PFI ने RSS की वर्दी पहने लोगों का जुलूस निकाल मनाईं मोपला नरसंहार की शताब्दी

‘केरल में PFI ने RSS के लोगों को हथकड़ी लगाकर निकाली रैली’: अल्लाह-हू-अकबर नारे के साथ मोपला हिन्दू नरसंहार की दिलाई याद

कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने केरल में एक रैली निकाली। इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बाँधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।

रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी और वीडियो में शहर के मुख्य वाणिज्यिक केंद्र चेलारी से गुजरने वाले जुलूस को दिखाया गया है।

जुलूस में नारे भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बँधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी भेष-भूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बँधी और इसका दूसरा छोर लूँगी और जालीदार टोपी (skullcaps) पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों की ड्रैस पहने लोग जालीदार टोपी और लूँगी पहने लाठीधारी लोगों के पीछे चल रहे थे।

पीएफआई की रैली आज ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी को ‘मनाने’ के लिए की गई थी, जिसे इतिहास में 1921 के मालाबार विद्रोह के रूप में जाना जाता है। मोपला नरसंहार में तकरीबन 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। यह माना जाता है कि दंगों के मद्देनजर 1,00,000 हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है। हमले का कारण मुसलमानों के सांप्रदायिक खिलाफत आन्दोलन में हिंदुओं का ‘पर्याप्त सहयोग’ न करना था।

एनी बेसेंट ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब ‘द फ्यूचर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ में करते हुए बताया कि कैसे धर्म न त्यागने पर हिंदुओं पर अत्याचार हुए। उन्हें मारा-पीटा गया। उनके घरों में लूटपाट हुई। एनी बेंसेंट ने अपनी किताब में बताया कि करीब लाख से ज्यादा हिंदू लोगों को उस दौरान अपने घरों को तन पर बाकी एक जोड़ी कपड़े के साथ छोड़ना पड़ा था। उन्होंने लिखा, “मालाबार ने हमें सिखाया है कि इस्लामिक शासन का क्या मतलब है, और हम भारत में खिलाफत राज का एक और नमूना नहीं देखना चाहते हैं।”

बाबा साहेब अंबेडकर अपनी किताब में इस नरसंहार का जिक्र करते हैं। वे पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया नाम की अपनी किताब में लिखते हैं कि हिन्दुओं के खिलाफ मालाबार में मोपलाओं द्वारा किए गए खून-खराबे के अत्याचार अवर्णनीय थे। दक्षिणी भारत में हर जगह हिंदुओं के ख़िलाफ़ लहर थी। जिसे खिलाफत नेताओं ने भड़काया था।

पिछले साल जनवरी में, यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एंटी-सीएए दंगों के दौरान पीएफआई द्वारा की गई हिंसा के कारण पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था। केंद्र सरकार ने एंटी-सीएए हिंसा के कारण पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने को स्थगित कर दिया था।

क्या दी है ‘सफाई’

केरल में पीएफआई रैली का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसे लेकर विवाद बढ़ गया है। दरअसल परेड में आरएसएस की वेशभूषा पहने कुछ युवकों को जंजीर से जकड़ा हुआ दिखाया हुआ है और इस्लामिक नारे लगाए जा रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई है।

हाइलाइट्स:
केरल के चेलारी में बीते दिनों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने अपने स्थापना दिवस पर रैली निकाली थी
पीएफआई की रैली का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसको लेकर विवाद बढ़ गया है

केरल के चेलारी में बीते दिनों पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने अपने स्थापना दिवस पर रैली निकाली थी। इस रैली का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसे लेकर विवाद बढ़ गया है। दरअसल परेड में आरएसएस की वेशभूषा पहने कुछ युवकों को जंजीर से जकड़ा हुआ दिखाया गया है और इस्लामिक नारे लगाए जा रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई है। हालांकि हमारी टीम ने इसका फैक्ट चेक किया तो तस्वीर कुछ और निकली।

दरअसल 17 फरवरी को स्थापना दिवस के मौके पर पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने केरल के चेलारी में एकता मार्च निकाला था। इस एकता मार्च में धार्मिक और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ संदेश दिया गया था। इस मार्च का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें आरएसएस की वेशभूषा के साथ अंग्रेजों की ड्रेस पहने युवकों को जंजीर से बंधा हुआ दिखाया गया।

वीडियो में यह नजर आ रहा है

इन युवकों को पीछे से कुछ लोग ‘अल्लाह-हु-अकबर’ के नारे लगाते हुए खींच रहे हैं। इस दौरान वे चेन बांधकर युवाओं के साथ रैली निकाल रहे हैं। इसके साथ ही वे पीछे से हाथों में लाठी-डंडे लिए हुए भी नजर आ रहे हैं।

‘आरएसएस की वेशभूषा नहीं, फासीवाद के विरोध का प्रतीक’

रैली आयोजित करने वालों का कहना है कि जिसे आरएसएस की वेशभूषा बताया जा रहा है दरअसल वह फासीवाद के विरोध का प्रतीक है। रैली की मुख्य थीम एकता पर आधारित थी जिसके ज्यादातर हिस्सों में यही दिखाया गया था कि मुसलमानों ने कैसे अंग्रेजों का विरोध किया था। इसका संदेश एकता दिवस से जुड़ा हुआ ही है और इसलिए इसे भड़काऊ प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता है।

‘अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को रैली में दिखाया गया’

पीएफआई के महासचिव अनीस अहमद ने मीडिया से कहा है कि इस रैली की थीम 1921 में अंग्रेजों के खिलाफ की गई मोपला क्रांति से संबंधित है। यह मालाबार के लोगों के इतिहास को दर्शाता है, जिन्होंने 1921 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

सफाई इसीलिए आंखों में धूल झोंकने का प्रयास लगता है कि गुरुवार को ही अनीस अहमद ने कर्नाटक में अपने संगठन के स्थापना दिवस पर हिंदुओं,आर एस एस और राम मंदिर के विरुद्ध घृणा से सना भाषण किया था। इस पर मुकदमा भी हों गया है।

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