रानी कमलापति जिसने किया जौहर, के नाम हुआ विश्वस्तरीय रेल स्टेशन

 

भोपाल यानी भोजपाल यानी सबसे बड़ा शिवलिंग मंदिर, भोपाल यानी तालाबों का शहर.. क्या यह प्रकृति निर्मित थे.. नहीं.. फिर किसने ये अनुपम भेट दी..??

अरे छोड़िये जनाब… वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर की माने तो भोपाल मतलब नवाव पटौदी का भोपाल…

फिर हबीब कौन था..??

आज जैसे ही घोषणा हुई की भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन किया गया, तो एक बार दिमाग को जोर का झटका लगा… रानी लक्ष्मीबाई सुना, रानी दुर्गावती सुना, रानी होलकर सुना… फिर ये कौन सी नई रानी आ गई ?? क्या हमने इतिहास नहीं पढ़ा ?? या हमे इतिहास में पढ़ाया नहीं गया..??? आखिर क्यो..?? आखिर इतिहास के श्रेष्ठ नायकों को हमसे क्यो छुपाया जा रहा था… ????

चलो जाने दो… गांधी नेहरू खानदान इससे ज्यादा क्या कर सकता था… सत्य जब बाहर आता है तो ऐसे ही सीना फाड़ कर बाहर आता है…!!

तो सुने… हबीबगंज स्टेशन का नाम जिन रानी कमलापति के नाम पर रखा गया है वो कौन थी ??

14वीं शताब्दी की शुरुआत में योरदम नामक एक गोंड योद्धा ने गढ़ा मंडला में अपने मुख्यालय के साथ गोंड साम्राज्य की स्थापना की।

गोंड वंश में मदन शाह, गोरखदास, अर्जुनदास और संग्राम शाह जैसे कई शक्तिशाली राजा थे।

मालवा में मुगल आक्रमण के दौरान भोपाल राज्य के साथ क्षेत्र का एक बड़ा क्षेत्र गोंड साम्राज्य के कब्जे में था।

इन प्रदेशों को चकलाओं के रूप में जाना जाता था जिनमें से चकला गिन्नौर 750 गांवों में से एक था। भोपाल इसका एक हिस्सा था। गोंड राजा निज़ाम शाह इस क्षेत्र का शासक था।

चैन शाह के द्वारा जहर खिलाने से निज़ाम शाह की मृत्यु हो गई। उनकी विधवा, कमलावती और पुत्र नवल शाह असहाय हो गए। नवल शाह तब नाबालिग था।

निज़ाम शाह की मृत्यु के बाद, रानी कमलावती ने दोस्त मोहम्मद खान को संविदा पर नोकरी पर रखा, ताकि वो राज्य के मामलों का प्रबंधन कर सकें।

दोस्त मोहम्मद खान एक चतुर और चालाक कट्टर जेहादी मु-स्लिम अफगान था, जिसने छोटी रियासतों का अधिग्रहण शुरू किया। रानी कमलावती इन्हें भाई मानती थी, पर इस्लामी परम्परा के अनुसार दोस्त मोहम्मद रानी कमलावती (जो कि बहन थी) उन पर ही खुद से शादी के लिए दबाव बनाने लगा।

तब राजा भोज की नगरी भोजपाल की गौरव गौंड रानी कमलापति के पुत्र नवल शाह ने लाल घाटी के युद्ध में अपनी माँ और मातृभूमि के लिये अपना बलिदान दिया।

उसके बाद रानी कमलावती ने भी हिन्दू परम्परा और संस्कृति की रक्षा के लिए छोटे तालाब में जल जौहर कर लिया।

रानी कमलावती की मृत्यु के बाद। दोस्त मोहम्मद खान ने गिन्नोर के किले को जब्त कर लिया, विद्रोहियों पर अंकुश लगा दिया, बाकियों पर उनके नियंत्रण के हिसाब से अनुदान दिया और उनकी कृतज्ञता अर्जित की।

रानी कमलावती को गोंड भाषा में कमलापति कहने लगे हैं, पर विदित हो कि भोपाल सीहोर जिले के सरकारी गजेटियर में रानी का नाम “कमलावती” ही उल्लेखित है।

रानी कमलापति ही थी जिनकी दूरदर्शिता में बड़े तालाब ओर छोटे तालाब का निर्माण कराया गया।

छल और कपट से, देवरा राजपूतों को नष्ट कर दिया और उन्हें भी मारकर नदी में बहा दिया; जिसे तब से सलालीटर्स की नदी या हलाली डेम के रूप में जाना जाता है।

हबीबगंज स्टेशन का निर्माण अंग्रेजों ने 1905 में करवाया था। तब इसका नाम रानी कमलावती के गोंड “शाह” वंश के नाम पर शाहपुर था, जिसे आज शाहपुरा के नाम से जानते है।

लेकिन साल 1979 में कांग्रेस सरकार में इस रेलवे इस स्टेशन का विस्तार किया गया और इसका नाम हबीबगंज रखा गया।

