जगदीश गुप्ता का कोरोना कालीन व्यंग्य- ‘तीसरी शर्त’- समस्या हेयर कटिंग की-1

मेरे प्यारे साथियो,
कल किये वादे के अनुसार हेयरकटिंग की समस्या पर आधारित व्यंग्यालेख “तीसरी शर्त ” का प्रथम भाग पेश है, इस मनोरंजक आख्यान का आनन्द लें।

तीसरी शर्त (प्रथम भाग)
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पोस्ट का शीर्षक पढ़कर आपको कौतूहल हो रहा होगा। कुछ मित्रों को फिल्म ‘तीसरी कसम’ व श्री केशव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ का स्मरण आ गया होगा लेकिन इस पोस्ट का उक्त फिल्म व उपन्यास से कोई सम्बन्ध नहीं है।यह पोस्ट हास्य व व्यंग्य से सराबोर है जिसमें कुछ हकीकत है कुछ फसाना है जिसे पढ़कर आप निश्चित ही आनन्दित होंगे:—-
वर्तमान समय में भारत समेत पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है।हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी व समस्त प्रदेशों के मुख्यमंत्री अपनी टीम के साथ इस आपदा से निपटने के लिए जी-जान से लगे हुये हैं व इस महामारी से कैसे बचा जाये इसके लिये जनता को जागरूक भी किया जा रहा है।इसी कड़ी में पहले जनता कर्फ्यू व उसके बाद लगातार तीन लाकडाउन की घोषणा की गई,अभी भी हम लाकडाउन में जी रहे हैं। सरकार की ओर से आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता की व्यवस्था लगभग प्रत्येक मुहल्ले में कर दी गई है यहां तक कि शराबियों व बेवड़ों के लिये शराब की दुकानें भी खोलने का आदेश दे दिया गया है लेकिन एक अति विकट समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं गया।यह समस्या कोरोना से कम भयावह नहीं है।कोरोना तो दो-तीन माह में चला जायेगा लेकिन ऐसी भयावह समस्या छोड़ जायेगा जिसका निदान होने में शायद सालों लगें।इस समस्या से सम्पूर्ण पुरुष वर्ग पीड़ित है। यह विकट व विकराल समस्या है,हेयरकटिंग की।
हमने अपना हेयरकट फरवरी में कराया था, मार्च में जैसे ही हेयरकट का समय आया उसके तीन-चार दिन पहले ही लाकडाउन घोषित हो गया।हमने सोचा कि कुछ ही दिनों की तो बात है..काम चला लेंगे,वैसे भी बाहर तो जाना नहीं है।लेकिन पहला लाकडाउन समाप्त होने से पहले ही जब दूसरे लाकडाउन की घोषणा हुई तो माथे पर चिन्ता की लकीरें खिंच गयीं ।अब तक बाल मोगली की तरह हो चुके थे, बेहद ही बेतरतीब।हमने अपने कुछ मित्रों से इस समस्या के निदान हेतु मशविरा किया तो वे अपना ही दुखड़ा रोने लगे।पहले जिन घने व लहराते बालों पर हम इतराते थे वे ही बाल अब बोझ लगने लगे।हमें वे दिन भी याद आने लगे जब हमारे जैसे बालों वाले मित्र उन साथियों का मजाक उड़ाया करते थे जिनके सिर से बाल गायब हो चुके थे अथवा उंगलियों में गिनने लायक बाल बचे थे।एक ऐसा ही किस्सा याद आता है कि जब हम बुन्देलखण्ड के एक छोटे से जिले में एडीएम थे तो लखनऊ एक बैठक में भाग लेने आये थे,वहीं पर एक साथी जो सफाचट खोपड़ी के थे व एक महानगर में एडीएम थे,से किसी बात पर विवाद हो गया।वह गुस्से में बोले कि तुम एक सड़ियल जिले के एडीएम हो…जीप में चलते हो…मुझे देखो..मैं इतने बड़े जिले का एडीएम हूं मेरे पास चमचमाती अम्बेसडर कार है, बड़े रसूखदार लोगों व नेताओं से घनिष्ठता है व मेरा काफी बड़ा सोशल सर्किल है…तुम्हारे पास क्या है?मैंने सिर्फ एक लाइन में उत्तर दिया कि…मेरे पास बाल हैं।यह सुनते ही वहां हास्य का माहौल हो गया व उन सज्जन के चेहरे पर जो भाव आये उसे देखकर अमिताभ बच्चन भी शर्मा जायें। लगता है कि ऐसे सज्जनों की बद्दुआओं का ही फल है जो ऐसे दिन देखने को मिल रहे हैं।लोग सही कहते हैं कि घूरे के दिन भी फिरते हैं।अब तो दिन में भी सपने आने लगे हैं कि जिन केशविहीन लोगों का हम मजाक उड़ाया करते थे वे सब हमारे चारों ओर घूमकर अट्टहास कर रहे हैं व हमारी बेबसी का मजाक उड़ा रहे हैं।
