वन एंड ओनली राकेश झुनझुनवाला थे ब्लैक कोबरा के मंदडिये चेले

राकेश झुनझुनवाला : ब्लैक कोबरा का मंदड़िया चेला जिसने हर्षद मेहता की बर्बादी से लगाई छलांग

राकेश झुनझुनवाला बिग बुल बाद में बने

नई दिल्ली 14 अगस्त: मैं जिंदगी अपनी शर्तों पर जीता हूं, आज जो कुछ भी हूं अपने बूते हूं, अगर लाइफ में मिस्टेक करने से डर गए तो कुछ नहीं कर पाओगे। ये थे हमारे वॉरन बफेट यानी राकेश झुनझुनवाला। हर पल मस्ती में जीने वाला शख्स। चाहे कैमरे सामने हों, लाइव चल रहा हो अगर पान मसाला खाना है तो खाना है। कोई टोक नहीं सकता। कई बीमारियां पर दिलेरी वही। बैठे हैं वील चेयर पर लेकिन जब कजरारे – कजरारे.. कजरारे तेरे नयना बजा तो झूमने लगे। दलाल स्ट्रीट का ये सरताज गमजदा कभी नहीं हुआ। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो ये जानना जरूरी है कि राकेश झुनझुनवाला हमेशा देश और इकॉनमी के बारे में पॉजिटिव रहे। जब अकासा एयर लॉन्च किया और किसी ने विजय माल्या, गोपीनाथ का जिक्र कर पूछा कि बजट एयरलाइन चल पाएगी, जवाब आया – क्यों नहीं, रिस्क तो लेना पड़ेगा न। 350 करोड़ डॉलर में 70 प्लेन के ऑर्डर देने के बाद आज अकासा एयर आसमां छू रहा है तब राकेश झुनझुनवाला हमारे बीच नहीं है। आखिरी बार अकासा एयर की पहली फ्लाइट के मौके पर ही उन्हें देखा गया। हर जगह हम ये खबर देख रहे कि शेयर मार्केट का बिग बुल नहीं रहा। लेकिन ये पूरा सच नहीं है। राकेश झुनझुनवाला को तेजड़िया (बुल) किसी ने बनाया तो उनके अंदर बसे मंदड़िए (बीयर) ने। तब जब बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर हर्षद मेहता का राज था।

हर्षद मेहता कैसे ऑपरेट करता और किसी शेयर के भाव को आसमान पर पहुंचाता इसे वेब सिरीज स्कैम-1992 में बखूबी दिखाया है। दलाल स्ट्रीट का असली बुल तो मेहता था। उसने एसीसी के शेयर को 200 रुपए से 9000 रुपए पर पहुंचा दिया। एक अप्रैल 1991 से मई 1992 के बीच बीएसई का सेंसेक्स रॉकेट हुआ जा रहा था। कुछ लोगों की राय थी मनमोहन सिंह सरकार के उदारीकरण से उम्मीद जगी है और इसीलिए तेजी आई है। लेकिन ये सच नहीं था। हर्षद मेहता रिजर्व बैंक के सारे नियमों को तोड़ कर सरकारी बैंकों से पैसा उठा रहा था और वो भी बिना किसी अनामत के।

हर्षद मेहता ने बैकों से बैंक रिसीट लिया पर 90 दिन के भीतर शेयर खरीदने का प्रूफ या शेयर पेपर जमा ही नहीं किए। ये बीआर कैश मनी की तरह था। हर्षद इसे दूसरे बैंक से कैश भी करा लेता था। हर्षद ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को भी चूना लगा दिया। 500 करोड़ रुपए के स्कैम में हर्षद ने स्टॉक मार्केट को इतना बढ़ा दिया कि शेयरों की कुल कीमत देश के हेल्थ और शिक्षा बजट से ज्यादा हो गई। जब सुचेता दलाल ने हर्षद के गेम का पर्दाफाश किया तो उसका दुश्मन मनु मानेक इसका फायदा उठाने को बेताब था। मनु मानेक को शेयर दलाल ब्लैक कोबरा के तौर पर जानते थे। राधाकृष्ण दमानी और राकेश झुनझुनवाला इसी के चेले थे।

