पंजाब में न दें दखल,वरना….कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बता दी सोनिया की सीमाएं

कैप्टन की सोनिया को चिट्ठी के भाव पढ़िये, शब्द नहीं – ‘आप कांग्रेस के मामलों में दखल दे रही हैं!’

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को जो चिट्ठी लिखी है वो एक अलर्ट से बहुत आगे की बात है. ध्यान से समझने पर मालूम होता है कि सोनिया और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लिए कांग्रेस अब आउट-ऑफ-कंट्रोल हो चुकी है और प्रभारी हरीश रावत सिर्फ सोनिया गांधी की इज्जत बचाने को भाग दौड़ कर रहे हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) ने भी करीब करीब वैसे ही लक्ष्मण रेखा खींचने की कोशिश की है, जैसे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने – निडर लाइन. कैप्टन को किसी भी तरह का ‘दखल’ बर्दाश्त नहीं हो रहा है – और राहुल गांधी को ‘डर’. कांग्रेस का सच यही है, बाकी सब मिथ्या है.

पंजाब के मुख्यमंत्री अलग अलग तरीके से कांग्रेस नेतृत्व को लगातार आगाह करने की कोशिश करते आ रहे हैं – और मीडिया के सामने आकर अगर बयान देते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व का जो भी फैसला होगा मंजूर होगा, तो ये उनके मन ने निकली बात या हार्दिक इच्छा हरगिज नहीं है, ये तो नेतृत्व के प्रति सम्मान प्रकट करने की तहजीब का हिस्सा भर है.

‘ठंडा मतलब कोका कोला’ वाले अंदाज में कैप्टन अमरिंदर सिंह के ओएसडी ने वो फेसबुक पोस्ट जरा याद कीजिये – ‘पंजाब में कांग्रेस मतलब कैप्टन अमरिंदर सिंह ही है.’

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जिस अंदाज में ताजा कदम बढ़ाया है, वो बात तो बहुत पहले ही उनके ओएसडी की तरफ से सामने आयी थी. अब उसी बात को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को चिट्ठी लिख कर बयां किया है. पंजाब को लेकर कैप्टन या उनके आदमी मानते हैं कि पंजाब में कांग्रेस का मतलब कैप्टन ही है, फिर तो जाहिर है दिल्ली से किसी भी तरह का दखल उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ही समझा जाना चाहिये. आखिर कैप्टन अमरिंदर सिंह के कहने का मतलब भी तो यही समझ में आ रहा है.

असल बात तो ये है कि कैप्टन ने एक चिट्ठी के माध्यम से कांग्रेस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की हदें बता दी है – दोनों के सामने एक लक्ष्मण रेखा भी है, ये बता दिया है. जैसे जियो और जीने दो होता है, वैसे ही तुम भी बने रहो और हमें भी बने रहने दो. वरना, न हम रहेंगे और न तुम रहोगे. कुछ ऐसा वैसा हुआ तो हम तो डूबेंगे ही हुजूर, तुम सबको भी ले डूबेंगे.

और ये कोई पंजाब का ही अकेला मामला नहीं है. राजस्थान की भी बिलकुल यही कहानी है. हरियाणा का भी यही हाल रहा और मध्य प्रदेश में भी कमलनाथ ने वही किया जो वो चाहते थे – मनमर्जी. ज्यादा नुकसान तो कांग्रेस का ही हुआ. कमलनाथ तो वैसे भी हमेशा के लिए साहिबे-मसनद हुए नहीं थे.

मुश्किल तो ये है कि सोनिया गांधी या राहुल गांधी का कोई दबदबा नहीं रह गया है – खास तौर पर दंबग क्षेत्रीय नेताओं के ऊपर. और अगर सूरत-ए-हाल ऐसा ही है तो आखिरी फैसला वो क्या सुनाएंगे – फैसले पर रबर स्टांप की तरह दस्तखत करके ट्विटर पर प्रेस रिलीज जारी करा दिया करेंगे.

खत लिखा, खत में लिखा!

निडर कांग्रेसी न होने का तमगा तो राहुल गांधी किसी सूरत में कैप्टन अमरिंदर सिंह पर लगा भी नहीं सकते. एक कैप्टन अमरिंदर सिंह ही तो हैं जिनको संघ और बीजेपी नेता पाकिस्तान परस्त करार देने का साहस भी नहीं जुटा पाते, जबकि राहुल गांधी हमेशा निशाने पर रहते हैं.