खैर मूल विषय पर आते हैं।हमें यह पूरी उम्मीद थी कि दूसरे लाकडाउन के बाद स्थिति सामान्य हो जायेगी और हम सैलून में जाकर अपने मनपसन्द बार्बर से हेयरकट करवा लेंगे परन्तु लाकडाउन खत्म होने के पहले ही यह अफवाह उड़ने लगी थी कि लाकडाउन अभी बढ़ेगा।हमने इन अफवाहों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन मन में एक डर बैठ गया कि अगर लाकडाउन बढ़ गया तो हेयरकटिंग का क्या होगा, कहीं ऐसा न हो कि महाकवि केशव की पंक्ति ‘चन्द्रवदन मृगलोचिनी बाबा कहि कहि जायें ‘का शिकार हम भी हो जायें।इसी उहापोह के बीच यह न्यूज आई कि प्रधानमंत्री दूसरे लाकडाउन की समाप्ति के पूर्व देश को सम्बोधित करेंगे।यह न्यूज सुनकर हम पूरी तरह आशान्वित हो गये कि हमारी समस्या के हल हेतु प्रधानमंत्री जी जरूर कुछ कहेंगे क्योंकि यह समस्या केवल हमारी नहीं बल्कि देश की आधी आबादी की है।जिस दिन सम्बोधन होना था उस दिन हम समय से नहाधोकर नियत समय से दस मिनट पहले ही टीवी के सामने टकटकी लगाकर बैठ गये व पहली बार उनका पूरा सम्बोधन सुना।पूरे सम्बोधन में हेयरकट की समस्या का कोई जिक्र नहीं आया,तब हमें महसूस हुआ कि हमारे प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात तो कह देते हैं परन्तु जनता के मन की बात को नहीं समझते हैं।सम्बोधन में 17 मई तक लाकडाउन बढ़ाने की घोषणा सुनकर हृदय दुख के सागर में डूब गया और हमें फिर अपने बालों का डर सताने लगा यथा यह डर भी लगने लगा कि इन बालों के कारण कहीं हम अवसाद में न आ जायें।
इससे उबरने के लिए हमने सोचा कि हम खुद अपनी हेयरकटिंग करेंगे।अगले ही दिन बाथरूम में शीशे के सामने खड़े होकर सबसे पहले हमने कैंची से कलम के बढ़े बालों की छंटाई की, इसके बाद माथे के नीचे आंखों तक लटक आये बालों को साधना स्टाइल में काटा।लेकिन अब समस्या यह आ रही थी कि कानों के ऊपर चढ़ आये व गर्दन के ऊपर झाड़ी की तरह बेतरतीब बालों को कैसे काटा जाये।यह कार्य खुद के द्वारा किया जाना असम्भव था तो सोचा इस बचे हुये कार्य के लिए घर में स्थायी रूप में रह रहे सेवक की सेवाएं ली जायें लेकिन यह विचार क्षणमात्र में इस सोच के आधार पर खारिज कर दिया गया कि पता नहीं पूर्व की किस डांट को वह सीने से लगाये हो व प्रतिकार करने का अवसर तलाश रहा हो जो उसे सहज में ही उपलब्ध हो जायेगा।
कोई चारा नहीं सूझ रहा था कि समस्या से कैसे निपटा जाये।कलम व माथे के बालों की कटाई के बाद तो सिर के बालों की स्थिति और भी हास्यास्पद हो गई थी, सामने के बाल छोटे व कान व गर्दन के ऊपर के बाल झाडियों व झुरमुट जैसे।कहते हैं न कि जब कोई भी रास्ता न सूझे तो आदमी को ईश्वर की शरण में जाना चाहिए जो कोई न कोई राह अवश्य दिखायेंगे।हमने भी अपनी आत्मा की गहराइयों से अत्यंत आर्त्त स्वर में परमपिता परमेश्वर से अपनी व्यथा बताई।सच्चे दिल से की गई प्रार्थना भगवान जरूर सुनते हैं और हमारे साथ भी यही चमत्कार हुआ।अगले दिन सुबह जब हम रोज की तरह व्हाट्सएप मैसेज पढ़ रहे थे तो एक वीडियो दिखाई दिया जिसमें म.प्र. के एक जिले के कलेक्टर की पत्नी अत्यंत मनोयोग से अपने कलेक्टर पति की हेयरकटिंग कर रही थीं।यह वीडियो देखकर हम उछल पड़े और अपने को कोसते भी रहे कि हमारे भारीभरकम दिमाग में यह आइडिया पहले क्यों नहीं आया? कहावत है न कि बगल में छोरा गांव में ढिंढोरा।
लेकिन अब एक नई समस्या यह आ गई कि पत्नी को इसके लिये कैसे मनाया जाये? यह एक दुष्कर कार्य था लेकिन कोई विकल्प भी नहीं था।उम्र के इस पड़ाव में पत्नी से अपनी बात मनवा लेना अत्यंत कठिन है, इसका उत्तर सभी सुधी पाठकों को मालूम ही होगा अतः इसकी विस्तृत व्याख्या किया जाना समय व श्रम का अपव्यय ही होगा।
अब हम यह प्लानिंग करने में जुट गये कि किस कौशल से धर्मपत्नी जी को इस कार्य के लिए मनाया जाये। हमारे बुद्धिकौशल व कूटनीति की परीक्षा की घड़ी आ गई थी जिसमें हमें अपने तरकश के सभी तीरों का प्रयोग करना था।हमने सोचा कि कल उनका मूड देखकर आवश्यकता अनुसार अपने तीरों को चलायेंगे।। क्रमशः….
नोट:-क्या हम अपनी धर्मपत्नी को हेयरकटिंग करने के लिए मना पाये? इसके लिए हमने अपने तरकश के किन तीरों का प्रयोग किया इसके लिये पोस्ट के अगले भाग की प्रतीक्षा करें।
@व्यंग्यकार जगदीश गुप्ता उत्तर प्रदेश सरकार में आईएएस अधिकारी हैं

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