वैश्विक संकट का हल,भारत में ही चिप निर्माण को ताईवान से चर्चा अंतिम चरण में

दूर होगा सेमीकंडक्टर संकट: भारत मेंबनेगा चिप  के साथहोसकतीहै55.36हजार करोड़ रुपये की मेगा डील

नई दिल्ली 27 सितंबर। सेमीकंडक्टर चिप  Taiwan Chip Manufacturing Deal Semiconductor (सेमीकंडक्टर) के वैश्विक संकट से इस समय पूरी दुनिया का उद्योग जगत प्रभावित है। सेमीकंडक्टर की कमी की मार ऑटोमोबाइल और गैजेट्स इंडस्ट्री पर पड़ी है। इसकी वजह से वाहन निर्माता कंपनियों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है। दुनिया भर में ऑटोमोबाइल सेक्टर के साथ ही इसका असर मोबाइल फोन और अन्य टेक्नोलॉजी से जुड़े उत्पादों पर भी पड़ा है। लेकिन अब यह समस्या जल्द ही दूर होने वाली है। सेमीकंडक्टर यानी चिप की कमी को दूर करने के लिए भारत और ताइवान के बीच एक मेगा डील पर बातचीत चल रही है। इस समझौते में भारत में ही चिप का उत्पादन किया जाएगा। इससे कंपोनेंट पर लगने वाले टैरिफ में भी कटौती होगी।

भारत में लगेगा प्लांट

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और ताइवान के अधिकारी कई हफ्तों से सेमीकंडक्टर बनाने वाले प्लांट के समझौते को आखिरी रूप देने में लगे हैं। इस डील में 7.5 अरब डॉलर (करीब 55.36 हजार करोड़ रुपये) की लागत से भारत में सेमिकंडक्टर उत्पादन के लिए एक प्लांट लगाया जाएगा। इसमें 5G डिवाइस से लेकर इलेक्ट्रिक कार तक के कंपोनेंट शामिल होंगे।

सेमीकंडक्टर्स या चिप बाजार में ताइवान की बड़ी हिस्सेदारी है। जानकारी के अनुसार 80 फीसदी चिप दक्षिण कोरिया और ताइवान में बनते हैं। ऐसे में भारत और ताइवान के बीच यह डील हो जाती है तो इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी सकारात्मक प्रभाव होगा।

क्यों हुई सेमीकंडक्टर की कमी


सेमीकंडक्टर चिप – फोटो : pixabay

सेमीकंडक्टर्स या चिप की खास बात यह है कि अपने गुणों की वजह से यह कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच कहीं होते हैं। आमतौर पर सिलिकॉन से बने इन चिप का इस्तेमाल कार, कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, स्मार्टफोन, फ्रिज, घरेलू उपकरण और गेमिंग कंसोल जैसे कई उपकरणों में होता है। ऑटोमोबाइल उद्योग में चिप का इस्तेमाल एयरबैग लगाने में मदद करना, एंटरटेनमेंट यूनिट्स और पावर बैकअप कैमरों को कंट्रोल करना होता है।

इन छोटे आकार के चिप किसी भी उपकरण को चलाने में अहम भूमिका निभाते हैं जैसे डेटा ट्रांसफर और पावर डिस्प्ले। चिप की कमी का सीधा असर कारों, फ्रिज, लैपटाप, टीवी और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामानों की बिक्री पर भी पड़ा। तुरंत ऑर्डर करने पर इन चिप का उत्पादन तुरंत बढ़ाना संभव नहीं होता है। इसे बनाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें महीनों लगते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्पोरेशन (TSMC) दुनिया का सबसे बड़ा चिप निर्माता है। यह Qualcomm, Nivdia और Apple जैसी कंपनियां को चिप बेचती है। चिप निर्माण में इसकी हिस्सेदारी 56 फीसदी है। कोविड महामारी के दौरान इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री में बढ़ोतरी की वजह से सेमीकंडक्टर की मांग काफी बढ़ गई। लेकिन सिर्फ कोविड-19 ही एक चिप की कमी की वजह नहीं है।

चीन और अमेरिका के बीच तनाव भी एक वजह


सेमीकंडक्टर चिप

सेमीकंडक्टर चिप – फोटो : Agency (File Photo)
अमेरिका और चीन के बीच तनाव भी चिप की कमी का एक बहुत बड़ा कारण है। चूंकि कई अमेरिकी कंपनियां चीनी कंपनियों के साथ व्यापार करती हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी निर्माताओं को चिप सप्लाई करने वाली कंपनी Huawei को अमेरिकी सरकार ने ब्लैकलिस्ट कर दिया है। इसलिए चिप की आपूर्ति को सुचारू करने में लंबा समय लग सकता है।

गार्टनर द्वारा मई में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सभी उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले चिप की कमी साल 2022 की दूसरी तिमाही तक बनी रह सकती है। अगस्त में सेमीकंडक्टर की मांग और डिलीवरी के बीच का अंतर जुलाई में छह हफ्ते की तुलना में बढ़कर 21 हफ्ता हो गया था।

थोक वाहन बिक्री में गिरावट

ऑटोमोबाइल सेक्टर – फोटो : For Reference Only

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने इस महीने कहा था कि ऑटोमोबाइल उद्योग में सेमीकंडक्टर की कमी से उत्पादन गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। इसकी वजह से पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अगस्त में ऑटोमोबाइल थोक बिक्री में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। सेमीकंडक्टर की कमी के कारण सितंबर में मारूति सुजुरी के उत्पादन में 60 फीसदी की कटौती की गई है। वहीं महिंद्रा एंड महिंद्रा ने कहा है कि सेमीकंडक्टर की कमी के कारण वह सितंबर में उत्पादन में 20-25 फीसदी की कम करेगा।