हबीबगंज का नाम भोपाल के तथाकथित नवाब हबीब मियां के नाम पर है। उस समय एमपी नगर का नाम गंज हुआ करता था, दोनों को जोड़कर हबीबगंज रखा गया था।

हबीब मियां ने 1979 में स्टेशन के विस्तार के लिए अपनी जमीन दान में दी थी, पर नवाबो और उनके शागिर्दों के पास जो भी जमीन थी वो तो जनजातीय समाज की रानी कमलावती से ही हड़पी गयी थी।

हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलावती करना जनजातीय समाज के लिए एक सम्मान का विषय है।

नया भारत अपनी खोई हुई धरोहर को पुनः स्थापित कर रहा है…

धन्यवाद मोदी सरकार…

याद रखिये… भारत की अस्मिता को सिर्फ मोदी सरकार वापस ला रही है… वरना ये नवाव वही है जो बटवारे में पाकिस्तान समर्थक था और पाकिस्तान भाग भी गया था… तो क्या भगोड़े के नाम पर स्टेशन होगा या जिसने बलिदान दिया उसके नाम पर ???

सोचिये… आखिर रानी कमलावती अब तक इतिहास से क्यों गायब थी..??
साभार ……..

 

जानें, कौन थीं रानी कमलापति:भोपाल की अंतिम गोंड शासक रहीं, दोस्त मोहम्मद से आबरू की रक्षा को ले ली थी जल समाधि

रानी कमलापति की आर्च ब्रिज पर लगी प्रतिमा।
मुख्यमंत्री ने कमलापति पर ब्लॉग में भी जानकारी दी है

देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज अब रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा। मध्यप्रदेश सरकार के नोटिफिकेशन जारी होते ही स्टेशन का नाम बदल दिया गया है। PM नरेंद्र मोदी 15 नवंबर को इसका लोकार्पण करेंगे। पढ़िए कौन हैं रानी कमलापति…

इतिहास के पन्नों में देखें, तो रानी कमलापति भोपाल की अंतिम गोंड आदिवासी और हिंदू रानी थीं। अपनी आबरू की रक्षा के लिए उन्होंने जल समाधि ले ली थी। भोपाल में आर्च ब्रिज और कमला पार्क उन्हीं के नाम पर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस ब्लॉग लिखा है। इसके अलावा ‘चौथा पड़ाव’ किताब के लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर ने भी इतिहास के बारे में जानकारी दी।

गिन्नौरगढ़ से बाड़ी तक था गोंड राजवंश का राज

गोंड समुदाय का राजवंश गिन्नौरगढ़ से बाड़ी तक फैला था। राजा रायसिंह का वर्ष 1362 से 1419 तक 57 वर्ष का कार्यकाल रहा। रायसिंह ने रायसेन किला बनवाया था। 14वीं ईस्वी में जगदीशपुर (इस्लाम नगर) में गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा। इस महल को भी गोंड राजाओं द्वारा बनवाया गया था।

वर्ष 1715 में अंतिम गोंड राजा नरसिंह देवड़ा रहे। वर्ष 476 से 533 तक करीब 57 साल तक भोपाल पर इनका शासन रहा। गोंड समाज के प्रथम धर्म गुरु पारी कुपार लिंगो बाबा ने पांच देव सगा समाज वाले के लिए बैरागढ़ का स्थान निश्चित किया। तभी से गोंडवाना समाज के लोग बैरागढ़ से हजारों किलोमीटर दूर रहने के बावजूद बैरागढ़ में बड़ा देव की पूजा अर्चना करने आते हैं। यह गोंडों का सबसे बड़ा देवस्थल है।

रानी कमलापति का महल।

बचपन से ही बुद्धिमान और साहसी थीं कमलापति
चौथा पड़ाव किताब के मुताबिक 16वीं ईस्वी में चैन सिंह बाड़ी जिला रायसेन के अंतिम शासक रहे। 16वीं सदी में सीहोर जिले की सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहां की प्रजा खुश और संपन्न थी। उनके यहां एक कन्या का जन्म हुआ। उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया। वह बचपन से ही बुद्धिमान और साहसी थीं। शिक्षा, घुड़सवारी, मलयुद्ध और तीर कमान चलाने में उन्हें महारत हासिल थी।

अनेक कलाओं से पारंगत राजकुमारी सेनापति भी रहीं। वह पिता के सैन्य बल और महिला साथी दल के साथ युद्ध में शत्रुओं से लोहा लेती थीं। पड़ोसी राज्य अकसर खेत, खलिहान, धन संपत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे। सलकनपुर रियासत की देखरेख करने की जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति पर थी।

राजकुमारी से शादी करना चाहता था चैन सिंह

कमलापति की खूबसूरती की चर्चा चारों ओर थी। चैन सिंह, राजकुमारी कमलापति से विवाह करना चाहता था, लेकिन राजकुमारी कमलापति ने शादी करने से मना कर दिया। चैन सिंह सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया का रिश्ते में भांजा लगता था।

