शाहजहां ने बताया कि कैसे हुआ हिंदू गुलाम

शाहजहाँ ने बताया था, हिंदू क्यों गुलाम हुआ ?
समय न हो तो भी, समय निकाल कर एक बार तो अवश्य पढें ।🙏
किसी ने सच ही कहा था:
देश को डस लिया ज़हरीले नागो ने, घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने।

साथियों समुंद्र मंथन की पौराणिक कथा हमें यह सीखाती है कि हमारे देश में सदा से ही दो विरोधी पक्ष रहें है जो सम्पत्ति बटवारे के चक्कर में एक दूसरे के खून के प्यासे रहे है। ऐसे में उनके बीच में अमृत कलश को बराबर बांटने के चक्कर में एक समझौता हुआ जिसमें निर्णय हुआ कि सभी को अमृत बंटेगा और फिर सभी को पंक्तिबद्घ बैठा दिया गया , योजना थीं कि अमृत पान केवल देवताओं को करा कर समाप्त कर दिया जाएगा यदि आसुरी शक्ति ने इसे पी लिया तो पूरी मानवता खतरे में आ जाएगी।
किन्तु एक आसुरी शक्ति इस खेल को समझ गई और रुप बदल देवताओं की पंक्ति में बैठ कर अमृत पान कर गई जब तक यह पता चला तब तक उसने अमृत पान कर लिया था। इस पर सुदर्शन चक्र चला जिससे यह दो भागों में बंट गई किन्तु समाप्त नहीं हुई और राहु, केतु कहलाई और आज भी यह आसुरी शक्ति- राहु केतु के रुप में हम सभी को कैसे न कैसे प्रताड़ित करती चली आ रही है।

इस पूरी कथा में मेरा ध्यान इस तरफ गया कि इन बुरी मायावी शक्तियों को जब भगवान् भी नहीं पहचान पाया तो आपकी हमारी तो औकात ही क्या है? ये बुरी शक्तियों हमारे आसपास ही रहती है और हम इन्हें समय पर पहचान नहीं पाते है। इनकी पहचान इनके कुत्सित विचारों से उस समय होती है जब यह नाग की तरह जहर उगलना शुरू कर देते है। ऐसे राहु – केतु का जन्म हमेशा बुरे को ही होता है तभी गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम चरित मानस में लिखा कि

दुष्ट उदय जग आरति हेतू। जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू॥
भावार्थ:-दुष्ट का अभ्युदय (उन्नति) प्रसिद्ध अधम ग्रह केतु के उदय की भाँति जगत के दुःख को ही होता है॥
साथियों इस पोस्ट की इतनी बड़ी भूमिका मैने इसलिए लिखी कि आज प्रातः तीन बजे से ही मैने मुग़लकालीन एक प्रमुख पुस्तक चचनामा को सरसरी तौर पर देखा और दूसरी पुस्तक जो कि शाहज़हां के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी लिखित बादशाहनामा है, में वर्णित एक पोस्ट से उद्घृत एक किस्से की पोस्ट पढ़ी। इस पोस्ट में बताया गया कि हम हिन्दुस्तानी गुलाम क्यों बने। उस पोस्ट के कुछ ऐसे तथ्य को जो मुझे ठीक नहीं लगे को संशोधित कर में आप सब के चिंतन के लिए यहां दे रहा हूं आप भी पढिए और सोचिए कि क्या वास्तव में ऐसा ही है?

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था ।

तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार, सेनापति, अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था ।

उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा व्यथा थी ।

तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे ।

समय चक्र पलटा, दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सिंहासन भी लूट लिया । इसी मयूर सिंहासन को फारसी भाषा में तख्त-ए-ताऊस कहा जाने लगा ।

दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौर ने अपनी पदचापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौर शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया ।

सलावत खां – ठहर जाओ अमर सिंह जी, आप आठ दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।

अमर सिंह – मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है, फौज है, मैं किसी का गुलाम नहीं ।

सलावत खां – आप राजा थे ।अब हम आपके सेनापति हैं, आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है । शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।

अमर सिंह – अगर मैं जुर्माना ना दूँ ।

सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर, ये काफि़र आपके सामने हुकूमउदूली कर रहा है ।

अमर सिंह के कानों ने काफि़र शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया, तलवार बिजली की तरह निकली और अकड़ कर बैठे मुगल सेनापति सलावत खां की गर्दन नीचे जा गिरी ।
दरबार में हड़कंप मच गया । वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया और शाहजहां का हाथ पकड़कर उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।

दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।

बादशाह – हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया्, या खुदा ।

वज़ीर – जी जहाँपनाह ।

बादशाह – अमर सिंह बहुत बहादुर है, उसे किसी तरह समझा-बुझाकर ले आओ । कहना, हमने माफ किया ।

वज़ीर – जी जहाँपनाह ।

हुजूर,लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता । समझ में नहीं आता,अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ?