वैसे राहुल गांधी के नजरिये से निडर होने का मतलब क्या होता है – क्या नवजोत सिंह सिद्धू का इमरान खान से गहरी दोस्ती का इजहार करना या फिर निडर होकर पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलना?

जैसे अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का मुलायम सिंह यादव का गुरूर मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में चूर चूर हो चुका है, सिद्धू को कैप्टन के तौर पर पेश करने का सोनिया गांधी और राहुल गांधी का प्रयोग भी मिलता जुलता ही रिजल्ट देने वाला है.

हिंदुत्व की राजनीति में सॉफ्ट-हिंदुत्व के हथियार से जनेऊ पहन कर शिकार पर निकलना भी फिजूल की कवायद ही होती है – क्योंकि एक राज्य में शिवसेना के साथ सरकार बनाने और दूसरे राज्य में एक मौलवी के साथ चुनावी गठबंधन की स्मार्ट पॉलिटिक्स को भी लोग आसानी से समझ लेते हैं.

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और गांधी परिवार दोनों तरफ से बैटिंग हो रही है – और नवजोत सिंह सिद्धू बॉल बन कर रह गये हैं!

कैप्टन अमरिंदर सिंह को सिद्धू की भी सरहदें मालूम हैं और राहुल गांधी की भी. कैप्टन जानते हैं कि सिद्धू ने राहुल गांधी को कैप्टन बोल कर भले ही अपना फैन बना लिया है, लेकिन पंजाब का वोट देने वाला हर नौजवान सिर्फ शेरो-शायरी का ही शौकीन नहीं है. और ये भी जानते हैं कि सिद्धू तभी तक उफान भरते हैं जब तक पीठ पर दिल्ली वाले कैप्टन का हाथ होता है. 2019 के आम चुनाव की हार को राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद सिद्धू ने दिल्ली दौरे को लेकर अहमद पटेल और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ एक तस्वीर शेयर की थी – और उसके कुछ दिन बाद पहले से लिखा हुए इस्तीफे की कॉपी. सोनिया और प्रियंका गांधी से अगली मुलाकात तक सिद्धू क्या करते रहे किसी को पता है भी? चुनाव में एक बार सिद्धू के विरोध के बाद हरियाणा के ही नेता सिद्धू के कैंपेन के खिलाफ लामबंद हो गये थे – सिद्धू की जरूरत नहीं है. अभी अभी जो एक्टिव हुए हैं, सिद्धू उससे पहले कहां थे – क्या गांधी परिवार के अलावा किसी को मालूम था? यहां तक कि ट्विटर पर उनके फॉलोवर को भी कम ही मालूम पड़ता था.

सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर तो नहीं, लेकिन सिद्धू का सोनिया गांधी से 10, जनपथ जाकर मिलना, कैप्टन अमरिंदर सिंह को बर्दाश्त नहीं हुआ, तभी चिट्ठी लिखने का फैसला किया. बात भी तो इतनी ही नहीं थी, उसके बाद से सिद्धू की हरकतें भी तेज हो गयीं और कैप्टन को कुछ और भी भनक लग गयी.

अभी सिद्धू पहुंचे भी नहीं थे कि समर्थक गुलदस्ते लेकर उनके घर पहुंचने लगे. लुधियाना में सिद्धू के समर्थक मिठाइयां बांटने लगे और जश्न मनाने लगे. सिद्धू को बधाई देते पोस्टर भी लगा दिये गये – यहां तक कि चंडीगढ़ में कांग्रेस दफ्तर के बाहर ढोल नगाड़े के साथ सिद्धू के समर्थक पहुंच गये.

विरोधस्वरूप सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिख कर, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्य रूप से तीन बातों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व को आगाह करने की कोशिश की है.