राजा निजाम शाह से हुआ था विवाह

16वीं सदी में भोपाल से 55 किमी दूर 750 गांवों को मिलाकार गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सूराज सिंह शाह (सलाम) थे। इनके पुत्र निजाम शाह थे। निजाम शाह बहादुर, निडर और हर कार्यक्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ था।

राजा निजाम शाह ने रानी कमलापति को प्रेम स्वरूप 1700 ईस्वी में भोपाल में सात मंजिला महल का निर्माण करवाया, जो लखौरी ईंट और मिट्टी से बनवाया गया था। यह महल अपनी भव्यता, सुंदरता और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध था। रानी कमलापति का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल व्यतीत हो रहा था। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह था।

रिश्तेदार ने जहर देकर निजाम शाह को मार दिया था

सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह राजकुमारी कमलापति की शादी होने के बाद भी उनसे विवाह करने की इच्छा रखता था। उसने कई बार राजा निजाम शाह को मारने की कोशिश की, जिसमें वह असफल रहा। एक दिन प्रेम पूर्वक उसने राजा निजाम शाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में जहर देकर हत्या कर दी।

राजा निजाम शाह की मौत की खबर ने पूरे गिन्नौरगढ़ में खलबली पैदा कर दी। इसके बाद रानी कमलापति को अकेले जानकर उन्हें पाने की नीयत से गिन्नौरगढ़ के किले पर उसने हमला कर दिया। रानी कमलापति ने उस समय अपने कुछ वफादारों और 12 वर्षीय बेटे नवल शाह के साथ भोपाल में बने इस महल में छिप जाने का निर्णय लिया। यह उस समय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण महल था।

भोपाल में बना आर्च ब्रिज।

बदला लेने के लिए रानी ने ली थी अफगानियों की मदद

कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रुके हुए हैं। इन्होंने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इन अफगानों का सरदार दोस्त मोहम्मद खान था, जो पैसा लेकर युद्ध लड़ते थे। लोक मान्यता है कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहरें देकर चैन सिंह पर हमला करने को कहा था।

दोस्त मोहम्मद ने की थी चैन सिंह की हत्या

दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया था। जिसमें चैन सिंह मारा गया और किले को हड़प लिया। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे की परवरिश की चिंता थी। उन्होंने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन दोस्त मोहम्मद अब सम्पूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने हरम में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा।

रानी के बेटे से मोहम्मद के बीच हुआ था युद्ध

दोस्त मोहम्मद खान के नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लालघाटी में युद्ध करने चला गया। इस घमासान युद्ध में मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहां की जमीन लाल हो गई और इस कारण इसे लालघाटी कहा जाने लगा। इस युद्ध में 2 लड़के बच गए थे, जो किसी तरह अपनी जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुंच गए। उन्होंने वहां काला धुआं कर रानी कमलापति को संकेत दिया कि वे युद्ध हार गए हैं और आपकी जान को खतरा है।

रानी कमलापति ने ली जल समाधि

रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत को बचाने के लिए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया। इससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। जिसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता है। रानी कमलापति ने महल की समस्त धन, दौलत, जेवरात, आभूषण आदि इसमें डालकर स्वयं जलसमाधि ले ली। दोस्त मोहम्मद खान जब अपनी सेना को साथ लेकर लालघाटी से इस किले तक पहुंचा, उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था।

मोहम्मद खान को न रानी कमलापति मिली और न ही धन दौलत। रानी कमलापति ने जीते जी भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने वर्ष 1723 में अपनी जीवनलीला खत्म की थी। उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ।

यादगार है छोटा तालाब के मुहाने पर रानी का महल

1600 से 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्‍य रहा। भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निजाम शाह की सात पत्नियां थीं। जिनमें कमलापति सबसे सुंदर थीं। उनकी इच्छा से तालाब के तट पर एक महल का निर्माण किया गया, जो 1702 में पूर्ण हुआ। जिसे आज भी रानी कमलापति महल के नाम से जाना जाता है। आज इसके अवशेष छोटे और बड़े तालाब के पार्क में देखे जाते हैं। 1989 से भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस महल को अपने संरक्षण में ले लिया।

इसलिए आज भी प्रासंगिक हैं रानी कमलापति

नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है। उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें हमारी नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया है। उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रानी कमलापति ने भी सब गंवाया, लेकिन जीवन रहते अपनी नारी गरिमा को विधर्मियों से बचा लिया।

गोंड रानी कमलापति आज 300 वर्ष बाद भी प्रासंगिक हैं और उनके बलिदान का सम्मान करके हम स्वयं ही कृतज्ञ हैं। भोपाल का हर हिस्सा उनकी कहानी सुनाता है। यहां के तालाबों के पानी में उनके बलिदान की गूंज भी सुनी जा सकती है। ऐसा लगता है, मानो वह स्वयं यहां की कलकल धारा हैं। गोंड रानी अब पानी बनकर भोपाल की रवानी में अविरल बहती हैं।

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