राजीव हत्याकांड: हत्यारों की रिहाई पर सामान्य जन ही नहीं, पूर्व जज भी नाराज़

राजीव हत्याकांड : नलिनी की समय-पूर्व रिहाई संबंधी याचिका पर न्यायालय में सुनवाई स्थगित

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर । उच्चतम न्यायालय ने राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रही नलिनी श्रीहरन की समय-पूर्व रिहाई संबंधी याचिका की सुनवाई 17 अक्टूबर तक के लिए शुक्रवार को स्थगित कर दी।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने इस मामले की सुनवाई आज समयाभाव के कारण नहीं कर सकी।

तमिलनाडु सरकार ने बृहस्पतिवार को नलिनी श्रीहरन और आर.पी. रविचंद्रन को समय-पूर्व रिहा किये जाने का यह कहते हुए समर्थन किया था कि इन दोषियों को आजीवन कारावास से मुक्त किये जाने का राज्य सरकार का 2018 का परामर्श राज्यपाल पर बाध्यकारी है।

तमिलनाडु सरकार ने दो अलग-अलग हलफनामे दायर करके शीर्ष अदालत को अवगत कराया कि नौ सितम्बर, 2018 को आयोजित कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड के सभी सात दोषियों की दया याचिकाओं पर विचार किया था और राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 161 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल कर दोषियों की सजा माफ करने की सिफारिश राज्यपाल से करने का प्रस्ताव पारित किया था।

नलिनी, संतन, मुरुगन, एजी पेरारिवलन, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी और उन्होंने 21 साल से अधिक जेल में काट लिये हैं।

नलिनी और रविचंद्रन दोनों तमिलनाडु सजा निलंबन नियमावली, 1982 में दिसम्बर 2021 से साधारण पैरोल पर बाहर हैं।

धनु नामक महिला आत्मघाती हमलावर ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या 21 मई, 1991 की रात एक चुनावी रैली के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बुदुर में कर दी थी।

आतंकियों को फांसी नहीं तो फिर किसे… राजीव गांधी के कातिलों की रिहाई से भड़कीं पूर्व पुलिस अफसर

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के बाद इसका विरोध भी हुआ है। बम कांड में अपनी तीन अंगुलियां गंवाने वाली पूर्व महिला पुलिस अधिकारी ने हत्यारों की रिहाई पर विरोध जताते हुए कहा कि वे सजा के हकदार थे। ऐसे हत्यारों को जिंदगी भर जेल में ही रहना चाहिए था।
राजीव गांधी हत्याकांड में दोषियों की रिहाई पर रिटायर्ड पुलिस अफसर ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। आत्मघाती बम विस्फोट में अपनी तीन उंगलियां गंवाने वाली महिला पुलिस अफसर ने दोषियों की मुक्ति पर विरोध जताया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिटायर्ड पुलिस अधिकारी अनुसूया डेजी अर्नेस्ट ने नाराजगी जताई कि, ‘क्या उस बम विस्फोट में हुईं मौतें व्यर्थ थीं या फिर उन लोगों जिंदगी का कोई मोल नहीं था ? यह आतंकवादी घटना थी। मेरा मानना है कि जिन दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी उन्हें मरते दम तक जेल में ही रहना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की रिहाई पूरी तरह से गलत है।’

मीडिया से बातचीत में रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ने उठाए सवाल

राजीव गांधी की तस्वीर लिए प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए कहा कि दोषी दया के पात्र नहीं हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपने आदेश की समीक्षा करने की मांग की। वहीं पत्रकारों से बातचीत में पूर्व पुलिस अधिकारी अनुसूया ने सवाल किया कि “ दोषी आतंकवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री और कई अन्य लोगों की हत्या की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई का आदेश कैसे दे दिया। अगर ऐसे लोग मृत्युदंड लायक नहीं हैं, तो फिर यह और किसे मिलना चाहिए?”

पूर्व पुलिस अधिकारी ने सवाल किया कि राज्य सरकार ने प्रस्ताव पारित कर दोषियों की रिहाई की मांग की थी। “क्या राज्य सरकार 30 साल से अधिक जेल में बिताने वाले कट्टरपंथियों सहित सभी दोषियों की रिहाई की सिफारिश का प्रस्ताव पारित करेगी?” अनुसूया ने कहा “दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए। सरकार को अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवारों को 5 करोड़ रुपये और विस्फोट में घायल हुए लोगों को 3 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति देनी चाहिए, ”।

पूर्व पुलिस अधिकारी ने गंवाई थी तीन उंगलियां

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में पूर्व पुलिस अधिकारी ने अपनी तीन उंगलियां गंवा दी थीं। इसके साथ ही उन्होंने अपने शरीर से छर्रे निकालने को कई सर्जरी करवाई। बम के कुछ और छर्रे उनके शरीर में अभी भी हैं। विस्फोट से उसकी दो उंगलियां कट गईं। तो वहीं एक और बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। उसे ठीक करने को प्लास्टिक सर्जरी हुई।

राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई को लेकर विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने वाले तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के महा सचिव के रामलिंगा ज्योति ने मांग करते हुए कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद के दोनों सदन बुलाए। उन्होंने कहा कि “शीर्ष अदालत को अपने आदेश की समीक्षा करनी चाहिए। राजीव गांधी के हत्यारे दया के पात्र नहीं थे और उन्हें जीवन भर जेल में रहना चाहिए।” वहीं बिना अनुमति धरना देने पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में भी ले लिया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

निजी राय के आधार पर फैसले होने लगे हैं… राजीव गांधी के हत्‍यारों की रिहाई पर बोले पूर्व जज एसएन ढींगरा

