शक्तिमान प्रकरण में गणेश जोशी, जोगेंद्र पुण्डीर, राहुल रावत आदि निर्दोष

शक्तिमान प्रकरण में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी सहित पांच बरी , सीजेएम कोर्ट ने सुनाया फैसला
शक्तिमान प्रकरण में सीजेएम लक्ष्मण सिंह की कोर्ट ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी को बरी कर दिया है। 2016 बजट सत्र के दौरान भाजपा विधायक व कार्यकर्ताओं ने कांग्रेसी सरकार के खिलाफ विधानसभा तक रैली निकाली थी।इस दौरान पुलिसकर्मियों व भाजपा समर्थकों के बीच झड़प भी हुई थी।
शक्तिमान प्रकरण में सीजेएम लक्ष्मण सिंह की अदालत ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी को बरी कर दिया है।

देहरादून : शक्तिमान प्रकरण में मुख्य मजिस्ट्रेट लक्ष्मण सिंह की अदालत ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी सहित पांच अन्य आरोपितों को दोषमुक्त करार दिया है। शिकायतकर्त्‍ता रविंदर सिंह (पुलिस के घुड़सवार) ने 15 मार्च, 2016 को तहरीर दी थी कि 14 मार्च को वह विधानसभा सत्र के दौरान विधानसभा चौराहे पर ड्यूटी पर थे। इसी बीच भाजपा कार्यकत्र्ताओं का एक जलूस पहुंचा। जुलूस का नेतृत्व भाजपा के तत्कालीन विधायक गणेश जोशी कर रहे थे।

इस दौरान गणेश जोशी, प्रमोद बोरा, जोगेंद्र सिंह पुंडीर, अभिषेक और राहुल रावत डंडे लेकर मौके पर पहुंचे। उन्होंने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए सरकारी ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। आरोप था कि इस दौरान शक्तिमान घोड़े के पांव पर डंडे से प्रहार किया गया, जिससे वह दिव्यांग हो गया। इलाज के दौरान घोड़े की मौत हो गई। इस मामले में नेहरू कालोनी थाने की पुलिस की ओर से पांचों लोग के खिलाफ बलवा, मारपीट और पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में गणेेश जोशी और प्रमोद बोरा को 19 मार्च को गिरफ्तार भी कर लिया गया था। हालांकि 22 मार्च को उन्हें जमानत भी मिल गई थी।
14 मार्च 2016 को विधानसभा कूच के दौरान गणेश जोशी, योगेंद्र रावत समेत पांच लोगों पर पुलिस के घोड़े शक्तिमान की टांग तोड़ने का आरोप था। तब यह मामला सोशल मीडिया पर बेहद चर्चित हुआ था। गणेश जोशी को कुछ वक्त जेल में भी रहना पड़ा था।
शक्तिमान (पुलिस का घोड़ा) की मौत के मामले में आरोपी कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी समेत पांचों आरोपियों को सीजेएम (मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। इस मामले में आरोपियों पर लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए अभियोजन के पास पर्याप्त ठोस सुबूत नहीं थे। अदालत के फैसले के बाद मंत्री गणेश जोशी ने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ प्रसन्नता भी जाहिर की।

मामला वर्ष 2016 का है। 14 मार्च को विधानसभा सत्र के दौरान भाजपा का प्रदर्शन था। तत्कालीन विधायक गणेश जोशी अन्य नेताओं के साथ रिस्पना पुल पर मौजूद थे। यहां उन्हें भारी पुलिस फोर्स ने बैरिकेडिंग कर रोक लिया। इस दौरान घुड़सवार पुलिस भी मौजूद थी। प्रदर्शन के बीच शक्तिमान नाम के पुलिस के घोड़े का पैर टूट गया। प्रदर्शन वहीं समाप्त हो गया और शक्तिमान का पुलिस लाइन में इलाज शुरू किया गया। इसके बाद पुलिस ने नेहरू कॉलोनी थाने में तत्कालीन विधायक गणेश जोशी, प्रमोद बोरा, जोगेंद्र सिंह पुंडीर, अभिषेक गौड़ और राहुल रावत के खिलाफ एक राय होकर बलवा, पुलिस से मारपीट, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने और घोड़े को घायल करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने 18 मार्च 2016 को गणेश जोशी को एक होटल से गिरफ्तार कर लिया था। इस बीच शक्तिमान का इलाज चल रहा था। गणेश जोशी को 22 मार्च को जमानत मिल गई।