1. ‘कांग्रेस आलाकमान जबरन पंजाब की राजनीति और सूबे की सरकार के मामले में दखल दे रहा है’ – किसी पारिवारिक पार्टी के सर्वेसर्वा के लिए इससे बड़ा विरोध का कोई स्वर हो सकता है?
2. केंद्रीय नेतृत्‍व को समझना चाहिये कि पंजाब के हालात इतने अनुकूल नहीं हैं कि हालात और हकीकत को हाशिये पर रख कर मन माफिक फैसला लिया जा सके.
3. कांग्रेस नेतृत्व के फैसले लेने में छोटी सी चूक भी पार्टी के खिलाफ जा सकती है – और उसका नुकसान पार्टी और राज्य सरकार दोनों को उठाना पड़ सकता है.
फिर क्या समझा जाये? राहुल गांधी ने गांधी परिवार के खिलाफ कांग्रेसियों का मूड पहले ही भांप लिया था – और परिवार से बाहर के किसी को अध्यक्ष बनाने की पहल कर बैठे. ऐसा भी नहीं कि सोनिया गांधी को भी ये महसूस नहीं हुआ होगा – और एक डर ही रहा जो सोनिया गांधी ने अपने बेहद भरोसेमंद सिपाहियों की मदद से कमान अपने हाथ में ले लिया.

 

पंजाब में मुख्यमंत्री के ओएसडी अंकित बंसल के एक फेसबुक पोस्ट पर खूब बवाल हुआ था और शिकायत कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल तक पहुंची थी. अंकित बंसल ने लिखा था – ‘ये वही आलाकमान है जिसने कैप्टन अमरिंदर सिंह को कम करके आंक रहा था और उसी के चलते पार्टी पंजाब में 10 साल तक सत्ता से दूर रही. पंजाब में कांग्रेस को किसने खड़ा किया… पंजाब में कांग्रेस मतलब कैप्टन अमरिंदर सिंह ही है. जो लोग सपने देख रहे हैं वे फिर से धूल फांकते रहेंगे. हम कैप्टन के साथ हैं.’

पुरखों की समझाइश को समझें तो सोनिया गांधी को भी चिट्ठी को तार के तौर पर लेना होगा – और ‘थोड़ा लिखा, ज्यादा समझें’ के नफा-नुकसान को दिमाग में रख कर ही कोई फैसला लेना ठीक रहेगा.

पंजाब कांग्रेस की सबसे कमजोर कड़ी है

फर्ज कीजिये – सोनिया गांधी चिट्ठी को दरकिनार कर नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर देती हैं, तो कैप्टन अमरिंदर सिंह का अगला कदम क्या होगा और अगले कदम के आगे के नतीजे क्या होंगे?

सोनिया गांधी की तरफ से कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने फिर से कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात की है – और कहा है, आलाकमान जो भी फैसला लेगा कैप्टन अमरिंदर सिंह उसे मानेंगे. नयी बात क्या है, चिट्ठी लिखने से पहले भी तो कैप्टन ने सार्वजनिक तौर पर यही बयान दिया था.

समर्थकों में जश्न के माहौल के बीच, नवजोत सिंह सिद्धू मुलाकात-यात्रा पर निकल पड़े हैं. मीटिंग में जिन नेताओं पर कैप्टन पर दबाव बढ़ाने के लिए इस्तीफा देने की सलाह दे रहे थे – और घर घर जाकर उनसे मुलाकात कर रहे हैं. पंजाब कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष सुनील जाखड़ से मिलने के बाद सिद्धू – सुखजिंदर सिंह रंधावा, बलबीर सिंह, लाल सिंह, गुरप्रीत सिंह कांगड़ जैसे नेताओं से मिल चुके हैं और ये सिलसिला जारी है.

सिद्धू को तो आलाकमान के यहां से मनमाफिक फैसला आने की उम्मीद है ही, कैप्टन को भी लग रहा होगा कि चिट्ठी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा, लेकिन तब क्या होगा अगर कैप्टन के खिलाफ सोनिया गांधी ने फैसला सुना दिया या फिर वो सिद्धू के खिलाफ हुआ?

सिद्धू तो समझ ही गये हैं कि अभी नहीं तो आगे भी नहीं. अगर आगे ऐसा मौका मिले भी तो जरूरी नहीं कि किसी काम का होगा. चुनावी तैयारियों की जगह झगड़े में उलझी कांग्रेस के लिए जोखिम बढ़ता जा रहा है जिसकी समझ कैप्टन को भी है और सिद्धू को भी. सिद्धू वैसे भी ये सब चुनावों के ऐन पहले ही करते हैं.