हाइलाइट्स
राजीव गांधी की हत्‍यारों को सुप्रीम कोर्ट ने वक्‍त से पहले रिहा किया
समयपूर्व रिहाई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर छिड़ गई है बहस
पूर्व जज एसएन ढींगरा ने कहा, निजी राय पर फैसला देने लगे हैं जज

राजीव गांधी हत्याकांड में नलिनी श्रीहरन और चार अन्य दोषी शनिवार शाम तमिलनाडु की जेलों से रिहा हो गये। सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार के आदेश की कॉपी मिलने के बाद जेल अधिकारियों ने चार श्रीलंकाई नागरिकों सहित सभी छह दोषियों की रिहाई प्रक्रिया शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में करीब तीन दशक से उम्रकैद की सजा काट रही नलिनी और पांच अन्य शेष दोषियों को समयपूर्व रिहा करने का शुक्रवार को निर्देश दिया था। दोषियों की समयपूर्व रिहाई के उच्चतम न्यायालय के आदेश को लेकर बहस छिड़ी है। क्या ऐसे अपराधों और हाई-प्रोफाइल मामलों में नरमी बरती जानी चाहिए? इस फैसले के संवैधानिक, कानूनी, और भविष्य के फैसलों पर इसके संभावित प्रभावों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा से पांच सवाल और उनके जवाब-

सवाल:

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने समय-पूर्व रिहा करने का आदेश सुनाया है, इसे लेकर आपका नजरिया क्या है?

जवाब:

राजीव गांधी के हत्यारों को समय पूर्व छोडने का आदेश निश्चित तौर पर चिंतनीय है। मेरी राय में हाल के वर्षों में उच्चतर न्यायपालिका,खासकर शीर्ष अदालत,के फैसले का पैमाना अपराध की गंभीरता न होकर न्यायाधीशों की सोच और दृष्टिकोण पर आधारित हो चुका है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश इन दिनों अपने फैसले व्यक्तिगत रुख के आधार पर देते हैं,जो भविष्य को उदाहरण बनते हैं। एक जैसे मामले में अलग-अलग पीठ के फैसले भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से अलग-अलग होने लगे हैं, इसलिए कानून-आधारित दृष्टांत स्थापित नहीं हो रहे हैं। उच्चतर न्यायपालिका के फैसले भविष्य को उदाहरण बनते हैं, इसलिए जरूरी है कि ये फैसले किसी न्यायाधीश के दृष्टिकोण और सोच पर आधारित होने के बजाय, स्थापित कानून पर आधारित हों।

सवाल:

शीर्ष अदालत ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त शक्तियों का जिक्र किया है और अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर आदेश दिया है। आपकी नजर में इसके क्या निहितार्थ हैं?

जवाब:

मामले में शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त विशेष विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल किया है, लेकिन सवाल है कि विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल उन मामलों में क्यों,जहां पहले से ही कानून मौजूद हैं। मेरी राय में ऐसी शक्तियों का इस्तेमाल उन मामलों में किया जाना चाहिए जहां कानून स्पष्ट नहीं है या मौजूदा कानून से न्याय प्रभावित हो रहा हो। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दो दोषियों को मृत्युदंड दिया गया था,जिनकी सजा को शीर्ष अदालत के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने आजीवन कारावास में बदल दिया था,ऐसे में सवाल है कि आखिर एक ही अदालत की संविधान पीठों के फैसलों में एकरूपता क्यों नहीं है।

सवाल:

पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या जैसे मामले में समय-पूर्व रिहाई का भविष्य के मुकदमों पर क्या प्रभाव होगा? फैसले से आतंकी गतिविधियों या जघन्य अपराधों में शामिल अपराधियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा?

जवाब:

निश्चित तौर पर इस तरह के फैसले भविष्य में उदाहरण बनेंगे और कानून और फैसलों में एकरूपता की कमी का फायदा उठाकर अपराधी बाहर आएंगे। इससे अदालत के समक्ष समस्याएं तो बढ़ेंगी ही,अपराधियों का मनोबल भी बढ़ेगा।

सवाल:

विरले में विरलतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामलों में भी निर्णयों में एकरूपता न होने के उदाहरण दिखे हैं, इसे दूर करने को आपकी समझ में क्या किया जाना चाहिए?

जवाब:

मेरा सुविचारित मत है कि ऐसी कमियां दूर करने को न्यायाधीशों को उनकी कानूनी शिक्षा और पेशागत पृष्ठभूमि के आधार पर भिन्न-भिन्न पीठों में शामिल करना चाहिए, ताकि मुकदमों की प्रकृति के आधार पर एक विशिष्ट पीठ हो, जिससे उनके फैसले एकरूप हो सकें। अभी हो यह रहा है कि पीठों का गठन न्यायाधीशों की विशिष्टता के आधार पर नहीं होता।

सवाल:

आपका बल विशिष्ट पीठों के गठन पर है,ऐसे में आपकी नजर में क्या प्रधान न्यायाधीश के पीठ गठन के अधिकार को फिर से निर्धारित करने की आवश्यकता है?

जवाब:

पीठों के गठन का अधिकार भले ही सीजेआई के पास है, लेकिन मुकदमों की प्रकृति नजरंदाज कर मिश्रित पीठों का गठन उचित नहीं है। हो यह रहा है कि भले ही एक प्रकृति के मुकदमे क्यों न हों, लेकिन जरूरी नहीं कि वे मुकदमे विशिष्ट पृष्ठभूमि वाले न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लगे। इस पर विचार करने की नितांत आवश्यकता है।

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