20 अप्रैल 2016 को शक्तिमान की मृत्यु हो गई। मामले में पुलिस ने पांचों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। बीच में दो बार मुकदमा वापसी की अर्जी भी सरकार की ओर से कोर्ट में लगाई गई, लेकिन न्यायालय ने इससे इनकार कर लिया। मुकदमे का करीब चार साल ट्रायल चला। बृहस्पतिवार को सीजेएम लक्ष्मण सिंह की अदालत ने माना कि अभियोजन पूरे मामले में आरोपों को सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सुबूत प्रस्तुत नहीं कर सकी। ऐसे में अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए पांचों आरोपियों को ससम्मान बरी कर दिया।

अभियोजन ने पेश किए 18 गवाह, कोर्ट में साबित हुई दुर्घटना

मुकदमे में अभियोजन की ओर से पुलिसकर्मियों समेत कुल 18 गवाह प्रस्तुत किए थे, लेकिन इनमें से डॉक्टर की गवाही के आधार पर शक्तिमान की टांग तोड़ने नहीं बल्कि एक दुर्घटना साबित हुआ है। मामले में वीडियो भी प्रस्तुत किया गया था। इससे भी जोशी व अन्य पर दोष सिद्ध नहीं हो पाए।

दरअसल, 14 मार्च 2016 को घोड़े की टांग टूटी थी। कुछ पुलिसकर्मी वहां की वीडियोग्राफी भी कर रहे थे। एक वीडियो में दिखा कि विधायक गणेश जोशी ने घोड़े के सामने डंडा उठाया हुआ है। इस वीडियो के आधार पर पुलिस ने गणेश जोशी व चार अन्य के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज किया। अदालत में गवाहों से जिरह हुई तो टांग टूटने को क्रूरता नहीं बल्कि एक दुर्घटना माना गया। अदालत में बचाव पक्ष ने भी एक वीडियो प्रस्तुत की। इससे साबित हुआ कि भीड़ के बीच किसी ने घोड़े का चमड़ा खींचा था। इसमें गणेश जोशी नहीं दिख रहे हैं। गणेश जोशी के हाथ में डंडा जरूर है, लेकिन वह घोड़े के सामने हैं।

अदालत में डॉक्टर ने बयान दिए कि घोड़े के सामने के हिस्से पर कोई चोट नहीं है। घोड़े का चमड़ा खींचने से वह नीचे गिरा और उसका बांया पैर पीछे एंगल में फंस गया। ऐसे में यह सब एक दुर्घटना साबित होता है। मामले में अभियोजन ने पुलिसकर्मियों समेत कुल 18 गवाह प्रस्तुत किए थे।

इस मामले में पुलिस की ओर से 16 मई, 2016 को कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल किया गया। अदालती कार्रवाई के बीच अक्टूबर महीने में गृह विभाग की ओर से जोशी के खिलाफ दर्ज मुकदमों को वापस लेने का आदेश जारी किया। पांच साल कोर्ट में केस चलने के दौरान बचाव पक्ष से चार गवाह, वहीं अभियोजन पक्ष से 18 गवाह पेश किए गए। गवाहों के बयानों के आधार पर स्पष्ट हुआ कि गणेश जोशी ने डंडे से घोड़े के मुंह की ओर प्रहार किया। भीड़ के दौरान घोड़ा अनियंत्रित होकर पीछे की ओर हुआ और वहीं सड़क पर लगे लोहे के एंगल से टकराने से उसकी पिछली टांग टूट गई

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