ले फटाफट-दे फटाफट

जैसे ही हिंट मिला कि मार्केट क्रैश होने वाला है। आरीबाई ने बीआर के गेम में बैंकों पर शिकंजा कस दिया है। वैसे ही ब्लैक कोबरा ने फन फैला दिया। फटाफट शेयर शॉर्ट होने लगे। यानी मंदड़िए बने ब्लैक कोबरा के गुट ने हर्षद मेहता की खरीदे शेयरों को बेचना शुरू कर दिया। जैसे ही मार्केट गिरना शुरू हुआ इनकी चांदी हो गई। 500 में शेयर बेच 200 में खरीदने लगे। यानी 300 का शुद्ध मुनाफा। देखते ही देखते सेंसेक्स 4500 से 2500 पर आ गया। राकेश झुनझुनवाला मालामाल हो गए। वो जमाना कागजों पर शेयरों की खरीद बिक्री का था। ब्लैक कोबरा के बारे में कहा जाता है कि अस्सी के दशक में वो शर्त लगाकर 100 रुपए के शेयर को एक रुपए पर तोड़ सकता है। मनु मानेक ने हर्षद मेहता को पटखनी देने के लिए 90-91 में अफवाह फैलाई कि हर्षद को एक करोड़ रुपए का घाटा हो गया है। उसे उम्मीद थी कि इसके बाद हर्षद ने जिन कंपनियों के शेयर खरीदे थे उसमें बिकवाली शुरू हो जाएगी। लेकिन तब ब्लैक कोबरा कामयाब नहीं हो सका।
जैसे ही हिंट मिला कि मार्केट क्रैश होने वाला है।आरबी आई ने बीआर के गेम में बैंकों पर शिकंजा कस दिया है। वैसे ही ब्लैक कोबरा ने फन फैला दिया। फटाफट शेयर शॉर्ट होने लगे। यानी मंदड़िए बने ब्लैक कोबरा के गुट ने हर्षद मेहता की खरीदे शेयरों को बेचना शुरू कर दिया।

आलोक कुमार

हर्षद मेहता और सेंसेक्स के गर्त में जाने से जो पैसा राकेश झुनझुनवाला ने बनाया उसी से वो बीयर से बुल गियर में आ गए। वो सबकी नज़रों में तब चढ़े जब 1996 में टाटा टी के शेयर 43 रुपए के भाव पर लिया और तीन महीने में दाम 143 रुपए हो गया। इसके बाद राकेश झुनझुनवाला ने कभी मुड़ कर नहीं देखा। ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट दोनों पर समान पकड़ उनकी खासियत थी। शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म दोनों ही तरीकों से उन्होंने निवेश किया। ले फटाफट – दे फटाफट शैली वाले निवेशक। वो डील पकड़ने के माहिर थे। हाली ही में जब जी इंटरटेनमेंट और सोनी के बीज डील हुई तो उससे आठ दिन पहले ही झुनझुनवाला ने जी के शेयर लिए थे। महज हफ्ते भर में 50 करोड़ रुपए का मुनाफा उनकी जेब में थे।

वो हमारे आपके जैसे छोटे निवेशकों के लिए रोल मॉडल थे। जिस कंपनी में पैसा लगा दिया उसके पीछे निवेशक टूट पड़ते। लेकिन एग्जिट स्ट्रैटेजी सबसे तगड़ी थी। एक शातिर ट्रेडर की तरह झुनझुनवाला ये नहीं बताते कि आज वो अमुक कंपनी से निकलने वाले हैं। टाटा ग्रुप की कंपनियों से उन्होंने जम कर पैसे कमाए। खासकर टाइटन के शेयर को तो झुनझुनवाला ने अनमोल रत्न बना दिया। आज जब राकेश झुनझुनवाला हमारे बीच नहीं रहे, तब उनके पोर्टफोलियो में 32 कंपनियों के शेयर हैं। वो 36 हजार करोड़ रुपए का फंड छोड़ गए हैं। अकासा एयर रतन टाटा की एयर एशिया और एयर इंडिया को चुनौती देने के लिए उड़ान भर चुकी है।

How Rakesh Jhunjhunwal Became Rich Under Manu Manek After Harshad Mehta Crashed Sensex

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