विभाजन विभीषिका: गुजरांवाला के लाला बलवंत,सात बेटियां और खून का प्यासा कुंआ

#विभाजनविभिषिकास्मृतिदिवस14अगस्त
गुजरांवाला के एक लाला बलवंत की सात बेटियां… एक कुआं… एक जमीन…!

गुजरांवाला…
सरदार हरिसिंह की भूमि व पाकिस्तान पंजाब का एक शहर, जहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री जमींदार लाला जी उर्फ बलवंत खत्री का परिवार एक शानदार कोठी में भरे-पूरे परिवार पत्नी प्रभावती, सात बेटियां और एक बेटा सहित रहता था।

एक परिवार…
लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र 20 साल। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल, राजवती (रज्जो) 17, भगवती (भागो) 16, पार्वती (पारो) 15, गायत्री (गायो) 13 व ईश्वरी (इशो) 11 बरस। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरस। प्रभावती पेट से थीं और जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी।

एक साल…
1947 में भारत के बंटवारे को जिन्ना ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का ऐलान कर दिया। गुजरांवाला के आसपास से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी। ‘अल्लाह हू अकबर’ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का शोर करती भीड़ यलगार करती – काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। उन्हें हम हड़प लेंगे।

एक उम्मीद…
पर गांधीजी से प्रभावित लालाजी बेफिक्र थे। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे। गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है, जो ‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया’ गाते हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद पढ़ते हैं। सूफी मजार जाते हैं। सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।

एक तारीख…
18 सितंबर 1947  सिख डाकिया हांफते हवेली पहुंचा और चिल्लाया – लाला जी यह जगह छोड़ दो। तुम्हारी बेटियां उठाने भीड़ आ रही है। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को… लाला बलवंत ने डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा- क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है और मुख्तार भाई हमारा पारिवारिक  है।

एक चेतावनी…
पर डाकिये का जवाब था – “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार ले शहर के गुरुद्वारे पहुंचो।”
कहकर सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर भी खबर पहुंचानी थी।

एक संवाद…
लाला जी पीछे मुड़े तो सात माह की गर्भवती प्रभावती ने सारी बात सुन ली, आंसू बह रहे थे। उसने कहा – लाला जी हमें निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे व कागज बांध लेने को कहा है।

पर लाला जी का मन मानने को तैयार नहीं था- सरदार झूठ बोल रहा है, हम कहीं नहीं जाएंगे। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा।

प्रभावती ने बताया – वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया।

लाला बलवंत – तुमने यह पहले क्यों नहीं बताया? मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती – आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहता हैं। अब उसे जबरन ले जाने आ रहे हैं।

एक गुरुद्वारा…
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था, पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे।महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए थी।

एक भीड़…
अचानक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई।भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,
★ पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
★ हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
★ कारों, काटना असी दिखावेंगे
★ किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
★ हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना…
प्रभावती खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर में ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का शोर। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ता गया। भीड़ में लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे, उनका निशाना गुरुद्वारा था।

एक प्रतिज्ञा…
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे।

अचानक पुजारी पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी – “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने को हैं। वे हमसे समर्पण कर धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।”

चंद सेकेंड सन्नाटे के बाद ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह’ से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी – हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक इंतजार…
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गये। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह सब देखकर मजहबी भीड़ थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे।

उन्हें किसी का इंतजार था। हजारों का हुजूम आ गया था। गुरुद्वारे में मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक उन्माद…
अंतिम लड़ाई का क्षण आ गया। भीड़ ने अपने बीच से नग्न अचेत सिख- महिला आगे खींची। भीड़ उसे नोंच रही थी। अचानक एक ने उसका वक्ष तलवार से काट गुरुद्वारे में फेंक दिया।

एक सवाल…
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने पहले इस तरह की बर्बरता कभी सुनी भी नहीं थी। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में यह सोचकर डर गया। उनकी मौत के बाद उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं, तो उसका क्या होगा? अब उन्हें केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।

एक कत्लेआम…
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई कर कत्लेआम मचा दिया। हिंदू-सिख बांकुरों से लड़े, पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते…

एक मुक्ति…
लाजो – तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा – जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे?

लाजो – यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष… बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो… पारो… गायो… इशो… और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी।

लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिये।

एक आदेश…
लाला बलवंत ने प्रभावती से कहा – गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो।

प्रभावती – मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी।
लाला जी – तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा- जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन चल दिया।

एक पिता…
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोद उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियां काट डाली थी। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।

लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है, जिसने भारत विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और परिवार के कई लोगों की हत्या हुई थी।

लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मी संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही। वे पंजाब के अमृतसर में रहते हैं।

हाल ही में मुझे किसी ने यह लिंक, इस आग्रह से भेजा, ताकि इसका हिंदी में अनुवाद कर 135 करोड़ भारतीयों को बंट़वारे की वस्तुस्थिति से अवगत कराऊं।

एक पेंटिंग…
पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों से सामूहिक बलात्कार हुआ। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता के वर्णन को के.सी. आर्यन ने एक पेंटिंग बनाई थी।

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