ताइवान और भारत के बीच होगी डील, 55.23 हजार करोड़ रुपए की लागत से बनेगा चिप प्लांट

सेमीकंडक्टर यानी चिप की कमी से पूरी दुनिया जूझ रही है। भारत में इसका सीधा असर ऑटो और गैजेट्स इंडस्ट्री पर पड़ा नतीजा यह है कि ऑटो कंपनियों के प्रोडक्शन में कमी आई है। लेकिन अब यह समस्या जल्द ही दूर होने को है। चिप की कमी को दूर करने को भारत और ताइवान में समझौते पर बातचीत चल रही है, जिसमें भारत में ही चिप का प्रोडक्शन होगा। इससे कंपोनेंट पर लगने वाले टैरिफ में भी कटौती होगी।

ध्यान रहे,80% चिप ताइवान और साउथ कोरिया में बनते हैं। बातचीत सफल होती है तो इसका भारत में पॉजिटिव असर पड़ेगा। हालांकि जानकारों का कहना है कि डील से चीन को नुकसान होगा और नया विवाद जन्म ले सकता है।

55.23 हजार करोड़ रुपए की लागत से तैयार होगा प्लांट


भारत और ताइपेई के अफसर हफ्तों से चिप  की डील में लगे हैं। बताया जा रहा है कि भारत में $7.5 बिलियन (करीब 55.23 हजार करोड़ रुपए) की लागत का चिप प्लांट बनाया जाएगा, इसमें 5G डिवाइस से लेकर इलेक्ट्रिक कार तक के कंपोनेंट शामिल होंगे।

यह डील उस समय हो रही है जब दुनियाभर के लोकतांत्रिक देश चीन के खिलाफ खड़े होने को आर्थिक और सैन्य संबंध बढ़ा रहे हैं। जहां एक ओर ताइवान से ये डील करना फायदे का सौदा होगा वहीं दूसरी ओर चीन से तनाव बढ़ने का डर है। याद रहे कि ताइवान को चीन अपने देश का ही हिस्सा मानता है। उधर, ताइवान खुद को स्वतंत्र देश समझता है।

क्वॉड ग्रुप की मीटिंग से डील को मिली तेजी

पिछले कुछ हफ्ते में यह बातचीत ज्यादा तेजी से आगे बढ़ी है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चिप की सप्लाई चेन बढ़ाने कोोक्वॉडड मीटिंग में यह मुुद्दा उठाया था। क्वॉड ग्रुप चीन के प्रभाव से निपटने को बनाया गया है। मीटिंग में भारत के साथ ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी चिप की समस्या के मुद्दे पर बात की है।

भारत 1.77 लाख करोड़ रुपए के चिप इंपोर्ट करता है

हाल ही में भारत में चिप की कमी से ही जियो फोन के लॉन्च में देरी हुई है जिसे गूगल के साथ साझेदारी से बनाया जा रहा है। अभी भारत 24 बिलियन डॉलर ( लगभग 1.77 लाख करोड़ रुपए) के सेमीकंडक्टर  इंपोर्ट करता है, जो साल 2025 तक लगभग 100 बिलियन डॉलर (करीब 7.38 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंचने का अनुमान है।

सेमीकंडक्टर चिप क्या हैं?

आज हर एक व्यक्ति दिनभर में दसियों गैजेट्स कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट कार, वॉशिंग मशीन, ATM, अस्पतालों की मशीन से लेकर हाथ में मौजूद स्मार्टफोन तक का उपयोग करता है। यह सेमीकंडक्टर के बिना अधूरे हैं। यह चिप्स या सेमीकंडक्टर छोटे-छोटे दिमाग हैं, जो गैजेट्स को संचालित करते हैं।
सेमीकंडक्टर चिप्स सिलिकॉन से बने होते हैं। इलेक्ट्रिसिटी के अच्छे कंडक्टर होते हैं। इन्हें माइक्रोसर्किट्स में फिट किया जाता है, जिसके बिना इलेक्ट्रॉनिक सामान और गैजेट्स चल ही नहीं सकते। सभी एक्टिव कॉम्पोनेंट्स, इंटिग्रेटेड सर्किट्स, माइक्रोचिप्स, ट्रांजिस्टर और इलेक्ट्रॉनिक सेंसर इन्हीं चिप्स से बने होते हैं।
यह सेमीकंडक्टर ही हाई-एंड कंप्यूटिंग, ऑपरेशन कंट्रोल, डेटा प्रोसेसिंग, स्टोरेज, इनपुट और आउटपुट मैनेजमेंट, सेंसिंग, वायरलेस कनेक्टिविटी और कई अन्य कामों में मदद करते हैं। ऐसे में ये चिप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, एडवांस्ड वायरलेस नेटवर्क्स, ब्लॉकचेन एप्लिकेशंस, 5G, IoT, ड्रोन, रोबोटिक्स, गेमिंग और वियरेबल्स का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अमेरिका दौरे पर Qualcomm के सीईओ क्रिस्टिआनो ई अमोन के साथ बातचीत की थी। इस बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री ने उन्हें भारत में उपलब्ध व्यापक व्यवसायिक संभावनाओं के बारे में जानकारी दी। सैनडिआगो की यह कंपनी सेमीकंडक्टर, सॉफ्टवेयर बनाने के साथ वायरलेस टेक्नोलॉजी से जुड़ी सेवाएं देती है। भारत क्वालकॉम से बड़े स्तर पर निवेश चाहता है।

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