बादशाह – सवाल वाजिब है, जवाब कल पता चल जाएगा ।

अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।

शाहजहां – अमर सिंह का कुछ पता चला ।

वजीर- नहीं जहाँपनाह, अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है ।

शाहजहां – क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?

दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की, बड़े -बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे, लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी ।

आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा,नाम था अर्जुन सिंह ।

अर्जुन सिंह – हुज़ूर आप हुक्म दें, मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ ।

बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा, यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है ।

हिंदू बहादुर है लेकिन वह इसीलिए गुलाम हुआ । देखो, यही वजह है ।

अर्जुन सिंह अमर सिंह के रिश्तेदार थे । अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी । अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है । इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है ।

(शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा)

साथियों हम आज तक यह नहीं समझ पाए कि प्राचीन और अविभाजित हिन्दुस्तान का एक भाग आज किस रुप में परिवर्तित हो गया है, एक जमाने में जहां विश्वविद्यालय थे जहां से पूरी दुनिया में ज्ञान का प्रकाश फैलाया जाता था आज वहां से पूरी दुनिया में आतंकवादी फैलाए जा रहें है। वहीं पिछ्ले कुछ सालो से देश के कुछ लोग यह कैसे समझ गए कि मोदी हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता हैं।

देश के दो टुकड़े कर दिए गये, मगर कही से कोई आवाज नहीं आई?

आधा कश्मीर चला गया कोई शोर नहीं?

तिब्बत चला गया कही कोई विद्रोह नहीं हुआ?

ताशकंद, शिमला, सिंधु जैसे घाव दिए गये मगर किसी ने उफ्फ नहीं की ?

2G स्पेक्ट्रम, कोयला, CWG, ऑगस्टा वेस्टलैंड, बोफोर्स जैसे कलंक लगे मगर किसी ने चूँ नहीं की?

वीटो पावर चीन को दे आये, कही ट्रेन नहीं रोकी.

लाल बहादुर जैसा लाल खो दिया। किसी ने मोमबत्ती जलाकर सीबीआई जाँच की मांग नहीं की?

परन्तू जैसे ही राष्ट्रगान अनिवार्य किया लोग चींख पड़े..

वंदे मातरम्, भारत माता की जय बोलने को कहा तो जीभ सिल गई..

अपने ही देश में शरणार्थी बने कश्मीर के पंडितो पर किसी को दर्द नहीं हुआ.. किन्तु रोहिंग्या मुसलमानों के लिये दर्द फूट रहा हैं।

विचार करना…… किसने हिंदुस्तानियों को नामर्द बना दिया है

आतंकवाद के कारण कश्मीर में बंद हुए व तोड़े गए कुल 50 हजार मंदिर खोले व बनवाये जाएंगे*
– केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी

बहुत अच्छी खबर है,
पर 50 हजार? 😳
ये आंकड़ा सुनकर ही मन सुन्न हो गया

एक चर्च की खिड़की पर पत्थर पड़े या मस्जिद पर गुलाल पड़ जाए
तो मीडिया सारा दिन हफ्तों तक बताएगी
पर एक दो एक हजार नहीं,,,
बल्कि पूरे 50 हजार मंदिर बंद हो गए
इसकी भनक तक किसी हिन्दू को न लगी ?

पहले हिन्दुओं को घाटी से जबरन भगा देना,
फिर हिंदुत्व के हर निशान को मिटा देना,
सोचिए कितना बड़ा षड्यंत्र था..
पूरी घाटी से पूरे धर्म को जड़ से खत्म कर देने का ?

अगर मोदी सरकार न आती तो शायद ही ये बात किसी को पता चलती !

वामपंथी पत्रकारों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों और एक ख़ास राजनीतिक दल और उसके चाटुकारों ने कभी इस मुद्दे को देश के समक्ष क्यों नही रखा?

*यह है आस्तीन के सांपो की चतुराई कि हिन्दू अपने इतिहास से अनभिज्ञ रहा है।

ऐसा लगता है कि पूरी कायनात जैसे साज़िशें कर रही थी हिन्दुस्तान को लूटने को और हमें पता ही नहीं चला कि हम जिनका स्वागत कर रहे है वो हमें लूटने आ रहें हैं।
जय हिन्द 🇵🇾🇵🇾🇵🇾
@रमाकांत श्रीवास्तव, अध्यापक डीएवी इंटर कालेज, करनपुर, देहरादून की वाट्सएप वाल से

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