अब अगर कैप्टन के दबाव में सिद्धू को पंजाब कांग्रेस की कमान नहीं मिलती तो वो पाला बदल कर कहीं और चले जाना ही पसंद करेंगे – पहली संभावना तो आम आदमी पार्टी ही लगती है, लेकिन अगर बीजेपी भी गले लगाकर घर वापसी करा ले तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिये. पंजाब में वैसे भी बीजेपी को एक चेहरे की जरूरत तो है ही – और सिद्धू के फिर से भगवा ओढ़ते ही इमरान खान और बाजवा से गले मिलने वाली बातें पीछे छूट जाएंगी. जैसा कि कांग्रेस के अब सत्ता में लौटने की संभावना धीरे धीरे खत्म होती जा रही है, आखिर सिद्धू को ये चिंता भी तो होगी ही कि वो विपक्ष की राजनीति में क्या करेंगे? वैसे भी सिद्धू खुद ही बता चुके हैं राजनीति से घर का खर्चा तो चलता नहीं, लेकिन राजनीति लड़खड़ा जाने पर कपिल शर्मा के शो में ठोको ताली के मौके भी हाथ से फिसल जाते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ और ’84 के दिल्ली सिख दंगों की वजह से पंजाब अब भी कांग्रेस की कमजोरी बना हुआ है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के दमखम से ही कांग्रेस पंजाब में सरकार बनाने में सफल हुई थी, लेकिन वैसे ही जैसे केंद्र में कांग्रेस से ऊब कर लोगों बीजेपी को सत्ता सौंप दी, पंजाब बादल परिवार को लोगों की नाराजगी भारी पड़ी.

अकाली नेता हरसिमरत कौर का भी संसद में राहुल गांधी के प्रति वैसा ही रुख देखने को मिलता रहा है, जैसा स्मृति ईरानी का. अब जबकि बीजेपी से नाता तोड़ चुकी हैं, किसान आंदोलन के दौरान भी हरसिमरत सिमरत कौर ने पंजाबियों और सिखों के नाम पर ही राहुल गांधी पर हमला बोला था. जाहिर है बीजेपी के आक्रमण का लाइन-लेंथ भी चुनावों के दौरान इर्द-गिर्द ही होगा.

अपनी बात की 10, जनपथ में अहमियत नहीं समझे जाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह अलग रास्ता अख्तियार करने के लिए भी कदम बढ़ा सकते हैं, लेकिन वो राह भी काफी मुश्किल है. सबसे बड़ी मुश्किल कैप्टन की उम्र है जो पहले जैसे काम तो करने देने से रही.

अगर अमरिंदर सिंह भी शरद पवार और ममता बनर्जी के रास्ते चलने का फैसला करते हैं तो दोनों ही नेताओं की कामयाबी मिसाल बनी हुई है. देखा जाये तो मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में ममता बनर्जी और शरद पवार, राहुल और सोनिया गांधी के मुकाबले कही ज्यादा असरदार और विपक्षी खेमे में दखल रखते हैं. अमरिंदर सिंह को सेकंड ओपिनियन के तौर पर गुजरे जमाने की कांग्रेस में माधवराव सिंधिया और बाद में राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी के बाहर कदम बढ़ाने और फिर घर लौट आने के अनुभवों को भी ध्यान में रखना होगा.

लेकिन जो अमरिंदर सिंह पांच साल पहले ही सबके सामने कह चुके हों कि वो आखिरी पारी खेल रहे हैं, वो भी चुनाव मैदान में कांग्रेस के संसाधनों के साथ उतरने के बावजूद – क्या 79 साल की उम्र में नये सिरे से नये तरीके के जोखिम उठाने का फैसला करना चाहेंगे?

ऐसे में तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की सोनिया गांधी को चिट्ठी भी गीदड़भभकी से ज्यादा नहीं लगती – और पंजाब को लेकर अपनी कमजोरी के साथ साथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी कैप्टन की कमजोरी भी अच्छी तरह समझ रहे हैं.

लेखक
मृगांक  शेखर @mstalkieshindi

­

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *