काबुल हाउस शत्रु संपत्ति,खाली करनी होगी: सोनिका

उत्तराखंड: जिलाधिकारी ने देहरादून ने शत्रु संपत्ति मामले में दिया फैसला, 15 दिनों में खाली करें कब्जा

देहरादून 21 अक्टूबर। जिलाधिकारी देहरादून सोनिका ने शत्रु संपत्ति मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए वहां काबिज लोगो को 15 दिनों में अवैध कब्जा छोड़ने को कहा है। इस मियाद के खत्म होते ही जिला प्रशासन बलपूर्वक इस संपत्ति को खाली करवाएगा।

काबुल के राजा से जुड़ी इस शत्रु संपत्ति के मामले में हाई कोर्ट के निर्देश पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की अदालत में सुनवाई चल रही थी, जिसमे सम्पत्ति पर काबिज और अन्य दावेदारों को सुना गया था। उक्त संपत्ति का मालिक केंद्रीय गृह मंत्रालय है, जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है। इस संपत्ति को खुर्दबुर्द करने के आरोप लग रहे थे और कई लोग फर्जी वारिस बनकर करोड़ों रुपये की इस काबुल हाउस की संपत्ति को हथियाने के प्रयास में लगे हुए थे और इसमें सहारनपुर से फर्जी दस्तावेज बनाए जाने के भी मामले सामने आए थे। आज इस मामले में डीएम सोनिका ने फैसला सुना दिया। नैनीताल में भी मेट्रोपॉल शत्रु संपत्ति को सरकार ने अपने कब्जे में लेने के लिए यही प्रक्रिया अपनाई थी और इस बारे में हाई कोर्ट नैनीताल ने भी दिशा-निर्देश दिए थे।

40 वर्ष बाद आजाद होगी शत्रु संपत्ति, काबुल के शाही परिवार से जुड़ा है 400 करोड़ की प्रॉपर्टी का कनेक्शन
दून की काबुल हाउस की संपत्ति का प्रकरण पहली बार उत्तर प्रदेश के समय प्रकाश में आया था। 14 अगस्त 1984 को तत्कालीन राजस्व आयुक्त राणा प्रताप सिंह ने जिलाधिकारी देहरादून को आदेश दिया था कि काबुल हाउस की संपत्ति को अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराया जाए। तब तहसीलदार ने कब्जेदारों को नोटिस जारी कर संपत्ति खाली करने को कहा था।
40 वर्ष बाद आजाद होगी शत्रु संपत्ति, काबुल के शाही परिवार से जुड़ा है 400 करोड़ की प्रॉपर्टी का कनेक्शन
मुख्य बिंदु 
जिलाधिकारी ने 17 अवैध कब्जेधारियों को दिया 15 दिन का समय, फिर प्रशासन करेगा कार्रवाई
काबुल के शाही परिवार के मो. याकूब खान की है ईसी रोड स्थित संपत्ति
1879 में आए थे देहरादून

आखिरकार 40 वर्ष बाद भूमाफिया का तंत्र हार गया और देहरादून का जिला प्रशासन जीत गया। काबुल के शाही परिवार से जुड़े काबुल हाउस की करीब 400 करोड़ रुपये की संपत्ति पर अब जिला प्रशासन कब्जा लेगा। जिलाधिकारी देहरादून सोनिका की कोर्ट ने काबुल हाउस के भवनों पर अवैध रूप से काबिज 17 व्यक्तियों के दावे को खारिज कर दिया।

इसके साथ ही जिलाधिकारी सोनिका ने काबुल हाउस की संपत्ति को खाली करने को अवैध कब्जेदारों को 15 दिन का समय दिया है। तय समय में संपत्ति खाली न करने पर जिला सहायता एवं पुनर्वास अधिकारी तहसील सदर व पुलिस बल की मदद से संपत्ति पर बलपूर्वक कब्जा प्राप्त करेंगे।
दून की काबुल हाउस की संपत्ति का प्रकरण पहली बार उत्तर प्रदेश के समय प्रकाश में आया था। 14 अगस्त, 1984 को तत्कालीन राजस्व आयुक्त राणा प्रताप सिंह ने जिलाधिकारी देहरादून को आदेश दिया था कि काबुल हाउस की संपत्ति अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराए।

तब तहसीलदार ने कब्जेदारों को नोटिस जारी कर संपत्ति खाली करने को कहा था। हालांकि, कब्जेदारों ने राजस्व आयुक्त के आदेश को छिपाकर सिर्फ तहसीलदार के नोटिस के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। उत्तराखंड गठन के बाद प्रकरण नैनीताल हाई कोर्ट को स्थानांतरित हुआ।

वर्ष 2007 में हाई कोर्ट ने यह केस जिलाधिकारी देहरादून को रिमांड कर दिया। साथ ही जिलाधिकारी के केस निस्तारण तक बेदखली पर स्थगनादेश भी कर दिया।
जिला प्रशासन रहा ढुलमुल, वर्ष 2021 में कोर्ट ने कसे पेच
वर्ष 2007 में प्रकरण जिलाधिकारी की रिमांड में आने के बाद भी किसी अधिकारी ने इसमें हाथ नहीं डाला। इस बीच हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया कि काबुल हाउस की संपत्ति का कस्टोडियन जिला प्रशासन है और इसके बाद भी प्रकरण का निस्तारण नहीं किया जा रहा। इसके साथ ही बताया कि संपत्ति को भूमाफिया गिरोहबंद होकर खुर्दबुर्द कर रहे हैं।

यहां तक कि सरकार में निहित हो चुकी काबुल के राजशाही परिवार से जुड़ी संपत्ति के फर्जी वारिस भी सामने आ गए हैं। उन्होंने संपत्ति को कई व्यक्तियों को बेच भी दिया है। हाई कोर्ट ने वर्ष 2021 में जब जिला प्रशासन को सख्ती के साथ प्रकरण के निस्तारण के निर्देश दिए तो अधिकारी सक्रिय हुए।

जिलाधिकारी सोनिका ने सभी पक्षों के तर्क सुनने और अभिलेखों के परीक्षण के बाद पाया कि संपत्ति पर सरकार का अधिकार है। लिहाजा, करीब 40 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद काबुल हाउस के सभी कब्जेदारों और इससे जुड़े पक्षों के दावे को खारिज कर दिया गया। अब इस बेशकीमती संपत्ति पर जिला प्रशासन सरकार के पक्ष में कब्जा प्राप्त करेगा और इसका उपयोग जनोपयोगी गतिविधियों के लिए किया जा सकेगा।
देहरादून में कहां है शत्रु संपत्ति

जानकारी के मुताबिक 1879 काबुल के राजा मोहम्मद याकूब खान देहरादून आकर बसे थे। यहां उनकी संपत्ति कई स्थानों पर थी। वर्ष 1924 में उनकी मौत हो गई। उनके वंशज बंटवारे के दौरान विदेश चले गए। बाद में वे पाकिस्तान के नागरिक हो गए। उनके पारिवारिक मित्र रहे मोहम्मद असलम खान उत्तर प्रदेश के समय से देहरादून में रहते हैं। उनका कहना है कि सरकार इस संपत्ति को अपने कब्जे में लेकर जनहित के कामों में लगाए।

जानकारी के मुताबिक काबुल राजा के फर्जी रिश्तेदार, सहारनपुर देहरादून में बन गए और वे अब देहरादून की शत्रु संपत्तियों पर फर्जी दस्तावेज बनाकर अपने दावे कर रहे हैं। इनमे मोहम्मद शाहिद, मोहम्मद खालिद अब्दुल रज्जाक का एक गिरोह है। एक गिरोह आरिफ खान का है। तीसरा गिरोह तारीक अख्तर का है, जोकि 23 शत्रु संपत्तियों की कब्जेदारों को रजिस्ट्री भी करके सरकार को धोखा दे चुका है। इस मामले में एफआईआर भी हुई थी किंतु आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई।

जानकारी के अनुसार इस सारे प्रकरण में तहसीलदार रहे राशिद की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया। इन संपत्तियों को नगर निगम के दस्तावेजों में भी हेरफेर करके चढ़ाया जाने वाला था जिसे तत्कालीन नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने रोका । ऐसा नहीं है कि इन मामलो की जानकारी शासन के अधिकारियों के संज्ञान में न हो, अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी जब देहरादून की जिलाधिकारी थीं, तब उनकी जानकारी में था। शासन में सचिव शैलेश बगौली , जिला अधिकारी रहे आशीष श्रीवास्तव, हाल ही में अपर जिलाधिकारी पद से स्थानांतरित बर्नवाल, पूर्व पुलिस महानिदेशक  अनिल रतूड़ी, पुलिस उपमहानिरीक्षक रहे अजय रौतेला, सबकी जानकारी में देहरादून की शत्रु संपत्ति के मामले संज्ञान में रहे हैं, लेकिन जब जब कब्जे मुक्त कराने की बात सामने आती है तो कोई न कोई सफेदपोश राजनीतिक दबाव उनके काम में बाधा डाल देता था या उन्हें रोक देता रहा है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कठोर रुख

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शत्रु संपत्ति मामले में सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने जिलाधिकारी सोनिका को सख्ती से निर्देशित किया है कि वह इन संपत्तियों को अपने कब्जे में लेकर उनकी हद बनाएं और बोर्ड लगाएं। इस संपत्ति को देहरादून के हित में उपयोग में लाए जाने की योजना बनाई जाए।

भूमाफिया ने 16 साल रोका हाई कोर्ट का आदेश, फर्जी वारिस किया खड़ा

जिला शासकीय अधिवक्ता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि सिविल कोर्ट पंचम के डिक्री आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में सरकार ने अपील दायर की गई। जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकृति दी है और यह प्रकरण लंबित है। हालांकि सरकार के विरुद्ध डिक्री हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के आदेश को छिपाते हुए प्राप्त की गई है लिहाजा सिविल कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी माना जाएगा।

भूमाफिया की जुर्रत तो देखिए काबुल हाउस की करीब 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को हड़पने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया। वर्ष 2007 में नैनीताल हाई कोर्ट के केस को जिलाधिकारी को रिमांड करने के बाद भी इसका निस्तारण नहीं करने दिया गया।

अधिकारियों से मिलीभगत से न सिर्फ इस संपत्ति को सहारनपुर निवासी अब्दुल रज्जाक के नाम दर्शाकर मो. साहिल खालिद को फर्जी वारिश बना दिया गया। इसके बाद तीसरे व्यक्ति मो. आरिफ खान के नाम पावर आफ अटार्नी बनाकर संपत्ति पर रजिस्ट्री भी कराई जानी शुरू कर दी गई।
जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तथ्य रखे गए कि काबुल हाउस के मालिक याकूब खान की मृत्यु वर्ष 1921 में हो गई थी। इस क्रम में इनके वंशज सरदार मो. आजम खान, सरदार अली खान, सुल्तान अहमद खान के नाम नगर पालिका के असेसमेंट वर्ष 1934-37, वर्ष 1943-1948 में अंकित हैं।

यह भी उल्लेख किया गया कि अमीर आफ काबुल याकूब खान के वंशजों ने वर्ष 1947 में भारत छोड़ दिया था। जिसके बाद भूमि को रिक्त घोषित कर दिया गया। वर्ष 1958 में उत्तर प्रदेश सरकार में जांच के बाद लावारिश संपत्तियों को कस्टोडियन एक्ट-1950 प्रविधानो के मुताबिक निष्क्रांत संपत्ति घोषित कर नगर निकायों के रिकार्ड में कस्टोडियन दर्ज किया गया।

संवैधानिक रूप से बंदोबस्त प्रक्रिया न होने का उठाया लाभ
जिलाधिकारी के आदेश के मुताबिक वर्ष 1937-38 में बंदोबस्त के समय शहरी क्षेत्रों में एक ही खसरा नंबर राजस्व रिकार्ड में अंकित किया जाता था। इससे यह हुआ कि तत्कालिक शहरी क्षेत्रों में अलग-लग खेवट निर्धारित होने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाता था कि किस खेवट का खसरा नंबर क्या है।

शहरी क्षेत्र के देहरादून में बंदोबस्त की संवैधानिक प्रक्रिया न होने के चलते वर्ष 1947 में देश के बंटवारे के बाद राजस्व रिकार्ड में कस्टोडियन संपत्ति दर्ज नहीं हो पाई। ऐसी संपत्ति का अंकन मुस्लिम समाज की भूमि के रूप में किया गया। अभिलेखीय परीक्षण में पाया गया कि यही भूमि कस्टोडियन से संबंधित है। इसके चलते काबुल हाउस की संपत्ति से मौहम्मद साहिल खालिद की विरासत खारिज कर दी गई।

कोई संपत्ति है तो फर्जीवाड़ा कर उसे काबुल हाउस बताया गया
सुनवाई के दौरान जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में यह बात भी सामने आई कि यदि अब्दुल रज्जाक की कोई संपत्ति खेवट संख्या 47 है तो उसे फर्जीवाड़ा कर काबुल हाउस की 15,15-बी दर्शाकर विक्रय किया जाता रहा। इसी खेवट के आधार पर मोहम्मद साहिल खालिद ने फर्जी वारिश के रूप में अपना नाम काबुल हाउस की भूमि पर दर्ज करा दिया।

सिविल कोर्ट को रखा अंधेरे में, लिया स्टे
काबुल हाउस की संपत्ति को हड़पने के लिए भूमाफिया गिरोह ने हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के स्थगनादेश का संज्ञान होने के बाद भी फर्जीवाड़ा कर डाला। उसने सिविल कोर्ट पंचम को हाई कोर्ट के आदेश की जानकारी न देकर अपने पक्ष में स्टे प्राप्त कर लिया।

जिला शासकीय अधिवक्ता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि सिविल कोर्ट पंचम के डिक्री आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में सरकार ने अपील दायर की गई। जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकृति दी है और यह प्रकरण लंबित है। हालांकि, सरकार के विरुद्ध डिक्री हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के आदेश को छिपाते हुए प्राप्त की गई है, लिहाजा सिविल कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी माना जाएगा। साथ ही मौहम्मद खालिद की विरासत खारिज होने की दशा में उनके समस्त विक्रय पत्र भी शून्य माने जाएंगे।

30 व्यक्तियों को बेची जमीन, दर्ज होगा मुकदमा

जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि काबुल हाउस की संपत्ति पर भूमाफिया ने 30 रजिस्ट्री की हैं। इसी के आधार पर यहां 17 लोग अवैध रूप से काबिज हो गए। जिलाधिकारी ने आदेश दिए कि सभी विक्रय पत्र कब्जे में लिए जाएं। इस बात की जांच की जाए कि मोहम्मद साहिल का नाम सरकारी रिकार्ड में किन कार्मिकों आदि की मिलीभगत से दर्ज हुआ। प्रकरण की गंभीरता देखते हुए मौहम्मद खालिद व उनके सहयोगियों पर आपराधिक वाद दर्ज कराया जाए। इस बाबत आदेश की प्रति अलग से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को भेजी जाए।

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