ये कैसी विपक्षी राजनीति? टिकैत, गौरव पांधी और शरजील चाहते हैं विदेशी हस्तक्षेप!!!

टिकैत, गौरव, शरजील… ये कैसी खुन्‍नस? नाराजगी अपनी जगह, अपने प्रधानमंत्री को विदेशी मंचों पर टारगेट करना कितना सही!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे के साथ अपने ही कुछ लोग उन्‍हें वहां नीचा दिखाने की कोशिश में जुटे हैं। वे घरेलू मुद्दों पर दुनिया से हस्‍तक्षेप की मांग कर रहे हैं। शायद उनका अपने प्रधानमंत्री और संविधान में कोई विश्‍वास नहीं रह गया है।

नई दिल्‍ली 24 सितंबर।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी दौरे पर हैं। यह दौरा कई मायनों में अहम है। वह भारत के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। सिर्फ अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन और उप राष्‍ट्रपति कमला हैरिस से ही नहीं, मोदी की मुलाकात जापान और ऑस्‍ट्रेलिया के राष्‍ट्रध्‍यक्षों से भी हुई है। बतौर प्रधानमंत्री वह अमेरिका में भारत की आवाज बुलंद करने गए हैं। वहीं, कुछ लोग मर्यादाएं भूलते हुए अपने ही प्रधानमंत्री को शर्मसार करने में जुटे हैं। घरेलू मुद्दों को अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर उठाया जा रहा है। आखिर यह कैसी खुन्‍नस है? इसका किसे नुकसान है? क्‍या हम घर के मुद्दों को सुलझाने के लिए किसी बाहरी की मदद लेंगे?


किसी बात से नाराजगी और विरोध अपनी जगह है। लोकतंत्र में इसकी स्‍वतंत्रता है। इसे होना भी चाहिए। पर, यह कितना उचित है जब प्रचंड बहुमत पाकर चुना गया देश का पीएम विदेश में हमारा प्रतिनिधित्‍व करने गया हो और उस पर निशाने साधे जाएं। उसे लज्जित और शर्मसार किया जाए। ऐसा कोई और नहीं हमारे बीच के ही लोग करें। शुक्रवार को यह मंशा साफ उजागर हुई। एक नहीं, कई लोगों ने अपने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने की कोशिश की। खासकर ऐसे समय में जब दुनिया भारत की आवाज सुनने के लिए इंतजार कर रही है। अफगानिस्‍तान में पाकिस्‍तान की चाल हो या चीन की विस्‍तारवादी सोच, भारत का इन मामलों पर जो स्‍टैंड रहा है, उस पर मुहर लग रही है। उसे सहयोग देने के लिए दुनिया बाहें खोलकर खड़ी है।

टिकैत की ऐसी राजनीति का क्‍या फायदा?

शुरुआत करते हैं तीन कृषि कानूनों के विरोध का चेहरा बने राकेश टिकैत से। पिछले एक साल से टिकैत कृषि कानूनों का तीखा विरोध कर रहे हैं। इसे लेकर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता टिकैत लगातार नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर हैं। प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन के बीच होने वाली बैठक से पहले उन्‍होंने एक ट्वीट किया जो बिल्‍कुल अनुचित लगता है। टिकैत ने ट्विटर पर बाइडन को टैग करते हुए लिखा है कि वह भारत में प्रदर्शन कर रहे किसानों के मुद्दे पर भी पीएम मोदी से चर्चा करें।

किसान नेता टिकैत ने ट्वीट किया- ‘डियर प्रेसीडेंट बाइडन, भारतीय किसान पीएम मोदी की सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। 11 महीने में 700 से अधिक किसानों की इस बीच मौत हो चुकी है। हमें बचाने के लिए इन काले कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए। कृपया पीएम मोदी से मिलते समय हमारे मुद्दों पर ध्यान दें।’

सवाल उठता है कि क्‍या अमेरिकी राष्‍ट्रपति हमारे मुद्दे सुलझाएंगे? बाइडन को टैग करने का क्‍या मतलब है? क्‍या मोदी टिकैत के पीएम नहीं हैं? क्‍या वह भारत के पीएम को बेइज्‍जत करना चाहते हैं? टिकैत की मंशा क्‍या है, वह वही जानें। हालांकि, देश का पीएम मोदी होते या कोई और, इस तरह से विदेश में अपने प्रधानमंत्री को टारगेट करना कितना उचित है।


झूठ की हद हो गई

दूसरे ऐसे ही कैरेक्‍टर हैं कांग्रेस नेता गौरव पांधी। पांधी पार्टी की सोशल मीडिया टीम के कॉर्डिनेटर हैं। उन्‍होंने तो खुन्‍नस में झूठ की सभी हदें पार कर डालीं। दरअसल, पीएम मोदी ने कमला हैरिस के साथ अपनी मुलाकात की कुछ तस्‍वीरें शेयर कीं। इस ट्वीट पर गौरव पांधी ने लिखा, ‘यूएस वाइस प्रेसीडेंट कमला हैरिस ने पीएम मोदी के साथ इस मुलाकात के बारे में ट्वीट नहीं किया है, जबकि उन्होंने अन्य देशों के नेताओं के बारे में बड़े पैमाने पर ट्वीट किया है जिनसे वह पहले और बाद में मिली थीं। क्‍या कारण हो सकता है? कोई बताएगा?’
पांधी के ट्वीट की मंशा बिल्‍कुल साफ है कि पीएम मोदी अपना बखान करते रहते हैं जबकि उन्‍हें कोई भाव तक नहीं देता है। हालांकि, सच यह है कि पांधी ने सरासर झूठ ट्वीट किया। कमला हैरिस ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से पीएम मोदी के साथ अपनी बातचीत की वीडियो क्लिप शेयर की। इसमें उन्‍होंने पीएम के साथ मुलाकात की बात कही। अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक रिश्‍तों को मजबूत करने की बात कही।

पांधी शायद भूल गए कि यह सोशल मीडिया है। यहां उनका झूठ दो मिनट में पकड़ लिया जाएगा। फिर ऐसा झूठ बोलने की जरूरत ही क्‍या है। एक बार हम मान लेते हैं कि अमेरिकी उप राष्‍ट्रपति पीएम के साथ वीडियो क्लिप शेयर न करतीं तो क्‍या हम अपने पीएम की बात नहीं मानते। क्‍या यह मानते कि वह झूठ बोले रहे हैं? किसी बात का सिर-पैर होना भी जरूरी है। पांधी की बेतुकी बातों का शायद ही कोई समर्थन करे।

ये कैसी नाराजगी?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के पूर्व छात्र शरजील उस्‍मानी ने भी वही घटिया हरकत की जो उससे उम्‍मीद थी। उसने प्‍यू के सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए कहा कि इन सर्वेक्षणों में विश्वास रखने वाले पत्रकार और बुद्धिजीवी भले ही सहमत न हों, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय को मूल रूप से कट्टरपंथी बना दिया गया है!

उसने संयुक्‍त राष्‍ट्र (UN) से अपील की कि वह भारत को देखे। लोगों को उकसाने के लिए उसने यह भी दावा किया कि जब वह यह कहता है कि बड़े पैमाने पर एक नरसंहार होने वाला है जैसा कभी देखा नहीं गया होगा तो वह अतिशयोक्ति नहीं करता है। शरजील के खिलाफ सीएए और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन में छात्रों को भड़काने और शहर का माहौल खराब करने के सहित कई संगीन आरोप हैं।

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