पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदुओं को मानवाधिकार छोड़िए, प्राणरक्षा गारंटी भी नहीं

CDPHR ने जारी की भारत के 7 पड़ोसी देशों की मानवाधिकार रिपोर्ट, हिंदुओं की घटती आबादी पर जताई चिंता
सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की प्रेसिडेंट प्रेरणा मल्होत्रा का कहना है कि पाकिस्तान में माइनॉरिटी की स्थिति बहुत ख़राब है.
नई दिल्ली,03 अप्रैल 2021,( अशोक सिंघल)

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने तिब्बत सहित पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान,मलेशिया,इंडोनेशिया और श्रीलंका की मानवाधिकार को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है.रिपोर्ट को सभी देशों में नागरिक समानता,उनकी गरिमा,न्याय और लोकतंत्र को आधार में रख कर तैयार किया गया है.यह रिपोर्ट शिक्षाविद,अधिवक्ता,न्यायाधीश,मीडियाकर्मी और अनुसंधानकर्ताओं के एक समूह ने तैयार किया है.सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने जारी की भारत के सात पड़ोसी देशों की मानवाधिकार रिपोर्ट में बताई कुछ ऐसी स्थिति.

1. पाकिस्तान

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट में पाकिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है. रिपोर्ट के अनुसार वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यक शिया और अहमदिया की स्थिति भी काफी खराब है. वहां धारा 298 बी-2 के मुताबिक अहमदिया मुसलमानों द्वारा अजान शब्द का उपयोग भी अपराध है. इसके साथ साथ पाकिस्तान का कानूनी ढांचा भी अंतरराष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकारियों के अनुरूप नहीं है. वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों- हिंदू, सिख और ईसाई धर्म की युवा महिलाओं के साथ अपहरण, बलात्कार, जबरन धर्मपरिवर्तन आदि घटनाएं काफी हैं. इसके साथ साथ धार्मिक अल्पसंख्यक को डराया और धमकाया भी जाता है.

2. बांग्लादेश

बांग्लादेश में भी मानवाधिकार और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति भी बेहतर नहीं है. ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अबुल बरकत की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 4 दशकों में 2,30,612 लोग प्रत्येक वर्ष पलायन को मजबूर हो रहे हैं जिसका औसत 632 लोग प्रतिदिन है. इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वहां इसी गति के साथ पलायन होता रहा तो 25 साल बाद वहां कोई भी हिंदू नहीं रहेगा. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1975 में वहां संविधान संशोधन के माध्यम से सेकुलरिज्म शब्द को हटाकर कुरान की पंक्तियों को रखा गया और 1988 में इस्लाम को देश का धर्म घोषित कर दिया गया. साथ ही चटगांव पर्वतीय क्षेत्र के डेमोग्राफी को भी योजनाबद्ध तरीके से बदल दिया गया. 1951 में 90 फ़ीसदी लोग यहाँ बौद्ध थे जो 2011 में घटकर 55 फीसदी रह गए.

3. तिब्बत

रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न प्रतिबंधों के माध्यम से चीन तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति को छुपाने की कोशिश करता रहा है. इसके साथ साथ चीन तिब्बत की सामाजिक, धार्मिक, संस्कृतिक और भाषाई पहचान भी खत्म करने की कोशिश कर रहा है.

4. मलेशिया

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया में भूमिपुत्र के पक्ष में विभेदकारी कानून है. यह सजातीय अल्पसंख्यकों के भी अधिकारों का हनन हो रहा है.

5. अफगानिस्तान

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में भी मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों के प्रति विभेदकारी नीति पर चिंता व्यक्त की गई है. अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार कोई मुस्लिम व्यक्ति की देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन सकता है. 1970 की जनसंख्या के अनुसार वहां 7,00,000 हिंदू और सिख थे. अब सिर्फ 200 हिंदू और सिख परिवार रह गए हैं.

6. श्रीलंका

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स ने श्रीलंका में भी मानवाधिकार और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जताई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 26 साल तक चले गृह युद्ध में 1,00,000 लोगों की जान गई और 20,000 तमिल गायब हो गए.

7. इंडोनेशिया

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया में भी पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता बढ़ी है. यहां सिर्फ 6 देशों को ही पहचान दी गई है. 2002 में बाली में हुए धमाके में भी देश के ही एक बड़े धार्मिक इस्लामिक नेता का नाम आया था. 2012 में बालीनुर्गा हिंदुओं पर हमला सहित कई घटनाएं धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ देखने को मिली हैं.

सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरेलिज़्म एंड ह्यूमन राइट्स की प्रेसिडेंट प्रेरणा मल्होत्रा का कहना है कि पाकिस्तान में माइनॉरिटी की स्थिति बहुत ख़राब है. पाकिस्तान में जो एथनिक माइनॉरिटी है न तो उनके मानवाधिकार की रक्षा हो रही है न ही रिलिजियस अल्पसंख्यकों की, हमने अपनी रिपोर्ट में पाया कि पाकिस्तान में जो मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं उनको तक नहीं बख्शा जा रहा है. उनके लिए अल्पसंख्यक का मतलब हिन्दू-सिख या क्रिश्चियन नहीं है, बाकी जो बलोच हैं, अहमदिया उन सब के लिए मानवाधिकार का मतलब कुछ नहीं है. एक इस्लामिक स्टेट के अंदर वैसे भी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए मानवाधिकार नहीं होता है. बांग्लादेश में इस्लाम एक स्टेट रिलीजन बना है.

बांग्लादेश में बढ़ रहा है फंडामेंटलिस्म

पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश इस्लामिक स्टेट नहीं है, लेकिन वहां भी फंडामेंटलिज्म बढ़ रहा है और वहां माइनॉरिटी सुरक्षित नहीं रह सकती. जब 1947 में भारत के दो टुकड़े हुए तब पाकिस्तान में 12.5 फीसदी हिन्दू थे, उसमें से अकेले 23 फीसदी बांग्लादेश में थे. ये डाटा 1951 का है. आज 2011 का डेटा देखते हैं तो 8 फीसदी हिन्दू बचे हैं. बांग्लादेश में बाकी हिन्दू कहां गए, या तो वो मर गए या कन्वर्ट हो गए आखिर क्या हुआ उनके साथ? पाकिस्तान में आज जितने हिन्दू होने चाहिए थे, आज उतने हिन्दू नहीं हैं. पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति बहुत ख़राब है. महिलाओं का ख़ास तौर (हिन्दू सिख ) पर जो छोटी लड़कियां हैं. उनका रेप और कंवर्जन हो रहा है और इसको एक टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे वो कंवर्ट हो जाएं.

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