंक कट्टर राष्ट्रवादी हैं और इसके लिए विधिवत अपने बूते एक आंदोलन चला रही हैं। इसके लिए उन्हें उत्तराखण्ड में टीम की तलाश है। तीसरे,वे भी सहारनपुर से हैं और मेरा परिवार, पूर्वज भी सहारनपुर से है।
आज वे यहां ‘लैंगिक न्याय के लिए समान नागरिक संहिता’ पर बोलने आई थी ‌। आधा घंटा स्वागतादि और भाजपा महिला मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष आशा नौटियाल के व्याख्यान का निकाल दें तो शेष समय सुबुही खान का व्याख्यान और प्रश्नोत्तर के लिए रहा। आयोजन भाजपा का रंग रहा था लेकिन प्रश्नोत्तर में कांग्रेस नेत्रियों और प्रबुद्ध शिक्षित मुस्लिम महिलायें भी अच्छी संख्या में दिखी। भाजपा और सरकार से संबंधित सवालों के जवाब सुबुही खान ने नेहा जोशी की ओर यह कह कर सरका दिए कि मैं राजनीतिक नहीं हूं और न किसी दल या सरकार की ओर से जवाब देने की अधिकारी।
अब जबकि उत्तरांखड सरकार को भी समान नागरिक संहिता का प्रारूप सार्वजनिक करना शेष है, सुबुही खान ने आशा जताई कि समान नागरिक संहिता से मुस्लिम महिलाओं के विरुद्ध मज़हब और शरिया क़ानून के नाम पर वे सब अपराधिक कृत्य बंद हो जायें जिसके अपराधी शरियत के नाम पर सीआरपीसी और आईपीसी से भी बच निकल जाते हैं,तो एक बहुत बड़ा काम हो जाएगा जिसकी 70+ सालों से प्रतीक्षा है। इसके उन्होंने दर्जनों उदाहरण दिये।उन्होंने एक सुझाव भी दिया कि प्रस्तावित कानून का नाम राष्ट्रीय नागरिक संहिता कर दिया जाये तो अच्छा है क्योंकि अभी भी विशेषकर मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा नहीं है। उन्होंने बताया कि मौलवी अंग्रेजी के शब्द ‘यूनिफोर्म’ का ग़लत मतलब बता कर भड़का रहे हैं कि यह कानून आने पर मुसलमान महिलाएं बुर्का, हिजाब आदि नहीं पहन पायेगी जबकि यूसीसी का प्रयोजन बेहद सीमित है और ये भारतीय व्यापक समाज में एकता का साधन बनेगा।
सुबुही खान ने हिंदुओं को भी सलाह दी कि वे अल्पसंख्यकवाद से डरकर रक्षात्मक होना छोड़ दें क्योंकि इससे भी बहुत समस्यायें पैदा हो रही हैं। उन्होंने भारत में 20 करोड़ की जनसंख्या वाले इस्लाम को अल्पसंख्यक मानने से भी इंकार कर दिया। यहां तक कि उन्होंने महिला आरक्षण को भी अनावश्यक करार देते हुए कहा कि महिलाओं से भेदभाव बंद कर उन्हें आगे बढ़ने के पूरे अवसर दिये जाये तो किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए उन्हें किसी आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी। वरना तो महिला जनप्रतिनिधियों के नाम पर केवल उनके नाम और फोटो का ही उपयोग होता है, काम पीछे से उनके पति या पिता करते हैं।
मुझे हैरानी तब हुई जब सुबुही खान ने धर्म,पंथ और रिलीजन में वो अंतर स्पष्ट कर दिखाया जो बड़े बड़े संपादक और प्रोफेसर नहीं जानते। उन्होंने हिंदुओं को भी अपने समाज में राष्ट्रीय विषयों पर जागरूकता की अपील की ताकि हिन्दू महिलायें भी अपने अधिकारों का लाभ उठा सकें जो उन्हें संविधान ने दिये हैं।

एक प्रश्नोत्तर में उन्होंने कहा कि मुसलमानों में भी हदीसों को लेकर बहुत अज्ञान हैं क्योंकि निहित स्वार्थ उन्हे भी इस्लाम का हिस्सा बताते हैं जबकि उनमें बहुत सी बातें बेतुकी ही नहीं, असहनीय हैं और पैगंबर की निंदा करती हैं। इस्लाम एकमत होकर  हदीसों से जितनी जल्दी छुटकारा पा ले, उतना अच्छा।

@ रवीन्द्रनाथ कौशिक , देहरादून, 19  जुलाई 2023

 

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